पशुओं में होनें वाले लंगड़िया रोग एवं उससे बचाव

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पशुओं में होनें वाले लंगड़िया रोग को अलग-अलग क्षेत्रों में लगड़ी, सुजवा, जहरवाद आदि नामों से पुकारा जाता है। अंगरेजी में इसे ब्लैक क्वार्टर (BQ) कहते है। यह गाय और भैंसो की छूत की बीामारी है, जो अधिकतर वर्षा ऋतु में फैलती है। युवा पशुओं में यह रोग अधिकतर होता हैं इस रोग में मृत्यु दर 85 प्रतिशत है। स्वस्थ पशु में यह बीमारी रोगी पशु के आहर द्वारा या पशुओं के धाव द्वारा फैलती है। चॅूकि इस रोग के कीटाणु पशु के मृत शरीर से मिट्टी में मिल जाते है। जहां वे काफी समय तक जीवित बने रहते है।

पशुओं में होनें वाले लंगड़िया रोग एवं उससे बचाव

रोग के लक्षण

इस रोग के कीटाणु शरीर में प्रवेश हो जाने के 2 से 5 दिन में रोग के लक्षण पैदा करते हैं।

  1. पशु सुस्त हो जाता है। तथा खाना पीना बन्द कर देता है। और 40-420 सेंटीग्रेड तक तेज बुखार हो जाता है।
  2. पशु एकाएक लंगडाने लगता है। और उसके अगले या पिछले पुटठे तथा पीठ पर जहां माँस पेशियाँ अधिक होती है, सूजन हो जाती है।
  3. सूजन धीरे-धीरे बढती जाती है तथा दबाने से उसमें चिरचराहट की आवाज होती है। सूजन के उपर की खाल सूखकर सख्त तथा काली हो जाती है। सूजन को चिरने पर काले रंग का द्रव निकलता है।
  4. अन्त में बुखार हो जाता है और पशु की मृत्यु होती है।
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चिकित्सा

  1. सल्फामेजाथीन या टेरामाइसीन की दो गोली सुबह, दो दोपहर और दो गोली शाम को पांच दिन तक देना चाहिए।
  2. डाईक्रिस्टीसीन या टेरामाइसीन, सल्फामेजाथीन का इन्जेक्सन लगातार पांच दिन तक देने से लाभ होता है।
  3. पशु के सूजन वाले भाग, यदि आवश्यकता हो तो, शल्य क्रिया करवा कर टिंचर आयोडीन या मर्करी पर क्लोराइड दवा का घाव पर प्रयोग करना चाहिए।

बचाव

  1. ब्लैक क्वार्टर (BQ) की वैक्सीन का प्रयोग बरसात से पहले करना चाहिए। खुराक 5 मिली लीटर प्रति पशु खाल के नीचे देना चाहिए। इससे पशु लगभग एक वर्ष तक सुरक्षित रहता है।
  2. बीमारी फैलने की दशा में ब्लैक क्वाटर सीरम का भी प्रयोग 15 दिन के बचाव के लिए किया जा सकता है।
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सावधानी

  1. रोगी पशु को अन्य पशुओं से तुरन्त अलग कर देना चाहिए तथा रोगी की देखभाल करने वाले आदमी को स्वस्थ पशुओं के पास नहीं जाना चाहिए।
  2. मरे हुए पशु की खाल नहीं उतारनी चाहिए और शव को गहरे गड्ढे़ में चूना मिलाकर गाड़ देना चाहिए।
  3. पशुओं के आवागमन पर रोक लगाना चाहिए।
  4. रोग्रसित पशुओं के चारे, दाने तथा नांद आदि का प्रयोग स्वस्थ पशु के लिए न करें।
और देखें :  कीटोसिस दुधारू पशुओं का एक चपापचई रोग

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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