गोपशुओं में गर्भ जांचने के तरीके

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भारत गांवों में बसता है। यहाँ कृषि भूमि की अपेक्षा गायों का ज्यादा समानता पूर्वक वितरण है। भारत की ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में डेरी-उद्योग की प्रमुख भूमिका है। पशुओं में प्राकृतिक अथवा कृत्रिम गर्भाधान के पश्चात् गर्भ की शीघ्र जाँच करवाना आर्थिक तौर से अत्यंत महत्वपूर्ण है । जितना जल्दी ग्याभिन पशु की पहचान हो उतना ही श्रेष्ठ रहता है। लगभग 24 महीने की उम्र में डेयरी गायों को पहली बार बछड़ा होना चाहिए और अगले बछड़ों को जन्म लगभग 13-13.5 महीने के अंतराल  के बाद हो जाना चाहिए । इस प्रकार, 4 महीने या उससे कम समय के भीतर गर्भ धारण करना चाहिए ताकि डेयरी गायों से अधिकतम आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सके। गर्भाधान का प्रारंभिक लक्षण पशु का अगले मद चक्र मे गर्मी मे नहीं आना माना जाता है।  ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पशुपालक गर्भित पशु को अलग करके विशेष आहार देना शुरू कर सकता है जो पशु खाली अथवा ग्याभिन नहीं मिलते, उनको अलग करके अगले मद (गर्मी) मे आने की प्रतीक्षा नियमित निरीक्षण कर सकता है।

गर्भवती के लक्षण

  • मदचक्र बंद हो जाता है।
  • गर्भवती मादा स्वभाव एवं व्यवहार में सीधी हो जाती है।
  • पशु का शारीरिक भार तथा पेट का आकार बढ़ जाता है।
  • गर्भावस्था के अंत तक स्तन में परिवर्तन हो जाता है तथा अंतिम 15 दिनों के दौरान थनों में उभार आ जाता है।

गर्भाधान की जाँच की मुख्य तीन विधियाँ है

  1. भौतिक विधि
  2. प्रयोगशाला विधि
  3. अल्ट्रासोनोग्राफीऔर भ्रूण इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी

1. पशुओ मे गर्भाधान  जाँच की भौतिक विधि

गुदा मार्ग द्वारा गर्भ परीक्षण (Rectal Palpation)इस विधि में पशुओ के गुदा मार्ग द्वारा गर्भ परीक्षण (Rectal Palpation)किया जाता है  परंतु गर्भावस्था के दौरान कई परिवर्तन देखे जाते है गर्भाशय के आकार, बनावट और स्थान में, चार सकारात्मक संकेत जो के गर्भावस्था में गुदा मार्ग द्वारा गर्भ परीक्षण से पहचाने जा सकते हैं, और गाय को गर्भवती घोषित करने से पहले परीक्षक को इन चार संकेतों में से कम से कम एक संकेत का पता लगाना चाहिए।

गायों में गर्भावस्था के चार सकारात्मक लक्षण हैं:

  1. भ्रूण झिल्ली का खिसकना
  2. एमनियोटिक वेसिकल का पाया जाना
  3. अपरा का बनना
  4. भ्रूण का बनना

गर्भावस्था के सहायक संकेत हैं:

  1. गर्भाशय की विषमता
  2. गर्भाशय का लचीलापन और उतार-चढ़ाव
  3. गर्भाशय ग्रीवा का स्थिरीकरण
  4. डिम्बग्रंथि परिवर्तन

2. पशुओ मे गर्भाधान  जाँच की प्रयोगशाला विधि

रक्त मे  हॉर्मोन  की मात्रा  का मापन कर गर्भाधान  जाँच का अनुमान किया जाता है

प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन का मापन

प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन की मात्रा  का मापन दूध और प्लाज्मा में कर गर्भ परीक्षण   के  अनुमान की विधि है, इस विधि मे कृत्रिम गर्भाधान के 17-25 दिन बाद प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का स्तर बढ़ा हुआ होता है । परन्तु ल्युटियल सिस्ट तथा भ्रूण ममीकरण इसके अपवाद है।

  • रेडियोइम्यूनोसे (RIA) या  एलिसा  किट का उपयोग करके प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन को मापा जाता है। इसमें गर्भ परीक्षण की शुद्धता- गर्भवती पशुओ मे  80 और 88%  तक होती है परंतु गैर-गर्भवती पशुओ मे गर्भ परीक्षण  की शुद्धता लगभग 100% तक सही होती है।
और देखें :  देशी संकर गाय एवं भैंसों में कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय एवं कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व ध्यान देने योग्य मुख्य बिन्दु

एस्ट्रोन सल्फेट का मापन

एस्ट्रोन सल्फेट की मात्रा का मापन दूध में कर गर्भ परीक्षण  के अनुमान की विधि है

  • एस्ट्रोन सल्फेट प्लेसेंटा का एक उत्पाद है और गर्भवती गायों के दूध में इतनी मात्रा में मौजूद होता है कि गर्भधारण के लगभग 100 दिन बाद गर्भवती और गैर-गर्भवती गायों के बीच इसकी मात्रा मे  अंतर देखा जा सकता है ।

कुछ खास प्रोटीन जो कि रक्त मे पाए जाते हैं की मात्रा  का मापन कर गर्भ परीक्षण का अनुमान किया जा सकता है जैसे

  1. गोजातीय गर्भावस्था विशिष्ट प्रोटीन-बी (bPSP B)
  2. प्रतिरक्षादमनकारी प्रारंभिक गर्भावस्था कारक (EPF) – डेयरी गायों से ओव्यूलेशन के 24 घंटे के भीतर रक्त के नमूनों की जांच इम्यूनोसप्रेसिव प्रारंभिक गर्भावस्था कारक की उपस्थिति के लिए की जा सकती है। यह परीक्षण5% गायों में गर्भधारण के 24 घंटे से कम समय में गर्भावस्था का  पता करने में सक्षम है 5% तक गलत हो सकता है जब गैर-गर्भवती गायों का पता लगाया जाता है।

3. अल्ट्रासोनोग्राफी  विधि से पशुओ मे गर्भ परीक्षण

ऊतकों की अधिक गहराई में प्रवेश करने में सक्षम होने की वजह से इस विधि में पशुओ मे कम आवृत्ति वाले ट्रांसड्यूसर इस्तेमाल होते हैं लेकिन छोटी संरचनाओं को हल करने में यह सक्षम नहीं होते हैं। उच्च आवृत्ति वाले ट्रांसड्यूसर छोटी संरचनाओं को हल करने में सक्षम होते हैं लेकिन ऊतकों के माध्यम से गहराई से प्रवेश नहीं करते हैं।

  • पशुओ में, ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासोनोग्राफी के लिए 5 MHz-10 MHz के ट्रांसड्यूसर का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
  • गर्भाधान के 24-30 दिन के उपरांत संभव है।
और देखें :  कृत्रिम गर्भाधान की असफलता के कारण एवं समाधान

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