दिसंबर माह में पशुपालन के महत्वपूर्ण कार्यों का विवरण

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और देखें :  रोगाणुरोधी प्रतिरोध: थनैला एवं लेवटी के अन्य रोगों का घरेलु उपचार

  1. पशुओं का ठंडक से बचाव करें परंतु झूल डालने के पश्चात आग से दूर रखें।
  2. पशु तथा नवजात बच्चों को अंतः क्रमि नाशक औषधि अवश्य  पिलाएं।
  3. अवशेष पशुओं में खुर पका मुंह पका का टीका अवश्य लगवाएं।
  4. सूकरो मैं स्वाइन फीवर का टीका अवश्य लगवाएं।
  5. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध निकालें और दूध दोहन के बाद थनों को कीटाणुनाशक घोल जैसे पोटेशियम परमैंगनेट 1:1000 के घोल से धो लें।
  6. यदि इस समय वातावरण में बादल नहीं है और पशुओं को खिलाने के लिए अतिरिक्त हरा चारा बचा हुआ है तो उसे छाया में सुखाकर “हे” के रूप में भविष्य के लिए संरक्षित कर लें।
  7. बुवाई के 50 से 55 दिन बाद बरसीम एवं 55 से 60 दिन बाद जई के चारे की कटाई करें।
  8. 3 महीने पूर्व कृत्रिम गर्भाधान किए हुए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराए। जो पशु गर्वित ना हो उनका किसी योग्य पशु चिकित्सा अधिकारी  से सम्यक परीक्षण उपरांत समुचित उपचार कराएं।
  9. नवजात शिशु को विशेष रुप से ठंड से बचाएं एवं उन्हें खीस अर्थात कोलोस्ट्रम अवश्य पिलाएं। जिससे कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सके।
  10. प्रत्येक दुधारू पशु एवं गर्वित पशु को 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण एवं 50 ग्राम नमक अवश्य खिलाएं।
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