गर्भावस्था के दौरान भैंसों की देखभाल और प्रबंधन

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पशुपालन व्यवसाय में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए भैंसों का नियमित अंतराल पर ब्याना आवश्यक है। पशुओं के स्वास्थ्य तथा संतुलित आहार का जन्म से ही समुचित ध्यान रखने से वह कम उम्र में ही गर्भाधारण करवाने पर जल्दी बच्चा देने योग्य हो जाती है। अतः भैंस की आहार व्यवस्था तथा रखरखाव उत्तम होना चाहिए। पशु अपने सूखे समय के दौरान दूध उत्पादन के समय पोषक तत्वों तथा गर्भ में पलने वाले बच्चे के पोषण की जरूरते पूरी करते हैं। ब्याने से पहले मिले अतिरिक्त पोषक तत्व को पशु के शरीर में जमा हो जाते है जिनका उपयोग ब्याने के पश्चात दूध उत्पादन में होता है। भैंस का गर्भकाल लगभग 310 दिन का होता है। गाभिन पशु के गर्भ का विकास 6-7 माह के दौरान तेजी से होता है तथा बच्चे के शरीर के बके साथ भैंस के शरीर में विशेष परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देते है। मद चक्र का रूक जाना, पेट का आकार बढ़ना, शरीर का भार बढ़ना आदि गर्भावस्था के लक्षण है।

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गर्भावस्था में भैंसों के देखभाल के लिए निम्नलिखित बातों पर विषेष ध्यान देना चाहिए

  • 6-7 माह के गाभिन पशु को चरने के लिए ज्यादा दूर तक नहीं ले जाना चाहिए।
  • भैसों को दौड़ाने से बचाना चाहिए तथा ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर नहीं घुमाना चाहिए।
  • भैंस को फिसलने वाली जगह से बचाना चाहिए तथा फर्श पर घास-फूस आदि बिछाकर रखना चाहिए।
  • गाभिन पशुओं को विशेषकर गर्भकाल के अंतिम 3 माह में जोहड़ में नहीं ले जाना चाहिए।
  • गाभिन भैंस को अन्य पशुओं से लड़ने से बचाना चाहिए।
  • गाभिन भैंसों को उचित व्यायाम करवाना चाहिए।
  • यदि संभव हो तो गाभिन भैंसों को अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए ताकि उनकी देखभाल अच्छी प्रकार से हो सके।
  • संक्रामक रोगों से बचाने के लिए बीमार पशु को गाभिन भैसों से दूर रखना चाहिए।
  • गाभिन पशु के आवास से गोबर, मूत्र आदि की अच्छे से सफाई कर उन्हें बाड़े से दूर डालना चाहिए।
  • पशु के उठने बैठने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। पशु जहां बंधा हो, उसके पीछे के हिस्से का फर्श कुछ ऊँचा होना चाहिए।
  • पीने के लिए स्वच्छ व ताजा पानी हर समय उपलब्ध होना चाहिए।
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  • गर्भकाल के अंतिम 3 माह में अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जो ब्याने के बाद दूध उत्पादन में सहायक होते हैं।
  • गर्भकाल में ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता ब्यांत तथा गर्भकाल की अवस्था पर निर्भर करती है। गर्भकाल के आरम्भ में अतिरिक्त ऊर्जा और प्रोटीन की जरूरत नहीं होती परन्तु मध्यकाल में अतिरिक्त ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता होती है जो की अंतिम 3 माह में बढ़कर और अधिक हो जाती ळें
  • गाभिन भैंस को आहार में एक किलोग्राम दाने के साथ एक प्रतिषत अतिरिक्त नमक वखनिज मिश्रण देना चाहिए।
  • गाभिन पशु को पोषक आहार की आवश्यकता होती है जिससे ब्याने के समय दुग्ध-ज्वर और किटोसिस जैसे रोग न हो तथा दुग्ध उत्पादन पर भी प्रभाव न पड़े।
  • गर्मी के मौसम में भैंस को तेज धूप से बचाना चाहिए तथा 3-4 बार नहलाना चाहिए।
  • दूध देने वाली भैंसों का ब्याने से 2 महीने पहले दूध निकालना बंद कर देना चाहिए अन्यथा बच्चे कमजोर पैदा होगें और अगले ब्यांत में पशु दूध कम देगा। इसके अलावा भैसों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है।
  • गाभिन भैंस को हरा चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराना चाहिए।
  • गाभिन भैंस की आहार व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए की उसे कब्ज की षिकायत नहीं रहनी चाहिए। कब्ज होने पर अलसी के तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • जिन पशुओं का गर्भ गिर गया हो, गाभिन भैंसों की उनसे उचित दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
  • ब्याने के 4-5 दिन पूर्व गाभिन पशु को अलग स्थान पर बांधना चाहिए। ध्यान रहे की स्थान स्वच्छ, हवादार व रोषनी युक्त होना चाहिए।
  • पशु के बैठने के लिए फर्श पर सुखा चारा डालकर व्यवस्था बनानी चाहिए। ब्याने से 1-2 दिन पहले से पशु पर लगातार नज़र रखनी चाहिए।
  • किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें। गर्भावस्था में भैंस की उचित देखभाल का प्रभाव बच्चे व भैंस के स्वास्थ्य तथा उसके दूध उत्पादन पर भी पड़ता है। अतः गाभिन भैंस के लिए आहार व अन्य व्यवस्थाएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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