डेयरी पशुओ में बांझपन की समस्या एवं उसका समाधान

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हमारे देश की अर्थव्यवस्था में पशु पालन व्यवस्था का एक अलग ही महत्व है। लेकिन पशुओं में बांझपन की समस्या पशुपालन व्यवस्था में बडे़ नुकसान के लिए जिम्मेदार है। बांझ पशुओ को पालना मतलब आर्थिक बोझ को बढ़ाना ही है। ज्यादातर देशो में ऐसे पशुओ को बूचड़खानों में भेज दिया जाता हे। पशुओ में बच्चा ना पैदा होना या कम बच्चे पैदा होना ही बांझपन कहलाता है। सामान्यतः प्रजनन अंगो में बाधा या रूकावट होने से बांझपन की स्थिति पैदा हो जाती है। बांझपन के कारण दो बच्चो के बीच का अंतराल भी बढ़ जाता है। जिससे पशुपालको की आर्थिक क्षति होती है। सामान्यतः दो बच्चो के बीच का अन्तराल 12 से 14 माह होना चाहिए जिससे ज्यादा दूध का उत्पादन एवम् बछड़ो एवं बछियो की प्राप्ति हो सके।

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डेयरी पशुओ में बांझपन की समस्या एवं उसका समाधान

बांझपन के प्रमुख कारण

  1. कुपोषण
  2. दूषित वातावरण एवं कुप्रबन्धन
  3. अनुवांशिक कारण
  4. हार्मोनल असंतुलन
  5. शारीरिक अनियमिता
  6. जननेद्रिय रोग
  7. जननेद्रिय नाली की चोट

कुपोषण

कुपोषण से जानवर के वजन में कमी आती है जिससे बांझपन की समस्या उत्पन्न होती है। पशुओं में प्रजनन अंगो के विकास एवं उनके कार्यो हेतु पोष्टिक अनाज की आवश्कता होती है। संतुलित आहार नही मिलने के कारण हमारे देश में 20-40 प्रतिशत पशु प्रतिवर्ष अस्थाई रूप से बांझपन से ग्रसित हो जाते है। कुपोषण ही बांझपन की समस्या का मुख्य कारण है। इस समस्या को पोष्टिक आहार से ही दूर कर सकते है। आहार में पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थ की कमी से पशु बांझ हो जाते है। पशु आहार में विटामिन ‘‘ई’’ एवं विटामिन ‘‘ए’’ की कमी होने पर मादा की अण्डाशय पूर्ण रूप से विकसित नही हो पाती है। जिससे वह पशु मद चक्र मे नही आती है। कैल्शिम एवं फास्फोरम की कमी भी बांझपन की समस्या को बढ़ा देती है।

वातावरण

दूषित वातावरण में रखने से पशुओ में बीमारिया होने के सम्भावना बढ़ जाती है। तथा पशु प्रजनन पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि पशु को गंदे, अंधेरे, बिना रोशनदान की पशुशाला में रखा जाता है तो प्रजनन शक्ति प्रभावित होती है। और स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। जिससे अनेक रोगो से ग्रसित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

अनुवांशिक कारण

पशुओ में बांझपन आनुवंशिक समस्या भी होती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी पशुओ में आती रहती है। कुछ ऐसे घातक कारण होते है। जो अनुवांशिक होते है एवं जो भ्रूण को गर्भाशय में ही मार डालते हैं। जिससे पशु बांझ हो जाता है। इस तरह के कारक प्रायः एक ही नर से किसी क्षेत्र में बार-बार सभी पशुओ या ज्यादातर पशुओ को निषेचित कराने से होता है। यह समस्या समप्रजनन कराने से ज्यादा होती है। अतः मादा पशुओ को प्रजनन उन्नत किस्म के अलग-अलग साँढो से कराना चाहिए। इसके लिए कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया सबसे उपयोगी होती है।

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हार्मोनल असंतुलन

शरीर मे नलिका विहीन ग्रंथियों से जो स्त्राव निकलता है। एवं सीधा रक्त में जाता है। उसे हार्मोंंस कहते है। एन्टीरियर पिट्यूटरी द्वारा फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन्स लुटेनाइजिंग हॉरमोन तथा प्रोलेक्टिन हार्मोन का स्त्राव होता है। इन हार्मोन्स के असंतुलन मात्रा में स्त्रावित होने पर जनन इंद्रियों में विकार उत्पन्न हो जाते है। जिससे पशु बांझ हो जाते है। एवं अनुत्पादक हो जाता है। हार्मोन्स पशुओं में ऋतु चक्र की भी व्यवस्थित रखते है। हार्मोन असंतुलन से मादा पशुओं में कई तरह के बांझपन रोग होते है। जैसे निम्फोमेनिया ओवेरियन सिस्ट, परसिस्टेंट कार्पस लूटियम इत्यादि।

शारीरिक अनियमितता

ऐसे स्थिति सामान्यतः शरीर की रचना होने के समय उत्पन्न होती है। जिसका निदान शल्य चिकित्सा से किया जा सकता है। या तो इस कारण का निराकरण न होने से पशु को स्थाई रूप से अलग कर देना चाहिए।

श्वेत ओसर रोग (White Heifer Diseases) इस रोग में बछियों के जननेन्द्रियों के विकास में समस्या आ जाती है। एवं स्थाई हार्मोन बन जाते है। जिसे शल्य चिकित्सा के द्वारा दूर किया जा सकता है। निकट के पशु चिकित्सालय से इसका इलाज कराया जा सकता है।

  • डिम्बकोषों का बहुत छोटा हो जाना
  • गर्भाशय का विकसित ना होना
  • मात्र एक हॉर्न का गर्भाशय में उपस्थित होना
  • अविकसित योनि

इसके अलावा जब नर-मादा पशु एक साथ ही जन्म लेते है। तब हार्मोन असंतुलन के कारण गर्भाशय में ही बछिया के जनन अंगों को भली प्रकार से विकास नहीं हो पाता है। जिससे उन दोनो में बछिया बड़ी होने पर बांझ निकलती है। इस प्रकार की बछिया को फ्री मार्टिन कहते है। इस प्रकार की बछिया को डेयरी फार्म में हटा देना ही उचित है।

जननेन्द्रिय रोग

मादा पशुओ में भैजानाईटिस, भैजानाईटिस विब्रियोसिस, क्षय रोग, बू्रसेलोसिस, ट्राइकोमोनियोसिस आदि बीमारियॉ बांझपन के कारण बनती है। इन बीमारियों के वजह से मादा जनन इंद्रियों में विकार उत्पन्न हो जाते है। जिसके कारण से पशु गर्भित नहीं होती है। या पूर्ण गर्भधारण की शक्ति का दमन हो जाता है। जिससे उनका गर्भपात हो जाता है। कभी-कभी मादा पशु की योनि, गर्भाशय, डिंब प्रणाली तथा गर्भाशय ग्रीवा के अन्दर झिल्ली पड़ जाती है। जिस रूकावट से मादा पशु के आकार में गर्भधारण करने में असमर्थ रहती है। मादा पशुओं में वैजानाइटिस, साल्पीनजाइटिस आदि अनेक ऐसे रोग है। जिसके कारण गर्भाशय में निषेचन नहीं होता है। या गाभिन होने के बाद भी गर्भपात होने की संभावना रहती है।

जननेन्द्रिय में चोट

मादा पशुओं में संभोग के समय या ब्याने के समय जननेन्द्रियों में चोट लगने से अस्थाई बांझपन उत्पन्न हो जाता है। साथ-साथ ही वल्वो-वेजाइनाइटिस मेट्राइटिस एवं गर्भाशय का उलट जाना इत्यादि होने की संभावना रहती है। इस तरह के चोटो से बचने के लिए गायो का प्रजनन कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली से ही प्रशिक्षित कार्मियों अथवा पशु चिकित्सक से ही करनी चाहिए। प्राकृतिक संभोग क्रिया में सांडों से चोट एवं रोगों के फैलने की आशंका बनी रहती है।

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बांझपन के समाधान

  • संभोग प्रक्रिया कायोन्तेजना अवधि के दौरान की जानी चाहिए।
  • वे पशु जो ऋतु चक्र में नहीं आते या कायोत्तेजना प्रदर्शित नहीं करते उनको अलग कर जांच करवाकर इलाज करवाना चाहिए।
  • प्रत्येक 6 महीनों में एक बार पशुओं का डीवार्मिंग करना चाहिए जिससे कीड़ों के प्रभाव से उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रखा जा सके।
  • पशुओं को संतुलित आहार दिया जाना चाहिए जिससे ऊर्जा के साथ-साथ प्रोटीन खनिज विटामिन की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति हो यह पशुओं में गर्भाधान की दर में वृद्धि करने के साथ-साथ स्वास्थ्य गर्भावस्था व प्रसव सुनिश्चित करता है। आदि करके समस्या का निवारण करना चाहिए ऐसे पशु जिसमें बांझपन की समस्या आनुवांशिक होने के साथ-साथ स्थाई है। तथा जिसका उपचार असंभव है। उनको अन्य जानवरों से अलग कर देना चाहिए। व उनको प्रजनन संबंधित कार्यो में उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • वीर्य का सही प्रबंधन, सही समय पर गर्भाधान सी कृत्रिम गर्भाधान तकनीक और वीर्य को जनन अंग में सही स्थान पर डालना, कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता पर निर्भर करता है। इसलिए कृत्रिम गर्भाधान, अनुभवी कार्यकर्ता से ही नहीं करवाना चाहिए।
  • प्रजनन अंगों के रोग तथा संक्रामक बीमरियों के लिए पशु चिकित्सक से सही सलाह लेना चाहिए और पशु का सही उपचार करवाना चाहिए।
  • गर्भावस्था के समय हरे चारे की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराने से नवजात बछड़ों को भी भविष्य में अंधेपन से बचाया जा सकता है।
  • बछड़े में अनुवांशिक बांझपन दोष व अन्य प्रकार के संक्रमण को बचाने के लिए सामान्य रूप से सेवा लेते समय या ब्रीडिंग कराते समय सांड के प्रजनन संबंधी महत्वपूर्ण इतिहास की जानकारी लेना चाहिए।
  • गर्भावस्था के समय विशेषकर अंतिम चरण के दौरान पशुओं को अनुचित तनाव व परिवहन से बचाना चाहिए।
  • गर्भवती पशुओं के खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा उनका अन्य पशुओं या झुण्ड से अलग रखना चाहिए। जिसके कोई चोट या हानि न पहुंचे।
  • गर्भाधान के 60-90 दिन बाद योग्य पशुचिकित्सक में गर्भावस्था की पुष्टि कराई जाना चाहिए। जिससे गर्भवती पशु को झुण्ड से अलग कर विशेष ध्यान देना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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