पशुधन आधारित उद्यमों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण

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जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो परिवार चलता है, गांव चलता है और राष्ट्र चलता है” जवाहर लाल नेहरू

भारत एक कृषि आधारित देश है और 70% से अधिक किसान भूमिहीन और सीमांत हैं, जहां प्रति व्यक्ति भूमि-धारण मुश्किल से 0.2 हेक्टेयर है। हलाकि हमारे देश की कृषि प्रणाली मुख्य रूप से मिश्रित फसल-पशुधन कृषि प्रणाली है, जिसमें फसल उत्पादन के साथ पशुधन उत्पादन भी एक अभिन्न अंग है। एनएसएसओ (NSSO, 2014) के अनुसार, कृषि क्षेत्र किसानों की आय के लगभग आधे हिस्से में योगदान देता है और पशुधन क्षेत्र द्वारा दसवें से अधिक का योगदान दिया जाता है,  इस प्रकार किसान की कुल आय में कृषि और संबद्ध क्षेत्र का योगदान 60% से अधिक होता है। लगभग 90% पशुधन छोटे किसानों और भूमिहीन ग्रामीण परिवारों के स्वामित्व में है। ये छोटे भूमिहीन पशुपालक, अपने दैनिक घरेलू खर्चों को पूरा करने के लिए पशु-उत्पाद जैसे की दूध व मॉस और जानवरों की बिक्री से होने वाली आय पर निर्भर होते हैं । इस प्रकार, पशुधन ग्रामीण परिवारों के लिए आय का मुख्य स्रोत और रोजगार की एक सतत धारा उत्पन्न करता है। हालांकि, पारंपरिक पशुपालन काफी हद तक महिलाओं के हाथों में है, क्योकि अधिकांश पशुधन गतिविधियाँ महिलाओं की सहायता के बिना अधूरी होती हैं। क्योंकि वे पशुओं के प्रबंधन की बहुसंख्यक गतिविधियाँ में लिप्त रहती है जैसे कि पशुओं की देखभाल, पशुओं की चराई, दाना व पानी देना, स्वास्थ्य प्रबंधन, दूध निकालना, जानवरों व उनकी शेड की सफाई आदि। वे गोबर के उपलों और फसल के अवशेषों के साथ मिलाकर खाना पकाने का ईंधन भी तैयार करती हैं । इसके अतिरिक्त पशु उत्पादों का घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन में भी महिलाओं हैं का विशेष योगदान होता है। अधिकतर ग्रामीण महिलाएं सुबह से शाम तक विभिन्न पशु सम्बंधित गतिविधियों में ही व्यस्त रहती हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में कहा गया है कि पशुपालन क्षेत्र नारीकृत हो रहा है, जिसमें कृषक, उद्यमी और मजदूर के रूप में कई भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।

मुख्यधारा में लिंग और महिला सशक्तिकरण की अवधारणा
प्रायः ये देखा गया है समाज में महिलाओं की काफी भागीदारी और योगदान होने के बावजूद,  उनकी भूमिका को विधिवत स्वीकार नहीं किया जाता है। विश्वभर में महिलाओ को सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देने लिए महज एक गृहिणी से ऊर्जावान बहुमुखी व्यक्तित्व मे परिवर्तित होने के लिए  एक कट्टरपंथी दौर से गुजरना पड़ता है। मौजूदा दौर में भी विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि प्रौद्योगिकी, ऋण, सूचना, इनपुट, सेवाओं, भूमि और पशुधन सहित उत्पादक पर-संपत्तियों के स्वामित्व में महिलाओ को महत्वपूर्ण लैंगिक असमानताओं से जूझना पड़ता है। इस प्रकार से उपयुक्त और सबसे प्रभावी तरीकों से लिंग के मुद्दों को संबोधित करने में ज्ञान और जागरूकता के बीच लिंग ‘के लिए’ और ‘इसकी जिम्मेदारी’ बनाने की प्रक्रिया को लिंग मुख्यधारा कहा जाता है। मुख्यधारा एक “महिला के घटक” या यहां तक कि एक मौजूदा गतिविधि में “लिंग समानता घटक” को जोड़ने के बारे में बिलकुल नहीं है । यह महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से परे है;  इसका मतलब किसी भी नीति, कार्यक्रम, सुधार या गतिविधि या किसी भी विकास के अजंडे में महिलाओं और पुरुषों के अनुभव, ज्ञान और हितों को लाना है। इसी तरह, महिला सशक्तीकरण से तात्पर्य महिलाओं के लिए एक ऐसे वातावरण के निर्माण से है जहां वे अपने निजी लाभों के साथ-साथ समाज के लिए भी अपने निर्णय ले सकें। यह एक सक्रिय, बहु-आयामी प्रक्रिया है जो महिलाओं को आर्थिक सशक्तीकरण सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी क्षमता और शक्तियों को महसूस करने में सक्षम बनाती है। आर्थिक सशक्तीकरण महिलाओं में अपनी आर्थिक भूमिका के बारे में जागरूक कराने के अलावा उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने और एक उद्यम में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए अवसर प्रदान करता है।

महिलाओं के लिए पशुधन उद्यमी बनने के कारण
उद्यमशीलता एक अभिनव और गतिशील प्रक्रिया है जो अपने स्वयं के सामाजिक प्रणाली के भीतर कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करती है। एक समाज में उद्यमियों का उभरना समाज में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारक पर बहुत हद तक निर्भर करता है। महिलाओं के बीच उद्यमशीलता अभी हाल में ही प्रचिलित नवीनतम आयाम है, खासकर ग्रामीण महिलाओं के लिए। यद्यपि भारत में ग्रामीण महिलाएँ कृषि उत्पादन, पशुपालन, घरेलू कर्तव्यों और बच्चो की देख-रेख के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, लेकिन वर्तमान में वे अपने आर्थिक स्थिति को बढ़ाने और गरीबी का मुकाबला करने में सक्षम हो रही हैं। भारत सरकार ने महिला उद्यमियों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया है, जिनके उद्यम में पूंजी का 51 प्रतिशत न्यूनतम वित्तीय हित है और यह कम से कम 51 प्रतिशत महिला श्रमिकों से बना है । महिला उद्यमियों की संख्या समय के साथ बढ़ी है, खासकर 1990 के दशक से। भारत के उपराष्ट्रपति, एम. वेंकैया नायडू के उल्लेख के अनुसार अनुमान लगाया जाता है कि वर्तमान में महिला उद्यमियों में भारत के कुल उद्यमियों का लगभग 10 प्रतिशत शामिल है और यह प्रतिशत हर साल बढ़ रहा है। “सशक्त महिलाओं: सशक्त उद्यमशीलता, नवाचार और स्थिरता” पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि समावेशी, समान और सतत विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए महिलाओं का सशक्तीकरण केंद्रीय है और यह न केवल एक राष्ट्रीय लक्ष्य है, बल्कि एक वैश्विक एजेंडा भी है। जब एक उद्यम एक महिला द्वारा स्थापित और नियंत्रित किया जाता है, तो यह न केवल आर्थिक विकास को बढ़ाता है, बल्कि इसके कई वांछनीय परिणाम भी होते हैं। महिला उद्यमियों का उभरना और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उनका योगदान भारत में काफी दिखाई देता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए अधिक लाभदायक है क्योंकि यह उन्हें अपने घर और पशुधन उन्मुख कार्य की देखभाल करते हुए परिवार की आय में वृद्धि करने में सक्षम बनाता है।

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यदि  हम  देखे तो पशुओं से संबंधित कच्चे माल का उत्पादन और उससे संबंधित प्रसंस्करण उद्योग को पशुधन उद्यमी माना जाता है। अन्य शब्दों में, एक व्यक्ति जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पशुपालन क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, पशुधन उद्यमी के रूप में जाना जाता है। ज्यादातर समुदायों में, ग्रामीण महिलाएं दिन-प्रतिदिन की देखभाल और जानवरों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होती हैं। कई कारकों के कारण उनकी भागीदारी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन प्रमुख कारण आय के सहायक विकल्पों की तलाश में परिवार के पुरुष सदस्यों का प्रवास (अस्थायी या स्थायी) है,  इस प्रकार घर की महिलाओं को इन गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल होने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके साथ ही, घरेलू स्तर पर पशुपालन बड़े पैमाने पर महिलाओं के नेतृत्व वाली गतिविधि है। अध्ययनों से पता चलता   है कि महिलाओं को स्थानीय चारा-संसाधनों, पशु-व्यवहार और उत्पादन विशेषताओं के बारे में अच्छी जानकारी होती है। मुख्य कार्यक्षेत्र जिसमें महिलाएं सार्वभौमिक रूप से शामिल होती हैं, वे है पिछवाड़ा /बैकयार्ड मुर्गीपालन, छोटे जानवरो को पालना (भेड़, बकरियों और सुअर),  साथ ही दूध और दूध उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन सहित डेयरी व्यवसाय। उक्त सभी क्षेत्र महिलाओं के लिए एक प्रभावी साधन है जो कि अपने घर की देखभाल करने के साथ-साथ पशुपालन करते हुए परिवार की आय में वृद्धि करा सकते है । यह न केवल राष्ट्रीय उत्पादकता बढ़ाने या नए रोजगार पैदा करने के लिए है, बल्कि यह महिलाओं को अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं को बढ़ाने और समग्र रूप से परिवार और समाज में निर्णय लेने की स्थिति को भी बढ़ाने में मदद करता है।

डेयरी फार्मिंग
चूंकि डेयरी उद्योग हाल के वर्षों में क्रय शक्ति में वृद्धि और स्वास्थ्य चेतना के कारण अधिक उपभोक्ता उन्मुख हो गया है, जिससे दूध और दूध उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिला है। डेयरी फार्मिंग उन महत्वपूर्ण उद्यमों में से एक है जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों पर हावी है। डेयरी उत्पादन में कुल रोजगार का 93% हिस्सा महिलाओं का है। आर्थिक स्थिति के आधार पर, महिलाएं पशु-प्रबंधन की गतिविधियों के अधिकतर सभी कार्य करती हैं । इसलिए, यह ग्रामीण महिलाओं के लिए एक लाभदायक उद्यम के रूप में उभर कर आ सकता है, क्योंकि वे पशु व्यवहार और उत्पादन विशेषताओं की अच्छी जानकार भी होती है। महिलाओं को छोटे पैमाने पर डेयरी फार्मिंग या वाणिज्यिक डेयरी व्यवसाय के लिए निर्देशित किया जा सकता है। वे कम संख्या में पशुओं को पालकर अपना डेयरी फार्म  शुरू कर सकती हैं और उचित व्यवसाय योजना, वैज्ञानिक प्रबंधन और देखभाल से डेयरी व्यवसाय से अधिकतम उत्पादन और लाभ सुनिश्चित कर सकती हैं। अगर महिलाओं को व्यावसायिक आधार पर अपने डेयरी उद्यम का विस्तार सफलतापूर्वक करना है, तो उन्हें नई और आधुनिक डेयरी फार्मिंग टूल्स, समय और ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरण/तकनीकों आदि को अपनाना होगा। इस सन्दर्भ में डेयरी सहकारी समितियां ग्रामीण महिलाओं के लिए अधिक सशक्त विकल्प के रूप में उभर कर आता है, क्योंकि वे घर से बाहर अपना निर्णय लेने के लिए अधिकृत होती हैं। भारत में अधिकांश डेयरी सहकारी समितियां महिलाओं के प्रयास के माध्यम से, जिसे आनंद पैटर्न के रूप में जाना जाता है, एक एकीकृत सहकारी संरचना है जो खरीद प्रक्रिया और बाजार का उत्पादन करती है। इसके अलावा डेरी व्यवसाय में फ़ीड उत्पादन और पशुओं के अपशिष्ट का उपयोग करके वर्मी-कम्पोस्टिंग उत्पादन संबंधित सूक्ष्म उद्यम महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हो सकते है, जिसमें की वे अपने तकनीकी कौशल और पशुधन से उत्पन्न कच्चे माल दोनों का उपयोग कर सकती हैं। इसी प्रकार से अन्य संभावित क्षेत्रों में महिलाएं चारा सम्बंधित बीज/चारा बैंक भी शुरू कर सकती हैं। महिलाएं एक साथ गठबंधन कर सकती हैं, उपजाऊ भूमि खरीद सकती हैं और गुणवत्ता वाले चारे का उत्पादन कर सकती हैं और उन्हें पास के पशुपालकों को आपूर्ति कर सकती हैं।

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पोल्ट्री फार्मिंग
मुर्गीपालन ग्रामीण महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पशुधन गतिविधि है क्योंकि यह एक नकद आय और रोजगार के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ कम कीमत पर घरेलू पोषण में सुधार करती है। यह पूरे वर्ष भर त्वरित रिटर्न और आय का निरंतर स्रोत प्रदान करता है,  क्योंकि  इसके तहत बाजार में अंडे व मांस की अच्छी मांग और कीमत होती है । ग्रामीण महिलाएं मुख्य रूप से बैकयार्ड/पिछवाड़ा मुर्गीपालन में पक्षी की देखभाल और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होती हैं। क्योंकि: उनके लिए यह प्रबंधन करना आसान होता है जिसे विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों में भी किया जा सकता है । वर्तमान में महिलाओं ने बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग को स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से भी अपनाया है जो की 10 से अधिक महिलाओं की स्वैच्छिक एसोसिएशन होती है, जिसमे प्रत्येक सदस्य नियमित रूप से बचत करता है और अपनी बचत को एक सामान्य निधि में बदलने और प्रबंधन और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए सहमत  होता है। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देश भर में महिलाओं की आजीविका पर एक उल्लेखनीय प्रभाव देखने को मिला है। चूंकि महिलाओं को पक्षियों या अंडों की खरीद और विपणन करते समय विभिन्न लोगों के साथ सरोकार करना पड़ता है, इसलिए इन महिलाओं में धीरे-धीरे आत्मविश्वास उत्पन्न होने लगता है। इसके साथ ही महिलाओं की सामाजिक स्थिति और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाता मिलता है और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने में सहायक सिद्ध होता है । इसी तरह से बैकयार्ड मुर्गीपालन से बीपीएल (BPL) परिवारों विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न केंद्र और राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे कि राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एन एल  एम), ग्रामीण/रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट (आरबी पीडी) जो की लाभार्थियों को पूरक आय और पोषण संबंधी सहायता प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

भेड़ और बकरी पालन
पशुधन की आजीविका के बीच, छोटे जुगाली करने वाले पशु, मवेशियों की तुलना में अधिक किफायती होते हैं क्योंकि वे कम निवेश उन्मुख हैं। अच्छे आर्थिक प्रतिफल की क्षमता वाले छोटे जुगाली करने वाले पशु और उसके उत्पादों की उच्च मांग कई प्रगतिशील किसानों को वाणिज्यिक स्तर पर भेड़/बकरी उद्यम को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे है । भेड़/बकरी को मुख्य रूप से दूध, मांस, प्रजनन स्टॉक की बिक्री के लिए आय स्रोत के रूप में पाला जाता है । भारत के कई हिस्सों में, कुछ बकरी की नस्लों को फाइबर, मांस, दूध और पनीर उत्पादन के लिए भी पला जाता है। सामान्य तौर पर, भेड़/बकरी रखने में महिलाओं की भूमिका ग्रामीण परिवारों में बहुत महत्वपूर्ण है। भेड़/बकरी सबसे महत्वपूर्ण साधन है, जिसके माध्यम से ग्रामीण महिलाएं अपने और अपने परिवार के सदस्यों के लिए नकद जरूरतों में सार्थक योगदान देने में सक्षम हैं । इन जानवरो की बिक्री/खरीद, चराने, खिलाने और पानी पिलाने, बच्चों की देखभाल, घर के रख-रखाव की सफाई, दूध निकलना, स्वास्थ्य प्रबंधन और इनके  प्रजनन प्रबंधन जैसी अधिकांश गतिविधियाँ मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती हैं। इस प्रकार, भेड़/बकरी पालन घर पर रहने वाली महिलाओं के लिए कमाई का सबसे उपयोगी तरीका है। व्यावसायिक पालन को और अधिक सफल बनाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने और अच्छी गुणवत्ता के प्रजनन स्टॉक की उपलब्धता आवश्यक होती है। इसके साथ ही, बाजार की उभरती हुई अनुकूल परिस्थितियों और उन्नत  प्रौद्योगिकियों की आसान पहुंच भी इसे इन महिलाओं के लिए एक लाभदायक उद्यम बना सकती है।

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महिला उद्यमियों के लिए अवसर तथा  चुनौतियां
पशुपालकों के रूप में महिलाओं की भूमिकाओं की पहचान करना,  उनका समर्थन करना, उनकी निर्णय लेने की शक्ति और क्षमताओं को मजबूत करना महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के महत्वपूर्ण पहलू हैं। महिला उद्यमियों के विकास और पशुधन आधारित उद्यमशीलता गतिविधियों में उनकी अधिक भागीदारी के लिए सभी क्षेत्रों से सही प्रयासों की आवश्यकता है। सरकारें महिलाओं के लिए सक्षम वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ताकि प्रभावी, समावेशी और लैंगिक समानता वाले संगठन गरीबी कम करने और खाद्य सुरक्षा की उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। इसके अलावा क्षमता निर्माण के माध्यम से पशुधन उत्पादन में सुधार लाने के लिए पशुधन प्रौद्योगिकियों का बेहतर उपयोग करने और अच्छी प्रथाओं के लिए महिला किसानों की सहायता करनी होगी।  इस क्षेत्र में महिला उद्यमी के लिए कुछ महत्वपूर्ण बाधाएं भी है जो निम्नलिखित है:

  • वित्तीय सेवाओं और वित्तीय साक्षरता तक पहुंच
  • व्यवसाय और परिवार की जिम्मेदारी को पूरा करने वाली महिलाओं की दोहरी भूमिका
  • ग्रामीण महिलाओं में निरक्षरता
  • कम जोखिम वहन क्षमता
  • रणनीतिक नेताओं के रूप में दृश्यता की कमी
  • सूचना और सहायता का अभाव
  • प्रशिक्षण और विकास की आवश्यकता
  • बुनियादी ढांचे की कमी और व्यापक भ्रष्टाचार
  • पुरुष प्रधान समाज
  • गतिशीलता में बाधा

निष्कर्ष
भारत में ग्रामीण और आर्थिक विकास में पशुपालक महिला उद्यमी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। हालांकि, सहायक नेटवर्क की कमी, वित्तीय और विपणन संभावनाओं से उनकी उद्यमशीलता गतिविधियों में बाधा आ सकती है। राष्ट्रीय नीतियों को इस मुद्दे से निपटने में दृढ़ होना चाहिए और स्थानीय निकायों को सामुदायिक स्तर पर और अंत में इन नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण और निरंतर समर्थन के साथ, कैरियर के रूप में उद्यमिता अपनाने के लिए प्रेरित करने की अभी भी भरसक आवश्यकता है। इस प्रकार से ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं के वर्तमान परिदृश्य को देखकर, सूक्ष्म उद्यम या लघु उद्योग उद्यमिता उनके सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।

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  1. डॉ प्रज्ञा आपने Concise में बहुत ही शानदार, टेक्निकल know how से लबालब एवं उत्कृष्ट जानकारी का कम्प्लीट पैकेज पशुपालकों,विद्यार्थियों,शोधकर्ताओं एवं शिक्षकों को देकर हमलोगों को अपनी ज्ञान की रौशनी से सराबोर किया। आपकी लेखनी की स्याही हमेशा इसी तरह से पशुधन प्रबन्धन के ज्ञान को विखेरकर सब को लाभान्वित करते रहे यही आशा करता हूँ।

  2. It shows a great effort of the author that she thoroughly observed each & every aspect related to village women’s, it’s a gud initiative to make them independent & contribute to economy of our country.

  3. This article provides Indepth information & is supported with very useful data. It highlights the major hurdles in empowerment of women of rural areas but at the same time this article also suggests ways to overcome those hurdles. Excellent article ?

  4. Women plays a important role….in routine A.H operations…there is a lucrative opportunities for the women farmers to become a entrepreneur through various livestock based enterprises…..nice article especially for the rural women farmers

  5. Mam your article is really inspiring for farm women as they will become aware of new ventures. Your article reminds me words by Hillary Clinton, “When women participate in economy everyone benefits”.

  6. Very good information and very well explained the need of women empowerment in Dairy sector. An another alternate way for women employment, described and suggested very clearly. Very useful and informative article for the backbone (women) of our country. Highly appreciating the Research and hard-work.

    Wish You very best success for future.

  7. Very informative and well researched article, I am sure its going to be a great source of help and guidance to all the farmers and small dairy farm owners…wish good luck to the writer.

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  1. डीएसटी परियोजना के तहत “उत्तराखंड राज्य में बकरी आधारित तकनीकी और आजीविका में सुधार” | ई-पशुपालन

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