स्वच्छ दुग्ध उत्पादन (Clean Milk Production)
दूध एक सम्पूर्ण आहार है जिसका जीवनकाल अल्प अवधि का होता है। दूध किसी भी जीव के लिए एक पौष्टिक आहार है। यदि दूध में जीवाणुओं की संख्या ज्यादा होती है तो उसके खराब होने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है। अतः दूध में जीवाणुओं की संख्या को नियन्त्रित करने के लिए उसके उत्पादन के समय से ही बचाये रखना अतिआवश्यक है। निम्नलिखित उपायों को अपनाकर दूध गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है:
दूध निकालने का सही समय (चित्र 1): आमतौर पर दूधारू पशुओं का दूध सुबह-शाम निश्चित समय पर निकाला जाता है। यदि दूध निकालने का समय निश्चित नहीं होता है तो यह दुग्ध उत्पादन की दक्षता को प्रभावित करता है अर्थात जैसे कि यदि सुबह छः बजे निकाला गया है तो शाम को भी दूध छः बजे ही निकालना चाहिए, ऐसा नहीं करने से दुग्ध उत्पादन प्रभावित होता है। अतः सही दुग्ध उत्पादन लेने के लिए दूध निकालने के लिए सुबह-शाम का एक निश्चित एवं सही कार्यक्रम होना चाहिए।
दुधारू पशुओं को नहलाना (चित्र 2): पशु के शरीर पर असंख्य रोगाणु होते हैं जो दूध दूध निकालते समय उसको संक्रमित करके उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अतः दूध देने वाले पशुओं को दूध निकालने से अच्छी तरह नहलाना चाहिए ताकि उसके शरीर पर मौजूद रोगाणुओं की संख्या कम की जा सके।
दुग्धशाला की सफाई (चित्र 3): दुग्धशाला में असंख्य रोगाणु उसके फर्श एवं वातावरण में मौजूद होते हैं जो निकाले गये दूध में मिलकर उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अतः दुधारू पशुओं को नहलाने के साथ-साथ दुग्धशाला की भी आधा घण्टा पहले अच्छी तरह साफ-सफाई एवं रोगाणु रहित करना भी अनिवार्य है।
बर्तनों की बनावट एवं साफ-सफाई (चित्र 4): आमतौर पर दूध के बर्तनों में कोण एवं जोड़ होते हैं जिनमें जीवाणुओं की संख्या अत्याधिक होती है। अतः दूध निकालने के लिए उपयोग किये जाने वाले बर्तनों के पैंदे गोल एवं जोड़रहित होने चाहिए ताकि उनकी अच्छी तरह साफ-सफाई की जा सके।
दूध निकालते समय पशु को दाना देना (चित्र 5): सामान्यतः पौष्टिक आहार पशु के लिए उसके दुग्ध उत्पादन शारीरिक रखरखाव के लिए अतिआवश्यक होता है। यदि दूध निकालते समय दूधारू पशु को रूचिकर आहार उपलब्द्ध करवाया जाता है तो उसका मन शान्त रहता है और उसका दूध भी पौष्टिक होने के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है और उसमें जीवाणुओं की वृद्धि भी भी नियन्त्रित रहती है।
दूध निकालने वाले की साफ-सफाई (चित्र 6): कपड़ों के ऊपर असंख्य मात्रा में सूक्ष्मजीव होते हैं। शरीर पर असंख्य सूक्ष्मजीव होते हैं जिसकी संख्या व्यक्ति विशेष के नाखूनों में अधिक होती है। अतः दूध निकालने वाले के शरीर की साफ-सफाई होनी चाहिए और उसके नाखून छोटे होने चाहिए। उसके कपड़े भी साफ एवं सूक्ष्मजीव रहित होने चाहिए। ऐसा करने से भी दूध में जीवाणुओं की संख्या कम होगी और दूध का जीवनकाल बढ़ेगा।
हाथों की साफ-सफाई (चित्र 7): त्वचा के ऊपर असंख्य मात्रा में रोगाणु चिपके होते हैं जो दूध में मिलकर उसके जीवनकाल को कम करते हैं। अतः दूध निकालने से पहले हाथों की साफ एवं स्वच्छ पानी व जीवाणुनाशक दवा से अच्छी तरह धोए जाने चाहिए। हाथों को धोने के बाद साफ एवं सूखे कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। यदि सभंव हो तो दूध निकालने से पहले रोगाणुनाशक दवा का भी उपयोग किया जाना चाहिए।
लेवटी को साफ करना (चित्र 8): पशु के शरीर पर असंख्य रोगाणु होते हैं। दुधारू पशु की लेवटी सीधेतौर पर भूमि के सम्पर्क में रहती है जिससे उसके ऊपर रोगाणुओं की संख्या अधिक होती है। अतः पशु का दूध निकालने से पहले उसकी लेवटी को साफ एवं स्वच्छ पानी से धोकर साफ एवं स्वच्छ कपड़े से सूखा लेना चाहिए। ऐसा करने निकाले गये दूध में जीवाणुओं की संख्या नियन्त्रित रहने से वह जल्दी खराब नहीं होगा।
लेवटी की मालिश करना (चित्र 9): दुधारू की लेवटी पर दूध निकालने से पहले लेवटी को धोते समय मालिश करने से हाथों का स्पर्श पशु को सुखदायक लगता है। इसके साथ लेवटी को स्पर्श करने से शरीर में से दुग्ध स्त्रावी हॉरमोन भी निकलने लगता है जिससे लेवटी में पसमाव आ जाता है और पशु पशु आराम से खड़ा होकर यथासंभव पूरा दूध देता है।
लेवटी को पानी से धोना (चित्र 10): दूध निकालने से पहले लेवटी को पानी से धोया जाता है जिससे पानी नीचे टपकता रहता है। यदि लेवटी को पानी से धोने के बाद सुखाया नहीं जाता है तो यह टपकता हुआ पानी दूध में मिल जाता है जिससे दूध की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः दूध निकालने से पहले लेवटी एवं थनों को पानी से धोने के बाद साफ कपड़े से पोंछकर सुखा लेना चाहिए।
हाथों को चिकना करना (चित्र 11): पशु का दूध निकालते समय हाथों का स्पर्श उसके लिए सुखदायी होना चाहिए। यदि हाथों का स्पर्श अच्छा नहीं होगा तो पशु दर्द हो सकता है और वह दूध निकलने में असहज महसूस करेगा जिसका उसके दुग्ध उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसकी समस्या उस समय और थोड़ी ज्यादा बढ़ जाती है जब हाथ खुरदरे होते हैं। अतः पशु का दूध निकालने से पहले हाथों पर चिकना पदार्थ लगा लेना चाहिए जिससे उसको सहज स्पर्श महसूस हो ताकि वह सही दुग्ध उत्पादन कर सके।
अंगुली दूध में न डुबोएं (चित्र 12): आमतौर पर यह देखने में आता है कि दूध निकालने वाला हाथों की हथेलियों एवं थनों को चिकना करने के लिए अंगुली को बर्तन में निकाले गये दूध में डुबोते हैं। ऐसा करने से हाथों के ऊपर मौजूद जीवाणु दूध में प्रविष्ठ कर जाते हैं और दूध संक्रमित हो जाता है जिससे दूध का जीवनकाल कम हो जाता है। अतः दूध निकालते समय दूध में अंगुलियों को नहीं डुबोना चाहिए जिसके लिए पहले से ही हाथों को चिकने पदार्थ से चिकना कर लेना चाहिए।
थनैला रोग को चैक करना (चित्र 13): थनैला रोग से ग्रसित पशुओं के दूध में रोगाणुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। ऐसे दूध का जीवनकाल कम होता है और यह जल्दी खराब हो जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में थनैला रोग का अस्पस्ट होता है। अतः दूध में किसी भी त्रुटि को पहचानने के लिए, उसको मुख्य बर्तन में निकालने से पहले उसकी धारें, दूध चैक करने वाले पात्र में डाल कर चैक करनी चाहिए। थनैला रोग होने पर उस पशु का दूध अन्य पशुओं के दूध से अलग रखें और पशु चिकित्सक से उसका इलाज करवाना चाहिए। थनैला रोग से ग्रसित पशु के दूध का आहारीय सेवन नहीं करना चाहिए।
दूध निकालने का तरीका (चित्र 14): दूध निकालने का तरीका ऐसा होना चाहिए जिससे पशु असहज महसूस न करे। इसके लिए दूध हमेशा ही हाथ से मुट्ठी बन्द करके निकालना चाहिए न कि अंगुठा मोड़कर। दूध निकालने की यह सर्वोत्तम विधि है जिसका प्रयोग करने पर पशु शिशु को पिलाने के समान ही सुख का अनुभव करतें हैं और पशु इस विधि द्वारा दूध भी पूरा देती है। इस विधि से दोनों हाथों से दूध निकाला जाता है। इस विधि से पूरे थन पर एक सा दबाव पड़ता है। इस विधि से दूध पूरा एवं जल्दी निकलता है।
दूध निकालने की समयावधि (चित्र 15): लेवटी का धोना व दूध निकालने का सारा कार्य 8 मिनट में हो जाना चाहिए। लेवटी में दूध उतारने के लिए पिट्यूटरी ग्रंथि से दुग्ध स्त्रावी हॉरमोन निकलता है जिसकी सक्रिय अवधि लगभग आठ मिनट होती है। दूध निकालने की समयावधि ज्यादा होने पर पिट्यूटरी ग्रंथि से स्त्रावित होने वाला दुग्ध स्त्रावी हॉरमोन निष्क्रिय हो जाता है जिससे दूध कम निकलता है और साथ ही ज्यादा समय लगने पर पशु असहज महसूस करता है।
दूध निकालने के बाद थनों को जीवाणुनाशक घोल में डुबोना (चित्र 16): दूध निकालने के बाद थनों के छिद्र खुल जाते हैं जिससे वातावरण में मौजूद रोगाणु थनों के अन्दर प्रविष्ठ कर जाते हैं और थनैला रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। अतः दूध निकालने के बाद थनों को जीवाणुनाशक घोल में डुबोना चाहिए। साथ ही दूध निकालने के बाद लगभग आधे घण्टे तक पशु को बैठने नहीं देना चाहिए ताकि फर्श पर मौजूद जीवाणु भी थनों में प्रवेश न कर पाएं।
दूध निकालते समय कुछ ध्यान देने योग्य बातें: –
- दूध शान्तिपूर्ण माहौल में निकालना चाहिए।
- ऐसे पशु जो ताजे ब्याए हुए हों व ऐसे पशु जो ज्यादा दूध देते हों, उनको सबसे पहले दूहना चाहिए।
- बीमार पशुओं और ऐसे पशुओं को जिनको थनैला रोग हो, उनको दूसरे स्वस्थ पशुओं से अलग व बाद में दूहना चाहिए।
- दूध जो ऐसे थनों से निकाला गया हो जिनमें दवाई लगाई गई हो, को दूसरे दूध के साथ नहीं मिलाना चाहिए।
- दूध निकालने के बाद इसको छलनी में से छान लेना चाहिए।
- दूध को ठण्डा रखने के लिए दूध के बर्तन को बर्फ के साथ पैक कर देना चाहिए और दूध को संग्रह केन्द्र में भेज देना चाहिए।
- यह ध्यान रखें कि दूध के बर्तन धोने के लिए प्रयोग किया जाने वाला पानी साफ व जीवाणु रहित होना चाहिए।
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