पशु आहार में हरे चारे की भूमिका

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भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि एवं पशुपालन एक दूसरे के अभिन्न अंग है। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन एक महत्वपूर्ण योगदान देता है। इनकी सही व्यवस्था, सार- संज्ञा और खान- पान से ही अधिक उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। किसान भाइयों को पशु आहार में हरा चारा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है एवं प्राचीन काल से ही पशुओं का प्राकृतिक आहार है।

हरे चारे के प्रकार

मुख्यतः हरा चारे को दो भागों में विभाजित किया जाता हैः

  1. दलहनी हरा चारे- जिसमें बरसीम, रिजका, लोबिया इत्यादि।
  2. अदलहनी/अनाजीय हरा चारा- मक्का, ज्वार, बाजरा, जई इत्यादि।

मौसम के अनुसार हरे चरे को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। आमतौर पर पशुओं के लिये मानसून की अच्छी वर्षा से खेत- खलिहानों में हरे चारे की उपलब्धता बनी रहती है।

रबी मौसम: इसमें मुख्यतः बरसीम, रिजका, जई इत्यादि उगायी जाती है। जो कि अक्टूबर माह से आरम्भ होता है तथा मध्य नवम्बर तक रहता है।

बरसीम चारा फसलों का सम्राट

मुख्यतः यह दलहनी चारा फसल है, यह चारा अत्यन्त मुलायम, स्वादिष्ट एवं प्रोटीन व खनिज तत्वों से भरपूर होता है। इसलिये इसे चारा फसलों का सम्राट कहा जाता है। बरसीम चारा प्रदान करने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है।

बरसीम हरा चारा

रिजका हरे चारा फसल की रानी

यह भी एक पौष्टिक चारे की फसल है तथा इसमें भी प्रोटीन एवं खनिज तत्व भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं।

रिजका

खरीफ मौसम: मक्का, ज्वार, ग्वार, बाजरा इत्यादि चारा फसल है।

हरी मक्का

जायद मौसम: मक्का, लोबिया, ग्वार इत्यादि प्रमुख फसल आते हैं।

यदि किसान भाई चाहते हैं कि उनके पशु स्वस्थ एवं ताकतवर रहे तो पशुओं के आहार में हरे चारे होना अत्यन्त आवश्यक है। इससे पशुओं में विभिन्न लाभ मिलते है।

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चूंकि किसान भाई मुख्यतः पालतू जानवर- गाय, भैंस, भेड़, बकरी को पालते हैं और इनसे उत्पादन लेते हैं। ये पशु मुख्यतः गाय, भैंस, बड़े रोमन्थी पशु कहलाते हैं इन पशुओं में एक विशेष जुगाली करने की प्रक्रिया भगवान की देन है।

अतः हरा चारा इन पशुओं में एक अहम भूमिका निभाता है, जो इस प्रकार हैः

  1. हरे चारे में पानी की मात्रा अनुमानतः 80- 90 प्रतिषत होती है इससे चारा रसदार होता है तो पशु इसे बड़े चाव से खाता है।
  2. हरे चारे में विटामिन ए- कैरोटीन के रूप में पाया जाता है जो शुष्क पदार्थ में नहीं पाया जाता है और कम मात्रा में उपलब्ध होता है। पशुओं में हरे चारे खिलाने से दूध में विटामिन ए की मात्रा बढ़ती है, जो मानव स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।
  3. इसके अतिरिक्त हरे चारे में विभिन्न पौष्टिक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते है जिनसे पशुओं में दूध देने की क्षमता बढ़ती है।
  4. हरे चारे में खनिज तत्व जैसे की कैल्शियम, फॉस्फोरस, जिंक होते हैं जो पशु की प्रजनन शक्ति को बनाये रखते है, जिससे पशु समय में गर्मी में आता है और दो ब्यातों का अंतर भी कम हो जाता है।
  5. हरे चारे को पशुओं को खिलाने से दुग्ध उत्पादन एवं दुग्ध वसा में वृद्धि होती है।
  6. हरे चारे में मुख्यतः दलहनी चारे में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने से पशुओं में प्रोटीन की कमी बड़ी आसानी से पूरी की जा सकती है।
  7. हरा चारा शरीर की वृद्धि एवं उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है एवं कच्चा रेशा भी प्रदान करता है जिससे पशु जुगाली करने में आराम महसूस करते हैं।
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पशुओं को कितना हरा चारा देना चाहिए

यदि सम्भव हो तो प्रत्येक व्यस्क पशु को प्रतिदिन 15-20 किलोग्राम हरा चरा दिया जा सकता है जो कि अनाजीय हरा चारा होना चाहिए। अगर दलहनी हरा चारा है तो मात्रा 10-15 किलोग्राम भी पर्याप्त होती है।

पशुओं को हरा चारा देने में क्या सावधानियां बरतनी चाहिये

  1. हरा चारा हमेशा कुट्टी करके सुखे चारे (पराली, भूसा) के साथ मिलाकर नाद में देना चाहिये।
  2. सड़ा हुआ हरा चारा नहीं देना चाहिये।
  3. हरे चारे में कीटनाशक का प्रभाव न हो अन्यथा पशओं में इसका गलत प्रभाव पड़ता है।
  4. बरसात के मौसम में हरा चारा के साथ मीठा सोडा देना चाहिये इससे पेट नहीं फूलता है और न ही गैस बनती है।
  5. बीच-बीच में पशुओं को देखना चाहिये कि वो चाव से हरा खा रहे या नहीं एवं साथ-साथ जुगाली कर रहा है या नहीं, इससे पशु स्वस्थ है या नहीं पता चल जाता है।

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