मादा पशुओं में फिरावट अर्थात पुनरावृति प्रजनन की समस्या एवं समाधान

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ऐसी गाय एवं भैंस जिनका मदकाल चक्र अर्थात ऋतु चक्र निश्चित अविध का होता है और उनके जनन अंग सामान्य लगते हैं परंतु उनको अधिक प्रजनन क्षमता के, सांड या उच्च गुणवत्ता के वीर्य से कम से कम  3 बार प्राकृतिक अथवा कृत्रिम गर्भाधान कराने के पश्चात भी गर्भधारण नहीं करती है तो वह पुनरावृति प्रजनन या फिरावट की श्रेणी में आती है।

पुनरावृति प्रजनन के प्रमुख कारण:

  1. निषेचन का नहीं होना।
  2. भ्रूण का शीघ्र ही मर जाना।

1. निषेचन का नहीं होना

  1. यदि अंड वाहिनी में कोई रूकावट है तो अंडाणु व शुक्राणु का मिलन नहीं हो पाएगा जिसके कारण निषेचन प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाएगी।
  2. अंडछरण का ना होना।
  3. अंडछरण का देरी से होना।

2. भ्रूण का शीघ्र मर जाना

  1. जन्मजात आनुवंशिकी कारणों से निषेचन के पश्चात भ्रूण की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। सांड को बदलकर समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. अंडाणु और शुक्राणु के गुणसूत्रों में विकार होने पर भी निषेचन की प्रक्रिया के बाद भ्रूण की आगे वृद्धि नहीं हो पाती है और भ्रूण शीघ्र अर्थात जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त होता है ।
  3. निषेचन के पश्चात भ्रूण के आसपास का वातावरण भ्रूण की वृद्धि के अनुकूल नहीं होता है। ऐसा मादा के जनन अंगों में संक्रमण व सूजन के कारण हो सकता है इसका समय अनुकूल उचित उपचार आवश्यक है।
  4. पीत काय अर्थात कार्पस लुटियम द्वारा समुचित मात्रा में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का उत्पादन न कर पाने की स्थिति में भी भ्रूण शीघ्र ही मर जाता है।
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यदि भ्रूण की मृत्यु, मद कॉल चक्र  के 16 दिन के अंदर हो जाती है तो मदकॉल चक्र की अवधि प्रभावित नहीं होती है और यदि भ्रूण की मृत्यु मद कालचक्र के 16 दिन के बाद होती है तो मद कालचक्र की अवधि बढ़ जाती है।

समस्या का निवारण

  1. निषेचन नहीं होने की स्थिति में अधिकांश मामलों में कृत्रिम गर्भाधान का मदकाल के सही समय पर नहीं होना है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए अगर गाय या भैंस सुबह मदकाल में आती है तो कृत्रिम गर्भाधान सायंकाल को कराना चाहिए और यदि गाय या भैंस शाम को मदकाल में आती है तो कृत्रिम गर्भाधान अगले दिन सुबह में कराना चाहिए, इसी को ए एम, पी एम , नियम भी कहते हैं। जिसमें गर्मी देखने के 12 घंटे पश्चात कृत्रिम गर्भाधान कराया जाता है।
  2. अंड छरण के न होने या देर से होने की स्थिति में मदकाल की अवधि 2 से 3 दिन की हो जाती है, जिससे अगले मदकाल में कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व एच .सी.जी.या जी.एन.आर.एच.हार्मोन का इंजेक्शन लगाया जाता है और 12 घंटे पश्चात दोबारा कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है।
  3. मदकाल में भग द्वार से स्वच्छ पारदर्शक, रस्सीवत, श्लेष्मा लटकता हुआ दिखाई पड़ता है, परंतु कई बार इसमें मवाद के बहुत बारीक थक्के दिखलाई पड़ते हैं। ऐसा बहुत हल्की अंत:गर्भाशय कलाशोथ के कारण होता है जिसका समुचित उपचार करवाने के पश्चात , अगले मदकाल में कृत्रिम गर्भाधान कराया जाता है।
  4. सामान्यतय: मदकाल अर्थात ऋतु चक्र में स्वच्छ पारदर्शक रस्सीवत, श्लेष्मा भग द्वार से बाहर लटकती दिखाई देती है। परंतु पुनरावृति प्रजनन के कई मामलों में बहुत हल्की अंतः गर्भाशय कलाशोथ होती है, जिसमें स्वच्छ पारदर्शक रस्सी वत श्लेष्मा मैं बहुत छोटे-छोटे मवाद के थक के दिखते हैं। ऐसे मामलों में अंत:  गर्भाशय कलाशोथ , का समुचित उपचार कराने के बाद अगले ऋतु कॉल में कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए।
  5. जिन स्थितियों में प्रोजेस्ट्रोन की कमी से भ्रूण शीघ्र अर्थात जल्दी मर जाता है वहां पर कृत्रिम गर्भाधान के समय एचसीजी अथवा जीएनआरएच हार्मोन का इंजेक्शन दिया जाता है।
  6. गाय एवं भैंस का समुचित रखरखाव करें तथा उच्च तापमान एवं नमी से बचाएं।
  7. गाय एवं भैंस को पौष्टिक एवं संतुलित आहार पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।
  8. गाय एवं भैंसों को प्रत्येक तीन माह पर अंत: क्रमी नाशक औषधियां देनी चाहिए एवं प्रत्येक गाय एवं भैंस को उच्च गुणवत्ता का 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण प्रतिदिन देना चाहिए।
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