छाछ: बहुउद्देशीय प्राकृतिक शक्तिवर्धक

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हालांकि, जमे हुए दूध अर्थात दही को मथ कर मक्खन निकाल लेने के बाद बची छाछ आमतौर पर एक उपेक्षित पेय पदार्थ है लेकिन यदि आप भोजन के बाद एसीडिटी से परेशान हैं? थक गए और दिनभर धूप में काम करने के बाद घर आएं हैं? ठीक है, इससे पहले कि आप ठण्डी बर्फ वाली चाय, सोडा या ठण्डे पानी की बोतल हाथ में उठाएं उससे पहले एक गिलास आयुर्वेदिक छाछ को तो आजमाएँ। छाछ – दही और पाचक मसालों जैसे जीरा, धनिया, पुदीना और नमक से बना एक स्वादिष्ट, ठंडा पेय है। छाछ को लस्सी, मट्ठा, तोड़, तक्र, दूध का पानी, बटरमिल्क, व्हे भी कहते हैं।

दिनान्ते च पिबेद दुग्धम, निशांते च जलम पिबेत।
भोजनान्ते पिबेत तक्र, वैद्यस्य किं प्रयोजनम ।।

अर्थात जो व्यक्ति दिन के अंत (रात्रि में सोते समय) में दूध पीता हो, जो दिन उगने पर जल आहार करता हो और भोजन के बाद मट्ठा पीता हो उसको वैद्य की क्या जरूरत? छाछ एक किण्वित पेय पदार्थ है जिसमें वसा नामात्र होती है लेकिन अन्य तत्वों जैसे कि प्रोटीन, खनिज और विटामिनों से भरपूर होने के साथ किण्वन प्रक्रिया से उत्पन्न हुए जीवाणुओं अर्थात प्रोबायोटिक्स के औषधीय गुणों से भी भरपूर होती है।  दूध की किण्वन प्रक्रिया दूध को अम्लीय स्वाद प्रदान करती है, जिसे गर्मी के मौसम में शरीर को तरोताजा करने के लिए सेवन किया जाता है। छाछ नमकीन या मीठी हो सकती है। नमकीन छाछ लगभग सभी प्रकार के भोजन के साथ परोसी जाती है।

छाछ बनाने की विधि

छाछ को दूध से बनी दही को मथ (बिलो) कर मक्खन को अलग निकाल कर तैयार किया जाता है।

  • छाछ का परंपरागत घरेलु उत्पादन: आमतौर पर ग्रामीण आँचल में दूध को उबालने बाद शाम के समय थोड़ा ठण्डा (30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड) होने के बाद उसमें थोड़ा सा जामन (एक दिन पहले की खट्टी छाछ) डाल कर रातभर के लिए रख दिया जाता है और अगली सुबह तक यह दूध जम जाता है अर्थात यह दही में परिवर्तित हो जाता है। सामान्य भाषा में इस प्रक्रिया को दूध का जमना कहते हैं। अब इस जमे हुए दूध अर्थात दही को एक रस्सी से लिपटी लकड़ी या स्टील की बनी मथनी की सहायता से मथा जाता है जिसे दूध का बिलोना कहते हैं। दूध को बिलोने अर्थात मथने के कुछ समय बाद इससे मक्खन अलग हो जाता है जिसे अलग बर्तन में एकत्रित कर लिया जाता है और जो मक्खन (वसा) रहित तरल बचता है उसे छाछ कहा जाता है। भारत में सबसे अधिक इसी प्रकार तैयार छाछ का उपयोग पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है। जब इसमें स्वादानुसार नमक, जीरा आदि मिला दिया जाता है तो इसे मसाला छाछ भी कहते हैं। जहां एक ओर सभी दुग्ध सयंत्र विभिन्न प्रकार के सुगंधित पदार्थ मिलाकर छाछ को पैक करके अच्छे दामों पर बेच रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ अग्रणी पशुपालक भी छाछ को बेचकर अतिरिक्त लाभ भी अर्जित कर रहे हैं।
  • रेस्टोरेंट और ढाबों इत्यादि में छाछ बनाना: परंपरागत विधि से तैयार वसा रहित छाछ के अतिरिक्त खासतौर से शहरों अथवा रेस्टोरेंट और ढाबों पर दही को मथकर वसा सहित छाछ का प्रचलन है जिसमें मसाले इत्यादि मिलाकर आगंतुकों अर्थात ग्राहकों को परोसा जाता है।

सदियों से जमे हुए दूध को मिट्टी की हांडी में डाल कर हस्तचलित मथनी (चित्र 1) से मथा जाता था लेकिन काल परिवर्तन के साथ-साथ विद्युतचलित मथनी (चित्र 2) का उपयोग होने से लेकर आधुनिक विद्युतचलित मिक्सी (चित्र 3) और बलेंडर (चित्र 4) और कई अन्य यंत्रों का प्रयोग प्रचलित हो चुका है।

  • छाछ का औद्योगिक उत्पादन: छाछ वर्षभर सेवन करने योग्य एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है जिसकी मांग बढ़ रही है। उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने के लिए कई डेयरी व्यावसायियों बड़े पैमाने पर छाछ का उत्पादन करते हैं। दही की ही तरह, अच्छी गुणवत्ता वाली छाछ के उत्पादन के लिए ताजा, अच्छी गुणवत्ता वाला दूध आवश्यक है। कच्चे दूध को 5 से 3.8 प्रतिशत वसा और 9 प्रतिशत सॉलिड नॉट फैट (एसएनएफ) के लिए मानकीकृत किया जाता है। इस मानकीकृत दूध को 15 मिनट के लिए 90 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म किया जाता है और इसके बाद इसको 60 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठण्डा करके समरूपता के लिए हिलाया जाता है। दूध को समरूप करने के बाद इसे 30 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठण्डा होने के बाद इसमें जामन (लैक्टिक एसिड जीवाणु) मिला कर 4.5 पीएच तक अर्थात जमने (दही बनने) के लिए रख दिया जाता है। जमे हुए दूध अर्थात दही को विद्युतचलित मथनी से मथा जाता है। अब इसमें 12 प्रतिशत मिठास प्राप्त करने के लिए 25 प्रतिशत चीनी का घोल डाला जाता है। स्थिरक के रूप में और स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें 0.5 प्रतिशत मेथोक्सी पेक्टिन का घोल मिलाया जाता है। इसको सुगंधित बनाने और सरंचना में सुधार करने के लिए इसमें गुलाब जल भी मिलाया जा सकता है। अब इस तैयार छाछ को बिक्री के लिए प्रशीतन तापमान पर संग्रहित और पैक किया जाता है (Ranganadham et al. 2016)।

छाछ उत्पादन

हालांकि इस बात के तो कोई साक्ष्य नहीं हैं कि छाछ का उत्पादन कितना होता है लेकिन आमतौर पर एक किलोग्राम पनीर बनाने के साथ 9 लीटर छाछ का उत्पादन होता है (Kosikowski 1979)। इसी प्रकार एक किलोग्राम देशी घी बनने पर लगभग 35-45 लीटर छाछ  बनती है। एक शोध के अनुसार विश्व में 190 लाख टन छाछ का प्रतिवर्ष उत्पादन होता है (Baldasso et al., 2011) जिसमें अधिकतर छाछ व्यर्थ हो जाती है।

छाछ के संयोजक घटक

छाछ की रचना उत्पादन की विधि, उपयोग किए गए दूध के प्रकार, मथने के दौरान पानी मिलाने की दर और मक्खन निकालने की दक्षता के आधार पर काफी भिन्न होती है। छाछ में पानी 96.2 प्रतिशत, वसा 0.8 प्रतिशत, प्रोटीन 1.29 प्रतिशत, लैक्टोज 1.2 प्रतिशत, लैक्टिक एसिड 0.44 प्रतिशत, राख 0.4 प्रतिशत, कैल्शियम 0.6 प्रतिशत, फॉस्फोरस 0.04 प्रतिशत होता है (Padghan et al. 2015)। छाछ में फास्फोलिपिड्स में विशेष रूप से फॉस्फाटीडिलकोलिन (लेसिथिन), फॉस्फेटिडेलेथेनॉलामीन और स्फिंगोमेलिन से भरपूर दुग्ध वसा ग्लाब्यूल मेम्ब्रेन होती है जो अतिरिक्त स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं (Gandhi et al. 2018)। छाछ में कुछ मात्रा में वसा, प्रोटीन, ठोस पदार्थों के अलावा खनिज तत्त्व, जीवाणु, ख़मीर तथा फफूंदी होते हैं (Nahar et al. 2007)। इनके अतिरिक्त दही में 3-हाइड्रॉक्सिलेटेड फैटी एसिड; साइक्लिक डाइपेप्टाइड्स; दुग्धाम्ल (लैक्टिक एसिड); फेनाइल लैक्टिक एसिड; प्रोटीन संबंधी यौगिक (प्रोटीनेशियश कम्पाउंड्ज) होते हैं।

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औषधीय गुण

छाछ में जीवाणुरोधी, ऑक्सीकरणरोधी, फंगसरोधी, पाचन शक्तिवर्धक, पोषण, प्रोबायोटिक होते हैं (Kaushik et al. 2016)।

छाछ के स्वास्थ्य लाभ

  • पाचन में सहायक: छाछ उन लोगों के लिए एक पाचन टॉनिक है, जो असाध्य आंत्र सिंड्रोम, अल्सरेटिव कोलाइटिस और अन्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी से पीड़ित हैं। यह मल की स्थिरता में सुधार करने और मल त्याग को विनियमित करने में मदद करता है। छाछ में लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया होता है जो जठरांत्र संबंधी पथ के अंदर सामान्य माइक्रोफ्लोरा में सुधार करने में सहायक होता है। छाछ के वायुनाशी (कार्मिनेटिव) गुण पाचन में सुधार करते हैं। इसलिए, यदि किसी को अपच की समस्या महसूस हो रही है, तो तुरंत राहत के लिए कुछ छाछ का सेवन करने की कोशिश करें।
  • प्रोबायोटिक्स: छाछ में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव जैसे कि जीवित जीवाणु और खमीर होते हैं जो शरीर के लिए खासकर पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्छे होते हैं। इन्हीं सूक्ष्मजीवों को प्रोबायोटिक्स कहते हैं और इनका जामन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनका निर्धारित मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये जानलेवा रोगों की रोकथाम एवं इलाज में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे जामन के रूप में उपयोग किये जाने वाले जीवाणुओं के उदाहरण हैं लैक्टोबैसिलस केजाई (Lactobacillus casei), लै. प्लानटेरम ( plantarum), लै. रेमनोसस (L. rhamnosus), लै. बुलगेरिकस (L. bulgaricus), लै. फरमन्टम (L. fermentum), लैक्टोकोकस लैक्टिस (Lactococcus lactis), बिफीडोबैक्टीरियम लोंगम (Bifidobacterium longum), स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus) इत्यादि।
  • जीवाणुरोधी: छाछ पंचगव्य औषधी में से एक है। इसका उपयोग मलेरिया और तपेदिक के जीवाणुओं को मारने के साथ-साथ इसमें फंगसरोधी गुण भी होते हैं। इसलिए दूध से तैयार छाछ को पंचगव्य औषधी के रूप में किया जाता है (Dhama et al. 2005, Dhama et al. 2013, Radha and Rao 2014)।
  • ऑक्सीकरणरोधी: विभिन्न शोधों में छाछ प्रोटीन के एंजाइमैटिक या थर्मल हाइड्रोलिसिस के दौरान उत्पन्न पेप्टाइड्स में एंटीऑक्सिडेंट गुण पाये जाने की पुष्टि है (Andressa et al. 2019)।
  • अम्ल प्रतिवाह संयोधन (कोम्बेट): छाछ के ठंडे गुण मसालेदार और अम्लीय खाद्य पदार्थों के कारण जलन से पेट को शांत करते हैं।
  • शाररिक जल योजन प्रदान करना: छाछ में नमक, पानी, दही और मसाले होते हैं, इन सभी को मिलाकर एक स्वादिष्ट पेय बनाया जाता है। पानी के साथ मौजूद बहुत सारे इलेक्ट्रोलाइट्स, छाछ सबसे अच्छा पेय है जिसे शरीर को निर्जलीकरण से लड़ने के लिए दिया जा सकता है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी के दौरान कुछ आवश्यक राहत के लिए एक गिलास छाछ का सेवन किया काफी होता है।
  • रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल में कमी: एक अध्ययन के अनुसार छाछ, मानव में एंजियोटेनसिन-1 परिवर्तित एंजाइम से सिस्टोलिक रक्तचाप और प्लाज्मा स्तर को काफी कम करता है। छाछ में पाया जाने वाला मिल्क फैट ग्लोब्यूल मेम्ब्रेन बायोएक्टिव प्रोटीन से भरपूर होता है। यह कोलेस्ट्रॉल कम करने, एंटीहाइपरटेन्सिव, एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुणों से युक्त साबित हुआ है (Conway et al. 2014)।
  • विटामिन की कमी को दूर करना: छाछ विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, प्रोटीन और पोटेशियम जैसे विटामिन का एक अच्छा स्रोत है। विटामिन बी, विशेष रूप से राइबोफ्लेविन, भोजन को ऊर्जा में बदलने, हार्मोन के स्राव और पाचन के लिए आवश्यक है। यह आपके स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए छाछ को एक आवश्यक पेय बनाता है, जहां हमारे भोजन में पोषक तत्वों खासतौर से विटामिन की कमी होती है, को पूरा करती है।
  • मसालेदार भोजन के बाद पेट को शांत करने में सहायक: ठंडी दही और पानी के साथ बनाया गया छाछ पेट को शांत करने के लिए एकदम सही है। जैसे ही इसका सेवन जाता है तो यह ज्वलंत पेट को शांत करने में सहायता करता है। इसके साथ ही छाछ में मिलाये गये ठंडक प्रदान करने वाले मसाले, पेट में जलन से राहत दिलाते हैं।
  • वसा नियंत्रण: छाछ का एक छोटा गिलास पीना वसा को कम करने में बहुत प्रभावी है, यह डाइजेस्टिव सिस्टम और पेट की आंतरिक भित्ति का लेप करता है। इसके अतिरिक्त, आयुर्वेदिक छाछ पाचन में सुधार और गैस को कम करने में मदद करता है।
  • वसा रहित कैल्शियम प्रदान करना: लैक्टोज असहिष्णु व्यक्ति दूध में मौजूद प्राकृतिक कैल्शियम लेने से चूक जाते हैं। यह वह समस्या है जहाँ छाछ बचाव के लिए कार्य करता है। छाछ लैक्टोज असहिष्णु लोगों को प्रतिकूल प्रतिक्रिया पैदा किए बिना कैल्शियम की उनकी खुराक देने में मदद करता है। लेकिन इसके अलावा, यह कैल्शियम को ठीक करने का एक सही तरीका भी है, जो सामान्य रूप से दूध में पाए जाने वाले वसा को बढ़ाता है – जो आपके आहार के लिए एकदम सही है।

छाछ के सामान्य उपयोग

  • वात: सूखी अदरक, काला नमक और जीरा मिलाकर छाछ का सेवन।
  • पित: पुदीना के साथ छाछ का सेवन।
  • कफ: पीसी हुई काली मिर्च के साथ छाछ का सेवन।
  • दस्त: पीसी हुई मघ पिपली के साथ छाछ का
  • अम्ल प्रतिवाह: पीसी हुई मुलेठी के साथ छाछ का सेवन।

छाछ का सेवन कब करें और कब ना करें

  • दोपहर का खाना खाने के बाद छाछ का सेवन करना सर्वाधिक गुणकारी माना जाता है। इसके अलावा कई लोग सुबह नाश्ते के बाद भी छाछ का सेवन करते हैं।
  • ज्यादा खट्टा छाछ हानि पहुँचाता है, अतः उसका सेवन नहीं करना चाहिए। छाती में घाव या दुर्बलता, मूर्च्छा, चक्कर, जलन और रक्तस्राव में एवं वर्षाकाल की गर्मी में छाछ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

वर्जित विशेषः आयुर्वेद के अनुसार लस्सी को तैयार करते एवं सेवन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिएः

  • लस्सी को बनाते समय पीतल, तांबे या कांसे के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • लस्सी बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन सबसे अच्छे होते हैं।
  • वर्षाकाल में लस्सी का सेवन वर्जित है।
  • खट्टी लस्सी का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
  • रक्तपित में भी लस्सी का सेवन नहीं करना चाहिए।

छाछ से बने व्यजंन

ग्रामीण आंचल में आमतौर पर दही को मथकर मक्खन निकाल लिया जाता और शेष बचे मक्खन रहित तरल अर्थात छाछ में अन्य सामग्री डाली जाती है। लेकिन शहरों या रेस्टोरेंट और ढाबों पर मक्खन रहित छाछ के स्थान पर दही एवं पानी को मिलाकर थोड़ा मथने के बाद उसमें डाले जाने अन्य पदार्थों को भी मथकर परोसा जाता है। छाछ का उपयोग बेसन से बनी कढ़ी बनाने के लिए भी किया जाता है। दही और पानी को मिलाकर बनाये जाने वाले कुछ व्यजन इस प्रकार हैं:

  • मसाला छाछ: दही से तैयार साधारण छाछ में यदि नमक, जीरा आदि मिला दिया जाता है तो यह पाचक “मसाला लस्सी” बन जाती है जिसे हम स्वादिष्ट पेय तरह ही मेहमानों को परोसते हैं। ऐसा माना जाता है कि काला नमक और सेंधा नमक स्वास्थ्य की दृष्टि से ज्यादा लाभदायक हैं तो साधारण सफेद नमक के स्थान पर काला नमक और सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है।
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सामग्री: दही – लगभग 1½ कप, पानी – लगभग 2½ कप, काला नमक – ½ छोटा चम्मच, सेंधा नमक – 1 छोटा चम्मच, पुदीना पाउडर – 1 छोटा चम्मच, भुना जीरा पाउडर – 1½ छोटा चम्मच, कूटी काली मिर्च (ऐच्छिक) – ½ छोटा चम्मच

विधि: एक बड़े गहरे बर्तन या जग में दही लें। इसे मथानी से अच्छे तरह मथ लें। अब इसमें पानी डाल कर हल्का कर लें। स्वादानुसार साधा नमक या काला नमक या सेंधा नमक, भुना और कुटा जीरा एवं पुदीना पाउडर डाल लें। यदि चाहें तो जरा सी काली मिर्च भी डाल सकते हैं। अन्त में सभी सामग्रियों को अच्छे से मिला कर तैयार लस्सी को परोसें। गर्मी के मौसम में इसमें बर्फ भी डाल सकते हैं।

  • मीठी छाछः कुछ व्यक्ति नमकीन छाछ का स्वाद लेने की बजाय मीठी छाछ पीना पसंद करते हैं। अतः मीठी छाछ बनाने के लिए इसमें शर्करा मिलायी जाती है।

सामग्री: दही – 600 ग्राम (3 कप), चीनी – 7-8 छोटी चम्मच (आपके स्वाद के अनुसार), बर्फ के टुकड़े – 1½ कप

विधि: दही और चीनी को, मिक्सी के जार में डाल कर, चीनी घुलने तक, मथ लें। बर्फ के टुकड़े डालकर एक बार फिर से बर्फ मिक्स होने तक, मिक्सी को चलाएं। इस प्रकार दही की मीठी छाछ परोसने के लिए तैयार है।

  • मैंगो लस्सी: मैंगों को हिन्दी में “आम” कहते हैं। भारत में आम को सभी फलों का राजा कहा जाता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि पौष्टिक आहार का हिस्सा है। जब इसकी लस्सी बनाई जाती है तो यह स्वास्थ्य की दृष्टि से और अधिक पौष्टिक बन जाती है।

सामग्री: दही – 2 कप, आम का गुद्दा – 1 कप, शक्कर – ½ कप, दूध – ½ कप, बर्फ के टुकड़े – स्वादानुसार। मैंगों के स्थान पर अन्नानास या केले के फलों का गुद्दा भी डाल सकते हैं और इसे अन्नानास या केले की छाछ कहते हैं।

विधि: मैंगों लस्सी बनाने के लिए दही, आम का गुद्दा, दूध और शक्कर को ब्लेंडर या मिक्सी या मथानी की सहायता से अच्छे तरह मिला लें। गर्मी के मौसम में आवश्यकतानुसार इसमें बर्फ के टुकड़े मिला कर परोसा जा सकता है।

  • हर्बल अर्क के साथ छाछ: छाछ को एक विशिष्ट स्वाद देने और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अदरक (2 प्रतिशत) या हल्दी (1 प्रतिशत) या 15 प्रतिशत गाजर का जूस भी डाल सकते हैं। इसे हर्बल छाछ कहते हैं।
  • शहदयुक्त तुलसी छाछ: हमारे जीवन में मिठास के रूप में शहद और रोगाणुरोधी तुलसी का उपयोग सदियों से रहा है। इन दोनों को छाछ में मिलाकर सेवन करने के विशेष लाभ हैं। अतः शारीरिक दृष्टि लाभ से छाछ में 10 प्रतिशत शहद और 2 प्रतिशत तुलसी अर्क मिलाकर भी सेवन किया जा सकता है (Kumar et al. 2020)।
  • कढ़ी बनाना: बेसन से बनी कढ़ी उत्तर भारत में बहुत ही पसंद की जाती है। शाकाहारी खाना खाने वालों को कढ़ी काफी पसंद होती है। कई लोग कढ़ी में पकौड़े या बूंदी भी डालना पसंद करते हैं।

सामग्री: 3 कप दही, 1 कप बेसन, 1 छोटा चम्मच हल्दी, 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, स्वादानुसार नमक, 1 छोटा चम्मच गरम मसाला, 1 कप पानी, ¼ कप तेल, ½ छोटा चम्मच हींग, 2 छोटा चम्मच जीरा, 5-6 साबूत लाल मिर्च

तड़के के लिए: 1 बड़ा चम्मच घी, 1 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

पकौड़े बनाने के लिए: 1 कप बेसन, 1 छोटा चम्मच नमक, ½ कप तेल

बेसन कढ़ी बनाने की वि​धि: सर्वप्रथम बेसन, हल्दी, लाल मिर्च पाउडर, नमक और गरम मसाला मिलाएं। अब इसमें अच्छी तरह दही मिला लें, इसमें आवश्यकतानुसार पानी भी डालें।

तड़का बनाना: एक फ्राई पैन में तेल गर्म करें उसमें हींग, जीरा और साबूत लाल मिर्च डालें।

अब इस तड़के में बेसन और दही को मिलाकर तैयार किया गया मिश्रण डालकर उबालें।

अब इसे थोड़ा बनाने के लिए धीमी आंच पर पकाएं।

पकौड़े बनाने के लिए: पकौड़े बनाने के लिए बेसन, नमक ओर तेल मिलाकर एक बैटर तैयार करें। बैटर को 15 मिनट के लिए एक साइड रख दें। अब एक पैन में आधा कप तेल गर्म करें। पकौड़े के मिश्रण को अच्छी तरह फेंटे ताकि वह नरम और हल्का हो जाए। आंच को मंद करके इसमें पकौड़े तलें। जब पकौड़े भूरे रंग के हो जाएं तो इन्हें तेल से बाहर निकालकर एक तरफ रख दें।

अब पकौड़ों को तैयार कढ़ी में डालकर मिलाएं। गर्म-गर्म कढ़ी को एक बर्तन में निकालें।

घी गर्म करें, उसमें लाल मिर्च पाउडर डालें, इसमें कड़ाही में डालें और जल्दी से पकौड़ों वाली कढ़ी डालें। इस प्रकार पकौड़ों वाली परोसने के लिए तैयार है।

छाछ के अन्य उपयोग                                                    

आमतौर पर घर में परिवार के सदस्यों के सेवन के बाद बची हुई छाछ को उपेक्षित कर दिया जाता है लेकिन शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि इसमें बहुत गुणकारी तत्व मौजूद होते हैं। अतः घर में बची हुई छाछ का इस प्रकार भी सद्दुपयोग किया जा सकता है:

  • छाछ का पशुओं में उपयोग: छाछ में ऊर्जा स्रोतों के रूप में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और लैक्टोज प्रदान करता है और कैल्शियम, फास्फोरस, सल्फर, और पानी में घुलनशील विटामिन होते हैं। अतः छाछ को पानी मिला तनुकृत करके पशु आहार (सूअर, भेड़, गाय, भैंस) के रूप में किया जा सकता है (Barukčić et al. 2019)।
  • छाछ का पोल्ट्री में उपयोग: डेयरी उप-उत्पाद विशेष रूप से पोल्ट्री के लिए महत्तवपूर्ण हैं, और अधिकांश वाणिज्यिक कुक्कुट पालक कुछ दुग्ध उप-उत्पाद मिलाकर आहार का उपयोग करते हैं। न केवल दूध उत्कृष्ट प्रोटीन प्रस्तुत करता है, बल्कि इसकी उच्च सामग्री राइबोफ्लेविन मुर्गी पालन के लिए विशेष महत्व रखता है। स्किम दूध की ही तरह छाछ में लगभग एक-तिहाई के रूप में कैल्शियम और फास्फोरस होता है। छाछ में राइबोफ्लेविन लगभग उतना ही है जितना स्किम दूध है। दूध की तुलना में छाछ में बहुत अधिक पानी होता है। छाछ देते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है कि इसमें अधिकांश प्रोटीन कम हो जाते हैं और छाछ स्किम दूध की तरह प्रोटीन युक्त आहार नहीं है (Mattocks 2002)।
  • फसलों में उपयोग: छाछ का उपयोग कृषि में कीट नियन्त्रण, फंगसरोधी एवं जीवाणुनाशक के लिये उपयोग किया जाता है। छाछ का उपयोग कृषि में भी रोगाणुरोधक के रूप में भी किया जाता है। छाछ के कृषि में उपयोग करने से आहार श्रृंखला में प्रवेश होने वाले जहरीले रासायनों को रोका जा सकता है। खट्टी छाछ में लैक्टिक व एसीटिक एसिड (Gamba et al. 2015) होते हैं जो प्रभावी रूप से फफूंद को नियंत्रित करते है (Bettiol et al. 2008) छाछ में लैक्टोफेरिन (Ng et al. 2015) तत्त्व होने के कारण विषाणु (वायरस) नाशक भी है। फफूंद को नियन्त्रित करने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ (3 दिन पुरानी) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव किया जाता है (सुभाष 2013)।
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सारांश

दूध प्रकृति का दिया हुआ एक अतुलनीय पेय उत्पाद है लेकिन इसके संसाधित उप-उत्पाद जैसे कि दही और छाछ भी विशिष्ट गुणों से भरपूर होते हैं। दही को मथ कर घी निकालने के बाद बचे तरल पदार्थ को उपेक्षित न करें और इसका सद्दुपयोग जीवन रक्षक बन सकता है बल्कि पशुपालकों की अतिरिक्त आमदनी अर्जित करने के साथ-साथ खेती में हो रहे घातक रसायनों के अनुप्रयोग से बचाकर असाध्य रोगों से भी छुटकारा दिलाने में सक्षम है।

छाछ का उचित उपयोग प्राणी जगत और भू-धरा के लिए अमृत है।

छाछ का स्वाद लें और स्वस्थ रहें।।

संदर्भ

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  18. सुभाष पालेकर, 2013, “आध्यात्मिक खेती : दर्शन और तंत्र,” जीरो बजट प्राकृतिक कृषि तंत्र शोध, विकास एवं प्रसार आंदोलन; 19-जया कॉलोनी, टेलीकॉम कॉलोनी के पास, साईनगर पोस्ट अमरावती – 444 607 (महाराष्ट्र)।

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