पहाड़ों से पलायन एक अत्यंत गंभीर समस्या है और प्रायः यह देखा गया है कि पहाड़ों से एक बड़ी संख्या में लोग शहरों की तरफ नौकरी की तलाश में जाते हैं। कभी कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि शहर की नौकरी से उनकी अच्छी आमदनी नहीं होती किन्तु फिर भी वे शहरों में नौकरी करते रहते हैं। पहाड़ों में ऐसे भी लोग हैं जो कर्मठ हैं एवं अपने गांव में रह कर ही अपना स्वरोजगार ढूंढ़ते हैं और अपने परिवार को पालते हैं। ऐसे ही एक कर्मठ प्रगतिशील पशुपालक/मुर्गीपालक हैं जो अपने गांव/पहाड़ों से जुड़े हुए हैं एवं अब मुर्गीपालन को अपना स्वरोजगार बनाते हुए अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम हैं।
श्री मनमोहन सिंह चौहान, निवासी ग्राम तेखला मुख्यतः एक पशुपालक हैं। गाय पालन के साथ साथ इनके द्वारा अब मुर्गीपालन भी किया जाता है। अगस्त 2018 में श्री मनमोहन चौहान सघन कुक्कुट विकास प्रायोजना, ज्ञानसू से जुड़े एवं पशुपालन विभाग उत्तरकाशी द्वारा मनमोहन जी को ‘नेशनल लाइवस्टॉक मिशन-इनोवेटिव पोल्ट्री प्रोडक्टिविटी प्रोजेक्ट’ में चयनित किया गया एवं 400 एक माह के क्रायलर पक्षी दो चरणों में उपलब्ध करवाए गए। मनमोहन जी एक बेहद परिश्रमी मुर्गीपालक हैं। लॉकडाउन में जहाँ कई लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे एवं वहीँ कई ऐसे मुर्गीपालक हैं जो मुर्गीपालन से आय प्राप्त करते रहे एवं कई नयी युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा का श्रोत हैं।
श्री मनमोहन जी बताते हैं कि उन्हें क्रायलर पक्षियों को पालने में ज्यादा परेशानियाँ नहीं आई एवं उन्होंने एवं उनके घर वालों ने इसे आराम से कर लिया बस समय से उचित प्रबंधन करने की आवश्यकता है मनमोहन जी ने पशुपालन विभाग उत्तरकाशी की योजना से अच्छा मुनाफा कमाया। क्रायलर प्रजाति के पक्षी से अंडा एवं मांस दोनों प्राप्त होते है।
अंडे बेचकर इन्होने मुर्गियों से 946 अंडे प्राप्त किये। इन्होने 10 रूपए प्रति अंडा की दर से कुल 9460 रूपए की आमदनी प्राप्त की। श्री मनमोहन द्वारा अंडे अपने एवं आसपास के गाँव में जरूरत मंद लोगों को ही बेचे गए ताकि गाँव के लोगों को उचित प्रोटीन मिल सके। इनके द्वारा मुर्गियों का आहार/दाना रूड़की से मंगवाया गया साथ ही घर का बना दाना एवं किचन की बची-खुची सब्जियां भी आहार के रूप में दी गयी। श्री मनमोहन जी द्वारा मुर्गियों के आहार में 20000 रूपए का खर्चा हुआ एवं 10 क्विंटल दाना मुर्गियों को खरीद कर खिलाया गया।
इनके द्वारा पाली गयी मुर्गियों का वजन लगभग 2 -2.5 कि.ग्रा. एवं मुर्गों का वजन 3 -3.5 कि.ग्रा. तक पाया गया। मुर्गियों को बेचकर इन्हें रू 1000-1200 /मुर्गा एवं रू 700 -800/मुर्गी आय प्राप्त हुई। मुर्गीपालन में शुरू में इनकी कुछ मुर्गियों को कुत्ते/बिल्ली द्वारा क्षति पहुंचाई गयी इसके अलावा इन्हें मुर्गी पालन में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।
मुर्गीपालन की इस योजना से श्री मनमोहन को कुल रू 56000 की आमदनी हुई। इस योजना के बाद श्री मनमोहन चैहान ने सघन कुक्कुट विकास प्रायोजना, ज्ञानसू, उत्तरकाशी से 40 मुर्गियां मांग पर फिर से खरीदी। इनके द्वारा बताया गया की मुर्गीपालन एक ऐसा व्यवसाय है जो न केवल युवाओं के लिए जिनकी नौकरी इस कोरोना काल में छूट गयी बल्कि घर का कोई भी सदस्य इसे आराम से कर सकता है। महिलाओं के लिए भी यह एक अच्छा व्यवसाय है। वर्तमान में इन्होने अपनी पत्नी श्रीमती जगदम्बा देवी को भी पशुपालन विभाग की योजना ‘नेशनल लाइवस्टॉक मिशन- मदर पोल्ट्री से जोड़ा है एवं दिनांक 21 अक्टूबर 2020 में इन्हें प्रथम चरण 45 एक माह के क्रायलर मुर्गियां वितरित की गयी। श्री मनमोहन जी द्वारा बताया गया की मुर्गीपालन से इनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है और वे मुर्गीपालन आगे भी करते रहेंगे।
Good work