बकरियों में होने वाली प्रमुख बीमारियाँ, कारण, लक्षण, रोकथाम एवं चिकित्सा उपचार

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बकरियों में होने वाली बीमारियाँ

बकरियों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ होती हैं। बीमारियाँ उत्पन्न होने का कारण कई प्रकार के जीवाणु विषाणु एव कीटाणु होते हैं जो शरीर के अन्दर एवं बाहर विद्यमान रहते हैं। जब बकरी की शारीरिक क्षमता कम हो जाती है तो यही शरीर में प्रवेश कर व्याधियाँ उत्पन्न करते हैं।

बीमारियों के प्रकार

  1. साधारण एवं ऋतु के अनुसार।
  2. परजीवी कीटाणुओं से होने वाली बीमारियाँ।

साधारण एवं ऋतु के अनुसार

अफरा-पेट फूलना

यह रोग अधिक खाने से, जुगाली प्रक्रिया बन्द होने से, कब्ज हो जाने से, अधिक मात्रा में सूखा खाना खाने से, पीने के पानी की मात्रा कम मिलने से तथा बासी एवं सड़ा हुआ खाना खा लेने के कारण से होता है।

लक्षण

  • बकरी की श्वास क्रिया बढ़ जाती है, बेचैन होने लगता हैं।
  • जानवर बार-बार उठना बैठना शुरू कर देता है।
  • बकरी का नथूना फूल जाता है एवं शरीर को टेढ़ा, मेढ़ा घुमाने लगता है।
  • बायीं ओर अधिक फूलना तथा फूली हुई जगह पर हाथ मारने से ढ़ोलकी जैसी आवाज का आना।

रोकथाम

  • पानी एवं संतुलित आहार खिलाने से।
  • कारणों की उचित व्वस्था करने से।

उपचार

  • श्वास क्रिया में सहायता के लिये बकरी के अगले पैरों को सतह से उपर रखें।
  • सरसों का तेल 100 ग्राम, हींग 10 ग्राम को 200 मिली पानी में अच्छी तरह से घोल लें इस घोल को तेल में मिला लें यदि उपलब्ध हो तो 20 ग्राम तारपीन का तेल भी मिला लें इस मिश्रण को दो-तीन बार पिलायें।
  • पाचन पाउडर 50 को ग्राम गुण के साथ गोली बनाकर सुबह शाम तीन-चार दिन खिलायें। पीने का पानी उपलब्ध रखें पाचन क्रिया में सुधार आते ही बकरी स्वस्थ हो जायेगी।

पोंकनी रोग

यह रोग गंदी जगह पर जानवर को रखने से,  बाडे़ की सफाई न रखने से, गंदा सडा़ खाना खिलाने या भूलवश 6-8 माह के बच्चों द्वारा सड़ा खाना खाने से इन्फैक्सियस डायरिया हो जाता है जिसे आहर जहरीला छेरा (PPR) कहते है।

लक्षण

  • खाना पीना बन्द कर देना चमड़ी का शुष्क हो जाना ।
  • वजन में गिरावट व कमजोर होना, काली पतली, सफेद पतली बदबूदार दस्त ।
  • पशु का पेट पतला तथा आमाशय का लटक जाना।

रोकथाम

  • कारणों को समझकर सुधार करना ।
  • साफ सफाई रखना, स्वच्छ संतुलित आहार एवं पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना।

उपचार

  • साधरणतया होने वाले कारणों पर ध्यान देने से छेरा बन्द होकर नियन्त्रित पाचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। किन्तु ठीक नही होने पर सल्फा की 5 ग्राम की गोली बकरी के शारीरिक क्षमता व भार के आधार पर एक गोली प्रातः एक गोली शाम को गुण में मिश्रण कर 5 दिन तक खिलायें।
  • पाचक पाउडर रोजाना खिलायें। फिर भी उचित लाभ न होने की स्थिति में एन्टेरोरोम्सीमिया के टीके लगवाना आवश्यक है।

खुर सड़ने की बीमारी

वर्षा ऋतु में अक्सर बकरी के चारों पैरों की खुरियाँ पक जाती हैं, इससे उनके खुर में सड़न उत्पन्न हो जाती है।

कारण

वर्षा ऋतु में गीले एवं पानी भरे हुऐ स्थान पर बकरी को रखने से, गीले चारागाह में चराने से, वर्षा ऋतु में कीचड़ वाले स्थान पर चराने या बांध कर रखने से।

और देखें :  भेड़, बकरियों में पी.पी.आर. महामारी के कारण, लक्षण एवं रोकथाम

लक्षण

  • खुरियों में सूजन एवं दर्द का होना।
  • चलने में लंगड़ापन, खुरियों को दबाने पर लचीलापन एवं दर्द का अनुभव, अधिक तीव्रता की स्थिति में चलने में अधिक लंगड़ापन तथा असुविधा का होना।
  • खुरियों से बदबू, अधिक तीव्रता की स्थिति में या चिकित्सा नही कराने पर खुरियों के बीच व चमडी का सड़ जाना तथा कीड़ों का पनप जाना जिसके कारण खुरी पैर से पृथक भी हो सकती है।

रोकथाम

  • बकरियों को गीली जगह, अत्यधिक पानी एवं कीचड़ में न रखें।
  • वर्षा ऋतु में पैरों को धोकर साफ रखें, काँटा आदि लगा हो तो निकाल कर सरसों का तेल मल दें।

उपचार

  • खुरियों एवं पैरों को अच्छी तरह से गुनगुने पानी से धो लें। सुखाकर निम्न औषधि की पटटी बाधें।
  • फिनायल एक भाग, तेल (कैसा भी) तीन भाग, तारपीन का तेल एक भाग। उपरोक्त मिश्रण में पटटी को भिगोकर अच्छी तरह बांध दें। प्रतिदिन इसी पटटी पर अतिरिक्त औषधि ड़ालकर पटटी को गीला रखें। चार-पाँच दिन में पटटी बदल दें।
  • लापरवाही या चिकित्सा में बिलम्ब हो जाने पर सल्फा-ड़ीमीडीन 5 ग्राम की एक गोली प्रातः एवं सायं 5 दिन तक खिलायें।
  • आवश्यकता होने पर एन्टीबायोटिक इन्जेक्शन 5 दिन तक लगवायें यह क्रिया मंहगी पड़ती है, अतः समय पर ही उचित देखभाल करें।

मुहँ फूलना-सड़ना

वर्षा ऋतु में बकरियों के होठों व नथूनों के पास फुन्सियाँ हो जाती हैं। जिसके कारण मुह फूल जाता है एवं सड़न उत्पन्न हो जाती है।

कारण

वर्षा ऋतु में चरते समय काँटों से मुँह नाक के मुलायम भाग पर जख्म हो जाते हैं और विषाणु का प्रकोप हो जाता हैं। यह छूतदार बीमारी होने से एक बकरी से पूरे बाड़े में हो जाती है। किसी भी उम्र की बकरी में यह बीमारी होती है किन्तु छोटे बच्चों में अधिक होती है।

लक्षण

  • मुहँ एवं नाक के पास भूरे तक की शुष्क परत।
  • दर्द के कारण खाना-पीना बन्द।
  • होठ एवं नाक के पास सूजन।
  • बदबू/दुर्गन्ध का आना।
  • बकरी का बेचैन होना।

रोकथाम

  • छोटे बच्चे एवं बकरी को वर्षा ऋतु में कंटीले क्षेत्र में नही चरायें।
  • बीमार पशु को स्वस्थ पशु से पृथक रखें।

उपचार

  • गुनगुने पानी से मुह एवं नाक को धुलें।
  • किसी भी प्रकार का गुनगुना तेल लगायें।
  • मुलायम खाना एवं स्वच्छ पानी दें।
  • बांटा (आहार) को पानी से अच्छी तरह गलाकर खिलायें।
  • व्यवस्था के अनुसार कई मरहम जैसे- टेरामाइसिन, लोरेक्सीन, सोफरामाइसिन का उपयोग करें। ठीक होने तक चिकित्सा करें।
  • 7-10 दिन में स्वतः बीमारी समाप्त हो जायेगी।
  • मृत्युदर नगण्य होती है, लापरवाही से कीडे पनप जाने से मृत्यु संभव।

थन-सूजन

कभी-कभी बकरी में थन सूजन की बीमारी हो जाती है।

कारण

बच्चों के अधिक समय तक थन से दूध पीने से, वाहय पदार्थ से चोट लग जाने से, जंगल में चरते समय काँटा या नुकीले तार लग जाने से, कभी-कभी नुकीले तार से थन फट जाता है और दूध बहने लगता है।

लक्षण

  • थनों का गर्म प्रतीत होना। दुग्ध उत्पादन में कमी।
  • कभी एक या दोनों थनों में बीमारी।
  • छूने से या बच्चों के दूध पीतेे समय दर्द महसूस होना।
  • कभी-कभी अति तीव्रता वाली बीमारी की स्थिति में थन से दूध का निकलना बन्द हो जाना।
और देखें :  पशुओं में संक्रमण: दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव

उपचार

  • पूर्णतया सफाई रखें।
  • थनों में दूध न रहने पर बच्चों को चूसने न दें।
  • दूध दुहने के पश्चात सरसों के तेल से मालिश करें।
  • गुनगुने या ठण्ड़े पानी से छिड़काव करें।
  • सल्फा की एक गोली 5 ग्राम वाली प्रातः एवं सांय 4-5 दिन तक खिलायें।
  • नियमित सफाई एवं देखभाल से बीमारी का प्रकोप नही होता है।

परजीवी कीटाणुओं से होने वाली बीमारियाँ

कारण

बकरी के चरने की प्रक्रियाए नदी, नालों, तालाबों के पास हरा चारा चरने से। गंदा पानी एवं गंदी जगह का पानी पीने से। परजीवी कीटाणु दो जगह अपना जीवन यापन करते हैं।

प्रथम-वाहय जीवन

पशु के शरीर के बाहर जैसे जमीन परए घास में, गोबर में, दलदल में, जहां बकरी चरती है। कीटाणु से बीमारी वाली बकरी छेरा करती हैं। इन स्थानों पर कीडों के अण्डों का तेजी से प्रजनन होता है। अण्डों से लार्वा बनता हेै जो पत्तियों पर चिपक जातें है। बकरी इन्हीं स्थानों पर चरती हैं और लार्वा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

द्वितीय-आन्तरिक जीवन

बकरी के इन स्थानों पर चरने से कीटाणु लार्वा शरीर में प्रवेश कर जाते है। पेट एवं आँतों में बकरी के भोजन पर पलते हैं। बकरी के जिस अंग का कीटाणु है उसी अंग में प्रवेश कर जाते है, पनपते हैं एवं अण्डे देते रहते हैं। यही अण्डे बकरी के बीमार होने की स्थिति में छेरा द्वारा बाहर जमीन पर गिरते हैं। इस प्रकार कीड़ों का जीवन चक्र चलता रहता है।

लक्षण

  • बकरी का कमजोर होना, भूख का कम होना ।
  • वजन में कमी, पेट बढ़ना।
  • दूध उत्पादन में कमी।
  • दस्त या छेंरा का होना।
  • यदि समय पर बीमारी की रोकथाम/चिकित्सा नही की गयी तो बकरी की स्थिति अत्यधिक क्षीण हो जाती है।

रोकथाम

  • बकरियों के आवास की साफ-सफाई रखें, कीटाणु उत्पादित स्थानों पर चराई रोक दें।
  • उत्तम एवं उचित रोकथाम यही है कि हर तीन माह के अन्तराल में बकरियों को कीडे मारने की औषधियां पिलाते रहना नही भूलें। ऐसी स्थिति में बकरी की चराई किसी भी अन्य स्थान पर करें तब भी बचाव संभव व सही है।

उपचार

  • औषधियां पाउडर, तरल पदार्थ व गोलियों में उपलब्ध होती है। विभिन्न प्रकार की कीडों की बीमारी के लिये अमुक प्रकार की औषधि ही उपचारित है। अतः यह औषधि चिकित्सक की ही राय से क्रय करें व पिलायें।
  • औषधि पिलाने का कार्यक्रम वर्षा ऋतु से पूर्व करें, फिर तीन माह का अन्तराल रखें।
  • सप्ताह में एक बार नीम की पत्ती बकरी को खिलायें।
  • नीला थोथा व तम्बाकू के पानी का घोल वर्ष में एक या दो बार पिलायें।

वाहय परजीवी कीटाणु

बकरियों के शरीर पर पाये जाने वाले कीडे जिन्हें कथूरे, टिम्स के नाम से जाना जाता है शरीर पर चिपके रहते हैं। ये बकरी के शरीर से खून चूसते हैं एवं बीमारी को भी फैलाते है।

रोकथाम

  • किसी भी कीट नाशक दवा से उनके शरीर पर छिड़काव करें। छिड़काव प्रतिमाह करें।
  • छिड़काव हेतु औषधि जैसे-डी.डी.टी., बी.एच.सी. का आधा प्रतिशत घोल बकरी के शरीर पर व एक प्रतिशत आवास गृह में छिड़कतें रहें।
और देखें :  Sirohi Breed of Goat (सिरोही)
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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2 Comments

  1. Goat ka gala me problem hain jiske karan goat apna gala ghumake jor jor se chillati hain! Jugali, bhojan, karti hain ! Iska upay kaya h

  2. This article is very valuable for small animal farmer .
    Goat also known as poor man’s cow
    Congratulations to Dr. Vibha ma’am

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