पशुओं में लार ग्रंथियों की सूजन (Parotitis)

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पशुओं में पैरोटिड, मैंडीबुलर और सब-लिंगुवल एक एक जोड़ी लार ग्रंथियां होती हैं परंतु अधिकांशत: इनमें पैरोटिड ही अकसर प्रभावित होती है इसीलिए इसे पैरोटाइटिस (Parotitis) कहा जाता है जो अंत में अक्सर फोड़े के रूप में परिवर्तित हो जाती है।

कारण

  • किसी अन्य पशुओं द्वारा काटने के घाव अथवा बाहरी चोट के कारण।
  • लार ग्रंथि में कोई पथरी बन जाना।
  • विटामिन ए की कमी एक प्रमुख कारण है।
  • रक्त के द्वारा हुए किसी संक्रमण का पैरोटिड ग्रंथि में जम जाना।
और देखें :  गौ पशुओं में लंपी स्किन डिजीज: लक्षण एवं रोकथाम

लक्षण

  • चारा कम खाना एवं तेज बुखार।
  • अधिकांशत: एक ओर की  पैरोटिड ग्रंथि ही प्रभावित होती है परंतु दोनों भी हो सकती हैं।
  • गर्म दर्दनाक सूजन जोकि कान के आधार व जबड़े तक फैल जाती है और कान का आधार भी सूज कर मोटा हो जाता है।
  • पशु सिर व गर्दन सीधी रखता है एवं चारा चबाने में दर्द होता है।
  • संक्रमण में फोड़े बन जाते हैं जिसे खोलने पर सूजन कम हो जाती है।
  • इस दौरान पैरोटिड  ग्रंथि की कार्यप्रणाली तो सामान्य रहती है परंतु कभी-कभी फिस्टुला बन जाता है और लार गर्दन वाले भाग में इकट्ठी हो जाती है।

निदान

यदि यह सूजन सिर्फ पैरोटिड ग्रंथि  तक ही सीमित रहती है तो एक ही नजर में देख कर निदान किया जा सकता है परंतु जब सूजन ग्रंथि के आसपास काफी जगह में फैली होती है तो अन्य रोगों के साथ भ्रम होकर सही निदान नहीं हो पाता है। पैरोटाइटिस का फैरिंजाइटिस, एक्टीनोमायकॉसिस, पैरोटिड ग्लैंड टी.बी.आदि से भरम हो सकता है। फोड़े को खोलकर उसके मवाद की जांच करें। पैरोटाइटिस की वजह से पशु की मृत्यु नहीं होती है।

उपचार

  1. प्रारंभिक सूजन में ठंडे पानी से सिकाई करते हैं। परंतु अधिक समय की सूजन में गरम पानी से सिकाई करते हैं।
  2. रोग की शुरुआत में, इंजेक्शन टेटरासाइक्लिन इंट्रा मस्कुलर 5 दिन तक देते हैं परंतु कोई भी स्थानीय मलहम का प्रयोग नहीं करते हैं।
  3. मवाद वाली पैरोटाइटिस जिसमें कि दीर्घकालीन सूजन होती है इसमें आयोडीन मरहम लगाते हैं और गर्म पानी से सिकाई भी की जाती है। कच्चे फोड़े को खोलना नहीं चाहिए।
  4. फोड़े के पकने के पश्चात खोलते हैं और 5 दिन तक प्रतिजैविक औषधि से मरहम पट्टी करते हैं।
  5. ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिकस कम से कम 5 दिन तक दें।
  6. नॉनस्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लेमेटरी औषधियां  कम से कम 3 दिन तक दें।
  7. यदि लार ग्रंथि का फिस्टुला बन जाता है तो उसे कार्बोलिक एसिड से काटेराइज करते हैं।
और देखें :  पशुओं में चर्म रोग: कारण एवं निवारण
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  रेबीज (Rabies) एक जानलेवा रोग: कारण, लक्षण, बचाव एवं रोकथाम

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