कुक्कुट आवास निर्माण की पद्धतियां

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कुक्कुट को मांस या अंडे के उत्पादन के लिए उनकी आनुवांशिक क्षमता हासिल करने के लिए एक ऐसे वातावरण की जरूरत होती है, जिसमें वह अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके, इसमें शामिल हैं उपयुक्त भौतिक वातावरण जिसमें वे रहते हैं, पर्याप्त भोजन और पानी तथा रोगी जीवों के लिए न्यूनतम जोखिम। इन कारकों को काफी हद तक पक्षियों के आवास और प्रबंधन द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। पोल्ट्री के लिए आवास उनके आराम, सुरक्षा, कुशल उत्पादन और सुविधा के लिए अति आवश्यक है। एक अच्छा कुक्कुट आवास पक्षियों को न केवल अनुकूल वातावरण प्रदान करता है, साथ ही उनको परभक्षियों तथा विपरीत मौसम से भी सुरक्षा प्रदान करता है।

मुर्गी फार्म हेतु स्थान का चुनाव

  • आवास गृह का निर्माण हमेशा ऊँची व समतल भूमि पर करना चाहिए ताकि बरसाती पानी इकट्ठा नहीं हो पाये तथा जल निकास की सुविधा रहे, जिससे फार्म के आस-पास गन्दगी और सीलन ना हो।
  • मिट्टी अनउपजाऊ, मिली-जुली द¨मट हो, जो पानी को शीघ्र सोख ले, जिससे कीचड न बन पाये।
  • फार्म का निर्माण पक्की सड़कों के निकट होना चाहिए, जिससे यातायात, कच्चे माल, मजदूरों की उपलब्धता तथा विपरण की सुविधा आसानी से हो सके।
  • फार्म मानव आबादी, हवाई-अड्डे अथवा रेल की पटरी के अत्यधिक निकट ना हो।
  • विधुत व जल आपूर्ति की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए।

कुक्कुट

कुक्कुट आवास निर्माण की पद्धति

उन्मुक्त क्षेत्र या व्यापक पद्धति: देश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में उन्मुक्त क्षेत्र पद्धति प्रचलित है, जिसमें कोई विशेष पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है। किसानों को केवल चूजे खरीदने हेतु थोड़ी पूंजी की जरूरत होती है। इस पद्धति में पक्षियों को रात्रि में शरण तथा दिन में घूमने की आजादी प्राप्त होती है। पक्षी अपने आहार आवश्यकताओं को खुद पूरा करते है। इन पक्षियों की देख भाल भी घर की महिलाओं एवं बच्चों द्वारा ही हो जाती है तथा पक्षियों के आवास और आहार पर कुछ विशेष खर्च नहीं होता है।

अर्ध सघन पद्धति: अर्ध सघन पद्धति में दिन के समय पक्षियों को एक सीमा तक परभक्षियों एवं प्राकृतिक दुश्मनों से बचाव हेतु खुले बाड़ों में रखा जाता है। खाने के लिए थोड़ा बहुत दाना दिया जाता है। पक्षी अपनी बाकी जरूरत हरियाली या कीड़े मकोड़े खाकर पूरा करते हैं।

सघन पद्धति:  व्यावसायिक मुर्गी पालन में आवास निर्माण के लिए सघन पद्धति ही आमतौर पर प्रयोग की जाती है। वर्तमान समय में आधुनिक तकनीक, स्थान की मितव्ययिता, कम से कम मजदूरों का प्रयोग आदि के कारण यह पद्धति अधिकतम उत्पादन संभावनायें प्रदान करने के साथ ही उत्कृष्ट प्रबन्धन व्यवस्था भी प्रदान करती है।

कुक्कुट आवास निर्माण के सिद्धांत

उचित दूरीः दो पोल्ट्री फार्म एक-दूसरे के करीब न हों, कम से कम 300 फुट की दूरी होनी चाहिए।

दिशाः देश के गर्म भागों में कुक्कुट आवास, लम्बाई में पूर्व से पश्चिम की दिशा में होने चाहिए तथा उसकी बगल की दीवारें उत्तर तथा दक्षिण की ओर होनी चाहिए, जिससे सूर्य की सीधी किरणों को घर में प्रवेश से रोका जा सके। देश के ऐसे भागों में जहां गर्मी के मौसम में गर्मी बहुत अधिक नहीं पड़ती, परन्तु सर्दी बहुत अधिक होती है, वहाँ आवास दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व दिशा में बनाना चाहिए, जिससे अधिक मात्रा में सूर्य की रोशनी आये।

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शेड का आकारः शेड की लंबाई मुर्गीयों की संख्या पर र्निभर करती है। चैड़ाई 30-33 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए एवं ऊँचाई 12 से 14 फीट के बीच तथा 8 से 10 फीट किनारों पर होनी चाहिए। आवास को 3-4 कमरों में विभाजित भी किया जा सकता है। कुक्कुट आवास के आखिर में एक छोटा कमरा दाने व दूसरे सयंत्र आदि के लिए भंडार के रुप में बनवाना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल-आउट पद्धति का पालन करें।

निर्माण सामग्रीः परम्परागत विधि से आवास निर्माण में प्रयोग होने वाली वस्तुए जैसे सीमेंट, लोहा एवं एस्बेस्टस महंगी तो हैं ही साथ ही इनकी मांग पूर्ति में भी कठिनाई है। अधिक लाभ के लिए स्थानीय वस्तुओं की उपलब्धता के आधार पर आवास बनाने चाहिए। आवास के फर्श निर्माण हेतु मिट्टी, ईंट, पत्थर का चूरा, चावल की भूसी की राख आदि वस्तुयें, जबकि आवास की छत हेतु छप्पर, टाइल, डामरशीट, एल्यूमिनियम एवं पोलीथीन शीट का प्रयोग किया जा सकता है। आवास में खम्भ®ं आदि के निर्माण के लिए अच्छी किस्म की लकड़ी या आयरन एंगिल का प्रयोग करे, कीमत कम करने के लिए बांस का भी प्रयोग कर सकते हैं।

फर्शः आवास का फर्श जमीन से 2 फुट ऊँचा होना चाहिए जो कि कांक्रीट का हो तो बेहतर है। अगर ईंट का फर्श बनाना है तो 2 इंच राख की सतह तैयार कर उस पर ईंट बिछा दे तथा थोड़ी रेत व सीमेंट प्लास्टर कर दें। मिट्टी के फर्श हेतु कच्चे फर्श पर 2 इंच मोटी राख की सतह तैयार कर मिट्टी, गाय का गोबर तथा शीरे के मिश्रण का लेप करना चाहिए। इसके बाद पत्थर के चूरे की सतह बिछा कर उस पर सीमेंट की एक पतली तह बना देनी चाहिए। ऐसा करने से चूहे आदि से बचाव के साथ ही साफ सफ़ाई में आसानी रहती है।

छतः कुक्कुट आवास ग्रहों की छत हवा व नमी के लिए प्रतिरोधी व ठोस होनी चाहिए। घर की छत एस्बेस्टस चादर या एल्यूमीनियम चादर की होनी चाहिए, जो शेड के चारों ओर 2-4 फुट छज्जे के रूप में बहार निकली हो। सस्ते कुक्कुट आवास का छप्पर बनाने में सूखी घास, नारियल अथवा ताड़ के पत्ते का प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि इस प्रकार की छत तैयार करने में खर्च कम आता है, साथ ही पक्षियों को ठण्डा वातावरण भी प्रदान होता है। परन्तु आग लगने की संभावना के कारण यह लम्बे समय तक ठीक स्थिति में नहीं रह पाती। इसके लिए चिकनी मिट्टी और भूसे का मिश्रण तैयार कर छत पर प्लास्टर करें तथा उसे सूखने दें। इसके बाद उस पर गोबर के घोल के दो कोट तथा डामर व मिट्टी का तेल बराबर मात्रा में लेकर उसके दो कोट कर दें ।

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दीवारेंः बिछावन पद्धति में बगल की दीवारों के दो तिहाई क्षेत्र को आमतौर पर खुला रखा जाता है और तार की जाली के साथ फिट किया जाता है, जबकि पिंजरा पद्धति में दीवार ना ही बनाये तो  बेहतर होगा। अतः घर की लम्बाई में दोनों तरफ की दीवारें ढाई फीट ऊचीं होनी चाहिए। इसके ऊपर साढ़े पांच फुट की ऊँचाई तक जी.आई. तार की जाली होनी चाहिए।

बिछावन प्रबंधन: बिछावन के लिए अक्सर वे ही चीजें प्रयोग में लायी जाती है जो उस स्थान पर सस्ते दामों पर और आसानी से मिलती हों। यह पदार्थ साफ, सूखा तथा ऐसा होना चाहिए जो नमी सोख सके तथा बिछावन में बड़े ढेले न जमने दें। हैचरी से नये चूजों को लाने से पूर्व मुर्गीघर में बिछायी गयी पुरानी बिछावन को हटा देना चाहिए तथा अच्छी तरह सफाई के बाद इसके स्थान पर नये बिछावन का प्रयोग करना चाहिए। एक सप्ताह तक के चूजे के लिए बिछावन 5 सेमी. की मोटी तह बिछाकर बनाना चाहिए। चूजे जितने बड़े होते जायें बिछावन की तह धीरे-धीरे मोटी करते जाना चाहिए। बिछावन को आमतौर पर सप्ताह में एक बार तथा आवश्यकता पड़ने पर रोज (जैसे बरसात में) उलट-पुलट देने से उसकी दशा अच्छी रहती है। बिछावन में किसी प्रकार की फफूँद नजर नहीं आनी चाहिए। जहाँ आपको फफूँद नजर आये या कोई भाग बहुत गीला हो जाये तो उसको बदलकर उस जगह पर नई बिछावन डाल दें। बिछावन में 20 से 25 प्रतिशत तक आर्द्रता होना चाहिए। यदि बिछावन में नमी ज्यादा हो जाये तो सुपर फास्फेट सवा किग्रा या बुझा हुआ चूना डेढ़ किग्रा. प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिला देना चाहिए।

पोल्ट्री उपकरणः वर्तमान परिवेश में कुक्कुट पालकों को सफल कुक्कुट उत्पादन के लिए आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि ब्रूड़िंग के लिए बैटरी ब्रूडर, होवर, ब्रूडर गार्ड, दाने तथा पानी के बर्तन, आवास के लिए बैटरी पिंजरे, कैलिफोर्निया पिंजरे। इसके अतिरिक्त चोंच काटने की मशीन, पहचान के लिए विंग बैंड, लेग बैंड आदि की आवश्यकता होती है।

प्रकाश व्यवस्थाः उचित अंडा व शारीरिक वृद्धि के लिए कुक्कुट आवास में रोशनी का सही प्रबन्ध होना चाहिए। 60 वाट का एक बल्ब 100 वर्ग फुट फर्श स्थान के लिए उपयुक्त होता है। प्रकाश की व्यवस्था जमीनी स्तर से 7-8 फीट की ऊँचाई पर होनी चाहिए तथा बल्ब या ट्यूब-लाइट दीवारों की अपेक्षा छत से लटकानी चाहिए। कुक्कुट आवास में बल्ब इस प्रकार लगाये जाये कि प्रति मुर्गी एक वाट की दर से प्रकाश उपलब्ध हो, ट्यूब-लाइट होने पर ये मात्रा कम की जा सकती है। समय-समय पर प्रकाश स्रोतों को साफ करते रहना चाहिए, यदि बल्वों का उपयोग किया जाता है, तो दो बल्ब के बीच का अंतराल 10 फीट तथा फ्लोरोसेंट रोशनी (ट्यूब लाइट) में ये अंतराल 15 फीट होना चाइये।

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जैव सुरक्षाः इसके अलावा जैव सुरक्षा के नियमों का भी पालन होना चाहिए। बाहरी व्यक्तियों और वाहनों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। मुर्गी घर के दरवाजे पर एक बर्तन या नाद में फिनाइल का पानी रखें। मुर्गीघर में जाते या आते समय पैर धो लें। यह पानी रोज बदल दें। जीवाणु, विषाणु, कवक परजीवी तथा पोषणहीनता के कारण मुर्गियों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। अतः सफाई तथा स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए नियमित रूप से रोगाणुनाशक पदार्थों का छिड़काव आवश्यक है। समय-समय पर शेड के बाहर डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। मरी हुई मुर्गियों को कमरे से तुरन्त बाहर निकाल दें। नजदीक के अस्पताल या पशुचिकित्सा महाविद्यालय या पशुचिकित्सक से पोस्टमार्टम करा लें। पोस्टमार्टम कराने से यह मालूम हो जायेगा की मौत किस बीमारी या कारण से हुई है। इन सावधानियों के बरतने से रोगों के फैलने की दशा में मुर्गियों को न्यूनतम हानि होती है।

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  1. बहुत ही सरल शब्दों में बताया गया है ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मुर्गीपालन में बहुत ही आसानी होगी । धन्यवाद सर

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