Brainstorming Session on “Use of cloned Bull Semen for Breed Improvement”

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29 August 2019: The ICAR-Central Institute for Research on Buffaloes, Hisar and Indian Society for Buffalo Development, Hisar jointly organized Brainstorming Session on “Use of cloned Bull Semen for Breed Improvement” at the National Agricultural Science Centre Complex today.

Dr. Trilochan Mohapatra, Secretary (DARE) & DG (ICAR) stressed on the need to critically analyze the pros and cons prior to the dissemination of the technology to the farmers. This would help in meeting the growing need of the superior buffalo germplasm. Dr. Mohapatra opined that the use of this technology for the breed improvement would lead to increased production potential of the animals. He also emphasized on the selection of best bulls of buffaloes available with the organized farm or developmental agencies.

Dr. Joykrushna Jena, Deputy Director General (Fisheries & Animal Science), ICAR emphasized on the need of superior bull for increasing the artificial insemination coverage in the country. Dr. A.K. Misra, Chairman, Agricultural Scientists’ Recruitment Board stressed on the cloning technology’s potential for the breed improvement.

Dr. P.S. Yadav, Principal Scientist, ICAR-CIRB highlighted the ICAR-CIRB, Hisar and ICAR-NDRI, Karnal’s joint efforts that helped in producing the superior male bulls using the cloning technology. This helped in meeting the demand of buffalo semen for the artificial insemination globally. Dr. Yadav stated that both the Institutes have cloned 4 male bulls that are producing semen which is being utilized for the artificial insemination in the experimental herd. The process is performing normally in all the parameters of semen quality and conception and has resulted in the production of normal progenies.

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Dr. M.L. Madan, Former Deputy Director General (Animal Science), ICAR;  Dr. M.P. Yadav, Former Vice-Chancellor, Sardar Vallabhbhai Patel University of Agriculture, Meerut; DrM.S. Chauhan, Director, ICAR-Central Institute for Research on Goat, Makhdoom and Dr. R.R.B. Singh, Principal Scientist, ICAR-National Dairy Research Institute, Karnal along with other dignitaries were also present during the occasion.

Earlier, Dr. S.S. Dahiya, Director, ICAR-CIRB delivered the welcome address. The 2 Sessions on “Importance and current standing of cloning technology” and “Strategy for making best use of elite cloned bull semen for breeding” were also held on the occasion.

भाकृअनुप-केंद्रीय भैंस अनुसंधान, हिसार और इंडियन सोसाइटी फॉर बफ़ेलो डेवलपमेंट, हिसार ने संयुक्त रूप से आज राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में ‘नस्ल सुधार के लिए प्रतिरूपित बुल (नर भैंस) वीर्य के उपयोग’ पर विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया।

डॉ. त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भा.कृ.अनु.प.) एवं सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने किसानों को प्रौद्योगिकी के प्रसार से पहले उसके गुण और दोष (फायदा और नुकसान) का गंभीर विश्लेषण करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे बेहतर भैंस के जर्मप्लाज्म की बढ़ती जरूरत को पूरा करने में मदद मिलेगी।

डॉ. महापात्र का मानना था कि नस्ल सुधार के लिए इस तकनीक के इस्तेमाल से पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी। उन्होंने संगठित खेती या विकासात्मक एजेंसियों के साथ उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ नर भैंसों के चयन पर भी जोर दिया।

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डॉ. जयकृष्ण जेना, उप महानिदेशक (मात्स्यिकी और पशु विज्ञान), भाकृअनुप ने देश में कृत्रिम गर्भाधान कवरेज बढ़ाने के लिए बेहतर बैल की आवश्यकता पर जोर दिया।

डॉ. ए. के. मिश्रा, अध्यक्ष, कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड ने नस्ल सुधार के लिए क्लोनिंग प्रौद्योगिकी की क्षमता पर जोर दिया।

डॉ. पी. एस. यादव, प्रधान वैज्ञानिक, भाकृअनुप-सीआईआरबी ने भाकृअनुप-सीआईआरबी, हिसार और आईसीएआर-एनडीआरआई, करनाल के संयुक्त प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिसने क्लोनिंग प्रौद्योगिकी का उपयोग करके बेहतर नर बैल का उत्पादन करने में मदद की। इससे विश्व स्तर पर कृत्रिम गर्भाधान के लिए भैंस के वीर्य की मांग को पूरा करने में मदद मिली। डॉ. यादव ने कहा कि दोनों संस्थानों ने 4 नर भैंसों का क्लोन (प्रतिरूप) बनाया है जो वीर्य का उत्पादन कर रहे हैं जिनका प्रायोगिक तौर पर पशु समूह में कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह प्रक्रिया वीर्य गुणवत्ता और गर्भाधान के सभी मापदंडों में सामान्य रूप से प्रदर्शन कर रही है और इसके परिणामस्वरूप सामान्य संतानों का उत्पादन होता है।

डॉ. एम. एल. मदान, पूर्व उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), भाकृअनुप; डॉ. एम. पी. यादव, पूर्व कुलपति, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ; डॉ. एम. एस. चौहान, निदेशक, भाकृअनुप-केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम और डॉ. आर. आर. बी. सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के साथ अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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डॉ. एस. एस. दहिया, निदेशक, भाकृअनुप-सीआईआरबी, हिसार ने स्वागत संबोधन किया। इस अवसर पर दो अन्य सत्रों – ‘प्रतिरूपण तकनीक का महत्त्व और वर्तमान स्थिति’ और ‘प्रजनन के लिए कुलीन प्रतिरूप बैल वीर्य का सर्वोत्तम उपयोग करने की रणनीति’  – का आयोजन भी किया गया।

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