पशुओं में रहन सहन खानपान एवं रखरखाव में अचानक परिवर्तन या लापरवाही से उत्पन्न विकारों को प्राथमिक रोग या सामान्य रोगों की श्रेणी में रखा जाता है।
पशुओं के पाचन संबंधी प्रमुख विकार निम्न है:
अपच (Indigestion)
जुगाली करने वाले पशुओं में प्राय: भूख न लगना, कम खाना, अपच, अफारा, पेट दर्द आदि की शिकायत पशुपालक करते हैं। इन रोगों का निदान, रोग की तीव्रता रोग का इतिहास एवं रोमांथिका परीक्षण के आधार पर निम्न रूप में किया जाता है:
- सामान्य अपच
- अम्लीय अपच
- छारीय अपच
- विषाक्त अपच
- कब्ज
- अफारा
- रूमेन ओवरलोड
कारण
- कम प्रोटीन युक्त सूखा चारा।
- मौसम परिवर्तन, चारे दाने में अचानक बदलाव, पीने के पानी में कमी, फफूंद ग्रसित चारा।
- सड़ा गला भोजन अवशिष्ट।
- पाइका, मुख द्वारा एंटीबायोटिक सेवन 5 से 7 दिन।
लक्षण
रोमांथिका के वातावरण में पीएच परिवर्तन, रोमांथिका गति का कम होना, व भोजन का सड़ना आदि कारणों से भूख न लगना, दुग्ध उत्पादन में कमी, सुस्ती, गोबर कम व सख्त होना आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
निदान
- पशु का रोग इतिहास।
- रोमांथिका द्रव्य परीक्षण। कीटॉसिस, सुई रोग, अबोमेंजम का विस्थापन, एवं हाइपोर्कैल्सीमिया, रोग का इतिहास व क्लिनिकल परीक्षण द्वारा अंतर कर सकते हैं।
उपचार
- लार बढ़ाने वाले पाचक चूर्ण जैसे हिमालयन बतीसा, कैटोन, रुचामैक्स आदि 40 से 50 ग्राम दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ।
- रूमीनोटोरिक: टारटार इमेटिक 8 से 10 ग्राम, इसटिकनीन सल्फेट 10 से 15 मिलीग्राम सबक्यूटेनियस, थाईमिन हाइड्रोक्लोराइड विटामिन b1, 1 से 2 ग्राम इंट्रा मस्कुलर एवं फाइसोइसिटगमीन 10 से 15 मिलीग्राम सबकयूटेनियस
- मैग्नीशियम सल्फेट/ एप्सम साल्ट 250 से 500 ग्राम गुनगुने पानी में
- पीएच ठीक करने हेतु:
अम्लीय अपच: सोडा बाई कारब 40 से 50 ग्राम
छारीय अपच: 2 से 5% एसिटिक अम्ल विनेगर सिरका 500 से 1000 मिली लीटर
2. अफारा
रोमांथिका में गैस का अधिक पैदा होना और मुंह द्वारा या गोबर के रास्ते से बाहर न निकलने से पेट फूलना प्रायः गाय भैंस एवं बकरियों में देखा जाता है।
कारण
- बरसीम, लोबिया, ग्वार।
- अधिक दाना विशेषत: बारीक कूटा हुआ, सड़ा गला फर्मेंटेड भोजन, ग्रास नली में अवरोध।
- विषाक्तता (एचसीएन)।
लक्षण
हरे चारे की पत्ती में घुलनशील प्रोटीन व क्लोरोप्लास्ट कणों के रूमेन जीवाणु द्वारा किणवन से गैसे( मिथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड ,अमोनिया, कार्बन डाइऑक्साइड) अधिक पैदा होती हैं और पेट फूल जाता है। पशु पेट दर्द से बेचैन होता है। और डायफराम पर दबाव के कारण स्वासावरोध होता है। समय पर चिकित्सा ना होने से मृत्यु हो जाती है।
निदान
पशु रोग इतिहास, बॉई कोख का परीक्षण करके निदान आसान हो जाता है।
उपचार
- टोकार कैनुला द्वारा गैस बाहर निकालना
- मुंह में ऑडी लकड़ी फंसा कर सींगों से बांधे।
- पशु को जबरन तेजी से घुमाएं।
- स्टमक ट्यूब डालकर 150 से 200 ग्राम सोडा बाई कारब 1 लीटर पानी में पेट में पहुंचाएं।
- एंटीफोमिंग औषधियां जैसे ब्लाटोसील, टाइरेल, तेल में डाई ऑक्टाइल सल्फोसक्सीनेट 7 से 8 ग्राम मिलाकर पोलेकसोलीन या इथोकसीलेट जैसे सर्फेक्टेंट 20 से 25 ग्राम पिलाएं।
- तारपीन तेल 30 से 60 मिली, फॉर्मलीन 10 से 15 मिली, सोंठ 10 से 20 ग्राम, हींग 5 से 10 ग्राम, सरसों अथवा तिल का तेल 250 से 500ml उपरोक्त सब मिलाकर पिलाएं।
3. अम्लीय अपच (रूमेन ओवरलोड, ग्रेन इंगोरजमेंट, एसिडोसिस)
- कभी-कभी अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन जैसे गेहूं , चावल, आलू खा लेने से रोमांथिका में लैक्टिक एसिड की अधिकता हो जाती है और पेट फूल जाता है।
- रोग का इतिहास रोमांथिका द्रव के पीएच की जांच से निदान संभव हो जाता है।
उपचार
- 5% सोडा बाई कारब, 1 से 2 लीटर इंट्रावेनस
- मैग्निशियम हाइड्रोक्साइड 300 से 500 ग्राम, 3 से 5 लीटर पानी में मुंह द्वारा
- डेक्सामेथासोन 10 से 15 मिलीग्राम इंट्रावेनस
- 5% डेक्सट्रोज सलाइन या संतुलित इलेक्ट्रोलाइट घोल, इंट्रावेनस
- रूमैनोटोमी तथा पेट को खाली करना।
4. एबोमेजल विस्थापन
प्रायः गाय व भैसों में, ब्याने के बाद अपच, पेट दर्द की शिकायत हो जाती है जो इन के चौथे पेट (एबोमेजम) के अपने स्थान से हट जाने के कारण होता है।
कारण
- गर्भावस्था के अंतिम काल में गर्भाशय रूमेन के नीचे चला जाता है। रूमेन के ऊपर उठने से एबोमेजम प्राय: बाई ओर खिसक जाता है। ब्याने पर रूमेन नीचे आता है और एबोमेजम विस्थापित स्थान पर दब जाता है जिससे भोजन के आगे खिसकने की प्रक्रिया बंद या कम हो जाती है और एबोमेजम फूल जाता है।
- रोग प्राय: उन पशुओं में होता है जिन्हें गर्भावस्था में अधिक दाना खिलाया जाता है जिससे अबोमेंजम की गतिशीलता मंद हो जाती है।
लक्षण
यह रोग ब्याने के 6 दिन बाद तक के बीच देखने को मिलता है। भूख न लगना, दुग्ध उत्पादन में कमी, रूमेन देखने में छोटा तथा पेट सलैब के आकार का, रूमेन गति कम होना, बॉई कोख से कोहनी तक की दिशा के नीचे स्टैथोस्कोप से छलछलाहट की ध्वनि विशेषकर 9 से 12 इंटरकोस्टल क्षेत्र में तथा , गुदा परीक्षण पर रूमेन का ऊपरी हिस्सा खाली मालूम पड़ता है। शरीर का तापमान नाड़ी गति एवं हृदय गति प्राय: सामान्य रहती है।
निदान
ब्याने के प्रथम सप्ताह में रोग का होना, बॉई ओर पसलियों के मध्य भाग में स्टैथोस्कोप द्वारा छलछलाहट की ध्वनि तथा रक्त व मूत्र में कीटोन अम्लों की अधिकता निदान में सहायक है। कैल्शियम का स्तर रक्त में कम हो जाता है किंतु मिल्क फीवर या कीटोसिस के उपचार द्वारा स्थाई आराम नहीं मिलता।
उपचार
- पशु को 2 दिन तक चारा पानी न देकर, पीठ के बल लिटा कर दॉयी ओर बार-बार पलटना।
- रोगी पशु को उबड़ खाबड़ रास्ते पर तेजी से चलाएं।
- ग्लूकोज इंट्रावेनस तथा प्रोपिलीन ग्लाइकोल मुंह द्वारा कीटॉसिस दूर करने के लिए देते हैं।
- शल्यक्रिया(एबोमेजोपेकसी)
5. दस्त लगना अर्थात डायरिया
पशुओं में प्राय: पतला गोबर आना तथा गोबर में अनपचा चारा निकलने की शिकायत देखी जाती है।
कारण
- छोटे बच्चों में अधिक दुग्ध पान व अपच
- अधिक गर्मी में खुले में रहना
- डर एवं उत्तेजना
- कॉपर एवं कोबाल्ट लवणों की कमी
- आंत्रशोथ (जीवाणु विषाणु या परजीवी संक्रमण)
- एनटीरोलिथ
- दीर्घकालिक रोग जैसे जे.डी.
लक्षण
पतले दस्त, बार-बार गोबर करना, गोबर में झाग, अॉव आना, शरीर कमजोर होना, शरीर में पानी की कमी, उत्पादन क्षमता में कमी।
निदान
रोग के इतिहास तथा गोबर की जांच द्वारा
उपचार
- डेक्सट्रोज सेलाइन, सेलाइन या, रिंजर लेक्टेट इंट्रावेनस
- अट्रोपिन सल्फेट 0.2 मिलीग्राम प्रति किलो खाल के नीचे
- गोबर की जांच के अनुसार जीवाणु रोधी दवाएं अथवा अंत: परजीवी नाशक औषधियां
- भोजन व्यवस्था ठीक करना – कॉपर , विटामिन “ए” देना चाहिए।
6. कोलिक रोग
घोड़ों में प्राय: अचानक पेट दर्द की शिकायत देखी जाती है जिसका कारण प्राय: भोजन नली में स्थित होता है परंतु कभी-कभी यकृत, गुर्दे या जननांगों मैं तकलीफ के कारण भी कोलिक हो जाता है।
कारण एवं प्रकार
- स्पास्मोडिक कोलिक: यह ऐसे पशुओं में होता है जो डरपोक स्वभाव के होते हैं। अचानक उत्पन्न भय या उत्तेजना से होता है। जैसे आंधी तूफान, मेले में प्रदर्शन, गर्मी में काम के बाद अचानक ठंडा पानी पीने या आंतों में परजीवी का प्रथम संक्रमण।
- इंपैक्टिव कोलिक या सेंड कोलिक: अधिक सूखा चारा या रेतीले चारागाह में चरना, एंट्रोलिथ, या फाइबर बाल अॉतो में भी इसको पैदा करने में सक्षम है।
- फलेचुलेंट कोलिक: आंतों में कीड़े या हरे चारे की अधिकता से आंतों में गैस एकत्र होकर दर्द उत्पन्न करती है। आंतों में किसी तरह की रुकावट से यह और अधिक होता है।
- आबसटरकटिव कोलिक: आंतों का हर्निया, एक भाग का दूसरे क्रमागत लूप में फंस जाना, आंतों के रक्त प्रवाह में रुकावट से उत्पन्न इलियम भाग की पैरालिसिस इत्यादि।
निदान
- लक्षणों द्वारा: पेट दर्द जल्दी जल्दी उठना बैठना शरीर तान कर खड़े होना बार-बार कोख की तरफ देखना, गोबर पेशाब बंद होना आदि मुख्य लक्षण है। दाएं कोख के नीचे आंतों से गैस की आवाज सुनना।
- गुदा परीक्षण:- मलाशय एवं आंतों की जांच द्वारा।
उपचार
- दर्द निवारक औषधियॉ: जैसे मेगलुडाइन 1एमएल प्रति किलोग्राम भार पर इंट्रामस्कुलर अथवा इंट्रावेनस, जाइलेजीन 0.5 मिलीग्राम प्रति किलो इंट्रावेनस
- दस्तावर औषधियां: लिक्विड पैराफिन 3 से 4 लीटर डाई ऑक्टाइल सल्फोसक्सीनेट(Doss) 7 से 30 ग्राम, एलोज( एलुवा /मुसब्बर) 15 से 20 ग्राम मुंह द्वारा।
- डेक्सट्रोज सलाइन, रिंगर लेक्टेट 5 से 10 मिली प्रति किलोग्राम इंट्रावेनस
- आंत्र गति उत्तेजक: शीशाप्राइड 0.1 मिलीग्राम प्रति किलो इंट्रावेनस या इंटरमस्कुलर, पेरीनारम 10 से 15ml इंट्रा मस्कुलर
- परजीवी नाशक औषधियां: फेनबेंडाजोल 10-15 मिलीग्राम प्रति किलो ग्राम भार
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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