पशुधन से समृद्धि की ओर

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हमारे भारत वर्ष में पशुधन भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदंड है। पशुपालन एक आर्थिक उद्यम है और इसे भारत में लाखों लोगों के लिए “उत्तरजीविता उद्यम“ के रूप में जाना जाता है। पशुपालन भारतीय कृषि का सबसे महत्वपूर्ण घटक है जो हमारे देश के ग्रामीण, विशेष रूप से सीमांत, छोटे और भूमिहीन किसानों की दो तिहाई से अधिक की आजीविका एवं आय अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में 85 प्रतिशत पशुधन रखने वाले छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। छोटे ग्रामीण परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16 प्रतिशत है, जबकि सभी ग्रामीण परिवारों का राष्ट्रीय औसत 14 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, पशुधन क्षेत्र देश की 8.8 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्रदान करता है जिसमें बड़े पैमाने पर भूमिहीन और अनपढ़ आबादी शामिल है। पशुधन क्षेत्र ने सदैव देश एवं किसानों की उन्नति एवं समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

पशुधन से समृद्धि की ओर

श्री नंदा कुमार, अध्यक्ष राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (राष्ट्रीय दूध विकास बोर्ड, आनन्द, गुजरात) के शब्दों से यह स्पष्ट है कि “2022 तक किसानों की आय दुग्ध उत्पादन, पशुपालन एवं कृषि के बिना असंभव है। जो यह परिलक्षित करता है कि हम अपने पशुधन की मद्द  से समृद्धि के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं। किसी देश की विकास एवं उन्नति का सीधा संबंध ऊर्जा, नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों से है। पशु उपोत्पाद जैसे कि संशोधित पशु प्रोटीन, पशु वसा, दूध और अंडे के उत्पाद, और पूर्व खाद्य उत्पाद पशुधन को खिलाने एवं उनका मूल्य संवर्द्धन करने से भी पशुपालक बन्धु अत्यधिक आय का अर्जन कर स्वावलम्बी बन सकते हैं, साथ ही पशुधन से समृद्धि की तरफ अग्रसारित हो सकते हैं।

पशुधन से प्राप्त होने वाले विभिन्न खाद्य उत्पाद (दूध, ऊन, अंडा, मांस आदि), पशु शक्ति, जैविक खाद और घरेलू ईंधन, खाल और त्वचा ग्रामीण परिवारों के लिए नकद आय का एक नियमित स्रोत प्रदान करते हैं। पशुओं से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट पदार्थों जैसे गोबर, पेशाब, बिछावन एवं अनुपयोगी व  गिरे हुये चारे से उत्तम खाद बनाई जाती है जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढा़ने में सहायक होती है। पशु गोबर से गोबर गैस एवं खाना पकाने हेतु उपले अथवा कंउे प्राप्त होते हैं जो कि भोजन पकाने में काम आते हैं। भारत में पशुधन संपत्ति की वृद्धि अनुमानतः 6.00 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से है। सूखे, अकाल और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय पशुधन किसानों के लिए एक उत्तम विकल्प के रूप में बीमा के समतुल्य है। हमारे पशुपालकों के द्वारा उन्नत वैज्ञानिक प्रबंधन विषयक नवीनतम ज्ञान को अपनाने एवं उन्हें मूल्यवान पशु उत्पादों के समुचित उपयोग करने से हमारे पशुपालक बन्धुओं को अधिकतम लाभ मिलेगा। दूध, ऊन, अंडा, मांस आदि और उनके उप-उत्पाद  जैसे कि संशोधित पशु प्रोटीन, पशु वसा, दूध और अंडे के उत्पादों का उचित मूल्य संवर्द्धन कर उनका समुचित उपयोग कर सकते हैं और साथ ही साथ अतिरिक्त आय अर्जन भी कर सकते है। पशु उत्पादों के साथ-साथ उप-उत्पादों का उचित उपयोग देश की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ पशुपालकों की आय में साकारात्मक वृद्धि पर सीधा प्रभाव डालता है। फसल अवशेषों का समुचित उपयोग, पूरे वर्ष रसीले हरे चरागाहों या हरे चारे की उपलब्धता के साथ फसल अनुक्रमण, फसल रोटेशन और एकीकृत कृषि प्रणालियों को अपनाने वाले गैर-पारंपरिक फीड संसाधनों का उपयोग भी लागत और पर्यावरण सुरक्षा को कम करने में एक महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। हाल के वर्षों में गाय के गोबर और मूत्र के साथ डेयरी, मांस और त्वचा उद्योग के मूल्य संवर्धन और पशु उपोत्पाद के साथ किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ-साथ स्वस्थ पर्यावरणीय मुद्दों की बेहतरी के लिए पंचगव्य, जीवामृत और गौ-मूत्र अर्क, गोनाईल आदि जैसे मूल्यवान उत्पाद तैयार कर आय अर्जित किया जा रहा है।

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भारत में कृषकों के लिये पशुपालन एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है। यह छोटे तथा सीमांत किसानों के लिये विशेषकर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य स्रोत है और जोखिम निवारण रणनीति का हिस्सा है। पशुपालन भारत में आय के अतिरिक्त साधन के साथ-साथ संस्कृति का भी हिस्सा रहा है। भारत में लगभग 2 करोड़ लोग आजीविका के लिये पशुपालन पर आश्रित हैं। पशुपालन क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4.0 प्रतिशत तथा कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 26.0 प्रतिशत का योगदान करता है। भारत में पशुओं की उपयोगिता खाद्य पदार्थ, चमड़ा, खाद, खर-पतवार नियंत्रण, मनोरंजन तथा साथी पशु के रूप में है। भारत पशुओं की कुल संख्या के मामले में प्रथम स्थान पर है तथा इसके उत्पादों के विपणन के लिये व्यापक घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार हैं।

हमारे देश में पशुधन का अभूतपूर्व भंडार उपलब्ध है। वर्तमान में 20वीं पशुगणना के अनुसार हमारे देश में कुल पशुधन की संख्या 535.78 मिलियन से अधिक है जिसमें गोवंशीय पशुओं की संख्या लगभग 192.49 मिलियन जबकि महिषवंशीय पशुओं की संख्या 109.85 मिलियन से अधिक है। मादा गोवंश की कुल संख्या 145.12 मिलियन है जो पिछली गणना सन 2012 की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक है। विदेशी/ शंकर नस्ल और स्वदेशी/ अवर्णित की कुल संख्या देश में क्रमशः 50.42 एवं 142.17 मिलियन है। स्वदेशी/अवर्णित मादा गायों की कुल संख्या वर्ष 2019 में पिछली गणना की तुलना में 10 प्रतिशत बढ़ गई है। विदेशी/संकर नस्ल वाली गायों की कुल संख्या वर्ष 2019 की तुलना में 26.9 प्रतिशत बढ़ गई है। स्वदेशी/अवर्णित मवेशी की कुल संख्या पिछली गणना की तुलना में 10 प्रतिशत बढ़ गई है। वर्तमान में महिषवंशीय पशुओं की संख्या भी विगत 2012 की पशुगणना के सापेक्ष 1.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

देश में बकरी प्रजातियो की संख्या लगभग 148.88 मिलियन एवं भेंडों की संख्या 74.26 मिलियन से अधिक है। सुअर की विभिन्न प्रतातियों की संख्या भी वर्तमान में 9.06 मिलियन है जो विगत पशुगणना के सापेक्ष 10.1 प्रतिशत कम है। उत्तर-पूर्वी भारत का प्रमुख पशु मिथुन की संख्या में 30.0 प्रतिशत की अभूतपूर्व  वृद्धि दर्ज की गई है। वर्तमान 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में मिथुन की संख्या 3.9 लाख है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी पहाड़ी भारत का प्रसिद्ध पशुधन याक की संख्या में भी विगत पशुगणना के सापेक्ष 24.67 प्रतिशत होकर 58 हजार हो गया है (स्रोत : बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी, पशुपालन डेयरी व मत्स्य पालन विभाग भारत सरकार, 2019)। अर्थात हमारे देश में पशुधन के रूप में अभूतपूर्व जननद्रव्य एवं भंडार उपलब्ध है।

पशुधन किसी भी देश के आर्थिक विकास में अनेक तरह से अपनी भूमिका निभाता है। देश के लगभग 70 करोड़ व्यक्ति कृषि पर निर्भर हैं। इनमें से लगभग 7 करोड़ किसान पशुपालन व्यवसाय से भी जुड़े हैं। देश में कृषि उत्पादन में पशुपालन का योगदान 30 प्रतिशत है। ग्रामीणों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में पशुपालन काफी सहायक है। एक अनुमान के अनुसार कृषि में पशु श्रम का कुल मूल्य 300 से 500 करोड़ रुपये है। पशुओं के गोबर से खाद प्राप्त होती है। उनके सींग, खुर एवं हड्डियों का चूर्ण बनाकर कई तरह से औद्यौगिक कारखानों में उपयोग किया जाता है । ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात के लिए पशुओं का विशेष उपयोग किया जाता है । अनेक उद्योगों की आधारशिला भी पशुओं पर निर्भर करती हैं, जैसे – चमड़ा उद्योग, ऊनी उद्योग, वस्त्र उद्योग, मांस उद्योग, डेरी उद्योग आदि मुख्य हैं । भारत में विशेष तौर पर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात के लिए आज भी पशुओं का विशेष उपयोग होता है। पशुओं से हमें विदेशी मुद्रा अर्जन करने में भी विशेष सहायता मिलती है । हमारी राष्ट्रीय आय में पशुधन का विशेष योगदान है। कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 10 प्रतिशत हमें पशुधन से प्राप्त होता है। देश में प्रोटीन की आवश्यकता पूरा करने में दूध, अंडे और मांस का योगदान अभूतपूर्व है। दूध की उत्पादन के दुष्टिकोंण से भारत आज भी दुनिया में शीर्ष स्थान पर है। गाय का दूध अमृत के समान तथा बकरी का दूध औषधि तुल्य माना जाता है। वर्ष 1950-51 में दूध का उत्पादन मात्र एक करोड़ 70 लाख टन था, जो वर्तमान में बढक़र 19 करोड़ 84 लाख टन हो गया है। भारत में पिछले 6 वर्षों में दूध उत्पादन में अभूतपूर्व 35.61 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 में दूध उत्पादन 146.3 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019-20 में यह 198.4 मिलियन टन हो गया है। पशुपालन तथा इससे संबंधित उत्पादों के निर्यात से होने वाली आय में निरन्तर उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । 1991 में पशुधन और उससे सम्बध्द उत्पादों से 59500 लाख रुपये का निर्यात हुआ, जबकि वर्ष 1996-97 में यह बढक़र 192500 लाख रुपये हो गया था। वर्तमान में यह 3063281 लाख रुपये हो गया है।

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पशुपालन में हरे चारे का एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि हरे चारे के बिना पशुपालन सम्भव नही है। हरा चारा दूध उत्पादन के लिए ही नहीं बल्कि शारीरिक विकास और शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पशुओं को सभी आवश्यक पोषक तत्व हरे चारे से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। देश में हरे चारे के लिए 4 प्रतिशत से कम क्षे़त्रफल उपलब्ध है और 2025 तक यह क्षेत्रफल घटकर 2 प्रतिशत रह जायेगा। पशुपालन में सबसे अधिक खर्च (60-70 प्रतिशत) राशन, हरे और सूखे चारे पर आता है। यदि पशुपालन में आहार कीमत को कम कर दिया जाय तो किसानों को अधिक लाभ हो सकता है। यदि किसान हरे चारे के रूप में बहुवर्शीय घास जैसे अंजन घास या दीनानाथ घास या गिन्नी घास या नेपियर घास की खेती करे तो हरे चारे की लागत में कमी आयेगी और अधिक मात्रा में चारा भी प्राप्त होगा। बहुवर्षीय घासों जैसे अंजन घास, गिन्नी घास, दीनानाथ घास, मक्खन घास आदि की भी बुवाई से पूरे वर्ष हरा एवं पौष्टिक चारा प्राप्त होता है। यदि दुधारू पशुओं को साल भर पौष्टिक हरा चारा मिलता रहे तो पशुओं के दूध उत्पादन में वृद्धि होगी साथ ही किसानों एवं पशुपालकों की आय में भी वृद्धि होगी।

गोबर, मृत शरीर, सींग, हड्डियां और मूत्र से  जैव उर्वरक, कीट निरोधक आदि बनाने में किया जा सकता है। उर्वरक। हमारे देश में, खेती और कृषि की खेती, पारंपरिक युग-पुरानी प्रणाली के अनुसार, किया जाता था, जिसमें गोबर खाद के रूप में काम करता था। गोबर मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बनाए रखने के लिए एक बहुत अच्छा स्रोत है और मिट्टी के लाभदायी सूक्ष्म जीवाणुओं की आबादी को बढ़ाता है। गाय के गोबर को कृषि, ऊर्जा संसाधन, पर्यावरण संरक्षण और चिकित्सीय अनुप्रयोगों के क्षेत्र में व्यापक अनुप्रयोगों के कारण सोने की खान माना जाता है। इसका उपयोग कृषि में सह-उत्पाद के रूप में भी किया जाता है। गाय के गोबर से साबुन, टूथपेस्ट, फ्लोर क्लीनर, हेयर ऑयल, अगरबत्ती, शेविंग क्रीम और फेस वॉश जैसी कई कंपनियों द्वारा प्रोडक्ट लॉन्च किए गए हैं। ऐतिहासिक रूप से, महर्षि वशिष्ठ ने दिव्य “कामधेनु“ गाय की सेवा की और महर्षि धन्वंतरी ने मानव जाति को एक अद्भुत औषधि “पंचगव्य“ (गोमूत्र, दूध, गोबर, दही और दही का एक संयोजन) प्रदान किया। संस्कृत में, इन सभी पांच उत्पादों को व्यक्तिगत रूप से “गव्य“ कहा जाता है और सामूहिक रूप से “पंचगव्य“ कहा जाता है।

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पशुपालन के बारे में नवीनतम ज्ञान के साथ ही पशुपालन की वैज्ञानिक पद्धतियों जैसे स्वास्थ्य प्रबन्धन, आहार प्रबन्धन, आवास प्रबन्धन, प्रजनन प्रबन्धन, पशु जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में आवश्यक प्रबन्धन, गर्भित पशु प्रबन्धन, दुहान प्रबन्धन, पूरे वर्ष हरे चारे की उपलब्धता एवं संरक्षण, फसल अवशेषों का समुचित उपयोग, पूरे वर्ष चरागाहों का उचित प्रबन्धन या हरे चारा की उपलब्धता के साथ फसल अनुक्रमण, फसल रोटेशन और एकीकृत कृषि प्रणालियों चारागाह प्रबन्धन, गैर-पारम्परिक आहार अर्थात नान कन्वेन्शनल फीड, टीकाकरण, दूध एवं मीट उत्पादों के वैल्यू एडिसन/संवर्द्धन, उपोत्पादों का समुचित उपयोग आदि के बारे में आवश्यक जानकारियाँ ग्रहण कर एवं अपनाकर हमारे पशुपालक भाई एवं बहनें कम लागत लगाकर अधिक आय अर्जित कर सकते हैं, साथ ही देश के सर्वागीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

पशुधन व्यवसाय को अपनाकर हम स्वयं तथा अपने देश को निरन्तर समृद्धि के पथ पर अग्रसारित कर सकते हैं साथ ही पशुपालकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ कर सकते हैं। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि पशुधन व्यवसाय को वैज्ञानिक दृष्टिकोंण से अपनाकर हम निःसन्देह स्वयं, अपने गांव एवं अपने देश को समृद्धि के पथ पर अग्रसारित कर सकते हैं।

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