कृत्रिम गर्भाधान से फैलने वाले रोग, लक्षण व बचाव

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कृत्रिम गर्भाधान प्रजनन विधि, एक बेहद सरल, कामयाब, त्वरित परिणामदायी प्रक्रिया है। इस विधि द्वारा कम समय में ही तेजी से नस्ल सुधार कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है। इस पद्धति को अपनाने को एक अन्य बेहद, लाभकारी फायदा नेचुरल सर्विस से फेलाने वाली बीमारियों से निजात पाना है।

कृत्रिम गर्भाधान द्वारा प्रजनन से सांड़ों से मादा पशुओं में जननांगों द्वारा फेलने वाली, गोबर, पेशाब, लार, सांस आदि के संक्रमण से फेलने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। इसी प्रकार गायों से सांड़ों में व सांड़ों से अन्य गायों में बीमारियों के फेलने से ए.आई. द्वारा रोका जा सकता है।

कृत्रिम गर्भाधान करते पशुचिकित्सक

कृत्रिम गर्भाधान के लिए कार्य में लाये जा रहे साड़ो का रोग मुक्त होना, वीर्य संग्रहण व हिमीकरण के दौरान साफ-सफाई, टीकाकरण एवं गर्भाधान होने के दौरान उपयोग में लाये जाने वाले उपकरणों की साफ-सफाई अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा कृत्रिम गर्भाधान द्वारा भी पशुओं में व ए.आई. कार्यकर्ता के भी बीमार होने की आशंका बनी रहती है।

लैप्टोस्पाइसोसिस

इस बीमारी से पशुओं में 06 माह के गर्भकाल पर गर्भपात हो सकता है। उससे पशुओं की पेशाब का रंगा लाल हो सकता है एवं थनैला रोग भी हो जाता है। इससे ए. आई. कार्यकर्ता भी प्रभावित हो सकता है। पशुओं को टीकाकरण कर बचाव किया जा सकता है।

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कैम्पाइलो वेक्टीरियोसिस

ए.आई. के दौरान यह बीमारी कैम्पाइलोवेक्टर जीवाणु के द्वारा फैलाती है। यह जीवाणु सांड के प्रिपूस में काफी समय तक निदा बना रहता है। नैसर्गिक प्रजनन द्वारा यह आमतौर पर सांड से गायों में फैलता है। ए.आई. के द्वारा इसके फैलाव को रोका जा सकता है। किन्तु सवंमित गाये से अन्य गायों में ए.आई. गन द्वारा स्थानान्तरित हो सकता है। इससे प्रभावित गायों में यंग फीट्स की मृत्यु गर्भ में ही प्लेसेक्टा के सड़ने से हो जाती है और गाय पुनः 30 दिन से 3-4 महीने के मध्य गर्मी में आ जाती है और एक बार प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के बाद ही पशु गर्भित रहता है। सभी साड़ों का टीकाकरण एवं ए.आई. उपकरणों की सफाई व सीथ को एक बार उपयोग हो।

बु्रसेलोसिस

यह बीमार ब्रुसैला अवारट्स नामक जीवाणु से फैलती है। यह पशुओं में बांझपन व गर्भपात कराता है। ए.आई. कार्यकर्ता भी ग्रसित हो सकता है।

और देखें :  कृत्रिम गर्भाधान: पशुपालको के लिए एक वरदान

ट्राइकोमोनियेसिस

यह ट्राइकोमोनास फीटस नाम के प्रोटोजोआ से फैलती है। यह बीमार योनि स्त्राव से ए.आई. गन व कार्यकर्ता की उंगलियों के द्वारा एक पशु से दूसरे पशु में फैल सकती है। पशु में अनुवर्रकता फैलाती है।

योनिसोथ

विभिन्न जीवाणु और विषाणुओं द्वारा योनि में संक्रमण के द्वारा योनि सोथ हो सकता है। योनि स्त्राव व मवाद के द्वारा ए.आई. उपकरणों द्वारा एक पशु से दूसरे में ए.आई. द्वारा फैलाता है। पशुओं में अनुर्वरकता फैलाता है एवं मद चक्र अनियमित हो जाता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  पशुपालन से सही लाभ अर्जित करने हेतु आवश्यक है तकनीकी ज्ञान

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