ग्रीष्म ऋतु में दुधारू पशुओं की देखभाल

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भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अधिक लम्बे समय तक रहती है तथा तापमान 45 से 47 ℃ तक पहुँच जाता है जिसके कारण पशु तनाव की स्थिति में रहते हैं। गर्मी के तनाव के कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन, पाचन क्रिया तथा प्रजनन क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है तथा पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी गिरावट आती है जिससे पशु अधिक रोगग्रस्त होते हैं तथा ग्रीष्म तनाव का शिकार हो जाते हैं।

ग्रीष्म काल में पशुओं पर होने वाले दुष्प्रभाव

  • अत्यधिक गर्मी के कारण सांड़ों में वीर्य उत्पादन तथा वीर्य की गुणवत्ता में अत्यधिक गिरावट आ जाती है।
  • मादा पशुओं में मद चक्र का काल लम्बा तथा अनियमित हो जाता है।
  • ग्रीष्म तनाव के कारण पशुओं की श्वसन गति तीव्र हो जाती है जिसके कारण पशु हांफने लगते हैं।
  • रूमेण की किण्वन क्रिया में बदलाव होता है जिसके कारण पशुओं की पाचन शक्ति में गिरावट आती है।
  • पशुओं की त्वचा की ऊपरी सतह पर रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है जिसके कारण आतंरिक अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी गिरावट आती है।
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ग्रीष्म काल में पशुओं की देखभाल हेतु उपाय

  • पशुओं का आवास स्वच्छ तथा हवादार होना चाहिए।
  • पशुशाला की छत लगभग 10 फ़ीट ऊंची होनी चाहिए तथा उसपर 4-5 इंच मोटा घास का छप्पर डालना चाहिए ताकि सूर्य की किरणे सीधी छत पर न पड़ सकें तथा पशुशाला के अंदर का तापमान कम बना रहे।
  • पशुशाला में अत्यधिक पशुओं की भीड़ नहीं रखनी चाहिए जिससे प्रत्येक पशु को पर्याप्त स्थान तथा ताज़ी हवा प्राप्त हो सके।
  • पशुओं के आवासगृह के खिड़की, दरवाज़ों तथा अन्य खुले स्थानों पर टाट/बोरी आदि के परदे टांग कर उनपर पानी का छिड़काव करना चाहिए ताकि पशुओं को ग्रीष्म ऋतु में दोपहर की तेज गर्म हवा से बचाया जा सके। यदि संभव हो तो पशुशाला में पंखों की व्यवस्था करानी चाहिए ताकि पशु आवास गृह का तापमान कम रहे।
  • गर्मियों में मच्छर, कीट आदि की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है जिसके कारण पशुओं को असुविधा होती है तथा रोगों का ख़तरा बढ़ जाता है अतः खुले स्थानों पर चारों ओर से मच्छरदानी टांगना पशुओं के लिए अत्यधिक लाभप्रद रहता है।
  • गर्मी के दिनों में दोपहर के समय रोज़ पशुओं पर ठन्डे पानी से छिड़काव करना चाहिए ताकि उनके शरीर का तापमान कम रहे तथा पशुओं को ग्रीष्म तनाव (हीट स्ट्रोक) से बचाया जा सके।
  • पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाना चाहिए। लगभग दिन में तीन से चार बार पशुओं को ताज़ा ठंडा पानी पिलाना चाहिए ताकि शरीर की क्रियाएं सुचारू रूप से चलती रहें।
  • पशुओं को हरा चारा अधिक खिलाना चाहिए क्यूंकि सूखे चारे से पाचन में अधिक मात्रा में ऊष्मा निकलती है। हरा चारा अधिक पौष्टिक होता है तथा इसमें लगभग 75-90 प्रतिशत पानी की मात्रा होती है जो पशुओं में जल की पूर्ती करने में सहायक होता है।
  • पशुशाला के आसपास छायादार वृक्ष लगाने चाहिए जिससे पशुशाला पर छाया बनी रहे तथा सूर्य की रौशनी सीधा पशु आवास गृह पर न पड़े जिससे पशुशाला अथवा उसके आसपास का तापमान कम रहे।
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इन सभी उपायों को अपनाने से न केवल पशुओं के स्वास्थ तथा उत्पादन में वृद्धि होगी अपितु इसके साथ उच्चतम पशु उत्पादन से पशुपालकों की आय में भी वृद्धि होगी।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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