ब्यात के दौरान बकरियों का रखरखाव

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बकरियाँ सामान्यतः एक ब्यात में एक, दो या तीन बच्चे तक देती है। ब्यात के दौरान बकरियों को खास रखरखाव की बहुत आवश्यकता होती है। बकरियों में  ब्यात की प्रक्रिया को किडिगं कहते है। बकरियों में ब्यात की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है।

पहला चरण

इस चरण को प्रसव की तयारी का समय कहते है, इस चरण की अवधी लगभग 8 से 12 घंटों की होती है। इस समय बच्चा जनने के लिए अपनी स्थिति में आता है। गर्भाशयी संकुचन प्रारंभ होते है इस चरण में बकरियाँ निम्न लक्षण दर्शाती है।

  1. मादा पशु का समूह से अलग हो जाना
  2. मादा पशु का उत्तेजित होना
  3. लगातार तेज आवाज करना
  4. बार बार उठना बैठना
  5. खाना कम कर देना
  6. पैर जमीन पर पटकना
  7. थनों का दुग्ध से भर जाना, उनसे दुग्ध स्त्राव आना
  8. श्रोणि मेखला का ढीला पड़ना, पुंछ के सिरे पर दोनों तरफ गड्डे बनना
  9. योनि में सूजन तथा बच्चे का योनि की तरफ आना

पशु के इस प्रकार ब्यात के लक्षण प्रदर्शित करने पर उसे एकांत में रहने  देना चाहिए, इस समय किसी भी तरह के व्यवधान से पशु का ध्यान केंद्रित न हो पाने के कारण संकुचनो में कमी आ सकती है। कुछ पशु पालक ब्यात के लक्षण प्रदर्शित करने के थोड़ी अवधि  में ही पशु को चिकित्सालय ले जाते है जिसके कारण उत्पन्न व्यवधान से प्राकृतिक संकुचन कम हो जाते है व ग्रीवा भी ठीक से खुल नहीं पाती तथा ब्यात में बाधा आती है। इसलिए ब्यात के लक्षण प्रदर्शित करने के 5 से 8 घंटे तक पशु पर नजर रखे, यदि इसके उपरांत दूसरा चरण प्रारंभ ना हो तदुपरांत पशुचिकित्सक की सहायता लेना चाहिए।

दूसरा चरण    

इस चरण में गर्भाशयी संकुचन अधिक मात्रा में व तेजी से होते है साथ ही साथ उदर (पेट) के संकुचन भी बढ़ते है, जो बच्चे (मेमनों) को योनि से बाहर निकलने में सहायक होते है और बच्चे (मेमने) बाहर आ जाते है । इस चरण की अवधि लगभग आधे से एक घंटे की होती है। यदि सक्रिय संकुचनों के पश्चात भी एक घंटे के अंदर प्रसव प्रक्रिया सम्पन्न नहीं होती तो इस स्थिति में कठिन प्रसव (डिस्ट्रोकिया) हो सकता है, ऐसी स्थिति में पशुचिकित्सक की सहायता लेना चाहिए।

और देखें :  बकरियों एवं भेड़ों की महामारी: पी.पी.आर.

कई बार सक्रिय संकुचनों के पश्चात भी प्रसव ना होने पर ग्रीवा बंद होने लग जाती है, एक बार ग्रीवा बंद हो जाने की स्थिति में शल्य चिकित्सा के द्वारा बच्चो (मेमनों) को बाहर निकालने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं बचता है।

यदि एक से अधिक बच्चे (मेमने) होते है तो सामान्यतः पूरी प्रक्रिया में लगभग 3 से 4  घंटे लगते है इस अवधि तक सारे बच्चे योनि से बाहर आ जाते है। जन्म पश्चात नवजात बच्चो (मेमनों) को बकरियों द्वारा अच्छे से चाट कर साफ कर देना चाहिए जिससे नवजात बच्चे (मेमने) अच्छे से सांस ले सके, उन्हे ठंड से बचाना चाहिए साफ कपड़े में लपेटकर रखना चाहिए व बच्चो (मेमनों) को उलटा करके छाती को हाथों से रगड़ना चाहिए, ताकि सांस नलिका से म्युकस साफ हो सके।

तीसरा चरण

इस चरण में जेर या जड़ बाहर निकलती है, इस प्रक्रिया में लगभग 3 से 6 घंटे लगते है। बकरियों में अपनी ही जेर खाने की प्रवर्त्ती पाई जाती है, जिसके कारण इनमे अपच की समस्या उत्पन्न हो जाती है इसलिए जेर निकलने के पश्चात उसे गड्ढे में गाड़कर व जलाकर अच्छी तरह से नष्ट कर देना चाहिए।

यदि 12 घंटों तक जेर या जड़ बाहर नहीं आती तो उसे जेर या जड़ का रुकना कहा जाता है, ऐसी स्थिति में पशुचिकित्सक की उचित सहायता लेना चाहिए।

तीसरे चरण के पश्चात लगभग तीन सप्ताह तक का बिना दुर्गंध युक्त गहरे लाल रंग का सामान्य स्त्राव योनि से स्त्रावित होता है जिसे लोचिया कहते है तथा गर्भाशय का बढ़ा हुआ आकार 30 से 40 दिन में पुनः अपनी सामान्य स्थिति व आकार में आ जाता है।

और देखें :  Sirohi Breed of Goat (सिरोही)

ध्यान रखने योग्य बातें

  1. प्रसव में किसी प्रकार की समस्या होने पर यदि बच्चा खींचकर निकाला गया हो तो उपचार के साथ टिटेनस का टीका अवश्य लगवाए।
  2. एक से अधिक बच्चे (मेमने) देने वाली बकरियों में सामान्यतः उनका ध्यान पहले आए बच्चे (मेमने) पर केंद्रित रहता है जिससे वह बाद में आए बच्चों (मेमनो) पर ध्यान नहीं दे पाती ऐसी स्थिति में बाद में आए बच्चों (मेमनो) की म्यूकस के कारण सांस ना ले पाने के की वजह से, दम घुटने से मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी बकरियों में प्रसव के समय विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है व बच्चों (मेमनो) के श्वसन तंत्र से म्यूकस जल्द साफ करना चाहिए जिससे उन्हे दम घुटने से बचाया जा सकें।
  3. बच्चों (मेमनो) के नथुनों में तिनके व घाँस की सहायता से छींक को प्रेरित किया जाता है जिससे श्वसन तंत्र से म्यूकस साफ हो सकें।

 ब्यात के दौरान उक्त बातों का ध्यान रख कर नवजात बच्चों (मेमनो) व बकरियों की मृत्यु होने से रोका जा सकता है और इनकी मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  बकरी पालन एवं पर्यावरण संरक्षण

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