पशुओं में चर्म रोग: कारण एवं निवारण

4.9
(58)

पशुओं में त्वचा की ऊपरी डरमिस, व एपिडर्मिस की परतों में सूजन का आ जाना चर्म रोग अर्थात डर्मेटाइटिस कहलाता है। यह किसी संक्रमण के कारण भी हो सकता है और उसके बिना भी हो सकता है।

कारण

  1. जीवाणु जनित चर्म रोग:  स्टेटफाइलों कोकस एवं स्ट्रैप्टॉकोक्कस जीवाणु की विभिन्न प्रजातियां।
  2. विषाणु जनित चर्म रोग/डर्मेटाइटिस: ब्लू टंग, गाय की चेचक, भेड़ की चेचक एवं अन्य।
  3. फंगल / कवक जनित डर्मेटाइटिस: रिंगवर्म
  4. पैरासिटिक डर्मेटाइटिस: मेंज, क्यूटेनियसफ़ाइलेरियोसिस,
  5. भौतिक कारण: धूप द्वारा जलने से, ज्यादा ठंडा और गर्म घाव।
  6. रासायनिक कारण: इरिटेंट केमिकलस अर्थात उत्तेजक रसायन।
  7. एलर्जीक डर्मेटाइटिस: पित्ती उछलना, मुख्यता घोड़ों में।

लक्षण

रोग के कारणों के आधार पर लक्षण भी अलग-अलग तरह के होते हैं। चमड़ी पर जगह-जगह लाल चकत्ते, खुजली, दर्द व सूजन। जगह-जगह छोटे-छोटे फफोले, जिनमें से पानी निकलना।

निदान या पहचान

  • पशुओं को दिए जाने वाले आहार के बारे में व वातावरण के आधार पर।
  • त्वचा की स्क्रेपिंग अथवा स्वाब की जांच परजीवी, जीवाणु, कवक आदि के लिए।
  • रक्त परीक्षण – डीएलसी, टीएलसी, विषाणु , जीवाणु या कवक जनित संक्रमण।

उपचार

  • डर्मेटाइटिस का संपूर्ण इलाज करना एक मुश्किल काम होता है इसके लिए सही निदान किया जाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए स्किन स्क्रेपिंग, स्वाब, व रक्त की जांच अतिआवश्यक है।
  • जीवाणु, विषाणु या कवक जनित डर्मेटाइटिस के लक्षण काफी मिलते जुलते होते हैं। इसलिए बिना जांच किए लंबे समय तक भी उपचार करने से विशेष लाभ नहीं होता है।
  • रोग के कारणों को चमड़ी के आस पास से समाप्त करना बहुत आवश्यक है।

उपचार

  1. जीवाणु जनित डर्मेटाइटिस: इसमें त्वचा पर प्रतिजैविक घोल या प्रतिजैविक मलहम लगाएं। पोवीडीन घोल भी उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही नस में या मांस में आईवी या आई एम विधि से प्रतिजैविक औषधि लगाएं।
  2. कवक जनित डर्मेटाइटिस: इसमें कवक/ दाद रोधी मल्हम त्वचा पर लगाएं। कवक जनित संक्रमण के उपचार के लिए कम से कम एक माह तक नियमित उपचार करें अन्यथा लक्षण थोड़े दिनों के पश्चात फिर से प्रकट हो सकते हैं।
और देखें :  पशुओं में 'सिस्टायटिस रोग'

अकोता/ अपरस

पशु के शरीर के अंदर तथा बाहर वातावरण में ऐसे कई पदार्थ होते हैं जिसके संपर्क में आने से त्वचा में रिएक्शन होते हैं जिसे एक्जिमा/ एलर्जी कहते हैं । एलर्जी के कारण सूजन होती है। इसके अलावा त्वचा में पाए जाने वाले कई प्रकार के, बाहरी परजीविओं के कारण भी एक्जिमा होता है।

लक्षण

  1. जिस तरह एक्जिमा मनुष्य में पाया जाता है वैसा वास्तविक एक्जिमा पशुओं में नहीं मिलता है। पशुओं में हल्के लक्षण प्रकट होते हैं ।
  2. खुजली, बाल झड़ना, त्वचा की ऊपरी परत का उतरना।
  3. सूजन के कारण त्वचा का मोटा हो जाना।
  4. लक्षण त्वचा पर या कुछ जगह या फिर सभी जगह पर पाए जा सकते हैं।
  5. अधिक समय हो जाने पर त्वचा सूज कर मोटी एवं सख्त हो जाती है।

उपचार

  1. एलर्जी के कारणों को दूर करें।
  2. पशुओं को जहां बांधा जाता है वहां की मिट्टी व बिछावन को बदल दें।
  3. पशु के पेट के अंदर व बाहरी परजीवीयों को समाप्त करने के लिए उपयुक्त औषधि का प्रयोग करें।
  4. एस्ट्रिजेंट मल्हम, जब त्वचा सूखी हुई सी हो तो यह मल्हम अधिक लाभकारी होते हैं।
  5. सैलिसिलिक एसिड एवं टैनिक एसिड को बराबर मात्रा में 600 मिलीलीटर अल्कोहल में मिलाएं तथा यह लोशन त्वचा पर लगाएं।
  6. आईवरमेकटिन 100 से 150 मिलीग्राम की टेबलेट खिलाएं  अथवा आईवरमेकटिन  इंजेक्शन  1 मिलीलीटर प्रति  50 किलोग्राम  शरीर भार के अनुसार खाल के नीचे लगाएं एवं १० दिनों के अंतराल पर कम से कम 2 बार  पुनः लगाएं। इससे आशातीत लाभ प्राप्त होगा।
  7. द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए यदि आवश्यक हो तो प्रतिजैविक औषधि का इंजेक्शन भी लगाएं।
  8. कॉर्टिकोस्टेरॉइड प्रारंभ में जितनी मात्रा में दें उसमें धीरे-धीरे कमी करते जाएं।
  9. सहायक उपचार के तौर पर लिवर एक्सट्रैक्ट विटामिन बी कांप्लेक्स एवं विटामिन ए देना चाहिए।
और देखें :  पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

बचाव

  1. पशुओं के आवास गृह को साफ सुथरा रखें एवं साथ ही साथ पशुओं को भी स्वच्छ रखें।
  2. रोग से प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखें ताकि अन्य स्वस्थ  पशुओं में होने वाले संक्रमण को रोका जा सके।
  3. बड़े पशुओं को जिस स्थान पर बांधा जाता है वहां की मिट्टी बदल दें क्योंकि चर्म रोग पैदा करने वाले जीवाणु एवं कवक आदि लंबे समय तक मिट्टी में पड़े रहते हैं तथा पशु के मिट्टी में प्रतिदिन बैठने से पशु वापस रोग की चपेट में आ जाता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  गाय भैंसो में थनैला रोग बन रहा बड़ा संकट: जानें कैसे करे उपचार

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.9 ⭐ (58 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*