परिचय
सर्रा रोग (Surra) मेरुडण्ड वाले प्राणियों को लगने वाला रोग है। यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो पशु मर सकता है। यह रोग ट्रिपनोसोमा-इवेनसाई (Trypanosoma evansi) नामक परजीवी के कारण होता है। यह प्रोटोजोवा पशु के रक्त में प्रवेश कर जाता है जिससे ज्वर, कमजोरी, सुस्ती, वजन कम होना और खून की कमी हो जाती है। कुछ पशु चक्कर काटने लगते हैं। इस बीमारी के चलते पशुओं में तेज बुखार, थरथराहट, आंख से दिखना बंद हो जाता है। पशु दांत किटकिटाता है। जल्दी जल्दी पेशाब करता है। पेट फूल जाता है और गिर कर मर जाता है। नर पशुओं के अण्डकोष में सूजन आ जाती है। मादा पशुओ में गर्भपात की समस्या आती है। यह रोग मुख्यतः ऊंट या ऊँटनी में देखा जाता है। ऊंट का कूबड़ धीरे धीरे नष्ट होने लगता है। सर्रा पशुओं में पाया जाने वाला एक संक्रामक विकार है, जो पशुओं में मृत्यु तथा उत्पादन में गिरावट के कारण गंभीर आर्थिक हानि के लिए उत्तरदायी है। यह एक व्यापक रोग है जो विश्व के अनेक भागों से उल्लेखित है। कमजोरी के कारण इस रोग से ग्रासित पशु अन्य बीमारियों का शिकार जल्दी हो जाता है जैसे मुँहखुर, गलघोटू इत्यादि। यह रोग भैंस, गाय, अश्व, ऊँट एवं शूकर के साथ-साथ जंगली जानवरों में भी मिलता है। भेड़-बकरियों में भी यह रोग उल्लेखित है। यह रोग ऊष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में मिलता है, क्योंकि यह जलवायु टैबेनस वंश की मक्खियों के पनपने के लिए अच्छी है।
कारण
सर्रा का प्रसारण मुख्यतः टैबेनस (डांस) वंश की मक्खियों के काटने से होता है। जो इस रोग के लिए उत्तरदायी परजीवी (ट्रिपैनोसोमा) को रक्त चूसने के समय संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु को फैलती हैं। ये मक्खियाँ बरसात के मौसम में व बरसात के बाद के समय में अधिक सक्रिय होती हैं।इसलिए इस मौसम मैं पशुओं मैं सर्रा अधिक मिलता हैं। यद्यपि सर्रा के अव्यक्त सक्रंमण पुरे वर्ष मिलते हैं।जब पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता काम होती हैं तब अब्यक्त संक्रमित पशु मैं बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं।
रोग के लक्षण
पशुओं की विभिन्न जातियों में सर्रा की प्रकृति और प्रकोप अलग-अलग होते है। गाय और भैंस में सर्रा मुख्यतः लक्षणहीन रोग है, लेकिन कुछ रोगी पशुओं मैं यह घातक रूप ले लेता हैं। सर्रा से प्रभावित सभी पशु रक्ताल्पता के शिकार होते हैं और उनमें मांसपेशियों की दुर्बलता देखी जा सकती है। रोगी पशुओं में ऐडिमा गर्दन, कोख और पैरों के निचले हिस्सों में देखा जा सकता है।
रोगी पशुओं में रूक-रूककर बुखार आता है।अधिक घातक स्थिति में प्रभावित पशु अपने बंधे हुए स्थान पर चक्कर काटने लगता है और दीवारों पर या खूंटे से सिर मारने लगता है।परजीवी गर्भवती मादा पशुओं में नाल के माध्यम से भ्रूण को संक्रमित कर सकता है, जिस कारण से गर्भपात हो जाता है या भ्रूण वक्त से पहले पैदा हो जाता है।अश्व वंश के पशुओं में प्रगतिशील दुर्बलता, रक्ताल्पता और ऐडिमा के साथ-साथ गर्दन व बगलों में खाल पर पित्त निकल आते हैं। पशु को चलने में परेशानी होती है, कई पशु पैर घिसड़ाते हुए चलते है या चलते-चलते गिर जाते हैं। पशु को नेत्र-शोथ (कंजाइक्टिविटिस) हो जाता है और आँख से टपके आते हैं। कुछ पशुओं कीआँख में सफेदी आ जाती है। सर्रा से ग्रसित ऊँट अपने झुंड से अलग रह जाता है और लम्बी दूरी तक चलने में असमर्थ रहता है। चिरकालिक अवस्था में ऊँट में यह रोग लम्बी अवधि (तीन साल) तक बना रहता है और पशु की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है।
- घोड़ों में सर्रा: यह बीमारी काफी खतरनाक समझी जाती है, अगर ठीक समय पर उपचार न किया जाए तो एक सप्ताह से लेकर छ: महीने के बीच में उनकी मृत्यु हो सकती है। प्रभावित पशुओं में रुक-रुक कर बुखार चढ़ता है एवं बुखार के दौरान पशुओं के खून में जीवाणु आ जाते हैं। जानवर काफी कमजोर हो जाता है तथा उसकी टांगों को लकवा मार जाता है।
- ऊंट में सर्रा: ऊंट में सर्रा के लक्षण अप्रत्यक्ष रहते हैं। कभी-कभी बुखार एवं सुस्ती के लक्षण पाए जाते हैं, तथा धीरे-धीरे पशु कमजोर हो जाता है। उसके शरीर के निचले भागों में सूजन आ जाती है, उसे खुजली हो जाती है तथा वह मिट्टी खानी शुरू कर देता है। ऊंटों में यह रोग लगभग तीन साल तक चलता है, इसलिए इसे ‘तिबरसा भी कहते हैं।
- गाय तथा भैंसों में सर्रा: गाय तथा भैंसों में यह बीमारी आम पाई जाती है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत कम होता है। पशुओं में इस रोग के जीवाणु रहते हुए, भी काफी समय तक हानि नहीं पहुंचाते तथा ये पशु अन्य पशुओं के लिए इस बीमारी के स्रोत होते हैं। अगर कभी प्रभावित जानवर किसी दूसरी बीमारी से कमजोर हो जाए तो इनमें भी सर्रा के लक्षण आ जाते हैं। बुखार में दांतों का किटकिटाना, मुंह से लार आना, पेट में दर्द होना इत्यादि इस रोग के लक्षण हैं।
- कुत्तों में सर्रा: कुत्तों में दूसरे लक्षणों की अपेक्षा सूजन काफी पाई जाती है, सूजन इतनी ज्यादा होती है कि गले में दर्द होता है एवं आवाज में फर्क आ जाता है। उनमें खाज हो जाती है और बाल झड़ने लगते हैं।
चिकित्सा
- सर्रा की चिकित्सा के लिए तत्काल पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
- पशु के तीव्र स्वास्थ्य लाभ के लिए रक्तवर्धक एंव लिवर टाॅनिक देने चाहिए।
- पुनर्नवा या गंधपर्णा की पौध एंव जडें, गिलोय और आँवला भी सर्रा के लिए उपयोगी औषधि है।
- पशु में रक्ताल्पता को दूर करने के लिए फेरस सल्फेट (10 ग्राम) व कापर सल्फेट (5 ग्राम) को 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर प्रतिदिन खिलाएं अथवा अश्वगन्धा की पत्तियों या जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को 250 ग्राम गुड़ के साथ दिन में एक बार एक सप्ताह तक खिलाएं।
रोकथाम
सर्रा मक्खियों द्वारा फैलता है, अतः मक्खियों की रोकथाम करके सर्रा से बचा जा सकता है। मक्खियों से बचाव के लिए बाड़े में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा धुआँ एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग मक्खियों को पशुओं एवं पशुओं के बाड़े से दूर भगाने के लिए किया जाना चाहिए। टैबेनस वंश की मक्खियाँ झाड़ियों में प्रजनन करती है, अतः झाड़ियों को काटकर इन मक्खियाँ की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है। पशुओं की कुछ नस्लें सर्रा के लिए प्रतिरोधी होती है। ऐसी नस्लों के प्रजनन को बढ़ावा देकर भी पशुओं को सर्रा से बचाया जा सकता है। महामारी से प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के खून की नियमित जाँच करनी चाहिए ताकि रोग का पता चलने पर समय रहते रोग पर काबू पाया जा सके।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |