भेड़, बकरियों में पी.पी.आर. महामारी के कारण, लक्षण एवं रोकथाम

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पेस्ट डेस  पेटिटस रूमिनेंट्स (पी.पी.आर.) बकरियों एवं भेड़ों मैं फैलने वाला एक विषाणु जनित संक्रामक एवं अत्यंत ही घातक बीमारी है। इस रोग में सामूहिक रूप से झुंड की भेड़, बकरियों की मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी में मृत्यु दर प्राया 50 से 80% तक होती है जोकि अत्याधिक गंभीर स्थिति में समय से उपचार न मिलने पर बढ़कर 100% हो सकती है। यह बीमारी मुख्य रूप से मेमनों और कुपोषण तथा परजीवी से ग्रसित भेड़ और बकरियों में अति गंभीर तथा प्राणघातक सिद्ध होती है। पी.पी.आर. बीमारी मोरबिल्लीवायरस के कारण होती है जो रिंडरपेस्ट से, मनुष्यों में खसरा और कुत्तों में डिस्टेंपर वायरस से संबंधित है। बकरियों में यह रोग अधिक गंभीर होता है । यह बीमारी आर्थिक रूप से कमजोर पशुपालकों के लिए अत्यंत ही हानिकारक है एवं उनकी आजीविका पर बहुत विपरीत प्रभाव डालती है।

रोग के मुख्य लक्षण

  • 4 महीने से 1 वर्ष के बीच के मेमन एवं कुपोषण वह परजीवीओं ग्रसित भेड़ एवं बकरियां पीपीआर रोग के लिए अत्याधिक संवेदनशील होती है।
  • नजदीकी संपर्क तथा स्पर्श से बकरियों में पीपीआर की महामारी फैलती है।
  • रोग का प्रारंभ तेज बुखार(40.5 से 41.5 डिग्री सेंटीग्रेड) से होता  है।
  • बुखार थोड़ा कम होने पर गोबर जैसे दस्त होते हैं जो बाद में पतली एवं खूनी दस्त का रूप ले लेते हैं।
  • मुंह से लार एवं नाक वआंख से शराब आने  लगता है। आंखें लाल हो जाती हैं। बाद की अवस्था में झागदार लार जो खून अर्थात रक्त मिश्रित होती है आने लगती है। नाक से गाढ़ा स्राव तथा आंखों से  कीचड़ आने लगता है। बीमार उसकी आंख नाक एवं  के शराब तथा मल में पीपीआर विषाणु पाया जाता है
  • दो से 3 दिन के पश्चात मुंह में हॉठ, मसूड़े, जबड़े तथा जीभ पर  छाले पड़ते हैं, जो फूटने के पश्चात अल्सर अर्थात घाव का रूप ले लेते हैं। मसूड़ों में मृत कोशिकाएं जमा हो जाती हैं। मुंह से अत्याधिक बदबू वह मुंह एवं हॉट मैं सूजन हो जाती है।
  • होंठ मैं सूजन आ जाती है और अक्सर कट भी जाते हैं।
  • न्यूमोनिया के प्रारंभिक लक्षण भी दिखलाई देते हैं। पी.पी.आर. के संक्रमण में फेफड़ों में छोटी-छोटी लाल व ठोस कोशिकाएं जमा हो जाती है।
  • गर्वित भेड़ बकरियों में पीपीआर रोग से गर्भपात भी हो सकता है।
  • अधिकांश मामलों में संक्रमण के 1 सप्ताह के भीतर ही योग्य पशु चिकित्सक द्वारा उपचार ना होने पर बीमार भेड़ बकरी की मृत्यु हो जाती है।
और देखें :  बकरियों एवं भेड़ों की महामारी: पी.पी.आर.

उपचार

  • विषाणु जनित रोग होने के कारण पीपीआर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। परंतु जीवाणु और परजीवीयों को नियंत्रित करने वाली औषधियों के प्रयोग से मृत्यु दर कम की जा सकती है।
  • सर्वप्रथम स्वस्थ बकरियों को शीघ्र ही बीमार भेड़ बकरियों से अलग बाड़े में रखना चाहिए ताकि रोग को फैलने से बचाया जा सके। इसके पश्चात ही रोगी बकरियों का उपचार प्रारंभ किया जाना चाहिए।
  • फेफड़ों के द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु पशु चिकित्सक की सलाह पर प्रतिजैविक औषधि प्रयोग की जाती हैं।
  • आंख नाक और मुख के आसपास के जख्मों की एंटीसेप्टिक गोल से दिन में दो बार सफाई की जानी चाहिए तथा 5% बोरोग्लिसरीन से मुंह के छालों की धुलाई से भेड़ बकरियों को अत्यधिक लाभ मिलता है।

बचाव के उपाय

  1. पीपीआर बीमारी की सूचना निकट के पशु चिकित्सालय को तत्काल दें एवं एवं योग्य पशु चिकित्सक से ही पशुओं का उपचार कराएं।
  2. बीमार भेड़, बकरियों को तत्काल झुंड से अलग कर दें।
  3. चारा, दाना तथा चरागाह को बीमार भेड़ बकरियों के मल मूत्र तथा लार से दूषित होने से अवश्य बचाएं।
  4. बीमार पशुओं के आवास को 5 से 10% फिनाइल अथवा 0.1 प्रतिशत कार्बोलिक एसिड अथवा ब्लीचिंग पाउडर से धुलाई करते रहें।
  5. मृत पशुओं को कम से कम 5 फुट गहरा गड्ढा खोदकर कच्चे चुने एवं नमक के साथ गाड़ दे। साथ ही साथ बाड़े और बर्तनों का शुद्धिकरण भी आवश्यक है।
  6. बीमार बकरियों तथा भैड़ों में दस्त के कारण पानी की कमी अर्थात डिहाईड्रेशन से रोकने के लिए इलेक्ट्रॉल का घोल या चीनी नमक का घोल प्रत्येक घंटे के अंतर पर पिलाते रहना चाहिए।
  7. मुलायम हरा चारा तथा दाल व चावल का सूप बीमार भेड़, बकरियों को खिलाते पिलाते रहना चाहिए।
  8. भेड़ बकरियों का टीकाकरण ही पीपीआर से बचाव का एकमात्र कारगर उपाय है । टीकाकरण करने से पूर्व भेड़ बकरियों को कृमि नाशक औषधि देनी चाहिए । पी.पी.आर. के टीकाकरण के पश्चात दो-तीन वर्ष तक इस बीमारी के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। परंतु पी.पी.आर. की टिशु कल्चर वैक्सीन प्रति वर्ष सर्दियों में अपनी भेड़, बकरियों को अवश्य लगवाएं।
  9. वैज्ञानिकों का कहना है कि “उपचार से बचाव बेहतर है” अतः सभी बकरी और भेड़ पालकों से अनुरोध है कि पशुपालन विभाग के पी.पी.आर. टीकाकरण अभियान के दौरान अपनी भेड़, बकरियों को निशुल्क टीका अवश्य लगवाएं।
  10. पशु पालकों को ध्यान रखना चाहिए कि टीकाकरण की अवधि के कम से कम 3 सप्ताह बाद तक भेड़ बकरी को परिवहन, खराब मौसम इत्यादि तनाव प्रदान करने वाली परिस्थितियों से मुक्त रखा जाना चाहिए।
और देखें :  पशुओं में संक्रमण: दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  बकरियों में होने वाली प्रमुख बीमारियाँ, कारण, लक्षण, रोकथाम एवं चिकित्सा उपचार

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