कुक्कुट पालन का उत्तम विकल्प: एमू पालन

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भारतीय उपमहाद्वीप में कुक्कुट पालन के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो कि मुख्यतः मुर्गी पालन पर आधारित है। पारम्परिक कुक्कुट खाद्य संसाधन की कमी के चलते, भारत जैसे घनी आबादी वाले देश की सामाजिक अर्थव्यवस्था के लिए यह उचित नहीं है। इन देशों में वैकल्पिक कुक्कुट पालन व्यवसायिक मुर्गी पालन की प्रतिस्पर्धा में बहुत अधिक नहीं बढ़ा है। भारत में मुर्गी पालन ग्रामीण जनता के लिए भोजन व आय का एक वैकल्पिक स्त्रोत प्रदान करता है। भारत की लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए हमें भविष्य में पशु प्रोटीन की जरूरत के बारे में भी सोचना होगा ।हाल ही में भारत में एक विकल्प के रूप में एमू पालन शुरू किया गया है, जिसे काफी महत्ता मिल रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं चीन की गिनती एमू पालन करने वाले अग्रणी देशों में होती है। भारत में एमू प्रजनन केन्द्र तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र, ओड़िशा और मध्यप्रदेश में है। वर्तमान में भारत में एमू की संख्या लगभग 10,000 है, जिसमें से 80 प्रतिशत अकेले आंध्र प्रदेश में पाये जाते हैं। (राव, 2004)। एमू पालन महाराष्ट्र में भी अपनी जड़े जमा रहा है जिसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि एमू का मांस रसदार होता है तथा इसके मांस के 98 प्रतिशत वसा युक्त भाग में कोलेस्ट्राल बहुत कम एवं लौह तत्व की प्रतिशतता अधिक होती है। एमू की वसा से निकाले जाने वाले तेल की औषधीय महत्ता भी है। एमू की त्वचा बहुत ही मुलायम होती है तथा इसे विभिन्न रंग में रंगा भी सकता है। एमू की त्वचा का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त होता है। इसके शरीर के अधिकांश हिस्से व्यवसायिक रूप से मूल्यवान है तथा इनकी निर्यात उपयोगिता भी अच्छी है।

एमू को विश्व के विभिन्न भागों में मांस, अंडे, तेल, त्वचा एवं पंखों के लिए पाला जाता है। इन पक्षियों की शारीरिक संरचना व विशेषता शीतोष्ण व उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त है। एमू को विस्तृत पालन प्रणाली (खुल क्षेत्र) या अर्ध–विस्तृत पालन प्रणाली (आधा खुला व कुछ भाग ढका हुआ) में अच्छी तरह से पाला जा सकता है। मूलतः एमू आस्ट्रेलिया में पाये जाते हैं। एमू रेटाइट समूह का पक्षी है, जिसमें पंख अविकसित होते हैं। इस समूह के पक्षी आकार में बड़े व न उड़ने वाले होते हैं। इस समूह के अन्य पक्षियों में शुतुरमुर्ग, रिया, किवी व केसोवेरी हैं। एमू अनाज, दालें व घास इत्यादि खाता है। इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है तथा ये किसी भी प्रकार की जलवायु में जीवित रह सकते हैं।

कुक्कुट पालन का उत्तम विकल्प: एमू पालन

एमू की बाह्य आकारिकी एवं सामान्य गुण

नर व मादा एमू की बाह्य आकारिकी लगभग एक जैसी होती है। एमू की गर्दन लम्बी, सिर छोटा व गंजा होता है। एमू के पैर में तीन अंगुलियां होती हैं। एमू का शरीर पंखों से ढका होता है। एमू के पर इसके पंख के नीचे छुपे होते है तथा देखने में बाल जैसे होते हैं। एमू के पंख का रंग हल्का भूरा होता है व सिर, गर्दन तथा पीठ के निचले भाग में गहरे रंग की चित्तियाँ होती हैं। एमू के शरीर के अन्दर का भाग हल्के रंग का होता है तथा सिर व गर्दन का भाग सुरमई नीले रंग का होता है। लम्बे, घने नीचे की ओर लटके पंख के कारण एमू झबरा दिखाई देता है। शुरू में 0-3 महीने की उम तक पक्षिय के शरीर पर अनुदैर्ध्य धारियां होती हैं जो कि 4-12 महीने की उम्र में भूरे रंग की हो जाती हैं। परिपक्व पक्षियों में गर्दन नंगी व नीले रंग की तथा शरीर के पंख चित्तिदार होते हैं। एक साल की उम्र के एमू पक्षी की ऊंचाई साढ़े पांच से छ: फीट तक तथा इसका वजन 30-४० किलो तक होता है। पूर्णतया विकसित एमू का वजन 50-60 किलो तक होता है। नर एमू का शारीरिक तापमान (37.7 डि.से.) कम होता है। एमू की त्वचा पर तेल ग्रंथियां नहीं पायी जाती। टांग लम्बी व शल्कीय त्वचा से ढकी होती है, जो कि एमू को कड़ी व सूखी मिट्टी में रहने के अनुकूल बनाती है। एमू की आधारीय उपापचयी दर 61-97% होती है। एमू एक शर्मीला व शांतिप्रिय पक्षी है। शत्रुओं से बचने के लिए एमू 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है। मादा एमू में हवा की थैली नीचे की ओर लटकी होती है जोकि प्रजनन के मौसम में और उभर आती है। नर की आवाज घरघराती व मादा की आवाज तेज होती है। प्रजनन के मौसम में एमू की आवाज से उसके लिंग को आसानी से पहचान सकते हैं। मादा एमू नर से आकार में बढ़ी होती है खासकर प्रजनन के मौसम में। मादा जोड़े का प्रभावकारी सदस्य होती है। एमू पक्षी 30 साल तक जिन्दा रहते हैं तथा 16 से अधिक वर्षों तक अण्डे देते हैं। इन पक्षियों को झुंड या जोड़े के रूप में पाला जा सकता है।

एमू उत्पाद

  • अंडे: एक मादा एमू एक साल में 20-40 अंडे देती है। ये अण्डे गहरे हरे रंग के होते हैं। एक अण्डे का भार 400-600 ग्राम तक होता है। एमू का अण्डा मुर्गी के अण्डे की तुलना में 10-12 गुना बड़ा होता है।
  • मांस: एमू  के मांस का ड्रेस्ड भार प्रतिशत 53.75 होता है ।एमू का मांस 97-98% वसा मुक्त होता है। इसका मांस प्रोटीन, लोहे व विटामिन बी 12 से परिपूर्ण होता है इसलिए यह हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अच्छा प्रोटीन स्त्रोत है। इसके मांस में कम वसा होने के कारण यह आसानी से पच जाता है। अतः यह मटन और चिकन की अपेक्षा मांस का एक अलग विकल्प है। एक एमू पक्षी से 25 किलो तक मांस मिल जाता है। एमू के 100 ग्राम मांस में 23.3 ग्राम प्रोटीन, 109  कैलोरी,1,7 ग्राम वसा, 0.6 ग्राम सैचुरेटेड वसा व 30-40 मिलीग्राम तक कोलेस्ट्राल की मात्रा होती है ।वर्तमान में एमू के एक किलोग्राम मांस की कीमत 350-750 रूपये तक है।
  • एमू  तेल: एक एमू से 4-5 लीटर तक तेल मिलता है, जोकि वसा से निकाला जाता है। एमू  का तेल 4-5 सेकंड के अन्दर त्वचा में अवशोषित होकर हडियों तक पहुँच जाता है। इसलिए इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के मलहम और कॉस्मेटिक उत्पाद में किया जाता है। इस तेल का प्रयोग दर्द निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। एमू के तेल का प्रयोग सूजन को कम करने के लिए, गठियारोधक, घाव भरने, पायसीकारक, कोलेस्ट्राल को कम करने, बैक्टीरिया को कम करने, जलने पर घाव को जल्दी भरने जैसी गतिविधियों में प्रयोग किया जाता है।
  • त्वचा: एमू की त्वचा बहुत कोमल और चिकनी होती है। अंतर्राष्ट्रीय चमड़ा उद्योग में नए फैशन के सामान बनाने के लिए इसकी अत्यधिक मांग है। एक पूर्ण विकसित पक्षी से 6 से 8 वर्ग फुट तक चमड़े की प्राप्ति हो जाती है। इसके अतिरिक्त एमू के पंख, पैरों की त्वचा व नाखून की भी विभिन्न प्रयोजन के लिए बहुत मांग है।
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प्रबंधन

  • आवास: एमू बंजर या झाड़ियों वाली जगह पर ज्यादातर झुंड में एक साथ रहते हैं ।एक अकेले पक्षी के लिए 400-500 वर्ग फुट की आवश्यकता होती है एमू को रहने के लिए किसी विशेष ढांचे या भूमि के बड़े हिस्से की जरुरत होती । एक एकड़ भूमि में 100-150 पक्षी आराम से रह सकते हैं। एक एमू फार्म के लिए न्यूनतम 20 पक्षी (नर-मादा जोड़े) होने चाहिए। 20×40 फीट ढका स्थान सूर्य व वर्षा से बचाने के लिए तथा 50 फीट चौड़ी व 100 फीट लम्बी बाड़ इन पक्षियों को अच्छा संरक्षण प्रदान करती है।
  • पोषण आवश्यकतायें: एमू आमतौर पर कीड़ों, घास व पेड़ों की मुलायम पत्तियां, विभिन्न प्रकार के फल व सब्जियां जैसे कि गाजर, ककड़ी व पपीता आदि पर निर्वाह करते हैं। एमू में खाद्य रूपान्तरण अनुपात 5:1, जबकि मुर्गी में यह 2:1 होता है।

एमू के विभिन्न आयु वर्गों के लिए पोषण आवश्यकता इस प्रकार हैं

  • प्रजननः इन पक्षियों में यौन परिपक्वता 18-24 माह में आ जाती है तथा इनके प्रजनन की अवधि अक्टूबर से मार्च तक होती है। एमू में लिंग अनुपात १:१  होता है। प्रजनन के 3-4 हफ्ते पहले से ब्रीडर आहार देना शुरू कर देना चाहिए, जिसमें विटामिन व खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए। प्रजनन के तुरन्त बाद मादा झुंड में रखा जाता है तथा रखरखाव राशन देना चाहिए। एमू पहला अंडा लगभग दो-ढाई वर्ष की उम्र में देता है । ये प्रायः ठंडे मौसम में अक्टूबर–फरवरी के दौरान अंडे देते हैं। आम तौर पर मादा पहले साल में लगभग 15 अंडे देती है ।बाद के वर्षों में अंडों की संख्या 30-40 प्रति वर्ष तक पहुंच जाती है।
  • अण्डे सेना व चूजों का उत्पादन:  एमू में अण्डे सेने की अवधि 52 दिन होती है। प्राकृतिक तरीके से चूज के उत्पादन में मादा एमू खुले स्थान में एक छेद करके अण्डे देती है। अंडे से बच्चे निकलने में लगभग दो महीने लग जाते हैं । इस दौरान नर एमू अण्डे की देखभाल करता है। नये पैदा हुए बच्चों की देखभाल भी नर ही करता है। बच्चों  के जन्म के शीघ्र पहले नर टहनियां,छाल व मिट्टी से घोंसला बनाता है। बच्चों के जन्म के बाद नर उन्हें नये घाँसले में ले जाता है। जहाँ वह चार दिन तक बच्चों को अपने पंखों में छुपा कर रखता है। इसके बाद नर घास व बीज आदि एकत्रित करना सिखाता है। एमू के बच्चे जीवन के पहले कुछ माह इस भोजन पर ही व्यतीत करते हैं ।आठ माह के बाद नर बच्चों को छोड़ देता है ताकि वो अपना भोजन खुद तलाश सकें। अप्राकृतिक तरीके से चूजों के उत्पादन के लिए, अण्डे सेट करने से पहले इनक्यूबेटर का तापमान (शुष्क बल्ब तापमान 96-97 डिग्री फारेनहाइट तथा गीला बल्ब तापमान 75-80 डिग्री फारेनहाइट) व सापेक्षिक आर्द्रता 30-40% होनी चाहिए । अंडे सेट करते समय वंशावली की  पहचान के लिए तारीख की पर्ची लगा देनी चाहिए । 48 दिन तक हर एक घंटे में अंडों को घुमाते रहते है, जबकि 49वें दिन से अण्डे को घुमाना बंद कर देते हैं। 52वें दिन ऊष्मायन अवधि समाप्त हो जाती है । स्वस्थ चूजों के उत्पादन के लिए उन्हें कम से कम 24 से 72 घंटों तक घर में ही छोड़ देते हैं। एमू के अंडे की हेचबिलिटी सामान्यतः 70% या उससे अधिक होती है।
  • चूजे का प्रबंधन: एमू के चूजे जन्म के समय लगभग 10 इंच लम्बे होते हैं । एमू के चूजों का भार लगभग 370-450 ग्राम होता है, जो कि अंडे के आकार पर निर्भर करता है। प्रथम 48-72 घंटों के लिए चूजों को हैचर में ही छोड़ देते है, जिससे उनके अन्दर की जर्दी का उचित अवशोषण हो जाये ।चूजों को बूडर में डालने से पहले उसे साफ, कीटाणुरहित करके, लिटर बिछाकर तथा उसे बोरी इत्यादि से ढक देना चाहिए । प्रथम 3 सप्ताह के लिए 25-40 चूजों के लिए 4 वर्ग फुट स्थान प्रति चूजे के हिसाब से एक बूडर पर्याप्त होता है । बूडर में पहले 10 दिन 90 डिग्री फारेनहाइट तापमान तथा 3 से 4 हप्तों तक 85 डिग्री फारेनहाइट तापमान पर रखना चाहिए । बूङर घर में चूजों को इधर-उधर कूदने से बचाने के लिए २.5 फीट बूङर गार्ड अवश्य लगाना चालिए । बूङर का तापमान बनाये रखने के लिए हर 100 वर्ग फुट के क्षेत्र में एक 40 वाट का बल्ब लगाना चाहिए। 3 सप्ताह के बाद बूङर गार्ड को चौड़ा करके क्षेत्र का विस्तार कर देते हैं तथा 6 सप्ताह के बाद इसे हटा दिया जाता है । पहले 14 सप्ताह तक चूजों को स्टार्टर मैश दिया जाता है। यदि बाहर कुछ खुला स्थान हो तो 40फीट x 30 फीट स्थान में 40 चूजे आराम से रह सकते हैं। स्थान आसानी से सूखने वाला व नमी से मुक्त होना चाहिए।
  • बढ़ने वाले पक्षियों का प्रबंधन: बढ़ते हुए एमू के चूजों को अतिरिक्त भोजन, जल व रहने के स्थान की आवश्यकता होती है । इस समय पर चूजों के लिंग की पहचान कर ली जाती है तथा इन्हें अलग-अलग पाला जाता है। पक्षियों को 34 सप्ताह की आयु या 25 किलोग्राम वजन तक ग्रोवर मैश दिया जाता है। रेशेदार भोजन के अनुकूलन बनाने के लिए पक्षियों को आहर का। 0% हरा चारा दिया जाता है। पक्षियों को पर्याप्त मात्रा में दाना व पानी दिया जाता है। यदि बाहर कुछ खुला स्थान दिया जाये तो 40 फीट x 100 फीट तल स्थान 40 चूज के लिए पर्याप्त होता है।
  • समाप्ति चरण: बढ़ते हुए पक्षियों को विपणन के लिए शारीरिक भार में सुधार की आवश्यकता होती है । इसलिए इन्हे ३५ सप्ताह या 12-18 महीने की उम्र तक फिनिशर आहार देना चाहिए ।इस अवस्था में इन पक्षियों के भोजन में 3-5% तक वनस्पति वसा मिलाने से खाद्य रूपान्तरण अनुपात तथा पक्षियों से मिलने वाला शुद्ध लाभ अच्छा हो जाता है, क्योंकि 15 सप्ताह से कम उम के चूज के अपेक्षा इस उम्र में पक्षी वसा का अच्छा उपयोग कर पाते हैं। इस अवस्था में रहने व दोड़ने के लिए 100 वर्ग फुट स्थान पर्याप्त होता है। बाड़े से बाहर कूदने से बचाने के लिए 6 फुट ऊंची बाड़ पर्याप्त होती है।
  • स्वास्थ्य प्रबंधन: रेटाइट समूह के पक्षी आमतौर पर मजबूत और लंबे समय तक जीवित रहने वाले होते हैं। एमू चूजों  और किशोरों में मृत्यु एवं स्वास्थ्य समस्यायें, जैसे कि भुखमरी, कुपोषण, आंत्र वाघ, पैर असामान्यता, कोलाई संक्रमण और क्लोस्ट्रिडियल संक्रमण आदि पायी जाती हैं । जिसके मुख्य कारण अनुचित ब्रूडिंग  या पोषण, तनाव, अनुचित देखभाल एवं आनुवंशिक विकार हैं। एमू में मिलने वाले अन्य रोग रिनिटिस, साल्मोनेला, कैंडिडिआसिस, एसपरजिलोसिस, काक्सिडियोसिस, जू व ऐस्केरिस संक्रमण आदि हैं आंतरिक और बाह्य कृमियों को रोकने के लिए एक माह की उम्र से एक माह के अंतराल में आइवरमेक्टिन देना चाहिए।
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आर्थिकी

एमू उत्पादन में अकेले दाने की लागत की 60-70% होती है। अतः कम से कम लागत वाले राशन से मिलने वाले लाभ को बढ़ाया जा सकता है वाणिज्यिक पालन में एमू की एक प्रजनक जोड़ी के दाने की मात्रा 394-632 किलो (औसत 527 किलो) तक होती है जबकि दाने का मूल्य प्रजनन व अन्य मौसमों के दौरान 6.50 और 7.50 रूपये किलो होता है (राव,2004)।

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उपसंहार

मुर्गी, डेयरी, भेड़ और बकरी पालन जैसे उद्योग विभिन्न कारकों जैसे कि संक्रामक रोग, उत्पादन में अचानक गिरावट, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक गर्मी और पानी की कमी आदि से प्रभावित होते हैं। जबकि एमू 1 00 डिग्री फारेनहाइट से अधिक तापमान व शून्य से नीचे के तापमान में भी अनुकूल होता है। एमू स्वाभाविक रूप से इन सभी प्रतिकूलताओं के प्रति प्रतिरक्षी होता है। एमू में अभी तक किसी खास बीमारी की पहचान नहीं की गयी है । इसलिए एमू पालन एक मनपसंद कारोबार है। निकट भविष्य में एमू पालन कृषि के एक पूरक के रूप में सबसे लाभदायक व्यवसाय बनता जा रहा है 1972 के वन पशुपालन अधिनियम जो कि वन पशुओं के पालन और सुरक्षा के बारे में है, के अनुसार एमू पालन, जो कि विदेशी निवेश और निर्यात के लिए अच्छे अवसर प्रदान करता है, की अनुमति दी गई है। अतः एमू पालन परम्परागत कृषि का एक पूरक विकल्प हो सकता है।

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