मुर्गियों में चिकिन इंफेक्शियस एनीमिया रोग

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मुर्गियों में कई विषाणु जनित रोग पाए जाते हैं, जिनसे मुर्गी पालक भाइयों को काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है। इन्हीं रोगों में से एक रोग है- ‘चिकिन इनफेक्शियस एनीमिया रोग’। मुर्गी पालक भाइयों को चाहिए कि वे यह जान लेवें कि यह रोग क्या है, किससे होता है, कैसे फैलता है, इसकी व्याधि जनन, लक्षण तथा यदि यह रोग हो जाए तो इसका निदान , उपचार तथा रोकथाम कैसे संभव है। आज हम इस रोग से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे।

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मुर्गियों में चिकिन इंफेक्शियस एनीमिया रोग

चिकिन इंफेक्शियस एनीमिया रोग क्या है?

यह मुख्यतः ३ से ६ सप्ताह की मुर्गियों में होने वाला एक रोग है जिसमें अप्लास्टिक रक्ताल्पता, सामान्यीकृत लसीकावत् क्षय तथा प्रतिरक्षादमन देखने को मिलता है।

कारक

यह रोग चिकिन इनफेक्शियस एनीमिया वायरस नामक विषाणु से होता है जो कि एक छोटा, अनावरित, गोलाकार या षटकोणीय आकार, एकल असहाय वृत्ताकार डीएनए वाला विषाणु है जिसका व्यास २३ से २५ नैनोमीटर होता है तथा सममिति इकोसाहेड्रल होती है।

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कैसे फैलता है

यह रोग संक्रमित मादा मुर्गी से उसके चूजों में तथा संक्रमित मुर्गी से अन्य मुर्गियों में फैल सकता है।

व्याधिजनन

मुर्गियों में विषाणु के प्रवेश के ४ से ८ दिवस पश्चात अस्थि मज्जा की रक्तोत्पादक अग्रगामी कोशिकाओं तथा बाल्य ग्रंथि वल्कल के परिधीय क्षेत्र में पाए जाने वाली अग्रगामी कोशिकाओं का प्रारंभिक कोशिका विघटन होने लगता है। इस समय अस्थि- मज्जा में अभिवर्धित प्राक् लोहित कोशिका प्रसू, अपक्षयी रक्तोत्पादक कोशिकाएं तथा बृहत् भक्षक कोशिकाएं, जिसमें पची हुई अपक्षयी रक्तोत्पादक कोशिकाएं होती हैं, मिलती हैं। संक्रमण के १० से १२ दिवस पश्चात बाल्य ग्रंथि में लसीकावत् कोशिकाओं का क्षय तथा कभी-कभी फेब्रिसी प्रपुटी, प्लीहा और अन्य ऊतकों के लसीकावत् केंद्र बिंदुओं में गलन देखने को मिलता है। संक्रमण के 16 दिवस पश्चात अस्थि मज्जा में प्राक् लोहित कोशिका प्रसू तथा प्राक् मज्जा कोरकों की संख्या में वृद्धि, रक्तोत्पादक क्रिया की बहाली तथा रोगप्रतिकारकों का निर्माण देखने को मिलता है। चिकिन इनफेक्शियस एनीमिया विषाणु मुख्यत: अस्थि मज्जा तथा बाल्य ग्रंथि वल्कल के रक्तोत्पादक तथा लसीकावत् उत्पादक प्रणेता कोशिकाओं में पाया जाता है। लसीकावत् उत्पादक ऊतकों के क्षरण के कारण टी- कोशिकाओं की मध्यस्थता वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी देखने को मिलती है, जिसके परिणाम स्वरूप सामान्यीकृत लसीकावत् क्षय हो जाता है। संक्रमण के दसवें दिन से मुर्गियों में मृत्यु देखने को मिल सकती है। यदि संक्रमण होने के बाद मुर्गी जीवित बच जाए , तो २० से २८ दिवस में वह पूरी तरह से ठीक हो जाती है।

लक्षण

इस रोग में मुर्गियों में कमजोरी, अवसाद, भूख न लगना, कम वृद्धि दर, कलगी, पलक तथा पैरों पर रक्ताल्पता के लक्षण, पूरे शरीर का हल्का पीला पड़ना, रक्तस्रावी सिंड्रोम, कोथमय त्वचा शोथ, रक्त का पतला होना, रक्त का थक्का जमने में अधिक समय लगना, प्लाज्मा का पीलापन इत्यादि लक्षण देखने को मिल सकते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम हो जाने के कारण मुर्गियों में अन्य जीवाणु, विषाणु , कवक इत्यादि के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

परिगलन निष्कर्ष

बाल्य ग्रंथि का क्षय, अस्थि- मज्जा विशेषत: जांघ की हड्डी वाली में वसा जमने के कारण पीलापन, यकृत तथा गुर्दे का मलिनकिरण एवं सूजन, हृदय की बाहरी सतह पर विरेचक और छोटे रक्तस्त्राव, कंकाल पेशियों तथा अधस्त्वचीय ऊतकों पर रक्तस्राव, वृद्ध मुर्गियों में जीवाणु संक्रमण के कारण पूतिता तथा कोथमय त्वचा शोध इत्यादि देखने को मिल सकता है।

निदान

इस रोग का निदान लक्षणों के आधार पर, परिगलन निष्कर्ष के आधार पर, किण्वक सहृलग्न प्रतिरक्षा शोषक परीक्षण इत्यादि के द्वारा किया जा सकता है।

उपचार

लक्षणों के आधार पर पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार इस रोग का उपचार किया जा सकता है।

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रोकथाम के उपाय

इस रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-

  • फार्म में आए नए चूजों को कुछ दिनों के लिए अन्य पक्षियों से अलग रखें।
  • प्रतिदिन मुर्गी- घर की साफ- सफाई करें।
  • नियमित रूप से मुर्गियों के बर्तनों की साफ-सफाई करें।
  • बीमार मुर्गियों को स्वस्थ मुर्गियों से अलग रखें।
  • मृत पक्षियों के शवों का उचित रूप से निस्तारण करें।
  • संक्रमित मल – मूत्र, दाना- पानी इत्यादि का समुचित निस्तारण करें।
  • ५% हाइपोक्लोराइट, आयोडोफोर, फॉर्मेलिन, 50% फिनोल इत्यादि से मुर्गी घर की सफाई कर विषाणु को नष्ट किया जा सकता है।
  • टीकाकरण- पक्षियों का आवश्यक रूप से टीकाकरण करवाएं।

 उपर्युक्त बातों का ध्यान रखकर हमारे मुर्गीपालक भाई अपनी मुर्गियों को चिकिन इंफेक्शियस एनीमिया रोग से बचा सकते हैं एवं खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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