- नए खरीदे गए पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोटू एवं लंगडिया बुखार का टीका लगवाए।
- यकृत क्रम के हेतु कृमि नाशक औषधि पान कराएं।
- गर्भित पशुओं की समुचित देखभाल करें।
- बच्चा दिए हुए पशुओं को अजवाइन और सोंठ खिलाएं।
- नवजात शिशु के पैदा होने के आधे घंटे के अंदर खीस पिलाएं एवं थोड़े दूध का दोहन कर ले जिससे की जेर आसानी से गिर सके। एवं नवजात शिशु को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त हो सके। जो कि नवजात शिशु के लिए नितांत आवश्यक है।
- जेर ना निकलने पर इन्वोलोन दवा 200ml पिलाएं।
- भेड़ बकरियों को अंतः कृमि नाशक औषधि पान कराएं।
- मुंह पका खुर पका रोग से पीड़ित पशुओं को अलग स्थान पर बांधे ताकि स्वस्थ पशुओं को संक्रमण ना हो। इस बीमारी से ग्रस्त गाय का दूध बछड़ों को न पीने दे क्योंकि उनमें इस रोग से, हृदयाघात जैसी अवस्था से मृत्यु हो सकती है।
- रोग ग्रस्त पशुओं के मुंह खुर एवं थनों के छालो या घाव को पोटेशियम परमैंगनेट के 1% घोल से धोएं।
- पशुशाला को सूखा रखें एवं मक्खी रहित करने के लिए फिनायल के घोल का छिड़काव करें।
- पशुशाला में एवं दीवारों आदि सभी स्थानों पर 1% मेलाथियान के घोल से सफाई करें।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
Bahut hi badiya jankari mela.