हिमाचल की “पहाड़ी गाय” को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली

5
(95)

हिमाचल की पहाड़ी गाय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने से पशुपालन विभाग के प्रयासों को बड़ी सफलता मिली है। प्रदेश की इस नस्ल को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जैनेटिक रिसोर्सिज (NBAGR) ने देश की मान्यता प्राप्त नस्लों की सूची में शामिल कर लिया है। हिमाचली पहाड़ी गाय का पंजीकरण ‘‘हिमाचली पहाड़ी‘‘ नाम से एक अधिकारिक नस्ल के रूप में किया है, जिससे कि अब यह नस्ल देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे साहिवाल, रेड सिन्धी, गिर जैसी नस्लों की श्रेणी में शामिल हुई है। पशुपालन विभाग द्वारा इस गाय को ‘गौरी‘ नाम से पंजीकृत करवाने का मामला NBAGR को भेजा गया था, परन्तु प्रदेश की देशी नस्ल पहाड़ी नाम से ज्यादा प्रचलित हाने के कारण इस नस्ल का नामकरण हिमाचली पहाड़ी के रूप से किया गया है।

इन गायों की प्रमुख आबादी  मुख्यतः हिमाचल के मध्य-पहाड़ी से उच्च पहाड़ियों के के कुल्लू, चंबा, मंडी, कांगड़ा, सिरमौर, शिमला, किन्नौर, लाहुल और स्पीति जिले में पायी जाती है। ये नस्ल पहाड़ की भोगोलिक परिस्थितियों, अत्यंत शीतल जलवायु और चारे की कमी जैसी परिस्थितियों के अनुकूल है। हिमाचल की पहाड़ी गाय छोटे से मध्यम आकार की होती है, मुख्य रूप से काले और काले भूरे रंग में पायी जाती है। कॉम्पैक्ट बेलनाकार शरीर, छोटे पैर, कूबड़ और तुलनात्मक रूप से लम्बी पूंछ, सींग आकार में मध्यम और घुमावदार इस नस्ल के मुख्य लक्षण है। ये नस्ल पहाड़ी परिस्थितियों के अनुसार पहाड़ी पशुधन उत्पादन प्रणाली हेतु दूध, खाद तथा कार्य करने  हेतु अनुकूल है। इस नस्ल के वयस्क नर का वजन 200 से 280 किग्रा तथा मादा का वजन 140 से 230 किग्रा होता है, ऊँचाई 90 से 120 सेमी तक होती है। प्रतिदिन दूध उत्पादन 1 से 3 किग्रा और एक व्यांत में कुल दुग्ध उत्पादन 350 से 650 किग्रा तक होता है। हिमाचल की पहाड़ी गाय की कुल संख्या लगभग 7,59,000 है।

और देखें :  47.50 करोड़ रुपये की लागत से बनेगा सेक्स सॉर्टिड सीमन फैसिलिटी केन्द्र- वीरेन्द्र कंवर

इस नस्ल के पंजीकरण होने से अब इस गाय के संरक्षण एवं उत्थान के कार्यों के लिए भारत सरकार से धन राशि प्राप्त हो सकेगी जिससे कि इन नस्ल के सरंक्षण व सवर्धन के कार्य में तेजी आएगी। पशुपालन विभाग हिमाचल द्वारा इस नस्ल को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार को 9.13 करोड़ रूपये का प्रस्ताव पूर्व में ही भेजा गया था, परन्तु नस्ल के पंजीकरण न होने के कारण प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हो पाया। हालांकि भारत सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया गया था कि इस नस्ल के पंजीकृत होते ही उपरोक्त धन राशि प्रदेश को जारी कर दी जाएगी। पशुपालन विभाग द्वारा उपरोक्त राशि से जिला सिरमौर के बागथन में “पहाड़ी गाय का प्रक्षेत्र” स्थापित किया जाएगा।

और देखें :  सरकार के प्रयासों से कृषि क्षेत्र हुआ सुदृढ़, किसानों की समस्याओं का हुआ समाधान

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (95 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

और देखें :  अगले डेढ़ वर्ष में प्रदेश की सभी सड़कें बेसहारा पशु मुक्त होंगी: वीरेंद्र कंवर

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*