पशुओं का घातक रक्त परजीवी रोग: थिलेरियोसिस कारण एवं निवारण

4.8
(50)

पशुओं को अत्याधिक हानि पहुंचाने वाले घातक रोगों में से एक है थीलेरियोसिस। यह रोग थिलेरिया अनुलेटा नामक रक्त में पाए जाने वाले परजीवी, से होता है। यह परजीवी हायलोमा नामक किलनी या कलीली द्वारा फैलता है। यह मुख्यता गर्मी या वर्षा ऋतु में अधिक होता है क्योंकि उच्च तापमान एवं उच्च आद्रता कलीली के विकास के लिए सर्वोत्तम वातावरण उत्पन्न करते हैं। इस परजीवी द्वारा अधिक हानि मुख्यता: दुग्ध उत्पादन घटने तथा दुधारू पशुओं की मृत्यु के कारण होती है।

लक्षण

इस रोग में शरीर का तापमान बहुत तेजी से लगभग 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। साथ ही लिंफ नोड्स का विस्तार हो जाता है। हृदय गति एवं स्वास् गति में बढ़ोतरी हो जाती है। नाक से सीरस पदार्थ, आंखों से आंसू एवं खांसी आने लगती है। भूख में कमी होने से पशु चारा खाना बहुत कम कर देते हैं। दुग्ध उत्पादन में भी गिरावट आ जाती है। दस्त एवं कमजोरी भी आम लक्षण है। कुछ समय पश्चात बुखार  कम होने के साथ-साथ पशु को रक्त की कमी अर्थात एनीमिया एवं पीलिया हो जाता है। पशु का मूत्र भी पीला हो जाता है। इस रोग से पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है तथा मृत्यु दर गर्भवती गायों में सबसे अधिक होती है।

जांच

इस रोग की जांच के लिए सर्वप्रथम रोग के क्षेत्र में पूर्व उपस्थिति कलीली की उपस्थिति का पता लगाते हैं। उपयुक्त लक्षणों की उपस्थिति इस रोग का अनुमान लगाने में बहुत महत्वपूर्ण है। विशिष्ट जांच के लिए खून के पतले स्मीयर एवं लिंफ नोड्स व यकृत की बायोप्सी के परीक्षण द्वारा ही इस परजीवी की उपस्थिति की जांच की जा सकती है। मृत पशुओं में शव परीक्षण भी रोग की जांच के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अन्य विभिन्न तकनीको जैसे पी.सी.आर.एवं सी.एफ.टी.द्वारा भी  इस रोग की जांच की जा सकती है।

और देखें :  पशुओं में मुख्य रक्त परजीवी रोगों के कारण एवं निवारण

उपचार

इस रोग के उपचार के लिए बूपारवाकोन का टीका 2.5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम वजन की दर से मांस पेशियों में लगाया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर दूसरा इंजेक्शन 48 घंटे बाद दोबारा दिया जा सकता है। ऑक्सीटेटरासाइक्लिन का टीका 5 से 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम वजन की दर से मांसपेशियों में लगाया जा सकता है।

नियंत्रण एवं रोकथाम

  • उक्त रोग के नियंत्रण के लिए पीड़ित पशुओं का पूर्ण उपचार करना चाहिए। पशुओं में रोग की रोकथाम के लिए रक्षावैक-टी का टीका भी उपलब्ध है। इस टीके का प्रयोग 2 महीने या उससे अधिक उम्र के पशुओं में किया जा सकता है। इस टीके की 3 मिली मात्रा को त्वचा के नीचे लगाया जाता है तथा रोग की पूर्ण रोकथाम के लिए इसे प्रतिवर्ष लगाया जाना चाहिए।
  • पशुओं की उन प्रजातियां के पालन द्वारा भी हम इस रोग का नियंत्रण कर सकते हैं, जैसे गाय की साहिवाल प्रजाति जिसमें यह रोग बहुत कम होता है।
  • कलीली के नियंत्रण द्वारा भी रोग का नियंत्रण किया जा सकता है। कलीली के नियंत्रण के लिए  निम्नांकित उपाय प्रयोग किए जा सकते हैं।
  • रासायनिक पदार्थों जैसे १.२५% डेल्टामेथ्रीन स्प्रे या 10% साइपरमैथरीन स्प्रे से पूरे शरीर पर छिड़काव द्वारा  किलनी या कलीली को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा २ मिली प्रति लीटर की दर से साईपरमेथिरन को पानी में मिलाकर पशु के शरीर को धोया जा सकता है। आइवरमेकटिन इंजेक्शन को 0.2 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम की दर से त्वचा के नीचे दिया जा सकता है। घरेलू वनस्पतियों जैसे नीम के तेल या तुलसी के तेल को पशु के शरीर पर लगाने से भी कलीली का नियंत्रण संभव है।
  • पशुओं के आवास स्थल को भी कीटनाशक तथा चूने से धोना चाहिए। आवास स्थल में चूने की पुताई करनी चाहिए तथा सभी दरारों को चुने से भरते रहना चाहिए। इन दरारों में कलीली की विभिन्न अवस्थाएं पाई जाती हैं तथा दरारें चूने या कीटनाशक से भरने पर कलीली  नियंत्रित रहती हैं। घास के मैदान की भी नियमित रूप से जुताई करनी चाहिए।
  • पशु के आवास स्थल के चारों ओर गड्ढा खोदकर उसमें कीटनाशक भरने से कलीली को आवास स्थल में आने से प्रतिबंधित किया जा सकता है। किस प्रकार दुधारू पशुओं में थीलेरियोसिस के लक्षणों की जानकारी द्वारा पशुपालक रोग के शुरुआती अवस्था में रोग की उपस्थित का अनुमान लगा सकते हैं तथा उचित समय पर पशु चिकित्सक से रोग की जांच एवं उपचार तथा रोग के नियंत्रण के विभिन्न उपायों के प्रयोग द्वारा इस रोग से होने वाली हानि से अपने पशुओं को सुरक्षित रख सकते हैं।
और देखें :  रक्त परजीवी रोगों की रोकथाम व उपचार

संदर्भ

  1. प्रीवेंटिव वेटरनरी मेडिसिन द्वारा अमलेंदु चक्रवर्ती
  2. द मर्क वेटरनरी मैनुअल
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  ग्लैंडरस एवं फारसी रोग एक खतरनाक पशुजन्य/ जूनोटिक बीमारी

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.8 ⭐ (50 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*