स्वच्छ दूध का उत्पादन

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खेती के पूरक व्यवसाय में दूध का व्यवसाय प्राचीन काल से ही पारंपरिक चलता आ रहा महत्त्व का व्यवसाय हैं। दूध व्यवसाय के लिए मुख्य रूप से संकर गायों, देसी गायों , दुधारूं गायों और दुधारूं भैंसो को पाला जाता हैं। दुधारूं पशु पालना एक अच्छी बात है परन्तु स्वच्छ दूध का उत्पादन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। दूध उत्तम किस्म के प्रोटीन तथा कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत है वहीँ अस्वच्छ दूध कई बीमारियों का वाहक भी होता है। प्रचलित तरीकों से दूध का व्यवसाय करने के बजाय आधुनिक तरिके से यह व्यवसाय किया जाए तो निश्चित रूप से दूध की तथा दूध से बनाए गये खाद्यपदार्थों की गुणवत्ता बढ़ती हैं तथा पशु में होने वाली थन की बीमारियों को कम किया जा सकता हैं।

स्वच्छ दूध का उत्पादन मतलब आँखो से दिखने वाले और ना दिखने वाले सभी अशुद्धियों से मुक्त दूध। स्वच्छ दूध के उत्पादन से हम उस दूध को ज़्यादा देर तक  रख सकते हैं और उसकी तथा उससे बने खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं । स्वच्छ दूध उत्पादन की वजह से मनुष्य के स्वास्थ्य को नुकसान नहीं होता हैं। पशु आहार, दूध के अम्ल/ क्षार अनुपात को प्रभावित करता हैं। चारे वाली फसलों पर अत्याधिक कीट कनाशक का प्रयोग अवांछनीय  है,  क्योंकि ऐसे रसायनिक पदार्थ आहार के माध्यम से पशु के शरीर में प्रवेश करते हैं और दूध का अभिन्न अंग बन जाते हैं। ये पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, और दूध को आहार के लिए अयोग्य बना देते है। अधिक और उत्तम दूध उत्पादन के लिए पशु आहार पौष्टिकता और वैज्ञानिक दृष्टि से संपूर्ण होना आवश्यक हैं।

साफ तथा स्वच्छ दूध से क्या अभिप्राय हैं ?
अगर दूध में कोई हानिकारक जीवाणु, धूल के कण, गोबर, बाल, मक्खी, इत्यादि ना हो तो हम उसे स्वच्छ दूध कह सकते हैं। साफ तथा स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए कई कारक महत्त्वपूर्ण होते हैं जैसे गौशाला तथा पशुशाला की स्वच्छता, स्वच्छ पशु , दूध इकठ्ठा करने के साफ तथा स्वच्छ बर्तन, साफ तथा स्वच्छ ग्वाला, दूध दूहने की सही तकनीक, दूध दूहने पश्चात उचित प्रतिबंध।

और देखें :  लम्पी स्किन डिजीज (LSD)- गांठदार त्वचा रोग

1. गौशाला की स्वच्छता

  • मुक्तसंचार तरीके में ज़्यादा स्वच्छता करने की आवश्यकता नहीं रहती हैं।
  • आधुनिक तकनीकों में गौशाला और गौशाला के बगल का परिसर स्वच्छ और सूखा रखना चाहिए, गौशाला में हवा बहती रहनी चाहिए।
  • गौशाला में पशुओ की भीड़ न करें।
  • गौशाला में पशुओ का गोबर, मूत्र तथाचारों का कचरा नियमित रूप से साफ़ करें।
  • गौशाला में मक्खियाँ, मच्छर, कीड़े, घुड़मक्खी, ये ना घुस पाएँ यह ज़रूर ध्यान रखे उसके लिए नियमित रूप से गौशाला की साफ़ सफाई करें और कीटनाशकों का सावधानी से प्रयोग करें।
  • गौशाला की दीवारों में छेद तथा दरारे दिखे तो उसे भर लें क्योंकि ऐसे जगह कीटो के पनपने के लिए अनुकूल होती हैं।
  • स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था , पशु तथा परिवेश को साफ रखने के लिए अति आवश्यक हैं।

2. स्वच्छ पशु

  • दुधारूं गाय और भैंस निरोगी रहनी चाहिए उसे कोई भी संक्रमित होने वाली बीमारी ना हो। ऐसे पशुओ के दूध से बीमारियों का प्रसार हो सकता हैं उसके लिए नियमित पशु चिकित्सक से निरीक्षण करा लें और बीमार पशुओं का इलाज करा लें।
  • दूहने से पूर्व पशुओ और थन को स्वच्छ और गुनगुने पानी से धो लें और उन्हें पोटेशियम-पर-मैंगनेट  (लाल दवा) के पानी से साफ़ कर लें।
  • एक बार थनों को धोने के बाद पशु को नीचे बैठने ना दें।

3. दूध इकठ्ठा करने के साफ तथा स्वच्छ बर्तन

  • दूध के बर्तन दूध इकठ्ठा करने के लिए और दूध संग्रहित करने के लिए अलग से उपयोग करें।
  • बर्तन दूध इकठ्ठा करने से पहले स्वच्छ पानी से धों कर, स्टरलाइजेशन करेंऔर उसे उल्टा कर के रखे ताकि वो जल्द ही सूख जाए।
  • दूध निकालने के लिए जहा तक हो सके छोटे मुँह वाले बर्तनों का उपयोग करें।
  • दूध के बर्तन मुख्य रूप से स्टेनलेस स्टील के होने चाहिए।
  • जब दूध मशीनद्वारा निकालना हो तब सभी बर्तन स्वच्छ धोंकर स्टरलाइजेशन किए होने चाहिए।
और देखें :  पशुओं के नवजात बच्चों का प्रबंधन

4. साफ़ तथा स्वच्छ ग्वाला

  • ग्वाला कुशल , निरोगी और संक्रमित बीमारियों से मुक्त रहना चाहिए।
  • ग्वाला को हमेशा अपने नाख़ून और बालों को छोटे रखने चाहिए।
  • ग्वाला को साफ़ सुथरे वस्त्र पहनने चाहिए और सिर कों रूमाल से ढककर  कर ही दूध निकलना चाहिए।
  • ग्वाला को तंबाखू और धूम्रपान ऐसी कुछ भी ग़लत आदते नहीं होनी चाहिए।
  • ग्वाला को दूध निकालने से पहले अपने हाथों को साफ़ धोंकर सूखने के बाद ही दूध दुहना चाहिए।
  • ग्वाला की उंगलियों में कोई जख्म नहीं होने चाहिए।

5. दूध दूहने की सही तकनीक

  • दूध दूहने की मुख्यतः तीन तकनीक है अंगूठे द्वारा , पूर्ण हस्तिद्वारा, चुमटीद्वारा।
  • तीन तकनीको में पूर्ण हस्तिद्वारा यह सबसे अच्छी तकनीक हैं, इस तरीके से पशु की थन को कम से कम चोट पहुँचती है, इस तरीके से पाच उंगलियों का उपयोग कर के थानों पे नीचे दबाया जाता है।
  • अंगूठा तकनीक से थन को चोट पहुँचती हैं और थन के  रोगों का प्रसार होता हैं।
  • दूध दूहने के पूर्व थानो को थन को गुनगुने पानी से धों ले और अच्छे से मसाज करे नहीं तो बच्छड़े को चूसने छोड़ दें, इससे दूध बहना शुरू होगा।
  • दूध पाँच से सात मिनिट में ही दुहना चाहिए।
  • एक बार दूध दुहना शुरू करने के बाद पूर्ण दूध दूहने तक ना रुक और आँखरी प्रवाह चुमटी तकनीक से निकले।
  • जब दूध मशीन द्वारा निकाला जाता है तब कम श्रमिक लगते हैं और  दूध अधिक स्वच्छ रहता हैं।
और देखें :  कॉन्टेजियस बोवाइन प्लयूरो निमोनिया: (सीं.बी.पी.पी.)

 6. दूध दूहने के पश्चात उचित प्रतिबंध

  • दूध दूहने पश्चात बर्तनों को जल्द ही 5⸰-8⸰ में रखे।
  • दूध दूहने पश्चात थन को स्वच्छ पानी से धों ले।
  • थन के सूखने से पहले पशु को नीचे बैठने ना दें।

स्वच्छ दूध का उत्पादन, उत्पादक और उपभोक्ता दोनो के लिए हमेशा लाभदायक होता हैं:

  • मनुष्य के उपभोग के लिए सुरक्षित
  • अधिक समय के लिए गुणवत्ता बनाए रखना
  • दूध फटने की कम से कम संभावना
  • बाज़ार में अधिक कीमत
  • टाइफाइड, और दस्त जैसी अनेक बीमारियों का फैलाव कम
  • जल्लंदी ख़राब न होने के कारण लंबे समय तक परिवहन।
  • उत्पाद की गुणवत्ता के अंतर्गत सुरक्षा,
  • स्वच्छता, विश्वसनीयता, पौष्टिकता से उपभोक्ता का लाभ
  • स्वच्छ दुग्ध उत्पादन एक विकल्प नही बल्कि यह कर्तव्य होना चाहिए।

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  13. this is very informative to the farmers & easy to understand …Thanks sunaina for the sharing

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  17. Nice and very useful information about clean milk production…keep it up Dr Sunaina..??

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  19. वा एकदम सर्वांना समजेल आशा भाषेत लिहिलंय ….keep it up Dr.Sunaina?

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    Dr.sunaina

  21. Really very very good information.. Great job… And thank u Dr sunaina.

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