बकरी पालन- दो लाभी व्यवसाय

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आमतौर पर बकरी को गरीब की गाय भी कहा जाता है जो गाय की ही तरह एक छोटे परिवार के लिए दुग्धोत्पादन कर उसके सदस्यों की दुग्ध आपूर्ति को पूरा करने में सक्षम मानी जाती है। बकरी एक दोलाभी पालतू पशु है, जिसे दूध तथा माँस के लिये पाला जाता है। इसके अतिरिक्त बकरियों से ऊन, चमड़ा, ऊन और मौहेर प्राप्त भी होते हैं। विश्व में बकरियाँ पालतू व जंगली रूप में पाई जाती हैं और अनुमान है कि विश्वभर की पालतू बकरियाँ दक्षिण-पश्चिमी एशिया व पूर्वी यूरोप की जंगली बकरी की एक वंशज उपजाति हैं। मनुष्य ने वर्णात्मक प्रजनन से बकरियों को स्थान और प्रयोग के अनुसार अलग-अलग नस्लों में विकसित किया है और आज दुनिया में बकरियों की लगभग 300 नस्लें पाई जाती हैं। 2019 में 20वीं भारतीय पशुधन गणना के अनुसार भारत में 1488.8 लाख बकरियाँ हैं।

वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्र के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रशिक्षण प्राप्त कर आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं। भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विगत 2-3 दशकों में ऊँची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासशील देशों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृद्धि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व को दर्शाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी पालन विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं:

  • बकरी का विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखना। इसी गुण के कारण बकरियाँ देश के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं।
  • बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे उत्पादन की क्षमता रखना।
  • बकरी की ब्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार हो जाना।
  • बकरी माँस का उपयोग किया जाना।
और देखें :  बकरियों को होने वाले मुख्य रोग, उनकी पहचान एवं उपचार कैसे करें

संस्कृति में बकरी शाब्दिक अर्थ

भारतीय उपमहाद्वीप व मध्य एशिया की लोक-संस्कृति में बकरी को डरपोक माना जाता है। कई भाषाओं में बकरी को ‘बुज’ कहते हैं और कायर व्यक्ति को ‘बुजदिल’ (अर्थात बकरी जैसा डरपोक)। इसके विपरीत ‘निडर’ को ‘शेरदिल’ भी कहा जाता है।

बकरी पालन के लाभ

उत्पादन के हर साधन का उचित उपयोग किए बिना जीवन को खुशहाल नहीं बनाया जा सकता है। बकरियों से भी हमें बहुत सारी उपयोगी चीजें मिलती हैं जो खेती, स्वास्थ्य और उद्योग-धंधों के लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार बकरी-पालन भी बहुत सारे उपयोगी पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने वाला सस्ता एवं अनमोल साधन है। जैसा कि भारत में यह व्यवसाय सुनियोजित नहीं हो सका है, इसलिए इसके लाभ प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखाई देते। विश्व के अन्य कई प्रगतिशील राष्ट्रों विशेषतः स्विटजरलैंड में बकरी पालन एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में विकसित हो चुका है। बकरी पालन के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • बकरी के दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम और अन्य आवश्यक खनिज तत्व पाये जाते हैं जो कि शरीर के लिए बहुत अधिक लाभदायक होते हैं। बकरी का दूध अनेक रोगों को दूर करने के लिए लाभदायक है।
  • बकरी के माँस का आहार के रूप में सेवन किया जाता है। अतः बकरी का माँस आपूर्ति के लिए वध भी किया जाता है। खाद्य संकट के समय बकरी पालन का व्यवसाय विकसित कर माँसाहारी आबादी को सन्तुलित तथा पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • उद्योग धंधों के लिए भी बकरियों से चमड़ा और ऊन मिलता है। इस प्रकार ग्रामीण अपना अतिरिक्त समय का उपयोग कर कम पूँजी से अतिरिक्त आमदनी हासिल कर सकते हैं।
  • बकरी पालने में कोई भी सामाजिक धार्मिक बाधा नहीं है। इसलिए बकरी पालन करना आसान है। इसे हर धर्म के लोग पालते हैं।
  • भारत के ग्रामीण आंचल में व्यक्तियों के पास खेतीबाड़ी के अतिरिक्त समय बचा रहता है। इस बचे हुए समय का सदुपयोग करते हुए बकरी पालन का धंधा अपनाकर अतिरिक्त आजीविका अर्जित की जा सकती है।
  • बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे घर की महिलाएं व बच्चे भी आसानी से कर सकते हैं।
  • बकरी का स्वाभाव बहुत शांत होता है तथा ज्यादा भाग दौड़ नहीं करती है और इन्हें एक जगह पर पालतू होने के कारण आसानी से पाला जा सकता है। बकरी के रख रखाव में बहुत आसानी होती है। बकरियों को किसी भी परिस्थिति में बिना पर्याप्त साधन के आसानी से पाला जा सकता है और पालने में आने वाला खर्च भी बहुत कम होता है।
  • आमतौर पर बेकार समझी जाने वाली चीजों को खाकर भी यह दूध और माँस उत्पादित करती है। बकरी एक ऐसा पशु है जो खराब-से-खराब और कम-से-कम चारे पर अपना निर्वाह कर लेती है। बकरी हरी घास, कंटीली झाड़ियाँ तथा पेड़ पौधों की पत्तियों से अपना निर्वाह कर लेती है। यह चरना बहुत पसंद करती है। ये कंटीली झाड़ियाँ (बेर, करोंदा आदि), पेड़ों की पत्तियां (पीपल, नीम, आम, बरगद आदि ) आदि को खाना बहुत पसंद करती हैं।
  • बकरी बच्चा जनने के लिए जल्दी तैयार हो जाती है जिससें बहुत ही कम समय में बच्चों को प्राप्त किया जा सकता है। बकरी लगभग 10-12 माह में व्यस्क और बच्चा जनने योग्य हो जाती है और आमतौर पर प्रतिवर्ष एक से दो बच्चे देती है।
  • बकरी की औसतम उम्र लगभग 12 से 15 वर्ष होती है। इसलिए एक बार पाली गई या खरीदी गई बकरी कई वर्ष तक दुग्धोत्पादन और बच्चे पैदा करती है।
और देखें :  बकरियों में होने वाले थनैला रोग सम्बन्धी जानकारी एवं रोकथाम हेतु एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

हालांकि, ग्रामीण आँचल में सदियों से बकरी पालन किया जा रहा है लेकिन बकरी-पालक इस व्यवसाय के वैज्ञानिक पहलुओं पर विचार नहीं करते हैं। इस कारण धीरे-धीरे भारतीय बकरियों की नस्लों और उत्पादन क्षमता में कमी आयी है। लेकिन, नये-नये उद्योग-धंधों की स्थापना के फलस्वरूप बकरियों के दूध और माँस की माँग भी लगातार बढ़ती जा रही है। बकरी माँस की माँग आपूर्ति पर निर्भर करती है इसलिए बकरी पालन व्यवसाय का भविष्य भी उज्ज्वल मालूम पड़ता है। बस, आवश्यकता इस बात की है कि बकरी पालन का व्यवसाय वैज्ञानिक एवं आधुनिक ढंग से किया जाए जिन का परिपालन करते हुए बकरी पालन से अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।

और देखें :  भेड़ बकरियों में पी.पी.आर. रोग: लक्षण एवं रोकथाम

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