पशुओं में संक्रमण: दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव

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वे रोग जो बैक्टीरिया, वाइरस तथा प्रोटोजोआ द्वारा फैलते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। छूत से फैलने वाले सभी रोग संक्रामक रोग होते है।

प्रमुख संक्रामक रोग निम्न है:

  1. खुरपका मुंहपका रोग- यह एक भयानक संक्रामक वाइरस जनित रोग है। इस रोग में तेज बुखार आता है जो 104 फै0 तक पहुंचता है। मुंह से लार टपकती है। खुर में घाव हो जाने पर पशु एक स्थान पर खडा नहीं रह पाता है। लंगड़ाकर चलता है। घाव में कीड़े पड़ जाते हैं। मुंह मे छाले पड़ जाते है पशु खाना पीना छोड़ देता है। दूध में कमी आ जाती है तथा गर्भपात हो जाता है। यदि बिमारी हो जाये तो बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिये। रोगी पशु का मुंह 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल से धोना चाहिये तथा खुर 1 प्रतिशत कॉपर सल्फेट के विलयन से धोना चाहिये।
    बचाव – इसका टीका पशुपालन विभाग द्वारा रियायती दर पर लगाया जाता है यह टीका वर्षा आरम्भ होने से पहले मई-जून में लगवा लेना चाहिये।
  2. पी0पी0आर0- यह एक विषाणु जनित रोग है कि मुख्यतः भेड, बकरियों में होता है। यह रोग गाय, भैंस में नहीं होता। इसमें प्रारम्भ में 105-107 फै0 तक तीव्र ज्वर होता है। इसके साथ नाक से पानी गिरता है जो बाद में गाढ़ा हो जाता है। कभी-कभी इसमें रक्त के धक्के भी हो सकते है। होंठ मुंह जीभ पर छोटे घाव बन जाते है। सांस लेने मे तकलीफ होती है। आंख से आसू आना, सूजन व अतिसार अन्य प्रमुख लक्षण है।
    बचाव-ः स्वस्थ पशुओं में टीकाकरण करवाने से ही बचाव संभव है। रोग होने पर लक्षणानुसार उपचार पशु चिकित्साक द्वारा किया जा सकता है।
  3. गला घोट- यह जीवाणु जनित रोग है। यह पास्टुरेल्ला मल्टीसिडा द्वारा होता है इस रोग में 104-106 फै0 तक बुखार आता है। गले में सूजन आती है। सांस लेने में कठिनाई होती है। उपचार न कराने पर पशु 24 घंटे मे मर जाता है। यह रोगक आमतौर पर बरसात में होता है।
    बचाव-रोग की रोकथाम के लिये पशुओं को प्रति वर्श मई-जून माह में टीका लगवा लेना चाहिये। रोग हो जाने पर बीमार पशु को अलग रखें तथा उपचार करायें।
  4. लंगडि़या बुखार- यह भी जीवाणु जनित रोग है। यह क्लोस्ट्रीडियम कोवियाडू द्वारा फैलता है। मुख्यतः यह रोग 6 महीने से 2 वर्ष की आयु के पशुओं में होता है। प्रमुख लक्षणों में तेज बुखार आना, पैर में सूजन आना और सूजन में गैस का भरना है। सूजन मे दबाने से घर-घर की आवाज आती है।
    बचाव -रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में अगस्त-सितम्बर में टीका लगाना चाहिये। बीमार पशु को एन्टीब्लेक क्वार्डर सरीप लगाना चाहिये। मरे पशु को जमीन में गाड देना चाहिये जिससे संक्रमण न हो सके।
  5. जहरी बुखार- यह रोग बैसिलस एन्थ्रेसिस नामक जीवाणु से होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षणों में 105-108 फै0 तक तेज बुखार आता है। तिल्ली बढ़ जाती है तथा खून का रंग काला हो जाता है। नथुनों से खून निकलता है। अंततः 24-28 घन्टें में मृत्यु हो जाती है। यह रोग संक्रामक द्वारा मनुश्यों में भी फैल जाता
    बचाव – रोग से बचाव के लिये स्वच्छ पषुओं में अगस्त माह में एन्थ्रेक्स का टीका लगवाना चाहिये। मरे हुये पशु की खाल नहीं निकालनी चाहिए और शव को गहरे गड्ढे में डालकर दबा देना चाहियै।
  6. संक्रामक गर्भपात- यह विशाणुजनित रोग है जो बुसेल्ला एबोटस से होता है। प्रमुख लक्षणों में गर्भपात, जेर का रूकना, बांझपन तथा ? यह रोग मुनश्यों में संक्रमण द्वारा फैल जाता है। जिससे अनडुलेन्ट फीवर कहते है। इस रोग के बचाव के लिए बीमार पशु को अलग रखना चाहिए। पशु के सरीम की जांच से रोग का पता चलता है। बच्चा नामक टीका लगवाना चाहिए।
  7. क्षय रोग- यह रोग माइक्रो बैक्टीरिया ट्यबूरकुलोसिस नामक नाम के जीवाणु से होता है। इससे शरीर से गांठें पड़ जाती है। दुधारू पशुओं में लक्षण फेफड़ों मे दिखाई देते है। बीमार पशु का टयूबर कुलीन परीक्षण कराना चाहिये। रोग से बचाव के लिये बी0सी0जी0 का टीका लगवायें।
  8. जोहरीज रोग- यह रेग माइक्रोवेक्टीरियम पैरीट्यूबरकुलोसिस नाम के जीवाणु से होता है। प्रमुख लक्षण तीसरे से छठे साल की उम्र मे दिखाई पड़ते है।पशु कमजोर हो जाता है। त्वचा सुख जाती है। प्यास बढ़ जाती है। दस्त पतले तथा बदबूदार हो जाते है। साथ में म्यूकस तथा गैस निकलती है। रोग की रोकथाम के लिए वेलीस वैक्सीन एक माह के बछड़ों में लगवाना चाहिए।
और देखें :  पशुओं की अतिसंक्रामक बीमारी: खुरपका मुंहपका रोग

उपरोक्त सभी बीमारियां पशुओं में किसी न किसी रूप में सीधे तौर पर या उनके द्वारा उत्पन्न असर से हमारे दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है प् अतः पशुपालकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि समय.समय पर पशुओं का टीकाकरण एवं कृमि नाशक दवाओं का उपयोग पशु चिकित्सक द्वारा कराया जाना चाहिए जिससे कि इन बीमारियों का असर उनके दुग्ध उत्पादन पर ना पड़े।

और देखें :  खुरपका मुँहपका रोग (एफ.एम.डी.) के लक्षण एवं बचाव

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और देखें :  पशुओं में टीकाकरण भ्रान्तियाँ एवं आवश्यकता

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