वर्तमान समय में कुक्कुट पालन के सकल तरीके

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“भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा गया है, परन्तु जिस प्रकार कुक्कुट पालन उद्योग से अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँच रहा है तो वर्तमान में यह कहना अनुचित नही होगा की सच में प्रत्येक मुर्गी या कुक्कुट सोने के मूल्य के सामान ही लाभान्वित करने वाला उद्योग बनने की ओर अग्रसर हो रहा है”

भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि का अर्थ फसल उत्पादन करने की क्रिया या कला, विज्ञानं या तकनीक से है। इसके अंतर्गत फसल उत्पादन, फल उत्पादन, पशुपालन, मुर्गीपालन,मधुमक्खीपालन इत्यादि को भी सम्मिलित किया जाता है। देश की अर्तव्यवस्था में कृषि का योगदान 17-18 प्रतिशत है जिससे इसकी उपयोगिता का अनुमान लगाया जा सकता है। देश में बड़े स्तर पर खाद्य पदार्थ उपयोग हेतु पशुपालन किया जाता है। पशुपालन एवं कुक्कुट पालन व्यवसाय का भारत की जी.डी.पी. में 4.1 प्रतिशत योगदान है। अर्थात मुर्गी पालन उग्योग की महत्ता का अनुमान उप्र्योक्त आंकड़ों से लगाया जा सकता है। यही कारण है की सरकारी तंत्र मुर्गी पालन जेसे व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं का प्रतिपादन करता है, उत्तर प्रदेश सरकार ने कुक्कुट विकास नीति 2013-18 को बढ़ाकर वर्ष 2018-22 कर दिया है, जिसके अनुसार मुर्गी पालक 30000 पक्षियों की कमर्शियल यूनिट व 10000 पक्षियों की कमर्शियल यूनिट स्थापित कर सकेंगे, इसी प्रकार राजस्थान मुर्गी पालन लोन परियोजना के अंतर्गत 139रू से 309रू प्रति पक्षी की दर से 5 वर्ष की अवधि तक ऋण की सुविधा प्रदान की  जाएगी। माननीय प्रधानमंत्री जी के 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की इच्छा को आकार प्रदान करने के लिए ऊ. प्र. कर्ज योजना 2019 के अंतर्गत 30000 पक्षियों की कमर्शियल यूनिट संचालन के लिए 1.6 करोड़ की लागत लगेगी, जो की लाभार्थी बैंक से कर्ज के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत किसानो को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, आई. वि. आर. आई. जेसे संसथान एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर इसका प्रशिक्षण दिया जाता है, मात्र 6 दिनों में प्रशिक्षु रोजगार हेतु योग्य व् कुशल बनते हैं। इसके साथ ही 500-1000 मुर्गियों को लघुउद्योग के रूप में बढ़ावा देकर हम स्टार्ट अप कार्यक्रम को प्रोत्साहन दे सकते हैं जिसमे माहिलाएं रोजगार के रूप में अपना उज्जवल भविष्य देख सकती हैं। महिलाओं तथा वृद्ध(49 से अधिक उम्र के व्यक्ति) की भागीदारी देश की श्रमशक्ति के प्रतिशत में वृधि ला सकती है।

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कुक्कुट पालन

ये व्यवसाय पूर्णतः NABARD द्वारा समर्थित हैं, NABARD के मॉडल प्रोजेक्ट के अनुसार ब्रायलर फार्मिंग में लगभग 4-5 महीने में 15 लाख रूपए अर्जित किए जा सकते हैं।

एक सफल कुक्कट पालन में बयोसिकयोरिटी निश्चित रूप से एक अहम भूमिका अदा करती है, इसलिए प्रत्येक पौल्ट्री फार्म चाहे बहुत बड़े स्तर का हो या लघु स्तरीय एक कारगर बयोसिकयोरिटी प्लान का हर परिस्थिति में पालन होना चाहिए.

  • हर फार्म की एक बाउन्डरी होनी चाहिए, तथा मुख्य द्वार पर पोटैशियम परमेंगटनेट का पानी या चुने का छिडकाव अत्यंत ज़रूरी है.
  • साथ ही प्रवेश पर भी विशेष ध्यान रखना है की कर्मचारी पूरी तरह साफ सुथरे होक ही अन्दर जाये एवं अपने कार्य के बाद भी साफ होक ही प्रस्थान करें.
  • जो कर्मचारी एक यूनिट में काम करते हैं, रोज़ उनकी बदली न की जाए,व् हर यूनिट के दाने व् पानी के बर्तन अलग रखें व् समय समय पर सफाई करें.
  • समय समय पर गन्दगी एवं बिछावन को बदलते रहें
  • आवाजाही पर सख्त नज़र रखें.
  • पशुचिक्त्सक से परामर्श के बाद ही टीका कर्ण एवं डीवार्मिंग करिए.
  • यदि हो सके तो नयी मुर्गियों को एक साथ लायें तथा एक साथ बेचें व् दोनों ही कार्यो से पहले व् बाद में फार्म की अच्छे प्रकार से कीटनाशक व् पानी से सफाई करें.
  • यदि विभिन्न प्रजाति के पक्षी हैं तो सबको अलग रखें ताकि संक्रमण फेलने का खतरा कम हो.
  • बीमार पक्षियों को एक एकांत यूनिट में क्व़ाआरनटाइन में रखें तथा तुरंत ही पशुचिकित्सक से संपर्क करें एवं पोल्ट्री वेलफेयर कोड का पालन करें.
  • मरे हुए पक्षियों को उचित तरीके से एक दूर स्थान पर दफनायें तथा उसपर चूना इत्यदि का छिडकाव करें.
  • यदि मुर्गीपालन घर में ही कर रहे हैं तो साफ़ सफाई की उचित व्यवस्था करें एवं टीकाकरण समय पर करवाएं.

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि मुर्गीपालन अर्थव्यवस्था की द्रष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण एवं लाभदायक है, परन्तु व्यवस्था में ज़रा सी चूंक होने से पोल्ट्री (कुक्कुट) किसानों को भारी वित्तीय हानि उठानी पड सकती है, एवं इससे विभिन्न प्रकार के रोग एवं महामारी भी उत्तपन होकर भयपूर्ण स्तिथि उत्त्पन्न कर सकते हैं। चापाप्चय (मेटाबोलिक) व् पोषण सम्बन्धी रोग, संक्रामक रोग, परजीवी रोग इत्यादि विकराल स्तिथि उत्पन्न करते हैं। बर्ड फ्लू जेसे रोग महामारी का रूप धारण कआर अर्थव्यवस्था तथा पशुधन हानि पैदा करते हैं। सन 2006 में इसका प्रकोप देखा गया जिसके प्रभाव से लगभग 6.4 मिलियन पक्षी अब तक मृत्यु को प्राप्त हुए व् भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 35000 करोड रुपयों की हानि हुई।

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इसी प्रकार सन 2007 मे मणिपुर एवियन फ्लू के कारण पशुधन के कुल मूल्य का 14 प्रतिशत नुक्सान पाया गया तथा 3 लाख से अधिक पक्षी मार दिए गये; साथ ही पोल्ट्री फीड अर्थात खाद्य को भी नष्ट कर दिया गया जिससे दोगुना नुक्सान हुआ। इसी प्रकार जब फ्लू महामारी का रूप धारण कर लेता है तो वह अर्थव्यवस्था एवं रोजगार दोनों पर संयुक्त प्रभाव रूप से डालता है, इतना हीनहीं अपितु ये H5N1 व H7N9 संक्रमण मानव जाती में भी फ़ैल सकते हैं जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले सकता है।

महामारी से बचाव ही उसका उपयुक्त इलाज या उपाय है, सर्वप्रथम इस उद्योग में मांस व् अंडे की प्राप्ति के लिए मुर्गी, बत्तक आदि के पालन के प्रभंधन हेतु उचित तापमान के कक्ष,स्वच्छ स्थान, ताज़ी जल वायु का प्रावधान, उचित मात्रा में आहार, व् रोगों से बचाव, पक्षियों के बिमा एवं टीकाकरण की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही सामाजिक भ्रांतियों के प्रति नागरिकों को जागरूक करने की पहल सरकार द्वरा की जानी चाहिए। साथ ही आवश्यकता है की प्राथमिक स्तर पर ही मुर्गीपालन केन्द्रों में उन ही चूजों का चयन किया जाये जो कृषि मंत्रालय की रेंडम सेम्पलिंग परिक्षण द्वारा प्रमाणित हेचरी की सूची में सम्मिलित हो।

वर्तमान परिस्तिथि पर यदि विचार किया जाये तो कोरोना वायरस संक्रमण संयम एवं जागरूकता की कमी के कारण संपूर्ण विश्व में एक मानवीय व् वित्तीय आपदा का रूप ग्रहण कर चुका है, साथ ही 7 मार्च को केरल में बर्ड फ्लू के होने की पुष्टि ने भी एक आशंका व् भय की स्तिथि बनायी हुई है, जिससे समाज में कई जगह पक्षी तथा मुर्गीपालन के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो रहा है व् कई बड़े व्यवसायी बड़े स्तर पर मुर्गियों को स्लोटर कर रहे है जो की भविष्य में एक बड़े वित्तीय संकट की और इशारा है।

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साथ ही आवश्यकता है तकनिकी विकास की जिसके मध्यम से हम भविष्य में होने वाली महामारियों का डट के सामना कर सकें एवं मुर्गिप्लाकों को विभिन चुनोतियों से लड़ने के लिए मानसिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान कर सकें। महामारी की दशा में संयम व् नागरिक  जागरुकता भय की स्तिथि को कम कर संक्रमण को भी रोकती है।

वर्तमान में आर्थिक अव्य्वास्थ्ता तथा विदेशी आयात पर देश की निर्भरता को देखते हुए माननीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने आह्वान किया है की अब भारतवर्ष को आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा अर्थात स्वरोजगार को बढ़ावा देना ही होगा। संपूर्ण देश 24 मार्च 2020 से 3 मई तक हुए लौकडाउन से लगभग 32000 करोड़ रु की  प्रतिदिन आर्थिक हनी उठा रहा है, इसलिए समय की आवश्यकता है की हम ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दें जो की लोगो को आत्मनिर्भर बनाये तथा कम समय में व् कम धन व्यय करके जिन लोगो का रोजगार छिन गया है उनको रोजगार प्रदान कर सके, एवं देश को कुक्कुट पालन में (अंडा उत्पादन में तीसरा व् मांस उत्पादन में पांचवा) से प्रथम स्थान पर लाये।

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  1. Scrupulously compiled. I believe the information presented especially highlighting the biosecurity details are of great help in the present situation. Also, the article is very informative and motivating for the young entrepreneurs to take up poultry farming.
    Good work Dr. Supriya. Keet it up??

  2. एक बेहतरीन लेख, आसान भाषा में लिखा गया है। निश्चित तौर पर ये किसानों को बहुत मदद करेगा। धन्यवाद डॉ सुप्रिया।

  3. This article shall serve the purpose of a great knowledge not only to the professionals but also to thr non-professional viewers. Our country rears poultry at its various corners which serves a great input to the Indian economy. Hence, such an article is much needed to be circulated, which would directly or indirectly serve to benifit the country.

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