मास-मीडिया नहीं होता तो श्वेत क्रांति और हरित क्रांति का सपना साकार नहीं हो सकता था, कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र के विकास में मीडिया की भूमिका बहुत अहम रही है, और आने वाले समय में जब भारत डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन की ओर बढ़ रहा है ऐसे में न्यू मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी। उक्त बातें बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क पदाधिकारी सत्य कुमार ने कही, वे बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में पशुधन और संबद्ध क्षेत्र में नवीनतम बदलाव के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि उद्यमिता विकास पर भा.कृ.अ .प. प्रायोजित इक्कीस दिवसीय विंटर स्कूल के तीसरे सेशन में रोल ऑफ़ मास-मीडिया फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट पर बोल रहे थे।
उन्होंने अपने व्याख्यान में कृषि क्षेत्र के विकास में मीडिया की भूमिका, संचार के लिए सही माध्यम का चुनाव और चुनौतियां, न्यू मीडिया के उपयोग और फायदे, जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा की इन क्षेत्रों में पत्रकारिता के दृष्टिकोण के साथ काम करने वाले तकनीकी मानव बल का अभाव है जिसके चलते मीडिया सामग्री और मीडिया कंटेंट के गुणवत्ता में कमी के साथ प्रभावी कार्यक्रमों का अभाव है, उन्होंने किसानों और पशुपालकों के साथ सोशल मीडिया इंटरेक्शन को बनाए रखने में कुशल मानव संसाधन की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने आगे कहा की सोशल मीडिया को संस्थागत बनाते हुए संगठनात्मक स्तर पर सोशल मीडिया के क्षमता के बारे में जागरूकता पैदा करने पर हमें बल देने की जरूरत है साथ ही स्टेकहोल्डर्स को सोशल मीडिया लिंक के माध्यम से संसाधनों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करें। कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र को न्यू मीडिया के उपयोग पर विशेष ध्यान देने बात कही साथ ही यूट्यूब चैनल बनाकर कृषि और पशुपालन हित में वीडियो प्रोडक्शन कर व्हाट्सअप ग्रुप और अन्य सोशल नेटवर्किंग पेज के माध्यम से किसानों तक ले जाने का सुझाव दिया। डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन के तहत सरकार द्वारा अपनायी जाने वाली तकनीक जिनमें आर्टिफीसियल इंटिलिजेंस, मशीन लर्निंग, रिमोट सेंसिंग, बिग डाटा, ब्लॉक-चैन और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आई.ओ.टी) के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा की इन तकनीकों के आने से कृषि मूल्य शृंखला में बदलाव होगी और कृषि कार्य का आधुनिकीकरण होगा, उन्नत फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होगी, पानी के कम खपत में बेहतर पैदावार होंगे और कृषि रसायनों के उपयोग में कमी आएगी जो सतत विकास में सहायक सिद्ध होगी साथ ही किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का उत्थान होगा और पर्यावरणीय और पारिस्थितिक प्रभावों को भी कम करेगा। अंत में उन्होंने प्रतिभागियों को न्यूज़ लेखन और संपादन कला से अवगत कराया।
इस सत्र में बिहार वेटनेरी कॉलेज के सहायक प्राध्यापक, संजय गाँधी गव्य प्रौद्योगिकी संस्था, पटना के सहायक प्राध्यापक, बिहार, झारखण्ड,ओडिशा के कृषि विज्ञान केंद्रों और कई अन्य कृषि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि शामिल थे।
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