जीवाणु, विषाणु तथा रिकेट्सियल रोगों के निदान की पुष्टि प्रयोगशाला में ही की जा सकती है तथा इस कार्य हेतु पशु चिकित्साविद को, वस्तुओं के एकत्रीकरण तथा उन्हें भेजने के सही ढंग ज्ञात होना अति आवश्यक है। प्रतिदर्शियों/ स्पेसिमेन का चुनाव, तथा प्रेषण ऐसी तरह से करना चाहिए कि वह परीक्षण के लिए उपयुक्त रहें तथा उनमें विद्यमान रोग का कारण सुरक्षित रहे।
शव परीक्षण
शव परीक्षण पशु की मृत्यु के उपरांत अति शीघ्र किया जाए। विभिन्न रोगों में अधिक तापमान होने के कारण प्यूटरीफेक्शन तथा ऑटोलिसिस, अति शीघ्र प्रारंभ हो जाती है। मरणोपरांत परिवर्तन की अग्रिम अवस्था में मांसपेशियां रंग में हल्के पेल, मुलायम तथा नीले हो जाते हैं। रायगर मोरटिस, के उत्पन्न होने पर हृदय का बाया वेंट्रीकल रक्त से खाली मिलेगा। बायें वेंट्रीकल में, बिना जमा हुआ रक्त इस बात का प्रमाण होता है कि पशु की मृत्यु अभी हाल ही में हुई है।बाये वेंट्रिकल मैं जमा हुआ रक्त इस बात का प्रमाण है कि पशु की मृत्यु लगभग मृत्यु लगभग 24 घंटे पूर्व हो चुकी है तथा शव में रायगर मोरटिस समाप्त हो चुकी है, और मरणोपरांत परिवर्तन बहुत बढ़ गए हैं।
अभिलेख
प्रयोगशाला में भेजे जाने वाले प्रतिदर्शियों, के साथ-साथ शव परीक्षण परीक्षण प्रतिवेदन, क्लीनिकल हिस्ट्री तथा अन्य परिस्थितियों के विस्तृत अभिलेख भी प्रेषित किए जाएं। सभी प्रतिदर्शी की पैकिंग तथा लेबलिंग स्पष्ट रूप से विधिवत की जाए। कौन-कौन से परीक्षण किए गए तथा किस रोग के होने की शंका है और जीवित अवस्था में क्या क्या उपचार किया गया है आदि भी स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए।
प्रतिदर्शियों का संरक्षण
माइक्रोबायोलॉजिकल परीक्षण हेतु प्रतिदर्शियों को, अपने मूल रूप में प्रयोगशाला में पहुंचना अत्यंत आवश्यक है। यह उचित होगा कि इनको शोधित पात्रों जैसे मैक कारटनी बोतल मैं पैक करके बर्फ के साथ थर्मस फ्लास्क में भेजा जाए।
एंटीकोगुलेंटस
- रक्त के प्रेषण मे ओकजेलेटस अक्सर प्रयुक्त होते हैं परंतु यह विषैले होते हैं अतः जैविक परीक्षण के लिए भेजे जाने वाले रक्त में सोडियम साइट्रेट का प्रयोग किया जाता है। 0.2% आकजेलेट अथवा 0.4% सोडियम साइट्रेट अच्छे एंटीकोगुलेंट माने जाते हैं।
- पोटेशियम आकजेलेट 0.8 ग्राम, अमोनियम आकजेलेट 1.2 ग्राम तथा आसुत जल 100 मिलीलीटर के मिश्रण को मैंकार्टनी बोतलस या ग्लास ट्यूब में0.1 मिलीलीटर प्रति एक 1ml रक्त प्रतिदर्शी हेतु की दर से लेकर, एक ओवन में 60 डिग्री सेल्सियस पर वास्पित करके सुखा लिया जाता है।
- 1% हिपेरिन का घोल 0.1 मिली प्रति 5 मिली रक्त प्रतिदर्शी के लिए, एंटीकोगुलेंट के रूप में सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।
फॉर्मोल सलाईन
हिस्टोपैथोलॉजिक परीक्षण हेतु स्पेसिमेन फॉर्मोल सलाइन में रखे जाते हैं। इसे निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है:
- कमर्शियल फॉर्मलीन 100 मिली
- आसुत जल 100 मिलीलीटर
- साधारण नमक 7.6 ग्राम
बफरड ग्लिसरोल
ग्लिसरोल बहुत अच्छी गुणवत्ता का होना चाहिए जिसको 50% बफर सलाइन के घोल के रूप में प्रयोग किया जाता है इसको निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है:
- घोल नंबर 1- 7.13 ग्राम सूखा डाइसोडियम हाइड्रोजन फास्फेट 1 लीटर डिस्टल वाटर में घोल लें।
- घोल नंबर दो – 5.45 ग्राम पोटैशियम डाइर्हाइड्रोजन फास्फेट 1 लीटर डिस्टल वाटर में घोल लें।
- 6 भाग घोल नंबर 1 तथा एक भाग घोल नंबर दो के मिश्रण की समान मात्रा में शुद्ध ग्लिसरोल लेकर इसे ऑटोक्लेव में 15 पाउंड प्रेशर एवं 30 मिनट तक शोधित करें तथा इसका पीएच 7.2 रखें।
सूक्ष्मदर्शी परीक्षण हेतु पदार्थ का एकत्रीकरण
फिल्म बनाने के लिए स्लाइड स्वच्छ तथा ग्रीस फ्री होनी चाहिए। पदार्थ को समान रूप से पतली से पतली तह में स्लाइड पर फैला दें। उसे सुखाकर लपेट कर रखें ताकि कीटाणु एवं मक्खियों आदि के कारण मिट न जाएं। पॉक्स डिसिस तथा अन्य रोगों में त्वचा की स्क्रेपिंग स्केलपल की सहायता से लेना चाहिए। स्लाइड्स को मार्क करके रखें।
सीरोलॉजिकल परीक्षण हेतु रक्त नमूनों का एकत्रीकरण तथा उनका रखरखाव
सीरोलॉजिकल परीक्षणों में सामान्यता रक्त सीरम की आवश्यकता होती है। परंतु कैंपाइलोबैक्टीरियोसिस ब्रूसेलोसिस और ट्राईकोमोनीएसिस के लिए, योनि स्राव को एकत्र किया जाता है। 10 से 15 मिली रक्त विभिन्न पशुओं से निम्न प्रकार से एकत्र किया जाता है।
- गाय भैंस घोड़ा भेड़ बकरी मैं जुगुलर वेन से,
- शूकर में एंटीरियर वेनाकेवा से
- कुत्ता में सेफेलिक, सिफैनस या जुगुलर वेन से,
- मुर्गी में विंग वेन से।
रक्त नमूने को कमरे के तापमान पर कई घंटों तक रखकर सीरम प्राप्त किया जाता है। यदि इसे कहीं दूर भेजा जाना है तो इसमें कारबाल सलाइन को प्रिजर्वेटिव के रूप में मिलाना आवश्यक होता है। इस कार्य हेतु पशु से दो बार सिरम एकत्र करना चाहिए। प्रथम रोग की प्रारंभिक अवस्था में तथा दूसरी बार 10 से 15 दिन के उपरांत।
बैक्टीरियोलॉजिकल परीक्षण हेतु स्पेसीमेंस का एकत्रीकरण
- शोधित यंत्रों जैसे चिमटी, कैची तथा चाकू आदि का प्रयोग करते हुए पदार्थ को हर संभव तरीके से एसेप्टिक अवस्था में एकत्र करना चाहिए। यदि ऑटोक्लेव या यंत्र शोधन यंत्र उपलब्ध ना हो तो संबंधित यंत्रों को उबलते हुए पानी में 15 मिनट तक डुबो दें।
- पदार्थ शोधित कंटेनर में रखकर थरमस में बर्फ के साथ भेजे जाएं।
- इस कार्य हेतु शोधन सावधानियों के साथ रक्त को मृत्यु के पूर्व साइट्रेट या हिपैरिन के साथ पशु के ह्रदय या शिरा से निकालना चाहिए।
- देहगुहा से पदार्थ, शोधित पिपेट तथा स्वाब से एकत्र किए जाते हैं। पेरिकार्डियल सेरीब्रोस्पाइनल तथा जॉइंट फ्लूइड, शोधित पिपेट या सिरिंज आदि से लेना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो आंतों के पदार्थ को चौड़े मुंह वाली बोतल में एकत्र करें।
वायरोलॉजिकल परीक्षण हेतु स्पेसीमेंस का एकत्रीकरण
इस कार्य हेतु रक्त सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड, शोधित पिपेट, फिसिस, इफ्यूजन फ्लूइड, वेसिकल फ्लुएड, लीजन स्क्रेपिंग और शव के टिशूज, आदि को एकत्र किया जाता है। और इन्हें शीघ्र अति शीघ्र रेफ्रिजरेटर में रख दिया जाता है। स्पेसिमेन को 5 से 10 गुना 50%बफरड ग्लिसरोल में रखकर बर्फ के साथ थरमस में भेजा जाता है। लघु पशुओं तथा पक्षियों को विषाणु रोगों के मामले में संपूर्ण पशु या पक्षी को ही भेज दिया जाता है।
हिस्टोपैथोलॉजिकल परीक्षण हेतु स्पेसिमेंस का एकत्रीकरण
पशु की मृत्यु के तुरंत बाद स्पेसिमेंस को लेकर फिक्स कर लेना चाहिए। टिशू 0.5 से1, सेंटीमीटर से अधिक मोटा ना हो तथा लंबाई और चौड़ाई इससे अधिक होनी चाहिए। यह टिशू नॉर्मल तथा डिजीजड टिश्यू, दोनों का स्पेसिमेन होना चाहिए। इन्हें इनके 10 से 20 गुना, 10% फॉर्मोल सलाइन मैं भेजा जाता है।
टॉक्सिन का पता लगाने हेतु फीकल सैंपल का एकत्रीकरण
एंटीरोटॉकसीमिया मैं इंटेस्टाइनल कंटेंट में क्लोरोफॉर्म को प्रिजर्वेटिव के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह 0. 5% से अधिक मात्रा में नहीं होना चाहिए।
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