शूकर पालन एक लाभदायक व्यवसाय

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शूकर पालन एक लाभदायक व्यवसाय है जिससे स्वरोजगार के साथ साथ अतिरिक्त लाभ भी अर्जित किआ जा सकता है। भारत में उत्तरी-पूर्वी भारत के इलाको को छोड़ दे तो अधिकतर शूकरपालन का व्यवसाय आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों द्वारा ही किया जाता है। ये लोग मुख्य रूप से परंपरागत तरीकों से शूकर पालन करते हैं, क्योंकि इन लोगो के पास वैज्ञानिक तरीको से शूकर पालन करने हेतु ना तो संसाधन हैं और न ही शूकर पालन संबधित पूर्ण जानकारी होती है। परंपरागत तरीको से पाले जानी वाली देशी शूकर की नस्लों में वजन वृधि भी कम होती है तथा मादा शूकरी द्वारा एक बार में दिए गए बच्चो की संख्या भी काफ़ी कम होती है। इस प्रकार किये गए शूकर पालन में मांस की गुणवत्ता काफ़ी कम होती है क्योंकि शूकर गंदे वातावरण में पाले जाते हैं तथा इनको कूड़ा एवं अन्य सड़ा-गला भोजन दिया जाता है। इन्ही कारणों से न केवल शूकर पालन बल्कि शूकर का मांस भी स्वीकार नहीं किया जाता है। इसके विपरीत उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों में शूकर पालन को स्वीकार किया जाता है और उन इलाकों में वैज्ञानिक तरीकों से शूकर पालन का व्यवसाय किया जाता है।

शूकर पालन पशुपालकों के लिए लाभदायक व्यवसाय बन सकता है यदि शूकर को अच्छा भोजन दिया जाय और सही तर्रीकों से इनका पालन पोषण किया जाय। मादा शूकरी साल भर की उम्र में ही बच्चे देना प्रारभ कर देती हैं। विकसित नस्ल की शूकरियां 8 से 14 बच्चे तक देती है और साल में दो बार बच्चे दे सकती हैं। शूकर पालन का उद्देश्य शूकर का मांस उत्पादन करना होता है, जो की बहुत बढ़िया पशुजनित प्रोटीन के साथ साथ उर्जा का भी अच्छा स्रोत है, क्योंकि शूकर के मांस में अधिक वसा पायी जाती है।

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शूकर ऐसा पशु हैं जिससे अन्य पशुओं की अपेक्षा कम समय में अधिक मात्रा में मांस का उत्पादन किया जा सकता है। शूकर पालन ऐसा व्यवसाय है, जिसमें अधिक पैसा नहीं लगाना पड़ता है क्योंकि शूकरों की खुराक पर ज्यादा पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि ये घास, हरा चारा, रसोई की जूठन, अनाज और सब्जियां जो मनुष्य के खाने योग्य नहीं हो, खा लेते हैं। साथ ही शूकर की पोषण के सापेक्ष वजन बड़ने की दर काफ़ी अधिक होती है।

शूकर की नस्लें

शूकर पालन व्यवसाय के लिए सबसे आवश्यक है कि अच्छी नस्ल के शूकर पालें जायें जो जल्दी बड़े होते हो, उनका मांस अच्छी किस्म का हो तथा मादाएं अधिक बच्चे देती हो। भारत में पायी जाने वाली शूकर की मुख्य नस्लें निम्न हैं

देशी शूकर
भारतवर्ष में ये नस्ल हर जगह पायी जाती है तथा इस नस्ल को पिछड़े वर्ग के लोग पालते हैं। इस नस्ल के शूकरों का मांस की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। इस नस्ल के शूकर छोटे होते हैं धीरे धीरे बड़ते है, इनका मुहं लम्बा होता है, रंग अधिकतर काला होता है तथा इनके बाल लम्बे व खड़े होते हैं।

लार्ज-व्हाईट योर्कशायर
यह नस्ल लार्ज व्हाईट के नाम से भी जानी जाती है। इस नस्ल के शूकरों का वजन ज्यादा तथा ये अधिक व उच्च गुणवत्ता का मांस उत्पादन के लिए जाने जाते है। इनका मुहं लम्बा तथा तश्तरीनुमा मुड़ा हुआ होता है। नथुनें चौड़े तथा कान लम्बे और आगे की तरफ झुके होते हैं। इनका सीना छोड़ा और गहरा होता है। कमर लम्बी और चौड़ी होती है। इनकी पूँछ लम्बी, चमड़ी सफ़ेद होती है और उसमें झुर्रियां नहीं होती हैं। इस नस्ल के वयस्क शूकर का वजन 300 से 400 किलोग्राम और शूकरी का वजन 200 से 320 किलोग्राम तक होता है। मादा एक व्यांत में औसतन 9-10 बच्चे देती है।

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लैंड रेस
इस नस्ल की उत्पति स्वीडन देश में हुई है। यह नस्ल भी उच्च गुणवत्ता के शूकर मांस के लिए जानी जाती है। इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर शूकर 270-360 किलोग्राम वजनी होता है जबकि मादा 200 से 320 किलोग्राम वजनी होती है। एक शूकरी आमतौर पर 8-9 बच्चे देती है।

मिडिल व्हाईट योर्कशायर
यह नस्ल अच्छे मांस के लिए जानी जाती है। इसका सिर थोडा छोटा नथुनें चौड़े और जबड़ा सीधा होता है। कान लम्बे और आगे की तरफ झुके हुए होते है, सीना बड़ा व गहराई लिए हुए होता है, पूँछ लम्बी, चमड़ी चिकनी होती है तथा उसमे झुर्रियां नहीं होती हैं। इन नस्ल के शूकर सांडो का इस्तेमाल देशी शूकरों की नस्ल सुधारने हेतु क्रॉस-ब्रीडिंग के लिए किया जाता है। इस प्रजाति का नर शूकर 250 से 350 किलोग्राम वजनी होता है जबकि मादा 175 से 275 किलोग्राम वजनी होती है।

घुंघरू शूकर
इस प्रजाति के शूकर  का पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इस प्रजाति के शूकर की वृद्धि दर अच्छी है। शूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू शूकर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। शूकर की संकर नस्ल है और इससे उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है। इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू शूकर प्रायः काले रंग के और बुल-डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं।  इसके 6 से 12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1 किलोग्राम तथा परिपक्व अवस्था में 7 से 10 किलोग्राम होता है।

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हैम्पशायर शूकर
इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किलोग्राम वजनी होती है।

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