वैज्ञानिक तरीके से भेड़ पालन एक अत्यंत लाभकारी व्यवसाय

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हमारे देश भारत में 20 वी पशुगणना के अनुसार 74.26 मिलीयन भेड़ हैं जो पिछली पशु गणना से 14.1% अधिक है। भेड़ का मनुष्य से संबंध आदिकाल से है तथा भेड़ पालन एक प्राचीन व्यवसाय है। भेड़ पालन से ऊन तथा मांस तो प्राप्ति होता ही है, भेड़ की खाद भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती है। भेड़ कृषि अयोग्य भूमि में चरती है तथा कई खरपतवार आदि अनावश्यक घासों का उपयोग करती है तथा ऊंचाई पर स्थित चरागाह जो अन्य पशुओं के अयोग्य हैं उसका उपयोग करती है।भेड़ पालक भेड़ों से प्रतिवर्ष मेमने प्राप्त करते हैं। यह मुख्य रूप से भूमिहीन किसानों द्वारा पाली जाती है। अपने  देश में भेड़ की 40 नस्लें पाई जाती हैं जिसमें से नेल्लोर, मुजफ्फरनगरी, मारवाड़ी, गद्दी तथा डककनी आदि प्रमुख रूप से पाली जाती है। भूमिहीन किसान भेड़ पालन से जीविकोपार्जन के साथ साथ अच्छी आमदनी भी प्राप्त कर सकते हैं। भेड़ों से ऊन, मांस, दूध, चमड़ा आदि की प्राप्ति होती है। इनसे कम खर्च में दुग्ध उत्पादन लिया जा सकता है। सामान्यतः अधिकांश किसान भेड़ के वैज्ञानिक पालन से अनजान होते हैं। इनके पोषण तथा रखरखाव में यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाए तो भेड़ पालन किसानों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो सकता है। भेड़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना से जुड़ा हुआ है यह व्यवसाय मांस, दूध, ऊन, कार्बनिक खाद एवं अन्य उपयोगी सामग्री प्रदान करता है। भेड़ पालकों को इनके, व्यवसाय से कई लाभ हैं इसलिए वैज्ञानिक तरीके से भेड़ पालन करने हेतु निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

प्रजनन और नस्ल

अच्छी नस्लों की देसी विदेशी और संकर प्रजातियों का चयन उनके उद्देश्य के अनुसार किया जाना चाहिए।

  • मांस प्राप्त करने के लिए मालपुरा, जैसलमेरी, मारवाड़ी, नाली, छोटा नागपुरी और बीकानेरी के अतिरिक्त मेरिनो, कोरीडायल, रामबुले आदि नस्लों का चयन किया जाना चाहिए।
  • दरी ऊन के लिए मुख्य रूप से मालपुरा, जैसलमेरी, मारवाड़ी और छोटा नागपुरी उपयुक्त है।
  • मौसम के अनुसार इनका प्रजनन किया जाना चाहिए।
  • अधिक गर्मी और बरसात के मौसम में प्रजनन नहीं होना चाहिए, इससे मृत्यु दर बढ़ जाती है।
  • भेड़ के प्रजनन के लिए 12 से 18 महीने की आयु उचित मानी गई है।

भारत में भेड़ पालन करने के लाभ

भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए यहां कृषि पर आधारित व्यवसाय जैसे भेड़ पालन इत्यादि शुरू करना बेहद आसान कार्य है। भेड़ पालन प्राथमिक तौर पर मांस, ऊन, खाद एवं दूध की प्राप्ति के लिए किया जाता है लेकिन भेड़ों से प्राप्त मांस न सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि पोषण से भी भरपूर होता है यही कारण है कि इसकी मांग भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में बनी रहती है। भेड़ पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे रेगिस्तान, बंजर जमीन, पहाड़ों एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में कहीं भी शुरू किया जा सकता है। इसके अलावा इस तरह के व्यवसाय को छोटे स्तर पर प्रारंभ करने के लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता नहीं होती है और भेड़ों को पालने के लिए बहुत अधिक जगह की भी आवश्यकता नहीं होती है भेड़ पालन करने के इन सबके अलावा अन्य लाभ भी हैं जो निम्नवत है:-

  1. भेड़ एक मजबूत पशु होता है इसलिए हर प्रकार के वातावरण को सहन करने में सक्षम होता है।
  2. भेड़ों की बहुत अधिक देखभाल एवं प्रबंधन की आवश्यकता नहीं होती है। भेड़ के मांस के अनेकों स्वास्थ्यवर्धक परिणाम होते हैं इसलिए भारत में भेड़ के मांस की मांग दर, लगातार बढ़ती जा रही है।
  3. किसान भेड़ पालन से विभिन्न प्रकार के उत्पादों जैसे ऊन, दूध, मांस, खाद आदि का उत्पादन कर सकता है। औसतन एक मादा भेड़ एक बार में 1 से 2 बच्चों को जन्म देती है।
  4. भेड़ों को पालने के लिए अत्यंत कम जगह की आवश्यकता होती है यदि आप भेड़ पालन घरेलू तौर पर करना चाहते हैं तो आप इनका पालन अन्य पशुओं के साथ भी कर सकते हैं परंतु व्यावसायिक स्तर के लिए किसान को इनके लिए अलग आवास बनाने की आवश्यकता होती है।
  5. भेड़ पालन व्यवसाय के लिए किसी खास दक्ष या कुशल श्रमिकों की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए इस काम के लिए श्रमिक सस्ती दरों पर उपलब्ध हो जाते हैं।
  6. भेड़ विभिन्न प्रकार की घास, खरपतवार, पौधे, पत्ते एवं अन्य कम गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ खाकर भी जीवित रह सकती हैं इसलिए इनके आहार का खर्च कम आता है।
  7. भेड़ चरते समय, पौधों को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाती है। भेड़ों से पूरे वर्ष लगातार मांस, दूध, खाद, ऊन इत्यादि प्राप्त किए जा सकते हैं। भेड़ के मांस में स्वास्थ्यवर्धक गुण होने के कारण इसकी देश एवं विदेश में भारी मांग है।
  8. भेड़ों से प्राप्त गोबर एक उच्च गुणवत्ता की खाद है किसान अपनी फसल का अधिकतम उत्पादन के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं।
  9. भारत में घरेलू भेड़ पालन से गरीब लोग, ग्रामीण छात्र एवं महिलाएं कुछ अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं।
  10. व्यवसायिक भेड़ पालन से बेरोजगार शिक्षित लोगों को नए रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। बेरोजगार व्यक्ति भेड़ पालन से अपनी कमाई करके देश की राष्ट्रीय आय में योगदान दे सकते हैं। इसके अतिरिक्त भेड़ पालन करने के लिए सार्वजनिक बैंकों से आसानी से ऋण भी मिल जाता है। भेड़ पालन करने के लिए किसी प्रकार की विशेष शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता भी नहीं होती है।
और देखें :  निष्क्रमण से लौट रही भेड़ों के रेवड़ का स्वास्थ्य जाँच एवं उनका इलाज

भेड़ पालन के लिए उपयुक्त स्थान

भेड़ पालन के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करना बेहद ही महत्वपूर्ण कार्य है यद्यपि भेड़ पालन भारतवर्ष के किसी भी क्षेत्र में शुरू किया जा सकता है। परंतु जलवायु के आधार पर संपूर्ण भारत में भेड़ पालन आसानी से किया जा सकता है। लेकिन जब किसान द्वारा अपने इस व्यवसाय के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव किया जा रहा हो तो उसे कुछ महत्वपूर्ण सुविधाओं के बारे में अवश्य ध्यान देना चाहिए। भेड़ पालन के लिए स्थान का चयन करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि उस स्थान पर स्वच्छ एवं ताजे पानी की उपलब्धता हो हरी घास की उपलब्धता हो चिकित्सा की अच्छी सुविधाओं, यातायात एवं विपणन की सुविधा हो। इन्हीं सब उपर्युक्त सुविधाओं को ध्यान में रखकर उद्यमी को भेड़ पालन के लिए स्थान का चुनाव करना चाहिए ।

अच्छी नस्ल का चुनाव

जैसा कि हम सभी जानते हैं की भेड़ पालन व्यवसाय से उत्पन्न उत्पादों जैसे दूध  खाल, मांस ऊन इत्यादि पर निर्भर होता है। इसलिए भेड़ पालन कर रहे व्यक्ति को हमेशा ही एक ऐसी नस्ल का चुनाव करना चाहिए जिसमें इन उत्पादों को अधिक मात्रा में उत्पन्न करने का सामर्थ्य हो। भारत के बाजार में भी अनेकों नस्ल की भेड़ उपलब्ध है जिनमें से आप अपनी आवश्यकतानुसार भेड़ की नस्ल का चुनाव अपने व्यवसाय के लिए कर सकते हैं। अपने क्षेत्र की जलवायु स्थिति के हिसाब से आप किसी भी अच्छी नस्ल का चुनाव कर सकते हैं जिससे आप अच्छी खासी आमदनी कर पाने में समर्थ होंगे। जैसे यदि आप भेड़ पालन मांस उत्पादन के लिए करना चाहते हैं तो आपको किसी ऐसी नस्ल का चुनाव करना होगा जो बड़ी जल्दी बढ़ती हो। इसके अतिरिक्त दूध एवं ऊन का उत्पादन करने के लिए बाजार में उपलब्ध किसी उपयुक्त नस्ल का चुनाव करें। आज भारत में भेड़ पालन व्यवसाय प्रारंभ करने वाले उद्यमियों के लिए कई स्थानीय भेड़ों की नस्लें आसानी से उपलब्ध है। कुछ नस्लों का उनकी विशेषताओं के साथ संक्षिप्त विवरण निम्नवत है:-

मेरिनो: भेड़ों की यह नस्ल ऊन का उत्पादन करने के लिए प्रसिद्ध है ।

डोरसेट भेड़: भेड़ों की यह नस्ल शीघ्र वृद्धि होने के लिए जानी जाती है और इसलिए स्वादिष्ट मांस उत्पादन के लिए यह अनुकूल मानी जाती है।

हेंपशायर भेड़: यह नस्ल मांस एवं ऊन दोनों के उत्पादन के लिए जानी जाती है।

भारत में डेक्कन, बेल्लारी, मेरिनो, हसन, रामबुलेट, साउथ डाउन कुछ सामान्य भेंड की नस्ले हैं जिनका पालन व्यवसायिक तौर पर किया जाता है।

भेड़ों के लिए आवास व्यवस्था

छोटे स्तर पर भेड़ व्यवसाय के लिए किसान को अलग से आवास बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी व्यक्ति अन्य घरेलू पशुओं के साथ इनका भी पालन कर सकता है लेकिन एक व्यावसायिक फार्मिंग प्रारंभ करने के लिए उद्यमी को भेड़ों के लिए अलग से आवास बनाने की आवश्यकता होती है। क्योंकि एक अच्छा आवास भेड़ों को सभी प्रकार के प्रतिकूल मौसम से बचा कर रखता है। यद्यपि खुले खेतों में भेड़ों के लिए आवास की व्यवस्था करने में आने वाली लागत बेहद कम होती है। आमतौर पर एक वयस्क भेड़ को केवल 20 स्क्वायर फीट की जगह की आवश्यकता होती है। इसलिए 10 फीट लंबी एवं 10 फीट चौड़ी जगह में 5 से 6 भेड़ पाली जा सकती हैं। हालांकि फर्श से छत की ऊंचाई कम से कम 6 फीट होनी चाहिए। भेड़ पालन कर रहे व्यवसाई को भेड़ों के रहने वाले स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखना होगा। उस कमरे में प्रकाश एवं हवा आने जाने का समुचित प्रबंध करना होगा। ऐसा न करने पर पशुओं का स्वास्थ्य खराब हो सकता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव उद्यमी के व्यवसाय पर पड़ सकता है।

और देखें :  बकरियों एवं भेड़ों की महामारी: पी.पी.आर.

भेड़ का वैज्ञानिक पोषण

यद्यपि भेड़, कुछ भी खा कर आसानी से जीवित रह सकती हैं लेकिन उच्च गुणवत्ता एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ खाने से भीड़ स्वस्थ, निरोग एवं उत्पादक बने रहते हैं इसलिए भेड़ पालन व्यवसाय करने वाले उद्यमी को चाहिए कि वह अपनी भे ड़ों को हमेशा ताजा एवं पोस्टिक आहार  खिलाने का प्रयत्न करें। अच्छा स्वास्थ्यवर्धक भोजन देने के, साथ साथ उन्हें हमेशा पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ एवं ताजा पानी भी दे।

भेड़ों की आहार व्यवस्था सामान्यता चरागाह की स्थिति पर निर्भर करती है। चारे के साथ साथ अतिरिक्त लवण एवं विटामिंस की आवश्यकता भी पूरी की जानी चाहिए। गर्मियों में अलग से विटामिन “ए” देने  की आवश्यकता होती है। सामान्य चारागाहों में, पाले जा रहे झुंड को कम से कम 8 से 10 घंटे प्रतिदिन चराया जाना चाहिए। भेड़ों को एक साथ गर्मी पर लाने के लिए 250 ग्राम दाना प्रतिदिन एक माह तक प्रजनन के मौसम के दौरान देने से लगभग सभी मादा भेड़े कुछ समय पश्चात ही एक साथ गर्मी में आ जाती हैं। जिसके कारण मेमने एक साथ पैदा होते हैं तथा उनकी पालन पोषण व्यवस्था अत्यंत आसानी से की जा सकती है। मेमनों में रोमनथिक़ा के त्वरित विकास हेतु भेड़ के नवजात बच्चों के बाडे़ में स्वादिष्ट हरा चारा बांध देना चाहिए। मैंमने कुतर कुतर कर घास खाते हैं और उनका विकास जल्दी होता है ।

बड़े आकार वाली भेड़ों के लिए आवश्यक राशन, हरे चारे की मात्रा एवं चराई का प्रतिदिन का विवरण निम्नवत है: –

  1. भेड़/ मेढा:  देसी एवं संकर प्रजाति को 300 से 350 ग्राम रातिब मिश्रण के साथ-साथ 8 से 10 घंटे प्रतिदिन उन्नत चरागाह में चराई कराना चाहिए।
  2. शुष्क मादा एवं प्रारंभिक गर्भावस्था में:  150 से 200 ग्राम रातिब, मिश्रण के साथ-साथ 8 से 10 घंटा प्रतिदिन चरागाह में चराई कराना चाहिए।
  3. प्रजनन अवस्था तथा गर्भावस्था के अंतिम माह में:  250 से 350 ग्राम  रातिब, मिश्रण के अतिरिक्त 8 से 10  घंटा प्रतिदिन उन्नत चरागाह में चराना चाहिए।
  4. दुग्धावस्था मैं:  300 से 400 ग्राम रातीब मिश्रण एवं 8 से 10 घंटे प्रतिदिन उन्नत चरागाह में चराना चाहिए।
  5. मेमने एक माह तक क्रीप राशन 25 से 50 ग्राम  रातिब मिश्रण एवं 150 से 200 मिलीलीटर दूध एवं हरा चारा 15 दिन की आयु से देना प्रारंभ करना चाहिए।
  6. 2 से 3 माह तक क्रीप राशन 100 से 250 ग्राम रातीब मिश्रण एवं उपलब्धता अनुसार दूध एवं हरा चारा 500 ग्राम तक देना चाहिए।
  7. वीनर( 3 से 6 माह) को 250 से 350 ग्राम रातिब मिश्रण के साथ-साथ उपलब्धता अनुसार दूध एवं हरा चारा 500 ग्राम देना चाहिए।
  8. अल्प वयस्क बच्चों को 150 से 250 ग्राम रातिब मिश्रण के साथ-साथ उपलब्धता अनुसार दूध एवं हरा चारा 500 ग्राम देना चाहिए।

(केंद्रीय भेड़ अनुसंधान संस्थान ,अविकानगर की अनुशंसानुसार)
नोट: छोटे आकार वाली भेड़ जैसे गैरोल के लिए औसत राशन की मात्रा शारीरिक भार के अनुपात में कम करके दी जानी चाहिए।

भेड़ो की देखभाल एवं प्रबंधन

भेड़ पालन व्यवसाय कर रहे उद्यमी को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि वह अपने व्यवसाय से तभी अधिक कमाई कर पाने में समर्थ होगा जब उसके द्वारा पाले जा रहे भेड़ स्वस्थ एवं उत्पादक होंगे। इसलिए हमेशा अपने फार्म में उपस्थित भेड़ों की समुचित देखभाल करने की कोशिश करें। स्वस्थ एवं अच्छी नस्लों का चुनाव करें और उनके लिए पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था करने के साथ-साथ अच्छे आवास का भी प्रबंध करें ताकि वे विभिन्न प्रकार के संक्रमण से मुक्त रहें इसके लिए उनका समय समय पर टीकाकरण एवं उचित औषधियां विशेषकर कृमि नाशक औषधियां भी उन्हें देते रहें ताकि उनके स्वास्थ्य पर आने वाली किसी भी परेशानी को रोका जा सके और आप उन्हें बेच कर अधिक से अधिक आमदनी कर पाने में समर्थ हो। भेड़ों को वयस्क हो जाने पर समय-समय पर बेचना उचित रहता है और ऊन को भी, समय-समय पर एकत्रित करते रहे और स्थानीय बाजार में उसे बेचते  रहें। इसके अतिरिक्त भेड़ पालन व्यवसाय करने वाले उद्यमी को अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय में भी जाते रहना चाहिए और पशु चिकित्सा अधिकारी से लाभदायक भेड़ पालन की नई नई प्रणाली सीखते रहनी चाहिए। भेड़ों की देखभाल हेतु निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

  1. इनको ऐसे बाड़ों में रखना चाहिए, जिसमें पानी ना रुके और उनके बचाव के लिए समुचित आवास का प्रबंध हो। सर्दियों में इनके बैठने तथा रहने के कक्ष में बिछाली का प्रबंध होना चाहिए। ठंड से बचाने के लिए बच्चों तथा भेड़ के कक्ष में चारों तरफ फूस की टट्टी या जूट के पर्दे लगा देने चाहिए।
  2. भेड़ या मेड़ा को 1 वर्ष की आयु से पूर्व प्रजनन के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए।भेड़ एक  सीजनली   पॉलिइसटरस, पशु है इसका गर्भकाल लगभग  145 दिन है । अतः इसका प्रजनन इस प्रकार करना चाहिए ताकि बच्चे अनुकूल वातावरण में पैदा हो और बच्चे तथा मां अपना पूर्ण उत्पादन कर सके। इनका प्रजनन मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई, एवं सितंबर अक्टूबर में करना चाहिए ताकि बच्चे जुलाई-अगस्त, अक्टूबर नवंबर, जनवरी-फरवरी एवं मार्च-अप्रैल के अनुकूल वातावरण में पैदा हो।
  3. बाहय तथा आंतरिक परजीवी से बचाने के लिए प्रतिवर्ष पशुओं को दो से तीन बार कृमिनाशक औषधि का पान अवश्य कराना चाहिए। सामान्यत: प्रजनन के 2 सप्ताह पहले क्रमी नाशक औषधि देना अत्यंत लाभदायक होता है। वाहय परजीवी की रक्षा करने के लिए डेल्टामेथ्रीन या अमितराज से डिपिंग या स्प्रे कर सकते हैं।
  4. भेड़ों का टीकाकरण उचित समय पर करने से बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। इनका टीकाकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
  5. खुर पका और मुंह पका के लिए वयस्क पशु में 1ml इंट्रा मस्कुलर विधि से वर्ष में 2 बार प्रत्येक 6 माह के अंतराल पर लगवाना चाहिए।
  6. ब्लेैक, बीमारी हेतु वयस्क पशुओं में 2ml सब क्यूटनियस विधि से प्रतिवर्ष सभी मौसम में दे सकते हैं।
  7. लैंब डिसेंट्री: मेमनों एवं वयस्क में 2 से  3 ml सब क्यूटनियस विधिसे वर्ष में एक बार किसी भी मौसम में लगवा सकते हैं।
  8. एंटीरोटोक्सीमियां: मेमनों एवं वयस्क में 2.5 से 5ml सबक्यूटेनियस विधिसे, प्रतिवर्ष बच्चे पैदा होने के मौसम में लगवाना चाहिए।
  9. हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया: वयस्क में 2ml सब क्यूटनेस विधि से प्रतिवर्ष मार्च या जून में लगवाना चाहिए।
  10. ब्लैक कवाटर: मेमनों एवं वयस्क में 2 से 3ml सबकयूटेनियस विधि से प्रतिवर्ष किसी भी मौसम में लगवा सकते हैं।
  11. शीप पॉक्स: मेमना एवं वयस्कों में 2.5 से 5ml सब क्यूटेनियस , विधि से प्रतिवर्ष दिसंबर या मार्च में लगवाने चाहिए।
  12. लंग वर्म/ फेफड़ा का कीड़ा: 3 महीने के मैमने में, 1000 लॉरवे दिसंबर / मार्च, मैं देना चाहिए।
और देखें :  पशुओं में एसपाईरेट्री/ ड्रेंचिंग न्यूमोनिया: कारण एवं निवारण

उपरोक्त बिंदुओं पर ध्यान देकर भेड़ पालन से अत्याधिक लाभ कमाया जा सकता है।

संदर्भ

  1. टेक्स्ट बुक ऑफ एनिमल हसबेंडरी द्वारा जी सी बनर्जी
  2. हैंडबुक आफ एनिमल हसबेंडरी द्वारा आईसीएआर
  3. प्रीवेंटिव वेटरनरी मेडिसिन द्वारा अमलेंदु चक्रवर्ती
  4. विकिपीडिया

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