बकरी उत्पादों का उपयोग

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भारत में बकरियों की संख्या 13 करोड़ 50 लाख है, जिनसे प्रतिवर्ष लगभग 4600 हज़ार टन दूध उत्पादन होता है जोकि देश के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 3.5 % है। देश में पाई जाने वाली बकरियों की 20 नस्लों में जखराना, जमनापरी, बीटल, सुरती और बारबरी नस्लें अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में दूध देती हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े लोग जो भैंस अथवा गाय पालने में असमर्थ हैं, वे अपने परिवार की दूध की आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रमुख रूप से बकरी पालन पर निर्भर करते हैं। इसी कारण बकरी को ‘निर्धन की गाय’ भी कहा जाता है। समाज के उच्चवर्गीय लोग तो आज भी बकरी पालन को एक निम्नस्तरीय कार्य मानते हैं। यह उनकी अपनी मान्यता है। परंतु सच्चाई यह है कि बकरी का दूध गाय अथवा भैंस के दूध से कई पहलुयों में अधिक महत्वपूर्ण है।

बकरी के दूध का संगठन

बकरी के दूध का संगठन उसकी नस्ल, दूध निकालने के समय, मौसम, खानपान, दुग्धकाल की अवस्था एवं स्वास्थ्य इत्यादि बातों पर बहुत निर्भर करता है। दूध के मुख्य घटकों में वसा सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है। काली बंगाल बकरी से दूध का उत्पादन तो कम होता है, लेकिन इसमें कुल ठोस, वसा तथा वसा रहित ठोस की मात्रा सबसे ज़्यादा होती है। बकरी के दूध में शरद ऋतु में वसा, ठोस एवं वसा रहित ठोस की मात्रा सबसे ज़्यादा तथा गर्मी के मौसम में सबसे कम होती है। ऐसा भी देखा गया है कि गर्मी में बकरी दूध तो ज़्यादा देती है, परंतु उसमें वसा तथा कुल ठोस की मात्रा कम होती है। जिससे इस दूध से बने दुग्ध उत्पादों की पैदावार भी प्रभावित होती है। शाम की अपेक्षा सुबह के दूध में वसा एवं कुल ठोस कम होते हैं। बकरी का आहार प्रमुख रूप से दूध में प्रोटीन की मात्रा को प्रभावित करता है। रोग से प्रभावित बकरी के दूध का उत्पादन एवं संगठन स्वस्थ बकरी के दूध से भिन्न होता है।

बकरी के दूध का पोषक मूल्य

  • बकरी का दूध प्राकृतिक रूप से समांगीकृत एवं एक सुरक्षित उत्पाद है।
  • बकरी का दूध पीने से एलर्जी नहीं होती।
  • बकरी का दूध हमारे प्रतिरोधी रक्षा तंत्र को बढ़ाता है।
  • बकरी का दूध अपेक्षाकृत अधिक पाचक है। बकरी के दूध में छोटे-छोटे प्रोटीन के अणु पाये जाते हैं एवं इसमें वसा अणु बहुत पतले, कोमल आवरण युक्त और आकार में गाय की दूध वसा से आधे होते हैं। जिसकी वजह से बकरी के दूध का दही-तनाव गाय के दूध की तुलना में आधा होता है। इसका मतलब यह है कि बकरी का दूध कम गरिष्ठ होता है अर्थात आसानी से पच जाता है।
  • उच्च ताप पर गर्म करने से बकरी के दूध के प्राकृतिक गुणों का विकृतिकरण नहीं होता।
  • लैक्टोज़ पचाने में असमर्थ व्यक्तियों के लिए बकरी का दूध एक अच्छा विकल्प है। ऐसे व्यक्ति अधिकतर बकरी का दूध व बकरी के दूध से निर्मित उत्पादों को पचा लेते हैं।
  • पाचन नली में बकरी के दूध की सकारात्मक भूमिका होती है। बकरी के दूध में अम्ल प्रतिरोधी दवाइयों की अपेक्षा अधिक बफरिंग क्षमता होती है। इसलिए बकरी के दूध को अपच व पेट/आंतों में आलस्य को कम करने हेतु प्रयोग में लाने की सिफ़ारिश की गयी है।
  • बकरी का दूध हमारी पाचन तंत्र में क्षारीयता प्रदान करता है। बकरी का दूध एक दुर्लभ डेयरी पदार्थ है क्योंकि इसमें क्षारीय भस्म पाई जाती है। इस कारण यह हमारे आंत्रीय तंत्र में अम्ल नहीं बनाता है। बकरी का दूध रक्त धारा की पी.एच. को बढ़ाने में सहायता करता है क्योंकि इसमें एल-ग्लूटामिन अमीनो अम्ल की मात्रा किसी भी प्रजाति के दूध या उत्पाद से अधिक होती है। एल-ग्लूटामिन एक क्षारीय अमीनो अम्ल है। इसलिए इसके सेवन हेतु पोषण विशेषज्ञों द्वारा प्राय: सिफ़ारिश की जाती है।
  • बकरी का दूध पीने से गले में चिपचिपाहट का अनुभव नहीं होता है।
  • बकरी का दूध अल्प खनिज लवण सेलेनियम का एक अच्छा स्त्रोत है। मानव शरीर में सेलेनियम तत्व की अधिकतर कमी होती है। जबकि यह एक आवश्यक पोषक तत्व है क्योंकि इसमें प्रतिरोधी रक्षा तंत्र परिवर्तन तथा एंटिआक्सिडेंट गुण पाये जाते हैं। सेलेनियम की कमी को एच.आई.वी./एड्स तथा दूसरे विषाणुजनित रोगों से जोड़ा जा रहा है। बकरी के दूध में सेलेनियम की मात्रा किसी भी दूध की तुलना में सबसे ज़्यादा होती है। बकरी के दूध में सेलेनियम 98 मि.ग्रा. प्रति लीटर होती है जबकि पाश्चुरीकृत गाय के दूध में यह मात्रा 14.85 मि.ग्रा. होती है तथा बकरी के दूध की तुलना में यह मात्रा 35% कम है। बकरी का दूध मानव दूध से भी अच्छा सेलेनियम का स्त्रोत है क्योंकि मानव दूध में इसकी मात्रा 15.69 मि.ग्रा. पाई गई है।

बकरी दुग्ध उत्पाद

बकरी का दूध ज़्यादा मात्रा में उपलब्ध नहीं होने के कारण या तो इसे ऐसे ही उपयोग कर लिया जाता है या फिर सस्ते दामों में खरीदकर गाय या भैंस के दूध के साथ मिलकर बेचा जाता है। कम मात्रा में उत्पादन तथा गाय, भैंस के दूध को उपभोक्तायों द्वारा अधिक वरीयता दिये जाने के कारण बकरी दुग्ध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी के विकास में बहुत ही कम प्रयास किए गए हैं। समुचित प्रौद्योगिकी की कमी के कारण दुग्ध उद्योग जगत ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। वर्तमान में बड़े उद्यमियों द्वारा बकरी पालन को एक प्रभावी उद्यम का स्वरूप देने के कारण यह आवश्यक हो जाता है कि इससे समुचित आर्थिक लाभ अर्जित करने के लिए बकरी उत्पादों की प्रभावी उपयोगिता बढ़ाई जाए। दूध जो कि एक महत्वपूर्ण बकरी उत्पाद है, इससे उपभोक्ता उन्मुखी, गुणसंवर्धक उत्पाद बनाए जाना आवश्यक हो गया है। उचित प्रचार-प्रसार के द्वारा इन्हें स्वास्थ्यवर्धक भोज्य पदार्थ के रूप में बेचने के अच्छे अवसर हैं। पिछले वर्षों में हुये अनुसन्धानों से यह साबित हो चुका है कि बकरी के दूध से अच्छे उत्पाद जैसे पनीर, चीज़, योघर्ट, श्रीखंड, छैना तथा छैना आधारित उत्पाद, खोया, घी, छाछ, दुग्ध पाउडर आदि बनाए जा सकते हैं। बकरी दूध से निर्मित उत्पादों का वर्णन नीचे किया जा रहा है।

पनीर

पनीर एक ऐसा उत्पाद है जिसका उत्पादन कर बकरी के दूध की खपत को बढ़ाया जा सकता है। बकरी के दूध से बने पनीर में किसी भी तरह की अप्रिय गंध नहीं आती है, बल्कि बकरी के दूध से निर्मित पनीर गाय अथवा भैंस के दूध से निर्मित पनीर की तुलना में अधिक मुलायम (स्पंजी) होता है जिसे उपभोक्तायों द्वारा अधिक पसंद किया जाता है। यही नहीं, प्रति किलोग्राम दूध की कीमत की तुलना में एक किलोग्राम दूध से निर्मित पनीर की कीमत अधिक होती है। इस तरह पनीर तैयार कर न केवल बकरी के दूध की खपत को बढ़ाया जा सकता है बल्कि दूध की तुलना में अधिक लाभ भी अर्जित किया जा सकता है।

अच्छी गुणवत्ता का पनीर हम बकरी के दूध को 87-880 से. पर 0.15% साइट्रिक अमल या 1.0% लैक्टिक अमल का घोल अथवा किण्वीकृत पनीर छाछ जिसका पी.एच. 4.5 हो, से स्कंदन करने के बाद मलमल के कपड़े में आधा घंटा दबाकर तैयार कर सकते हैं। पनीर का उत्पादन दूध में उपस्थित वसा एवं वसा रहित ठोस पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करता है तथा 12 से 18 प्रतिशत तक हो सकता है। इस विधि से बने पनीर को पैक करके तीन दिन तक रेफ्रिजरेटर में पूर्ण सुरक्षित रखा जा सकता है। बकरी के दूध से बने पनीर की सब्ज़ी में बकरी की महक बिल्कुल नहीं आती है।

बकरी

चीज़

बकरी के दूध से मुलायम एवं अर्ध-कठोर प्रकार के अनेक चीज़ निर्मित किए जाते हैं। यूरोप के देशों में यह चीज़ प्रीमियम चीज़ के नाम से बेचा जाता है। मीडियम चेन फैट्टी एसिड्स का अनुपात इसमें अधिक होने से तीखी महक होती है जिसके लिए यह चीज़ जानी जाती है। भारतवर्ष में भी कठोर चीज़ बनाने हेतु बकरी का दूध प्रयोग में लाया जा रहा है। बकरी के दूध की 10-25% मात्रा यदि भैंस के दूध में मिलाकर यह चीज़ बनाई जाए, तो 10 महीने की जगह 6 महीने में ही अच्छे गुणों एवं महक वाली चीज़ तैयार हो जाती है। अनुसंधान में ऐसा भी पाया गया है कि भैंस के दूध में 15% बकरी का दूध मिलाने से ग्वाडा चीज़ का सुपाच बढ़ जाता है। बकरी के दूध से मोज़्ज़ारेल्ला चीज़ बनाने के प्रयासों में भी अच्छी सफलता पाई गई है।

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खोया

खोया एक देशी उत्पाद है जो कि अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाने के प्रयोग होता है। बकरी के दूध से तैयार खोया मुलायम तथा काफी नम होता है जिसका स्वाद खारा होता है तथा पैदावार लगभग 18% होती है। पॉलिथीन बैग में पैक किए गए खोये को कमरे के तापक्रम पर लगभग 4 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है। बकरी और भैंस के दूध को बराबर अनुपात में मिलाने एवं वसा स्तर 5% एवं वसा रहित ठोस 9.1% पर मानकीकृत करने से उच्च गुणवत्ता वाला खोया तैयार किया जा सकता है जिसकी औसत उत्पादकता लगभग 19% होती है।

छैना

छैना बकरी के दूध से प्राप्त प्रारम्भिक दुग्ध उत्पाद है। इसे भारतवर्ष में कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करने के अच्छे अवसर हैं। यह विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ तैयार करने में उपयोग होता है। इसको तैयार करने की वही प्रक्रिया है जोकि पनीर बनाने की है। अंतर केवल इतना होता है कि दूध फटाने के बाद चक्के को कपड़े में पोटली बनाकर लटका दिया जाता है जिससे अनावश्यक छाछ निकल जाती है। दूध फटाने के लिए 0.6% हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के घोल का प्रयोग भी किया जा सकता है जोकि अन्य अम्लों की तुलना में सस्ता पड़ता है। बकरी के दूध से अच्छी प्रकार का छैना विभिन्न अम्ल, सांद्रता एवं तापक्रम को सही निर्धारित कर बनाया जा सकता है। बकरी के दूध से प्राप्त छैना की पैदावार एवं रसायनिक संरचना पर अध्ययन किया गया है जिससे पता चला कि छैना का उत्पादन और गुणवत्ता 5.4-5.5 पी.एच. और 800 से. पर अच्छा होता है।

योघर्ट

मुलायम गठन एवं निम्न दही तनाव के कारण उत्तम किस्म का योघर्ट बकरी के दूध में गाय का सप्रेटा दूध पाउडर मिलाकर तथा ठोस 45% स्तर तक समायोजित करके बनाया जा सकता है। इसे स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफ़िलस एवं लैक्टोबैसिलस वल्गैरिकस के मिश्रित कल्चर के साथ किण्वीकृत करके तैयार किया जा सकता है।

घी

बकरी के दूध को प्राय: घी बनाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है जिसका मुख्य कारण इसमें वसा के छोटे कणों का उपस्थित होना है जो क्रीम निकालने में परेशानी पैदा करते हैं। इसके अलावा बकरी के दूध से ग्रीज़ जैसा घी बनता है तथा इसकी महक भी अच्छी नहीं होती है। इसका रंग हरा सफ़ेद होता है। कुछ अन्वेषकों का कहना है कि बकरी के दूध में सी4-सी8, सी10-सी12 वसीय अम्लों की अधिकता एवं लंबी चेन वाले सी16-सी18 वसीय अम्लों की कमी ही अच्छा घी नहीं बनने के मुख्य कारण हैं। बकरी के दूध और भैंस के दूध को यदि 1:1 की मात्रा में मिलाया जाए तो अच्छे गुणों वाला घी बनता है।

श्रीखण्ड

श्रीखण्ड एक अर्धमुलायम खट्टा-मीठा किण्वीकृत दुग्ध उत्पाद है। इसे बनाने के लिए दही को मलमल के कपड़े में स्थानांतरित कर दिया जाता है और 7-8 घंटे छाछ हटाने हेतु लटका दिया है। चक्के के वज़न के आधार पर 70% पीसी हुई चीनी मिला देते हैं। पिसा हुया इलायची दाना एवं जायफल स्वाद को सुधारने हेतु मिलाया जाता है। श्रीखण्ड के मिश्रण को ब्लेंडर में अच्छी तरह मिलाकर प्याले में भरकर रेफ्रीजिरेटर में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है। पूर्णत: बकरी के दूध से तैयार श्रीखण्ड बहुत ही कम कठोरता वाला होता है तथा चम्मच से निकालने पर बहता है। इस समस्या का हल चक्के में सभी अवयवों के मिश्रण के समय 2.0-2.3% जिलेटिन मिलाकर किया जा सकता है जिसे रेफ्रीजिरेटर में करीब 30 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

सन्देश

सन्देश एक प्रकार की मिठाई है जोकि बकरी के दूध के छैने से भी बनाई जा सकती है। छैना में 35% चीनी तथा 0.1% पिसा हुया इलायची दाना (छैना के वज़न के आधार पर) मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। बकरी के दूध से अच्छा सन्देश प्राप्त करने के लिए छैने को गूँथ कर और हल्की आग पर चासनी में गर्म करके बेहतरीन संयोजन के द्वारा मनमाफ़िक आकार और बनावट की सन्देश मिठाई प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त हुये पदार्थ में नमी, वसा, प्रोटीन, लैक्टोज़ और भस्म पदार्थ क्रमश: 55.4, 23.5, 18.3, 2.2 और 1.6% देखे गए तथा उत्पादन 15.8% था। इस प्रकार से प्राप्त सन्देश को प्रशीतन तापक्रम पर 5 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

रसगुल्ला

रसगुल्ला एक छैना आधारित मिठाई है जिसे लैक्टिक अम्ल, सिट्रिक अम्ल तथा पनीर छाछ के द्वारा प्राप्त छैना से तैयार किया जा सकता है। लैक्टिक अम्ल से प्राप्त छैना दानेदार रसगुल्ला बनाने हेतु अच्छा पाया गया है। छैना को मैदे के साथ गूँथ कर तथा गोलियां बना कर 60% चासनी के घोल में पकाया जाता है। बाद में इन्हें 40% चासनी के पतले द्रव में डुबोकर रखा जाता है। 3-4% वसा वाले बकरी के दूध को जब 5% लैक्टिक अम्ल के घोल द्वारा 4पी.एच. पर फटाया गया और छैना बाल को जब 55% चीनी के घोल में 25 मिनट तक पकाया गया तो अच्छी गुणवत्ता वाला रसगुल्ला प्राप्त हुया।

दही

 रोगनाशक गुण होने के कारण दही हमारे देश में शाकाहारी तथा अन्य लोगों के भोजन का एक हिस्सा है तथा बदहज़मी, दस्त एवं आंतों की गड़बड़ एवं भूख बढ़ाने तथा शरीर को स्फूर्ति प्रदान करने में मदद करता है। बकरी के दूध से दही 10 मिनट दूध को उबालकर 35-370से. तापक्रम पर ठंडा कर  स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस 0.25%, लैक्टोबैसिलस वल्गैरिकस 0.25% तथा 0.5% गृह निर्मित जामन के सम्मिश्रण को 12-14 घंटे के लिए रखकर तैयार करते हैं। गाय एवं भैंस के दूध के दही से यह मुलायम बनता है। एस्कोर्बिक अम्ल निर्धारण  गाय के दूध की अपेक्षा बकरी के दूध में कम होता है। दूध से दही बनाने पर इसकी मात्रा में बढ़ोतरी देखी गई। यह आंकलन किया जा चुका है कि 1.0% जामन को इस्तेमाल करके जमुनापरी और ब्लैक बंगाल प्रजाति की बकरी के उबले हुये दूध से अच्छी गुणवत्ता का दही बनाया जा सकता है। बकरी के दूध में उच्च खनिज लवण  होने के कारण केवल इससे बने दही में तनाव काफी कम पाया गया है।

बकरी मांस

बकरी भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मांस उत्पादक पशु है। भारत की कुल 135 मिलियन बकरियों में से लगभग 86.18 मिलियन का वध किया जाता है जिससे 0.94 मिलियन टन मांस का उत्पादन होता है जोकि कुल मांस उत्पादन का लगभग 19% है।

उपभोक्तायों द्वारा बकरी के मांस को अधिकतम वरीयता दी जाती है क्योंकि अन्य जानवरों के मांस की तरह बकरियों के मांस से कोई धार्मिक भावना नहीं जुड़ी है। कम उत्पादन के कारण बकरी का मांस हमारे घरेलू बाज़ार में सबसे महंगा है। इस कारण हमारा निर्यात न के बराबर है। अत: बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय बनता जा रहा है और बड़े पैमाने पर लोग इस क्षेत्र में पूंजी लगा रहे हैं।

पोषक संरचना

बकरी का मांस बहुत ही पोषक होता है जिसका जैविक मूल्य 60.4% है। 100 ग्राम मांस में नमी, प्रोटीन, वसा तथा राख़ की मात्रा क्रमश: लगभग 74-76, 19-21, 3-6.5 तथा 1.0% होती है। बकरी मांस में प्रोटीन की मात्रा भेड़, सूकर तथा भैंस के मांस की तुलना में ज़्यादा होती है।

बकरी के मांस में वे सभी अमीनो अम्ल विद्यमान होते हैं जोकि पोषण के दृष्टिकोण से आवश्यक बताए गए हैं। 100 ग्राम मांस खाने से 118 किलो कैलोरी ऊर्जा, लगभग 12 मि.ग्रा. कैल्शियम, 170 मि.ग्रा. फ़ौस्फोरस तथा विटामिन जैसे फ़ोलिक अम्ल, बी-12, थाएमिन, राइबोफ्लेविन तथा नाएसिन प्राप्त होते हैं। बकरी के मांस में लौह पदार्थ प्रचुर मात्रा में (2.1मि.ग्रा./ग्रा.) पाई जाती है जोकि गर्भवती महिला एवं बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लौह पदार्थ का उपयोग शरीर में रक्त के हीमोग्लोबिन, मायोग्लोबिन तथा विभिन्न उत्प्रेरक के निर्माण में अति महत्वपूर्ण है।

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बकरी मांस उत्पाद

मांस व मांस उत्पाद मानव उपयोगी मूल्यवान पशु प्रोटीन प्रदान करने एवं स्थिर पशु उत्पादन में एक विशेष महत्व रखते हैं। जीवन शैली में परिवर्तन, प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि, शहरीकरण, उपभोक्ता जागरूकता एवं नौकरी में महिलायों की संख्या बढ़ने से खाने हेतु तैयार गर्म मांस उत्पादों की मांग बढ़ रही है।

उपभोक्तायों में मांग ऐसे भोजन की बढ़ रही है जो उच्च पोषण युक्त, अच्छे गुणों वाला, रसायनों रहित और सुरक्षित हो। यह सब शोध एवं विकास में हो रहे निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है जोकि उत्पादों में गुणवत्ता बढ़ाने, मूल्य जोड़ने एवं उप-उत्पादों का सही उपयोग करने के लिए किए गए हैं। अत: गर्म कर तुरंत खाने योग्य तैयार बकरी उत्पाद जैसे सौसेज, नगेट्स, पैटीज़, टिक्का, कोफ़्ता, करी, आचार, सूप इत्यादि को विकसित कर बनाने के बहुत ही अच्छे अवसर हैं। इसके अलावा स्थिर बकरी पालन विकसित करने हेतु भी मांस प्रसंस्करण अपनाने की आज आवश्यकता है।

बकरी मांस से विभिन्न उत्पाद बनाने पर बहुत कम शोध कार्य हुया है। फिर भी विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा अनेक बकरी मांस उत्पाद विकसित किए गए हैं। बकरी मांस से बनाए जाने वाले विभिन्न उत्पादों का विवरण निम्न प्रकार से है : –

नगेट्स

सौसेज की तरह नगेट्स/क्यूब्ज़ भी कमीन्यूटिड मांस उत्पाद की श्रेणी में आते हैं जिन्हें कीमा में मसाले, वनस्पति तेल, फास्फेट एवं नाइट्राइट मिलाकर तैयार किया जाता है। इनका उत्पादन 90-94% तक होता है जो प्रयोग में आने वाली सामग्री पर निर्भर करता है। क्यूब्ज़ एक अच्छे पोषक एवं अधिक अपनाने योग्य खाद्य पदार्थ हैं।

सौसेज

बकरी मांस से बने कीमा में मसाले आदि मिलाकर तथा आंतों के खोल (केसिंग्स) में भरकर सौसेज तैयार किए जाते हैं। केसिंग्स जानवरों की आंतों से बनाए जाते हैं। हालांकि आजकल अधिकतर सिंथेटिक केसिंग्स बनाए जा रहे हैं। विकसित देशों में सौसेज बहुत ही प्रचलित उत्पाद है और आजकल हमारे देश में भी इसका प्रचालन बढ़ रहा है। इसे बनाने हेतु बूढ़े बकरों से प्राप्त कड़े एवं रेशेदार मांस को सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। बकरी मांस के प्रयोग में कोई धार्मिक रुकावट भी नहीं होती है। हमारे देश में सौसेज के प्रचलन का कारण इसका सुविधाजनक होना, विभिन्नता, पोषक मूल्य एवं आर्थिक दृष्टिकोण से ठीक होना है। अनुपयोगी मांस के टुकड़ों एवं उप-उत्पादों का प्रयोग भी हम सौसेज बनाने में कर सकते है। इस प्रकार इसका उत्पादन आर्थिक रूप से फायदेमंद होता है।

अचार

फलों एवं सब्ज़ियों के अचार की तरह मांस का अचार भी एक स्व-स्थिर पारंपरिक भारतीय उत्पाद है। शीघ्र खराब हो सकने वाले खाद्य पदार्थों को सिरका एवं तेल में नमक, मसाले मिलाकर खाने को तैयार अचार बनाया जाता है। इसी तरह से बूढ़े बकरों के मांस से अचार बनाने के अच्छे अवसर हैं। यह अचार खाने के लिए तैयार, अधिक पसंद किए जाने वाला एवं सुविधायुक्त भारतीय उत्पाद है। इसको बनाने में उचित तकनीकी, पैकिंग और संरक्षण की आवश्यकता होती है। बकरी के मांस के अचार की छोटे-बड़े शहरों एवं देश के अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में विपणन क्षमता बहुत अच्छी है। ग्रामीण लोगों द्वारा मांस का अचार आसानी से तैयार किया जा सकता है एवं कुटीर उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसमें कम लागत की आवश्यकता होती है, एवं बेरोज़गार युवक-युवतियों में गरीबी उन्मूलन हेतु एक महत्वपूर्ण गतिविधि हो सकती है।

अचार बनाने में इसकी गुणवत्ता एवं संरक्षण का ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रयोग में आने वाले पदार्थ एवं उनकी मात्रा महत्वपूर्ण होती है। अच्छी गुणवत्ता वाला अचार उम्र बिता चुके बकरे के मांस से बनाया जा सकता है जिसे कमरे के तापक्रम पर दो महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। नमक मसाला आदि सही प्रकार मिश्रित होकर अचार तैयार होने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है।

पैटीज़

पैटीज़ एक कीमा से बनाए जाना वाला एक बहुत ही लोकप्रिय उत्पाद है। इसके बनाने में सरलता एवं अच्छे स्वाद के कारण उपभोक्तायों द्वारा इसे अधिक वरीयता दी जाती है। पैटीज़ समान्यत: अधिक मसालेयुक्त उत्पाद होता है जिसे कीमा, रिफ़ाइंड वनस्पति तेल, रिफ़ाइंड गेहूं का आटा, मसाले, संरक्षी एवं फ़ास्फेट मिलाकर तैयार किया जाता है।

कबाब

कबाब पारंपरिक मांस उत्पाद है तथा इसे फास्ट फूड के रूप में विकसित करने के अच्छे अवसर हैं। हमारे देश के कुछ भागों में यह काफ़ी लोकप्रिय हैं। कबाब के दो-तीन प्रकार जैसे सींक, सामी, बोटी आदि फास्ट फूड पार्लर में उपलब्ध होते है। इनमें सींक कबाब अधिक प्रचलित है। सींक कबाब मांस का समांगीत कीमा बनाकर आसानी से बनाया जा सकता है। सींकों पर 0.5-1.0 से.मी. मांस मसाले इत्यादि से बना इमलशन लगाकर ओवन में 1800 से.ग्रे. के तापक्रम पर 20-25 मिनट तक पकाया जाता है जिससे कबाब के अंदर का तापक्रम 78-800 से.ग्रे. प्राप्त हो जाये। पारंपरिक तरीके से कबाब कोयले की आग पर धुआं फूँक कर पकाए जाते हैं। ऐसे कबाबों का स्वाद धुआं युक्त होता है जिसे अधिक पसंद किया जाता है। गर्म पके सींक कबाब का रंग हल्का बादामी होने पर ओवन से निकालकर पॉलीथीन की थैली में पैक कर दिया जाता है या फिर इन्हें टमाटर की सॉस या चटनी के साथ गर्म-गर्म खाया जा सकता है।

टिक्की

यह एक प्रसंस्कृत देशी उत्पाद है, जिसे गर्म परोसा जाता है। इसे अकेले ही या फिर टमाटर की चटनी के साथ खाया जाता है। टिक्का मांस की पैटीज़ से भिन्न होता है। क्योंकि इसका गठन कुरकुरा एवं लचीला होता है। बकरी के मांस से टिक्का/टिक्की अन्य पदार्थों जैसे पके एवं मसले हुये आलू, चावल पाउडर, छिलका रहित काला चना एवं ब्रैड के टुकड़ों के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है।

समोसा

समोसा एक आम देशी व्यंजन है जिसे आलू, मसाले आदि भरकर तैयार किया जाता है। बूढ़े जानवरों के मांस एवं सब्जियों का प्रयोग कर प्रोटीन आधारित खाद्य पदार्थ में समोसा बनाया जा सकता है। इसको बनाने में प्रारम्भिक लागत बहुत कम लगती है और बेरोज़गार युवक एवं युवतियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण गतिविधि हो सकती है क्योंकि बाज़ार में मिलने वाले अन्य मांस उत्पादों की तुलना में यह एक अधिक सस्ता कार्य है। इसलिए छोटी जगहों, कस्बों, शहरों व जलपान गृहों में यह एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ साबित हो सकता है।

करी

देश के पूर्वी क्षेत्रों का यह एक बहुत ही लोकप्रिय व वरियतम मांस उत्पाद है। बकरी मांस करी में हड्डी युक्त मांस को अधिक वरीयता दी जाती है। इसे निम्न दो विधियों से बनाया जा सकता है।

मांस को मसाले, तेल आदि से मेरीनेट करके एवं तेल में तलकर: – इस विधि में मांस को मध्यम आकार के टुकड़ों में काटकर व उसमें नमक, मसाले, कौण्डिमेंट्स व खट्टा दही लगाकर 30-60 मिनट तक मेरीनेट किया जाता है। फिर इन्हें गर्म तेल में नमी नहीं दिखाई देने तक तला जाता है। मांस के टुकड़ों को डूबने तक पानी डालकर बर्तन को ढ़क दिया जाता है और हल्की आग पर अच्छी तरह पकाया जाता है।

मांस को मसाले, प्याज आदि के साथ हल्का पीला तलकर और फिर पानी में पका कर: – इस विधि में मसाले, कौण्डिमेंट्स आदि को तेल में तल लिया जाता है और फिर पानी से धोये मांस के टुकड़ों को इसमें मिलाकर तला जाता है। तलने के बाद पानी व नमक डाला जाता है। आगे की विधि ऊपर वर्णित विधि जैसी ही है।

कोफ़्ता

यह एक बहुत ही लोकप्रिय उत्पाद है क्योंकि इसमें आवश्यकतानुरूप स्वाद, सुवास मिल सकने का लाभ है। कोफ़्ता अधिक उम्र के बकरी के मांस से बनाया जा सकता है। कीमा और वसा में नमक, मैदा, मसाला, हरी करी सामग्री एवं अंडे का द्रव मिलाकर हाथ से मिश्रित किया जाता है। इस तरह तैयार मिश्रण को हाथ द्वारा बॉल की रचना दे दी जाती है। फिर बॉल को 1% नमक एवं 0.2% फास्फेट मिले उबलते हुये पानी में पकाया जाता है या इनको वनस्पति तेल में अच्छा रंग देने हेतु तला जा सकता है। कम वसा वाली बॉल/कोफ़्ता कैराजीनन, मिल्क को-प्रेसीपीटेट, अंडा आदि डालकर बनाया जा सकता है। यह पाया गया है कि 4 माह एवं अधिक दिन तक जमे हुये बकरी के मांस से बनाए गए कोफ़्ता, ताज़े मांस से बने कोफ़्ता से गुणों में अपेक्षाकृत कम होते हैं। बकरी मांस से बनी बॉल को वैक्यूम पैकेज करके -200 से.ग्रे. पर बिना गुणों में नुकसान के 4 माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

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क़ोरमा

क़ोरमा हमारे देश का एक बहुत ही स्वादिष्ट मांस उत्पाद माना जाता है। यह समान्यत: चावल एवं रोटी के साथ गर्म-गर्म परोसा जाता है। मध्य आकार के मांस के टुकड़ों को साफ पानी से धोकर, मांस से पानी को सुखा दिया जाता है। फिर इसे नमक, मसाले, दही आदि से 4 घंटे के लिए मेरीनेट किया जाता है। सही मात्रा में घी, कटी हुई प्याज, करी पत्ता व गर्म मसाले को तलकर मेरीनेट किए माँस के टुकड़ों को इसमें डालकर तथा समान रूप से मिश्रित कर ढ़क दिया जाता है। मांस में नमी के सूखने तक समस्त सामग्री को पकाया जाता है। फिर इसमें दही एवं थोड़ी चीनी मिलाकर हल्की आग पर अच्छी तरह पका लिया जाता है।

बकरी उपउत्पादों का उपयोग

मूल रूप से उप-उत्पाद एवं ओफ़ल शब्दों का प्रयोग जानवर के उन प्रत्येक भाग व अंग से होता है जिन्हें साफ किए हुये मांस में शामिल न किया गया हो। विसरा (वृक्क, यकृत, हृदय, आंत, अग्नाशय एवं स्प्लीन), जीभ, दिमाग आदि सभी खाने योग्य उप-उत्पाद कहलाते है जिनका उत्पादन बकरे में जीवित जानवर के वज़न का औसतन 20-25% होता है। जबकि अखाद्य उप-उत्पाद की पैदावार 35-40% तक होती है। अखाद्य उप-उत्पादों के अंतर्गत बाल, खाल, रक्त, सिर, कान, सींग, खुर, होंठ, गाल ब्लैडर, फेंफड़े तथा श्वसन नली आते हैं। इन सभी उप-उत्पादों के परिवहन एवं वितरण हेतु बहुत ही सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि यह ताज़ा मांस की तुलना में शीघ्र नष्टकारी होते हैं। इन उत्पादों को शीघ्र इकट्ठा कर ठंडा कर लेना चाहिए व अधिक सफाई बरतते हुये अन्य उत्पाद बनाने में प्रयोग करना चाहिए। जानवरों से प्राप्त उप-उत्पादों के अनेक प्रयोग हैं जिनका वर्णन निम्न प्रकार से है : –

  1. बाल: बकरी की कुछ नस्लों से बारीक एवं उत्तम गुणयुक्त बाल जिन्हें मोहेर के नाम से जाना जाता है, प्राप्त किए जा सकते हैं। किन्तु हमारे प्रदेश में पायी जाने वाली गद्दी नस्ल की बकरी के बाल (रेशे) मोटे होते हैं। अंगोरा नस्ल की संकर बकरियों से प्राप्त मोहेर रेशे की लंबाई लगभग 8-9 से.मी. तथा व्यास 20 माइक्रोन देखा गया है। मोहेर को अन्य किसी रंग से अच्छी प्रकार से रंगा जा सकता है। बकरी के बच्चों एवं युवा बकरों से प्राप्त मोहेर महिलायों एवं युवा वर्ग के फ़ैशन फैब्रिक व फ़ैन्सी धागे बनाने के लिए उपयोगी माना जाता है। बड़े व्यास वाले मोहेर से कंबल, पर्दे, जाली, जूते के फीते इत्यादि बनाए जाते हैं।
    पश्मीना एक बहुत ही महीन रेशा होता है जो पश्मीना बकरी की नस्ल से प्राप्त होता है। भारत, नेपाल, रूस, मंगोलिया एवं चीन पश्मीना पैदा करने वाले प्रमुख देश हैं। जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र की ठंडी जलवायु एवं हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति क्षेत्र की ऊंची पहाड़ियों में पश्मीना  बकरी से औसतन 110 ग्राम पश्मीना प्राप्त होता है तथा फैब्रिक बनाने के काम आता है। बकरी के बच्चों से प्राप्त पश्मीना व्यस्क बकरी से प्राप्त पश्मीना की तुलना में अधिक पतला एवं मुलायम होता है।
  1. खाल: बकरी से प्राप्त होने वाला एक मुख्य उप-उत्पाद है। देश की पूर्ति के अलावा इसके विपणन से एक अच्छी विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। बकरी की खाल विभिन्न प्रकार के चमड़े के सामान बनाने में प्रयोग की जाती है। भारतीय चमड़ा उद्योग का विकास शीघ्र गति से हो रहा है तथा बकरी की अच्छी गुणवत्ता वाली खाल की मांग हमेशा ही बनी रहेगी। उत्पादन का सही तरीका अपनाकर अच्छी तरह से इनका संरक्षण किया जाए, तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इनकी अच्छी मांग बढ़ेगी और अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। भेड़ की खाल से बकरी की खाल आकार में बड़ी एवं दीर्घायु चमड़ा देने वाली होने के कारण अधिक मूल्यवान मानी जाती है। चमड़ा उद्योग के विभिन्न उत्पाद बनाने हेतु कच्चे माल की पूर्ति में बकरी की खाल का एक महत्वपूर्ण योगदान है। बधिया किए हुये व्यस्क बकरों की खाल अच्छी मानी जाती है। बकरी की खाल को निकालने के बाद धोना तथा नमक लगाकर रखना आवश्यक होता है। बकरी की खाल से प्राप्त चमड़ा महिलायों के हाथ के बैग, गारमेंटस, दस्ताने, पैरों के जूते चप्पल एवं फ़ैन्सी बटुवे बनाने में काम आता है।
  2. खून, सींग एवं खुर: फार्मास्युटिकल उद्योग में खून का प्रयोग अनेक प्रकार की दवाएं, सीरप आदि बनाने में किया जाता है। ब्लड मील में भी खून का प्रयोग किया जाता है। बकरी का खून, सींग एवं खुर का प्रयोग दाना एवं खनिज मिश्रण बनाने में भी किया जा रहा है। बकरी के सींग से अनेक प्रकार के सजावट के सामान बनाए जाते हैं। बकरी के खुर का प्रयोग ठंडे प्रदेशों में गर्म-गर्म सूप बनाकर किया जाता है।
  3. हड्डी: बकरी वधशाला से प्राप्त होने वाला दूसरा मुख्य उत्पाद हड्डियाँ होती हैं। जानवर के शरीर के वज़न का लगभग 15% भार हड्डियों का होता है। इनका प्रमुख उपयोग हड्डी का चूरा एवं दाना बनाने वाली मिलों द्वारा किया जाता है। चूरा की हुई हड्डी या तो विदेश भेजी जाती हैं या फिर हमारे देश में बोन ग्लू, ओसिन एवं जिलेटिन बनाने के काम आती है। जानवरों के दाने एवं उर्वरकों के निर्माण में खनिज के पूरक के रूप में भी हड्डी का चूरा काफ़ी प्रयोग होता है।
    जानवर की छोटी आंत सौसेज बनाने हेतु खोल (केसिंग्स) के रूप में प्रयोग की जाती है। बकरी की अच्छे गुणों वाली केसिंग्स की विदेशों में अच्छी मांग है और हमारे देश को इससे अच्छी मुद्रा भी प्राप्त हो रही है। देशी उपकरण एवं कम मजदूरी के साथ इस उत्पाद को बकरी से प्राप्त किया जाता है, जिसका मूल्य कभी-कभी जानवर के मूल्य के 25% तक मिल जाता है।
    इसके अलावा वधशाला से निष्कासित पदार्थ, हड्डी एवं खून को रैन्डरिंग विधि द्वारा सुखाकर मांस-हड्डी भोज्य या चूरा बनाया जा सकता है। बकरी आंत से लगभग 2-5 कि.ग्रा. इंजेस्टा मिलता है। वर्तमान में यह या तो धोकर नष्ट कर दिया जाता है या खाद में काम आता है। यदि इसे अच्छी तरह इकट्ठा कर विधायण किया जाए, तो इसमें जानवरों के भोजन हेतु मूल्यवान प्रोटीन मिल सकती है। विभिन्न ग्रंथियों के रस जानवरों एवं मनुष्यों की बीमारी एवं अनेक विकारों के निदान हेतु प्रयोग में लाये जाते हैं, जैसे पैनक्रियाज़ से इंसुलिन, फेंफड़ों से हिपेरिन इत्यादि विशेष प्रयोग हेतु प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार यदि पशु उत्पादों का सही उपयोग नहीं किया जाए, तो एक मूल्यवान आय का स्त्रोत व्यर्थ ही खत्म हो जाएगा।

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