कोविड-19 संकट में पशु-चिकित्सकों की प्रतिक्रिया

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वर्ष 2020 की पहली छमाही की शुरुवात ही से शुरू, कोविड-19 वायरस दुनिया के लगभग सभी देशों में फैल गया है। कई देशों ने संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए देशव्यापी और क्षेत्रीय लॉक-डाउन की शुरुआत भी की थी। अभी तक वैश्विक आबादी का लगभग 1.5 प्रतिशत हिस्सा कोविड-19 के संक्रमण की चपेट में आ चुका है। अभूतपूर्व परिस्थितियों और सुरक्षात्मक उपायों के कारण अभी हम पंगू होकर काम कर रहे है परन्तु जीवन के कुछ ऐसे पहलु भी है जिन्हे महामारी के कारण स्थगित नहीं कर सकते, उनमे से पशुधन भी एक है।

एक ओर जहाँ हम दूध, मांस और अंडे की आपूर्ति के लिए पशुधन पर आश्रित तो है ही वही दूसरी ओर पालतू जानवर पारिवारिक तनाव को कम करने के लिए भी आवश्यक है। स्वस्थ पशुधन ही स्वस्थ समाज की कुंजी होती है। महामारी के कारण हम पशुओ की नियमित टीकाकरण करने में असमर्थ थे, जिसके कारण पशुओ के बीमार होने की संभावना भी अधिक थी। इस समय पशुओ में आयी एक छोटी महामारी हमारी पशु उत्पादों जैसे दूध, अंडे, मांस और चमड़ा आदि की सप्लाई चैन को तोड़ सकती थी। अगर हम मानव स्वास्थय को बेहतर रखना चाहते है तो पशुओ के स्वास्थय के साथ समझौता नहीं कर सकते।

पशुचिकित्सक हमारे पशुधन और पालतू जानवरों की देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और साथ ही वैश्विक स्वास्थ्य और पशु-जनित रोगों के भविष्य के प्रकोप को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते है।

पशुचिकित्सक नए और खतरनाक ज़ूनोटिक रोग, जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं की रोकथाम में एक केंद्रीय और प्राथमिक स्थान रखते है। नियंत्रण के उपाय, जब सख्ती से जानवरों पर लागू होंगे तभी मनुष्यो में ज़ूनोटिक रोग के फैलने की सम्भावना भी कम होगी। पशु-चिकित्सकों के पास पहले से जूनोटिक रोगों जैसे ब्रूसीलोसिस, टीबी, एंथ्रेक्स, एफ एम डी, रेबीज आदि को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने का अनुभव है। इसी अनुभव का उपयोग करके उन्होंने कोविड-19 की रोकथाम, टीको के निर्माण और जांच में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसके लिए संपूर्ण मानव जाति पशुचिकित्सकों की कृतज्ञ रहेगी।

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कोविड-19 की शुरुवात में स्टाफ और बुनियादी ढांचों की अत्यधिक कमी थी तब पशु-चिकित्सक और पशु चिकित्सा नैदानिक प्रयोगशालाएं एक बेहतर समय पर सामने आयी और कोविड-19 की जांच प्रक्रिया में तत्परता से मदद की। कोविड परीक्षण के लिए पंडित दीन दयाल पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, मथुरा  में एक प्रयोगशाला स्थापित की गयी थी। गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (GADVASU), लुधिआना  की परीक्षण प्रयोगशाला में भी 1 लाख से अधिक कोविड नमूनों का परीक्षण गया। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के जैव-सुरक्षा प्रयोगशाला स्तर-3 ने भी कोविड-19 नमूनों के परीक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पर्याप्त स्टाफ और सुविधाओं के साथ अभी भी कई पशुचिकित्सा नैदानिक प्रयोगशालाएं कोविड-19 के नमूनों का परीक्षण कर रही हैं।

मानव जांच प्रयोगशालाओं में जब पर्याप्त स्टाफ की कमी थी तब पशु माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने भी जांच का जिम्मा बखूबी निभाया। देश के बहुत से पशुचिकित्सक अभी भी सरकार के आदेशानुसार इन प्रयोगशालाओं में अपनी सेवाएं दे रहे है।

कोरोना वायरस के कारण जहां लोग अपने घरो से बाहर निकलने में कतरा रहे थे तब  पशुचिकित्सको ने घर घर जाकर निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी और अप्रत्यक्ष रूप से पशु उत्पादों जैसे दूध अंडे मांस की आपूर्ति को सुनिश्चित किया ।

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देश भर में लॉकडाउन के चलते इंसानो के लिए खाने-पीने व इलाज की माकूल व्यवस्थाएं की जा रही थी तब बेजुबान जानवरो की तरफ बहुत कम लोग ध्यान दे रहे थे। हालात ये थे कि बेसहारा और बीमार पशुओ के भूखे मरने की नौबत आ गयी थी। तब अनेक पशुचिकित्सक ने इस संकट की घडी में इन बेसहारा पशु पक्षियों की सुध ली और मानवता के नाते निशुल्क सेवाएं दी। बीकानेर राजस्थान का एक पशुचिकित्सक दंपत्ति डॉ. जाग्रति और डॉ. क्षितिज इन मूक लावारिश पशुओ की निशुल्क सेवा के लिए बहुत चर्चित रहा।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोरोना वायरस की संभावित एवियन लिंक अफवाहों ने पोल्ट्री उद्योगों की कमर ही तोड़ दी थी। एक अनुमान के अनुसार जनवरी 2021 में भारत के पोल्ट्री उद्योग को प्रति दिन 109.03 मिलियन भारतीय रूपये का नुकसान हो रहा था। तब पशुचिकित्सकों एवं पशुचिकित्सा विश्वविद्यालयो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक कैम्पेन चलाये और इन अफवाओं को दूर करके देश की अर्थव्यवस्था को वापस संतुलित किया। पशुचिकित्सकों और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयो के संयुक्त प्रयासों के कारण ही लोगो के मन से पशुओ और पशु उत्पादों से कोरोना होने की भ्रांतिया दूर हुई।

रूस व चीन के बाद दुनिया में सबसे पहला कोरोना टीका फाइजर-बायोएनटेक (PfizerBioNTech) ने तैयार किया था। अल्बर्ट बोर्ला, अमेरिकन दवा निर्माता, फाइजर कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी होने के साथ साथ पेशे से एक पशुचिकित्सक भी है। भारत के पशु चिकित्सक डॉ. सी.जी. जोशी, निर्देशक जीबीआरसी, गुजरात और उनकी टीम ने कोरोना वायरस के पूरे जीनोम अनुक्रम को डिकोड करने में सफलता पाई।

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पशुचिकित्सकों द्वारा किये गये कार्यों की निश्चित ही जितनी सराहना की जाये कम है क्योंकि ये ही हमे भविष्य में आने वाली ज़ूनोटिक बीमारियों से बचाये रखते है। पशुचिकित्सकों और अन्य चिकित्सको के साथ-साथ में पुलिस, नर्सिंग स्टाफ, टीचर्स, सफाईकर्मी और बैंकर्स के योगदान की भी नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि समाज के सभी वर्ग मिलकर कार्य करेंगे तभी हम कोविड जैसी महामारियों को समूल नष्ट कर पाएंगे।

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