मादा पशुओं में प्रसव अवरोध

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मादा पशुओं में प्रसव के समय भ्रूण के बाहर निकलने मे अवरोध उत्पन्न हो जाता है। मादा पशु के द्वारा उत्याधिक जोर लगाने पर भी भ्रूण बाहर नही निकलता है। इस अवस्था में भ्रूण के सिर, पैर या शरीर का कुछ भाग कभी-कभी दिखाई पड़ता है।

मादा पशुओं में होने वाले प्रसव अवरोध दो प्रकार के होते हैं।

  1. मातृ-आगत प्रसवरोध
  2. भ्रूण-प्रसवरोध

मातृ-आगत प्रसवरोध

इस प्रकार के प्रसवरोध मादा पशु के गर्भाशय इत्यादि में उत्पन्न होने वाली बाधाओं के कारण होता है जो कि निम्न  है:

  • हारमोन के असन्तुलन या कमी के कारण गर्भाशय की माँसपेशियो के संकुचन में कमी आ जाती है।
  • मादा पशुओं में खनिज तत्व या कैल्शियम की कमी के कारण गर्भाशय में शिथिलता आ जाती है। अधिक उम्र के मादा पशु में यह लक्षण अधिक पाया जाता है।
  • गर्भाशय का घूम जाना मातृ-आगत प्रसवरोध का कारण बनता है।

संरचनात्मक विकृतियाँ

संरचानात्मक विकृतियाँ जो कि मातृ-आगत प्रसवरोध का कारण बनती हैं, जो कि निम्न हैं:

  • गर्भाशय की ग्रीवा में कड़ापन आ जाता है जिसके फैलने में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • वस्ती-अस्थियों की बनावट में विकृति के आ जाने पर प्रसवरोध का कारण बनता है।
  • कभी-कभी गर्भाशय योनिमार्ग में आ जाता है जो कि अवरोध का कारण बनता है।

लक्षण

इससे प्रभवित मादा पशु अत्याधिक बेचैन रहती है। प्रसव के लिए बार बार जोर लगाती है तथा बार बार उठती बैठती रहती है। परन्तु बच्चा देने मे असमर्थ रहती है।

निदान

मातृ-आगत प्रसवरोध का सही कारण जानने के लिए हाथ को अच्छी तरह साफ करके कीटाणुरहित कर लेना चाहिए।  इसके बाद हाथ को चिकना कर योनि तथा गर्भाशय में डालकर सही स्थिति का पता लगाना चाहिए।

उपचार

इस अवस्था में प्रभावित मादा पशु के सही कारण के अनुसार उपचार करना चाहिए। हारमोन्स की कमी के कारण उपजी शिथिलता को दूर करने के लिए एपीडोसिन की 10-12 मिलीलीटर मात्रा देनें से लाभ मिलता है।

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 संरचानात्मक विकृतियों द्वारा उत्पन्न अवरोधो में चिकनाई तथा व्याने के लिए रस्सी आदि का उपयोग कर प्रसव में सहयोग करने से लाभ मिलता है यदि मूत्राशय  भरा हुआ है तो उसे कैनुला से खाली कर अवरोध को दूर किया जा सकता है प्रसव के बाद पशु अत्याधिक थक जाता है इस अवस्था में उसे कैल्शियम मैग्नीशियम बोरोग्लूकोनेट तथा डेक्स्ट्रोज देना लाभदायक रहता है।

भ्रूण-प्रसव अवरोध

मादा पशुओं  में यह दो प्रकार से होता है:

  • भ्रूण को मादा पशु के जननेन्द्रीय मार्ग के अनुपात से अधिक बड़ा हो जाना।
  • भ्रूण को गर्भाशय में असामान्य स्थिति में पाया जाना।

कारण

छोटी जाति के मादा पशु को बड़ी जाति के नर पशु से गाभिन करानें से छोटी उम्र में मादा पशु से बच्चे लेने से, कभी-कभी भ्रूण के गर्भाशय मे मर जाने के कारण भ्रूण मादा पशु के जननेन्द्रीय मार्ग से अधिक बड़ा हो जाता है। कभी-कभी  जुड़वा बच्चे भी इस अवस्था का कारण बनते हैं।

भ्रूण गर्भाशय मे असामान्य स्थिति मे कुछ प्रमुख कारणों से पाया जाता है:

गर्भाशय मे भ्रूण का असामान्य आसन भ्रूण के किसी भी हिलने डुलने या मुड़ने वाले अंग के अपने स्थान से हटने के कारण होती है जैसे सिर का एक तरफ मुड़ जाना, अगले एक अथवा दोनो पैरों का पीछे की तरफ मुड़ जाना, पिछले पैरों का घुटने पर मुड़ जाना, तथा सिर और गर्दन का अगले पैरों के बीच में आ जाना इत्यादि।

भ्रूण की प्रस्तुति

सामान्य रुप में प्रसव के समय भ्रूण का मुख तथा अगली टाँगे मांदा पशु के योनि की तरफ रहती है इसे अग्र प्रस्तुति के नाम से जाना जाता है। इस स्थिति में भ्रूण बिना किसी सहयता के बाहर आ जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य स्थितियों में भ्रूण असामान्य स्थिति में योनि के सामने आता है जिसके कारण उसे निकालने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। मादा पशु के शरीर में पायी जाने वाली भ्रूण की असामान्य स्थिति निम्नवत् है:

  • पष्च भ्रूण स्थिति- इस अवस्था में भ्रूण का मुख मादा पशु के मुख की तरफ होता है।
  • खड़ी भ्रूण स्थिति- इस स्थिति में भ्रूण गर्भ की अन्त रेखा पर लम्बवत् स्थित होता है।
  • अनुप्रस्थ पृश्ठ भ्रूण स्थिति- इसमें भ्रूण की पीठ मादा पशु के योनि मुख के सामने होती है।
  • अनुप्रस्थ उदर भ्रूण स्थिति- इस स्थिति में भ्रूण का उदर योनि के सामने होता है।
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उपचार

सबसे पहले हाथ को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए इसके बाद हाथ को चिकना कर योनि मार्ग से गर्भाशय में डालकर, भ्रूण की सही स्थिति तथा उसकी प्रस्तुति का अनुमान लगाना चाहिए। भ्रूण के असामान्य स्थिति मे पाये जाने पर मादा पशु को 2 प्रतिशत जाइलोकेन का एपीडुयुरल ऐनेस्थीसिया की सूई लगानी चाहिए। जिससे मादा पशु जोर लगाना बन्द कर देती है। इसके बाद हाथ, रस्सी, तथा हुक की सहायता से भ्रूण को अग्र प्रस्तुति में लाकर बाहर खींचकर निकाला जा सकता हैं। मरे हुए भ्रूण को भ्रूण कटर चाकू द्वारा  गर्भाशय में काट-काट कर निकाला जा सकता है। अधिक कठिनाई वाले केसों में जहां पर भ्रूण के बाहरनिकालने के सारे प्रयास विफल हो जाये वहाँ शल्य चिकित्सा विधि अपना कर भ्रूण को बाहर निकाला जा सकता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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