पशुधन से समृद्धि

5
(254)

हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ खेती तथा पशुपालन का अटूट रिश्ता है। देश के किसानों के लिए कृषि के साथ साथ पशुपालन अत्यधिक महत्वपूर्ण व्यवसाय है जिससे वे एक अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। पशुपालन के जरिये किसान विभिन्न प्रकार के उत्पादन करके लाखों रूपए प्रतिमाह की धनराशि अर्जित कर सकते हैं। पशुपालन न्यूनतम लागत लगाकर अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है तथा सफल घरेलु उत्पाद में पशुधन का सराहनीय योगदान है।

वर्तमान प्रणाली में अनेक नवीन वैज्ञानिक पद्धतियां विकसित हो गयीं हैं जोकि पशुपालन को ऊंचाइयों के शिखर पर पहुंचाकर हमारे देश के पशुपालकों एवं कृषकों को समृद्धि की और अग्रसर कर रही हैं।

गाय, बकरी, मुर्गी, मत्स्य, बतख, एवं सूकर पालन आदि जैसे विभिन्न पशुपालन व्यवसाय हैं जहाँ लघु पूँजी की लागत से ही उच्चतम गुणवत्ता के उत्पाद की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह उत्पाद हमारे स्वास्थ के लिए अत्यंत पौष्टिक तथा ऊर्जावर्धक होते हैं तथा पशुपालकों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि का स्त्रोत हैं।

गरीब परिवारों में पशुधन आय का प्रमुख स्त्रोत है, जो विशेषकर गरीब एवं भूमिहीन महिलाओं को आय का साधन उपलब्ध कराता है। महिलाएं गृहकार्य करते हुए भी गाय, बकरी, मुर्गी, तथा मत्स्य पालन आदि का कार्य सहजता से कर सकती हैं जिससे उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास का रास्ता आसान किया जा सकता है अतः पशुपालन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर देश को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

विभिन्न पशुपालन व्यवसाय से लाभ

गौ पालन से लाभ

गाय प्राचीन काल से अर्थव्यवस्था की रीड़ रही है। गौ पालन से दुग्ध उत्पादन छोटे व बड़े दोनों स्तर पर सबसे अधिक विस्तार में फैला हुआ व्यवसाय है। यह व्यवसाय किसानों की आय में निरंतर आर्थिक वृद्धि कर रहा है जिसके कारन हमारे देश की अर्थव्यवस्था में इसकी बड़े स्तर पर भागीदारी है। गाय के दुग्ध से किसान अनेक प्रकार के बहुमूल्य उत्पाद बना सकते हैं जैसे – दही, घी, मक्खन, छाछ, पनीर, खोआ आदि तथा इन उत्पादों का व्यवसाय स्थापित करके वे अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

गाय के गोबर तथा गौमूत्र से औषधियां, बायो-उर्वरक, बायो- कीटनाशक तथा अन्य अत्यंत उपयोगी पदार्थ जैसे अगरबत्ती, पूजा की मूर्तियां, हवन सामग्री, गमले, कंडे, दिए आदि बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर लघु उद्योग प्रारम्भ किये जा सकते हैं जिससे पशुपालक को अतिरिक्त आय तो प्राप्त होगी ही साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार भी सृजित होंगे। गाय के गोबर से बने बायो-उर्वरक एवं खाद को किसान अपने खेतों में प्रयोग करके खेतों की उर्वरक क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं जिससे किसानों को उत्तम फसलें प्राप्त होंगी तथा उनकी आय में अधिक उन्नति होगी।  गौमूत्र के उपयोग से मृदा स्वास्थ में परिवर्तन होता हैं जिसके कारण गौमूत्र को विभिन्न औषधिओं में भी उपयोग किया जाता है।

और देखें :  सिरोही नस्ल की बकरी रही ओवरआल चैंपियन

वर्तमान परिवेश में गाय का आर्थिक सुदृणीकरण केवल दुग्ध के आधार पर नहीं अपितु इससे प्राप्त होने वाले पंचगव्य एवं गौमूत्र के महत्त्व तथा व्यवसायीकरण को बढ़ावा देना होगा।

बकरी पालन से लाभ

बकरी पालन प्रायः सभी प्रकार की जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन पोषण के साथ संभव है, क्यूंकि वातावरण में परिवर्तन का इसपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। बकरी में अयोग्य खाद्य पदार्थों को उच्च कोटि के पोषक तत्वों में परिवर्तित करने की क्षमता होती है। बकरी पालन के व्यवसाय का गरीब किसानों की आय बढ़ाने, रोजगार दिलाने तथा पोषक पदार्थों को उपलब्ध कराने में विशेष योगदान है। एक बकरी लगभग डेढ़ वर्ष की आयु में प्रजनन के योग्य हो जाती है तथा एक बार में दो से तीन मेमनों को जन्म देती है। एक बकरी वर्ष में लगभग दो बार प्रजनन करती है जिस कारण से यह व्यवसाय कम समय में अत्यंत शीघ्रता से विकसित होने वाला व्यवसाय है। जरूरत पड़ने पर इसे बेचकर उचित धनराशि प्राप्त की जा सकती है जिस कारण से इसे गरीब की गाय भी कहा जाता है।

बकरी आकर में छोटी एवं शांत स्वभाव की होती है तथा अन्य दुधारू पशुओं की तुलना में इसे कम मात्रा में दाने की आवश्यकता होती है इसलिए यह वयवसाय अल्पभूमि वाले किसान न्यूनतम लागत लगाकर अपना सकते हैं।

बकरीपालन के उत्पाद की बिक्री हेतु बाजार सर्वत्र उपलब्ध है। इस व्यवसाय से हमें दूध, मांस, बच्चे तथा खाद्य आदि प्राप्त होते हैं जिन्हें बाजार में बेचकर अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है। बकरी के दूध में औषधीय गुण होते हैं जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ने में सक्षम होता हैं। इसके अतिरिक्त खुर, खाल, आंत आदि को भी विभिन्न पदार्थों के निर्माण में उपयोग किया जाता है जिसके कारण संपूर्ण बकरी किसानों को लाभ प्रदान करती है।

और देखें :  राजस्थान में प्रगतिशील पशुपालक होंगे सम्मानित

मुर्गी पालन से लाभ 

मुर्गीपालन सीमान्त किसानों तथा बेरोजगार नौजवानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक प्रभावी साधन है। इसमें कम कीमत में अधिक खाद्य प्राप्त होता है तथा मुख्या तीन प्रकार से लाभ अर्जित किया जा सकता है।

  • अंडा उत्पादन
  • मांस उत्पादन
  • चूजा उत्पादन

मुर्गी की सूखी हुई बीट को निरजिमीकृत करने के बाद पशु के आहार में भी प्रयोग किया जाता है। मुर्गी की बीट तथा बिछावन से बनी खाद में गाय के गोबर की खाद की तुलना में अधिक मात्रा में फॉस्फोरस, नाइट्रोजन तथा पोटाश पाया जाता है जिसके कारण इसकी कार्बनिक खेती के लिए अधिक मांग रहती है। मुर्गीपालन के व्यवसाय में अत्यधिक शीघ्र तथा नियमित रूप से आय में वृद्धि प्राप्त होती है। मुर्गीपालन को स्वरोजगार के रूप में बेरोजगार नौजवान, ग्रहणी तथा बुजुर्ग सहजता से अपनाकर एक अतिरिक्त आय का स्त्रोत बना सकते हैं।

मत्स्य पालन से लाभ

मत्स्य निर्यात विदेशी मुद्रा अर्जित करने का एक मुख्या साधन बन गया है। हमारे देश में मत्स्य की खपत कम है परन्तु इसके उत्पादन को अधिक बढ़ाकर हम मत्स्य का निर्यात विदेशों में कर सकते हैं जहाँ इसकी अधिक मांग है तथा इससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं जिससे देश की आर्थिक स्थिति में तो वृद्धि होगी ही एवं ग्रामीण क्षेत्र के किसान भी समृद्ध बनेंगे। मछली पालन उद्योग के साथ-साथ अन्य सहायक उद्योग भी किये जा सकते हैं जिनमें लागत दर कम आती है तथा लाभ अधिक प्राप्त होता है। इसके साथ अन्य उत्पादक जीवों का पालन किया जा सकता है जिससे मत्स्य उत्पादन में होने वाले व्यय की पूर्ती की जा सके तथा अन्य जीवों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके। वर्तमान में मत्स्य पालन के साथ मुर्गीपालन, बत्तख पालन, झींगा पालन, सिंघाड़ा उत्पादन आदि काफी लाभप्रद साबित हुआ है तथा इसके परिणाम उत्साहपूर्वक रहे हैं। ग्रामीण विकास एवं अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है जिससे रोजगार सृजन तथा आय में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं।

और देखें :  पेस्ट-डेस-पेटिट्स- पीपीआर रोग, बकरी प्लेग

वर्तमान प्रतिस्पर्धा परिदृश्य में सीमित तथा मेहेंगे संसाधनों का कुशल उपयोग करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। पशुपालन देश को समृद्ध बनाने में एक अहम् भूमिका निभा रहा है। भारत सहित सारी दुनिया में आज भी खेती और पशुपालन ही सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करने वाले क्षेत्र हैं। खेती तथा पशुपालन को एक साथ बरकरार रखा जाये तो न केवल हमें भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए जैविक खाद मिलेगी बल्कि बड़ी आबादी को रोजगार भी मिलेगा। पशुपालन को अपनाकर पशुपालक स्वयं को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से सुदृढ़ बना सकते हैं जिससे वे स्वयं को तथा देश को समृद्धि की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (254 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*