संवर्धित दुग्ध विपणन: समय की आवश्यकता

4.9
(30)

बाजार में दो प्रकार अर्थात ताजा खुला दूध एवं पैक बन्द दूध बेचा जाता है। भारत में ज्यादातर दूध ताजा खुला बेचा जाता है। पैक बन्द दूध में पाश्चुरीकृत दूध बेचा जाता है। इसी पाश्चुरीकृत दुग्ध को मूल्य संवर्धित दुग्ध कहा जाता है। पाश्चुरीकृत करने से दूध में मौजूद अधिकतर जीवाणु समाप्त हो जाते हैं और यह जल्दी खराब नहीं होता है। पाश्चुरीकृत दूध को पैक करके उच्च दाम पर बेचा जाता है। ताजे दूध को भी पैक बन्द करके अच्छे दाम पर बेचा जा सकता है। दूध से बने उत्पादों को बेचने से दूध का मूल्य बढ़ जाता है अर्थात पशुपालक दूध के साथ-साथ दूध से बने उत्पादों का मूल्य वर्द्धन कर अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं। दूध से बने उत्पादों के मूल्य में दूध की तुलना में 1½ से 2 गुणा तक वृद्धि हो जाती है।

संवर्धित दुग्ध विपणन: समय की आवश्यकता

दूध के मूल्य संवर्धन हेतु बाजार में कई तरह के दूध उपलब्ध हैं। पशुपालक भी संपूर्ण ताजा दूध बेचने की बजाय संवर्धित दूध तैयार कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। बाजार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के दूध इस तरह हैं:

  1. संपूर्ण दूध (होल मिल्क): यह प्राकृतिक रूप से दुधारू मादा पशु से प्राप्त संपूर्ण दूध जिसमें मूल रूप से जो भी संघटक अर्थात वसा, प्रोटीन, दुग्धशर्करा, विटामिन और खनिज तत्व मौजूद होते हैं वह उसी मात्रा में उसमें मौजूद होते हैं तथा उनमें कोई भी बदलाव नहीं किया होता है। यह एक प्रकार का कच्चा एवं अपाश्चुरीकृत दूध है। ग्रामीण आंचल में अधिकतर इसी प्रकार के दूध का उपभोग किया जाता है। ऐसे दूध का जीवनकाल कम होने के साथ-साथ मूल्य भी सामान्य ही मिलता है।
  2. पाश्चुरीकृत दूध: कच्चे दूध में ई. कोलाई, साल्मोनेला तथा लिस्टेरिया रोगाणु हो सकते हैं जिन्हें नष्ट करने के लिए दूध को पाश्चुरीकरण प्रक्रिया से गुजारा जाता है। पाश्चुरीकृत दूध वह दूध है जिसे कच्चे दूध में मौजूद रोगजनक सूक्ष्मजीवों जैसे कि जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। प्रशीतक परिस्थिति में पाश्चुरीकृत दूध की भण्डारण अवधि अधिक होती है। बाजार में यह प्रसंस्कृत पाश्चुरीकृत दूध संपूर्ण, अर्ध वसारहित या वसारहित उत्पाद श्रेणियों में उपलब्ध है। हालांकि, उष्मीय उपचार के परिणामस्वरूप दूध के स्वाद और रंग जैसे ऑर्गेनोलेप्टिक गुणों में बदलाव होता है और दूध की पौष्टिक गुणवत्ता भी थोड़ी कम हो जाती है। लेकिन रोगजनकों की दृष्टि से यह लाभदायक है।
  3. फुल क्रीम दूध: फुल क्रीम दूध का अर्थ है वह दूध या भैंस या गाय के दूध का मिश्रण या दोनों के संयोजन से तैयार किया गया उत्पाद जो वसा और ठोस पदार्थ (एसएनएफ) को क्रमशः 6 और 9 प्रतिशत के लिए मानकीकृत किया जाता है। फुल क्रीम दूध पास्चुरीकृत और नकारात्मक फास्फेट परीक्षित होना चाहिए। ऐसे दूध में संदूषण को रोकने के लिए इसे साफ, मजबूत और आरोग्य पात्र (सैनिटरी कंटेनर) में पैक किया होना चाहिए।
  4. वसारहित (स्कीमड) मिल्कः ऐसा दूध जिसमें यंत्रवत् लगभग सारी दुग्धवसा (मलाई) निकाल ली गई है। ऐसा दूध जिसमें सेपेरेटर मशीन की सहायता से लगभग सारी दुग्धवसा (मलाई) निकाल ली गई है। इस दूध को सेपेरेटेड मिल्क (सेपेरेटा दूध) भी कहते हैं। इसमें अधिकतर ठोस पदार्थ (एसएनएफ) पदार्थ और नगण्य मात्रा में दुग्ध वसा होती है। इस दूध में 5 प्रतिशत से कम दुग्ध और 8.7 प्रतिशत ठोस पदार्थ (एसएनएफ) के लिए मानकीकृत किया होता है। इस प्रकार का दूध कच्चा, उबला हुआ, पाश्चुरीकृत, सुगंधित और निर्जंतुक आदि रूपों में पूर्ण भारतवर्ष में बिक्री हेतु बाजार में उपलब्ध है।
  5. टोन्ड मिल्कः टोन्ड मिल्क का अर्थ है गाय या भैंस के दूध या दोनों के ताजा स्किम्ड दूध के मिश्रण से तैयार किया गया उत्पाद या गाय या भैंस के दूध के मिश्रण से या दोनों कि वसा और वसारहित ठोस पदार्थ (एसएनएफ) के लिए मानकीकृत किया गया है दूध है। इस दूध को 3 प्रतिशत वसा और 5 प्रतिशत एसएनएफ के लिए मानकीकृत किया होता है। बाजार में यह दूध सस्ते दामों पर उपलब्ध होता है। यह पास्चुरीकृत और नकारात्मक फॉस्फेट परीक्षण किया होना चाहिए। जब वसा या शुष्क गैर-वसा वाले दूध ठोस का उपयोग किया जाता है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उत्पाद समरूप बना रहे और इसमें ठोस पदार्थों का कोई जमाव न हो।
  6. डबल टोंड मिल्कः यह दूध भी टोंड मिल्क की ही तरह होता है लेकिन इस दूध को 1.5 प्रति इुग्ध वसा और 9 प्रति एसएनएफ के लिए मानकीकृत किया हाता है।
  7. मानकीकृत (स्टेंडराइज्ड) दूधः मानकीकृत दूध का अर्थ है गाय या भैंस या भेड़़या बकरी का दूध या इनमें से किसी भी दूध का मिश्रण जो दूध के ठोस पदार्थों के समायोजन से वसा और एसएनएफ क्रमशः 5 और 8.5 प्रतिशत मानकीकृत किया गया है। मानकीकृत दूध को पास्चुरीकृत और नकारात्मक फॉस्फेट परीक्षित होना होना चाहिए।
  8. पुनर्नवीनीकृत (रिकंबाइंड) दूधः बाजार में उपलब्ध होने वाला यह ऐसा दूध है जो बटरऑॅयल अर्थात दुग्ध वसा और मलाई निकाले हुए दूध अर्थात दुग्ध एसएनएफ से बने पाउडर को पानी को मिलाकर तैयार किया जाता है। इस सम्मिश्रण को दुग्ध एसएनएफ अनुपात और शुष्क पदार्थ के पानी में के अनुपात फिर से स्थापित करने के लिए बनाया जाना चाहिए।
  9. पुनर्गठित (रीकांस्टीच्यूटिड) दूधः ऐसा दूध जो एक भाग सम्पूर्ण दुग्ध पाउडर को 7 से 8 भाग पानी में घोलकर तैयार किया जाता है।
  10. संशोधित (मॉड्यलेटेड) दूधः संशोधित दूध एक तरल उत्पाद है जिसे कम-से-कम 80 प्रतिशत कच्चे या पुनर्गठित दूध और अन्य कच्चे उत्पाद या खाद्य योजक (एडिटिव्ज), या पोषण सुदृढ़ीकारक (फोर्टिफायर) मिलाकर और उचित निर्जंतुकरण प्रक्रिया का उपयोग कर बनाया जाता है।
  11. समरूप (होमाजेनाइज्ड) दूधः यह ऐसा दूध है जिसमें दूध को एक विशेष यंत्र के महीन छिद्रों में से दबापूर्वक (2500 पोंड्स प्रति वर्ग इंच के दबाव पर) गुजारा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान दूध में मौजूद वसा के कण टूटकर दो माइक्रॉन या इससे कम के हो जाते हैं तथा इस दूध को लगभग 45 घण्टे तक बिना हिलाएं रखने पर या उसको गर्म करने पर भी ऊपरी सतह पर मलाई नहीं आती है।
  12. निर्जंतुक (स्टर्लाइज्ड) दूधः यह दूध पहले से समरूप किया हुआ होता है और तदुपरांत 100 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे कुछ ज्यादा तापमान पर गर्म कर ठंडा किया जाता है। इस प्रकार का दूध, कमरे के सामान्य तापमान पर सात दिनों तक मानव उपयोग के लिए बिना खराब हुए रखा जा सकता है। व्यावसायिक रूप से निर्जंतुक दूध शायद ही कभी विशुद्ध जीवाणुविज्ञानी शब्दों में निर्जंतुक होता है। यह इसलिए कि कच्चे दूध में बीजाणु-रहित बैक्टीरिया, जो अत्यधिक ऊष्मा प्रतिरोधी होते हैं, डेयरी उत्पादों में नियोजित निर्जंतुक तापमान-समय तक जीवित रहते हैं और अंततः निर्जंतुक दूध के खराब होने का कारण बनते हैं (De 2001)। पूर्ण निर्जंतुक दूध का सामान्य रंग और स्वाद बदल जाने के कारण उपभोक्ता प्राथमिकता कम हो जाती है।
  13. सुगंधित (फलेवर्ड) दूध: यह ऐसा दूध है जिसमें सुगंध विशेष द्रव मिला होता है। इसके लिए अधिकतर वैनीला, स्ट्रॉबेरी, पाईनएपल, केले, इलायची या जायफल जैसे सुगंधित द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। दुग्ध पॉर्लर पर ऐसे दूध को उपभोक्ता शौकिया तौर पर इसे स्ट्रॉ (नली) डालकर ठंडे रूप में सेवन करते हैं। केवल सुगंध डालने से दूध का मूल्य दो-तीन गुणा अधिक प्राप्त हो सकता है। अतः पशुपालक और दुग्ध वितरक व्यवसायी दूध को ज्यों का त्यों बेचने की बजाए सुगंधित दूध बनाकर बेचें अधिक लाभ सकते हैं। इसके लिए पशुपालक एक छोटा सा संयंत्र लगा कर शुरू कर सकते हैं।
और देखें :  थनैला रोग की पहचान एवं उपचार

बाजार में उपलब्ध उपरोक्त विभिन्न प्रकार के दूध के अतिरिक्त विश्व में विभिन्न प्रकार के किण्वित दूध का भी प्रचलन रहा है। इन उत्पादों में से अधिकांश में लेसादार गाढ़ापन होता है, जिसे ठंडे तापमान पर सप्ताहभर या महीनों तक सरंक्षित रखा जा सकता है। उपलब्ध उपभोगता आंकड़ों के पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि विश्व के कई भागों में पारंपरिक किण्वित दूध का आनंद लिया जाता रहा है। 1993 में, दही के अलावा किण्वित दूध स्वीडन में कुल किण्वित दूध की खपत का 74 प्रतिशत, फिनलैंड में 64 प्रतिशत, नॉर्वे और आइसलैंड में 62 प्रतिशत और डेनमार्क में 45 प्रतिशत था। हालांकि, उपभोग आंकड़े किण्वित दूध की निरंतर मांग के पर्याप्त सबूत प्रदान करते हैं, लेकिन दही की बढ़ती लोकप्रियता ने हाल के दशकों में पारंपरिक बाजार में इसमें कुछ कमी की है। फिर भी, किण्वित दूध में रुचि को पशुओं में किये गये प्रयोगों ने प्रवर्तक वनस्पतियों और इसके चयापचयों से जुड़े महत्वपूर्ण रोगनिरोधी और चिकित्सीय प्रभावों ने उत्साहित किया है (Roginski 1999)।

  1. किण्वित (फरमेंटेड) दूधः किण्वित दूध पोषण और आहार का एक महत्वपूर्ण घटक रहा है। किण्वित दूध दही, खट्टा दूध, सुसंस्कृत (कल्चर्ड) क्रीम एवं सुसंस्कृत छाछ जैसे उत्पादों का सामूहिक नाम है। इसका अर्थ है कि यह ऐसा दूध है जिसको थोड़ी मात्रा में सूक्ष्म जीवाणुओं के कल्चर को जामण के रूप में डालकर बनाया जाता है। विश्व के विभिन्न भागों में कई प्रकार के किण्वित दूध का निर्माण किया जाता है, और लगभग 400 नाम पारंपरिक और औद्योगिक रूप से निर्मित किण्वित दुग्ध उत्पाद प्रचलन में हैं, जिन्हें सूक्ष्मजीवों से संबंधित किण्वन और/या प्रसंस्करण विधियों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है (Surono & Hosono 2011)।
  2. संवर्धित छाछ अर्थात बटरमिल्कः मक्खन बनाने हेतु दूध में जामण (जीवाणु कल्चर) डालकर जमने के उपरांत मंथन (बिलोना) करने की प्रक्रिया में मक्खन निकालने के बाद जो द्रव पदार्थ बचता है, उसे (संवर्धित) छाछ अर्थात बटरमिल्क कहते हैं। इसे पाश्चरीकृत मलाई (क्रीम) रहित दूध में दुग्धाम्ल निर्माण करने वाले जीवाणुओं का संवर्धंन (जामण) डालकर भी किण्वित किया जा सकता है। इस छाछ को वैसे ही या थोड़ा सादा नमक या काला नमक डालकर सेवन किया जाता है जिसे बिक्री कर अतिरिक्त लाभ भी अर्जित किया जा सकता है।
  3. एसिडोफिलस दूधः यह एक प्रोबायोटिक पेय है, जो लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस जीवाणुओं द्वारा दुग्ध किण्वित उत्पाद है। एसिडोफिलस दूध को मानव आंत में विष उत्पादक जीवों का शमन करने के लिए चिकित्सीय पाया गया है। व्यापारिक स्तर पर इस दूध को तैयार कर बेचने से विभिन्न वर्ग के ग्राहकों को आकर्षित कर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है (Perez & Tan 2006)।
और देखें :  वाणिज्यिक खेती को प्रभावित करने वाले कारक

बेशक, बाजार में बिकने वाली पानी की एक बोतल का मूल्य दूध के बराबर ही क्यों न हो लेकिन खानपान, स्वादिष्टता और पौष्टिकता दृष्टि से दूध का कोई भी आसान विकल्प नहीं है। भारतीय संस्कृति में ‘दूधो नहाओ और दूध की नदियां बहने’ जैसी लोकोक्तियां हमारे पशुधन और दूध की महत्ता की द्योतक हैं। हालांकि, पशुपालकों को दूध का उचित मूल्य तो नहीं मिलता हो लेकिन संवर्धित दूध बेचने से अवश्य ही उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होती है। आवश्यकता है तो बस! पशुपालकों द्वारा स्वयं उत्पादित दूध को कच्चे या संवर्धित कर स्वयं विपणन की जिसके सकारात्मक परिणाम भी बहुत जल्दी सामने आते हैं।

और देखें :  कोरोना वायरस महामारी में पशुओं की देखभाल एवं संतुलित पशु आहार इस तरह तैयार करें

संडे हो या मंडे, दूध पिएं हर डे।

संदर्भ

  1. De, S., 2001. Special Milks. In: Outlines of Technology. Chapter 2. 1st Ed., Oxford University Press- New Delhi. pp 90-93.
  2. Perez, R.H. and Tan, J.D., 2006. Production of acidophilus milk enriched with purees from colored sweetpotato (Ipomoea batatas Linn.) varieties. Annals of Tropical Research. [Web Reference]
  3. Roginski, H., FERMENTED MILKS | Products from Northern Europe, Editor(s): Richard K. Robinson, Encyclopedia of Food Microbiology, Elsevier, Pages 791-798. [Web Reference]
  4. Sivasankaran S. and Sivanesan R., 2013, “Brand preference of packed milk–Comparative study on rural and urban consumers in Kanyakumari District,” International Journal of Business and Management Invention; 2(7): 23-35. [Web Reference]
  5. Surono, I.S. and Hosono, A. , FERMENTED MILKS | Types and Standards of Identity, Editor(s): John W. Fuquay, Encyclopedia of Dairy Sciences (Second Edition), Academic Press, Pages 470-476. [Web Reference]
  6. Vinola R., Swaminathan R. and Jeevithan E., 2015, “Current Status and Comparative Study on the Influences of Cattle Packed and Unpacked Milk in Tamil Nadu: A Detailed Survey,” Research & Reviews: Journal of Dairy Science and Technology; 4(2): 6-11. [Web Reference]

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.9 ⭐ (30 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*