गायों-भैंसों में योनि बाहर निकलने की समस्या एवं घरेलु उपचार

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मादा गायों एवं भैंसों में योनि का शरीर से बाहर निकलना, पशुओं के लिये तो बहुत ही कष्टदायी होता है जबकि पशुपालकों को भी अपने पशु के इलाज के लिए बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर इस समस्या को शरीर दिखाना, पीछा निकालना, फूल दिखाना, गात दिखाना इत्यादि कहा जाता है लेकिन शाब्दिक रूप से इस समस्या को योनि भ्रंश कहते हैं।

समान्यतः यह समस्या ग्याभिन एवं गैर ग्याभिन पशुओं में देखने को मिलती है लेकिन ग्याभिन पशुओं में ज्यादा ही देखने में आती है। कई पशुओं में तो यह समस्या उनके मदकाल के समय भी देखने को मिलती है। इस समस्या से पीड़ित पशु की योनि बैठे हुए ही सरक कर शरीर से बाहर निकल जाती है जबकि कुछ पशुओं में खड़े-खड़े ही बाहर निकल जाती है। शुरूआती दौर में योनि के सरक कर बाहर आने पर पशु को दर्द नहीं होता और कई बार पशु के खड़ा होने यह अपने आप ही अन्दर चली जाती है लेकिन जैसे-जैसे समस्या बढ़ती है तो पीड़ित पशु गोबर-पेशाब करते समय जोर मारने लग जाता है और बाहर निकली हुई योनि का हिस्सा शरीर से बाहर ही लाल गुबारे की तरह फूला हुआ लटकता रहता है। आमतौर पर ऐसे पशुओं में समस्या बढ़ने पर बच्चेदानी भी उल्टकर शरीर से बाहर आ जाती है जिससे समस्या और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। यदि समय रहते इस समस्या की ओर ध्यान ना दिया जाए तो यह एक गंभीर रूप ले लेती है जिससे कई बार पशु की जान भी चली जाती है।

यह समस्या ग्याभिन पशुओं में किसी भी समय हो सकती है लेकिन ज्यादातर ब्याने से कुछ माह पहले से लेकर ब्याने के कुछ दिनों बाद अधिक देखने को मिलती है। आमतौर पर यह समस्या गायों की तुलना में भैंसों में अधिक होती है। दूधारू पशुओं के इस समस्या से ग्रसित होने की स्थिति में उनका दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है और देरी से उसका ईलाज करवाने से उसकी गर्भधारण क्षमता भी कम हो सकती है। बैठते समय पशु के पीछा दिखाने पर अवारा कुत्तों द्वारा बाहर निकले अंगों को भारी नुकसान पहुंचा दिया जाता है। योनि सरक कर बाहर आने की निम्नलिखित तीन अवस्थाएं हो होती हैं:

  1. पहली अवस्था: इसमें पशु जोर नहीं मारता है सिर्फ बैठते समय ही केवल उसकी योनि का थोड़ा हिस्सा ही बाहर निकलता है जो खड़ा होन पर अपने आप ही अंदर चली जाती है। थोड़े से इलाज में ही पशु को आराम मिल जाता है।
  2. दूसरी अवस्था: इस दशा में पशु बैठे या खड़े रहते हुए बहुत जोर मारता है और बच्चेदानी के मुंह तक का हिस्सा लाल गुबारे की तरह पीछे निकल जाता है। इस स्थिति में यदि इलाज करवा लिया जाता है तो समस्या को गंभीर होने से बचाया जा सकता है।
  3. तीसरी अवस्था: इस अवस्था में बच्चेदानी का ज्यादातर हिस्सा बाहर आ जाता है और योनि और बच्चेदानी पर जख्म हो जाते हैं जिसकी वजह से खून भी बहने लगता है। यह बहुत घातक स्थिति है और इसका तुरंत चिकित्सक से ईलाज करवाना चाहिए।
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योनि के सरक कर शरीर से बाहर निकलने के कई कारण हैं:

  1. असंतुलित खानपान: पशुओं के संतुलित आहार में प्रोटीन, वसा इत्यादि तो जरूरी हैं ही लेकिन इसमें आवश्यक तत्वों जैसे कि कैल्श्यिम, फास्फोरस, आयोडिन, सेनेनियम और विटामिन ई की कमी होना मुख्य कारणों में से हैं। ज्यादातर पशुओं में कैल्श्यिम और फास्फोरस तत्वों का असंतुलन इस रोग का बहुत बड़ा कारण है। शरीर में इन तत्वों की कमी के कारण योनि के आसपास की मांसपेशियां कमजोर होने के कारण ढीली पड़ जाती हैं और योनि अपनी जगह पर नहीं टिक पाने के कारण शरीर से बाहर निकलने लगती है।
  2. जन्मजात: कई पशुओं में जन्म से ही बच्चेदानी को अपनी स्थिति में रखने वाली मांसपेशियां कमजोर होती हैं, जो उनमें शरीर बाहर निकालने का एक कारण बनती हैं। ऐसे पशुओं में यह समस्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है।
  3. एस्ट्रोजन हॉरमोन की अधिकता: पशु के शरीर में प्रोजेस्टीरोन हॉरमोन की कमी या एस्ट्रोजन की अधिक मात्रा होने से यह समस्या हो सकती है। पशुओं को ऐसा हरा चारा जैसे कि बरसीम, ल्यूसर्न आदि, जिसमें एस्ट्रोजन हॉरमोन की मात्रा अधिक होती है, के खिलाने से भी इस समस्या को बढ़ावा मिलता है। बरसात के मौसम में फफूंदी लगा चारा या अनाज भी एस्ट्रोजन हॉरमोन जैसा असर दिखाता है। मादा पशुओं के अण्डाशय में सिस्ट हो जाने पर अधिक मात्रा में उत्पन्न एस्ट्रोजन हॉरमोन भी इसका एक कारण पाया गया है।
  4. संक्रमण: कई पशुओं में ब्याने के समय योनि में जख्म हो जाते हैं या कठिन प्रसव के समय अत्याधिक जोर लगाने पर, गाय-भैंस की योनि बाहर आने लगती है। ब्याने के बाद यदि बच्चेदानी में सूजन या संक्रमण हो जाए तो पशु जोर मारता है, जिससे मादा पशु शरीर दिखाने लग सकती है।

उपचार एवं रोकथाम

  1. जल्दी ध्यान देना: योनि बाहर निकालने की स्थिति में इसका तुरंत ध्यान करना चाहिए। बाहर निकले हुए भाग को मिट्ठी, गोबर-पेशाब, पशु-पक्षियों और कुत्तों से भी अवश्य बचाकर रखना चाहिए। शरीर दिखाने वाले पशुओं को खुली जगह की बजाय, साफ-सुथरी व बंद जगह पर बांधना चाहिए। समय पर, हर संभव चिकित्सक से पीड़ित पशु का इलाज बिना देरी के करवाना चाहिए।
  2. ठण्डा पानी डालना: शुरूआती दौर में योनि के सरक कर बाहर आने की स्थिति में लगभग आधा घण्टा ठण्डा पानी देने से आमतौर पर योनि अपने आप ही अंदर चली जाती है। उसके बाद चिकित्सक से उसका इलाज जरूर करवा लेना चाहिए। बाहर निकली हुई योनि पर ठण्डा पानी डालने से वह सिकुड़ जाती है जिससे गंदगी तो साफ हो ही जाती है साथ ही उसे हाथों से अंदर करने में भी आसानी होती है।
  3. योनि अंदर करना: बाहर निकले हुए योनि के भाग को ज्यादा देर तक बाहर नहीं रहने देना चाहिए। योनि द्वार से बाहर आए भाग को साफ हाथों से पकड़कर लाल दवाई के घोल से धोकर वापिस अंदर डाल देना चाहिए। निकले हुए शरीर को धीरे-धीरे अपनी हथेलियों की सहायता से वापिस योनि में हाथ डाल कर अंदर करना चाहिए। लाल दवाई का घोल बनाने के लिए आधी बाल्टी साफ पानी में आधी चुटकी लाल दवाई की मात्रा डालनी चाहिए। बाहर आए हिस्से पर कोई कीटाणुनाशक क्रीम भी लगाई जा सकती है। ध्यान रहे, योनि अंदर करने वाले व्यक्ति के हाथों के नाखून कटे हुए होने चाहिए और हाथ साबुन से धोने के बाद ही बाहर निकले हिस्से को छूना चाहिए।
  4. पेशाब की थैली खाली करना: योनि के बाहर आने की स्थिति में मादा पशुओं में पेशाब नली में रूकावट हो जाती है, जिस कारण पेशाब करने के लिए पशु और अधिक जोर मारने लगता है और उसे बहुत अधिक दर्द भी होता है। ऐसी स्थिति में बाहर निकले हुए योनि के हिस्से को अंदर धकेलने में मुश्किल आती है। अतः बाहर निकली योनि को अंदर करने से पहले, हाथों या साफ मुलायम कपड़े की सहायता से बाहर निकली हुई योनि को ऊपर उठाकर पहले पेशाब निकाल देना चाहिए। पेशाब बाहर नहीं आने की स्थिति में चिकित्सक की सहायता लेना बिल्कुल ना चूकें।
  5. शरीर का पिछला हिस्सा ऊँचा करना: योनि बाहर निकलने की स्थिति में पीड़ित मादा गाय या भैंस के शरीर के पिछले हिस्से को लगभग आधा फुट मिट्ठी डालकर ऊँचा कर देने से समस्या को ठीक करने में बहुत ज्यादा लाभ मिलता है। ऐसे पीड़ित पशु के बांधने वाली जगह से अगले पैरों वाली जगह से मिट्टी निकाल कर भी किया जा सकता है।
  6. संतुलित आहार: इस रोग का संबंध खुराक से मिलने वाले तत्वों की कमी से पाया गया है। अतः इस रोग की रोकथाम के लिए ग्याभिन पशुओं की खुराक का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान मादा पशुओं को खनिज मिश्रण जरूर दिये जाने चाहिए। ऐसे पशुओं को एक समय में ही भरपेट चारा भी खाने के लिए ना देकर उनको थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में कई बार खिलाना चाहिए। कभी भी पशुओं को फफूंद लगा हुआ चारा या दाना बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए।
  7. छिंकी लगाना: जिन पशुओं में योनि सरक कर बाहर आ जाती है तो उनको छिंकी लगाकर रखनी चाहिए।
  8. संक्रमण का इलाज: ब्याने के बाद यदि बच्चेदानी में जेर रूक गई है या उसमें से मवाद या मैला आ रहा है तो उसका उपचार बिना देरी के नजदीकी चिकित्सक से करवा लेना चाहिए।
  9. अण्डाशय में सिस्ट: अण्डाशय में सिस्ट होने की स्थिति में पीड़ित पशु का उपचार भी पशु चिकित्सक से समय रहते करवा लेना चाहिए।
और देखें :  कोविड-19 महामारी के समय में डेरी पशुओं के सामान्य प्रबंधन हेतु महत्वपूर्ण सलाह

ऐसा कभी ना करें

  1. आमतौर पर ऐसा देखने में आता है कि जब भी किसी पशु की योनि सरक कर बाहर आ जाती है तो पशुपालक द्वारा उसे पांव की जूती के साथ धकेल कर अंदर कर दिया जाता है। पशुपालकों को इस बात को समझना चाहिए कि योनि शरीर का एक नाजुक अंग है जिसे साफ-सफाई की आवश्यकता होती है लेकिन जूती या गंदे हाथ लगाने से उसकी स्थिति और भी ज्यादा गंभीर होने की संभावना रहती है। अतः बाहर निकली हुई योनि को जूती या गंदे हाथ नहीं लगाने चाहिए।
  2. मादा पशु की बाहर निकली हुई योनि पर स्पिरिट या शराब, नमक, चीनी, पेट्रोल आदि भी नहीं डालना चाहिए, इससे जख्म बढ़ने के साथ-साथ समस्या भी गंभीर हो सकती है।

घरेलु उपचार

आमतौर पर देखने में आता है कि पशुपालक ऐसे मादा पशुओं को इलाज के लिए चिकित्सक के पास बहुत देरी एवं समस्या गंभीर होने की स्थिति में लेकर आते हैं जिससे उनका उचित इलाज भी नहीं हो पाता है। बहुत से पशुपालक परेशान होकर ऐसे पशुओं को अधिक मात्रा में सत्यानाशी के बीज खिला देते हैं जिससे कुछ समय के लिए रोग तो ठीक हो जाता है लेकिन सत्यानाशी के बीज, पशु के जीगर को कमजोर कर देते हैं जिससे उसका खाना-पीना बहुत कम होने से वह बहुत अधिक कमजोर हो जाता है। अतः सत्यानाशी के बीजों को पीड़ित पशुओं को देने से बचना चाहिए और अगर देना भी चाहते हैं तो कुशल पशु चिकित्सक की देखरेख में ही दें।

और देखें :  साइलेज (पशुओं के लिए अचार)

यदि पशुपालक योनि बाहर निकालने वाले पशुओं को घरेलू दवाई देना चाहते हैं तो पशु चिकित्सक की सलाह से बरगद के पेड़ की हवा में लटकती हुई 50 – 60 ग्राम ताजी जड़ों (जिन्हें बड़ की दाढ़ी भी कहते हैं), को कूटकर दूध या पानी या घास, चोकर में मिलाकर, दिन में एक बार, 2 – 3 दिन तक दे सकते हैं। इन्हें खिलाने से बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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  1. भैंस का बच्चेदानी बाहर निकल जाए जाता है वह कैसे बैठाया जाता क्या दवा हो बताइए

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  1. ई-पशुपालन: पशुपालन समाचार, पशुपालन की जानकारी

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