लंपी स्किन डिजीज एक विषाणु जनित बीमारी है, जो पॉक्सवायरस से होती है। सितंबर 2020 में भारत में पहली बार इसका प्रसार हुआ था।इसमे मृत्यु दर लगभग 5% है परंतु इसका प्रसार काफी अधिक है। यह एक नई उभरती हुई बीमारी है। यह बीमारी मुख्यतः गाय-भैंसों में ही होती है । विदेशी नस्ल की गायों में यह बीमारी ज्यादा होती है। जिन पशुओं का खानपान अच्छा नहीं रहता उनमें यह बीमारी ज्यादा होती है।
इस बीमारी मे मुख्य लक्षण बुखार 103 डिग्री या इससे ऊपर होता है जो कि 1 से 3 दिन तक रहता है। इसमें त्वचा पर नोड्यूल्स या गठाने बन जाती हैं। पशु की नाक बहती है, आंखों से पानी निकलता है एवं पशु दूध देना कम कर देता है। त्वचा की गठाने सिर में, गर्दन में, पैरों में, थनों में एवं पशुओं के पिछले हिस्से पर दिखाई देती हैं। बाद में यह गठाने फूट भी सकती हैं एवं नैक्रोसिस भी हो सकते हैं इसको सेटफास्ट कहते हैं। धीरे धीरे यह गठाने कड़ी हो जाती हैं । पैरों में सूजन एवं लंगड़ाहट भी आने लगती है। गले के आसपास की लसिका ग्रंथियां सूज जाती हैं। यदि पशु की इम्यूनिटी कमजोर है तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है। कभी-कभी साथ में यदि कोई अन्य बीमारी भी हो गई है तो पशु की हालत ज्यादा खराब हो सकती है। यदि इस बीमारी के साथ ब्लड प्रोटोजोआ का भी इन्फेक्शन हो गया हो तो इसमें पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
यह बीमारी ठीक होने में काफी समय लगता है क्योंकि यह एक विषाणु जनित बीमारी है इसका कोई सटीक उपचार नहीं है । इस बीमारी का उपचार लक्षणों के आधार पर किया जाता है। यदि बुखार है, तो बुखार एवं सूजन इत्यादि की दवा दी जा सकती है। यदि चमड़ी के घाव में जीवाणु का इंफेक्शन हो गया है तो जैव प्रतिरोधी दवायें याने एंटीबायोटिक दी जा सकती हैं। कुछ एक पशुओं में निमोनिया भी हो सकता है । घावों पर मक्खी ना बैठे, इसके लिए मलहम इत्यादि लगाना पड़ेगा। कुछ जगहों पर हल्दी, नारियल तेल एवं कपूर मिलाकर घावों पर लगाया जा सकता है । यह बीमारी बीमार पशु के शरीर से निकलने वाले पदार्थों से स्वस्थ पशु तक पहुंच जाती है एवं उन्हें बीमार कर सकती है। साथ ही साथ यह बीमारी मक्खी एवं मच्छरों द्वारा भी एक पशु से दूसरी पशुओं मे फैल सकती है। अतः बीमारी की रोकथाम के लिए मक्खी एवं मच्छरों की रोकथाम भी जरूरी है। बीमारी के विषाणु के ऊपर इथर, फॉर्मलीन, ब्लीचिंग पाउडर, फिनाइल एवं बीटाडीन इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। बीमार पशु में उपयोग की हुई सुई को यदि हम दूसरे पशुओं में लगा दे तब भी यह बीमारी फैल सकती है। यह बीमारी ग्रसित सांड के वीर्य द्वारा भी फैल सकती है, अतः इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
जब भी पशुओं को इस तरह की विषाणु जनित बीमारी हो तो उनको कोई भी एंटी स्ट्रेस फॉर्मूला या विटामिन इत्यादि भी जरूर देना चाहिए। एक बार जब यह बीमारी फैल जाती है तब इस को रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है। भेड़ बकरियों में लगने वाले चेचक के टीके का उपयोग इस बीमारी को रोकने के लिए कुछ हद तक असरदार है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
Mere गाय का चिकन पॉक्स हो गया है plz इसका इलाज बताए