मादा पशुओं में प्रजनन अंगों के योनि द्वार से बाहर आने से पशु एवं पशुपालकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। शाब्दिक भाषा में इस समस्या को योनिभ्रंश कहते हैं, जबकि आम बोल-चाल की भाषा में फूल दिखाना, पीछा दिखाना, शरीर दिखाना, गात दिखाना इत्यादि नामों से जाना जाता है। इस समस्या से ग्रसित पशु बैठते हुए या खड़े रहते हुए जोर मारता है और पशु के योनि द्वार से उसके जननांगों के हिस्से बाहर आ जाते हैं। इस समस्या से पीड़ित पशु पेशाब भी जोर लगाकर करते हैं। इस समस्या से ग्रसित पशुओं की योनि, ग्रीवा और कभी-कभी गर्भाश्य भी मादा पशु के योनि द्वार से बाहर लटकता हुआ दिखायी देता है। यदि समय रहते इस समस्या की ओर ध्यान ना दिया जाए तो यह एक गंभीर रूप ले लेती है जिससे कई बार पशु की जान भी चली जाती है।
यह समस्या गर्भावस्था के किसी भी समय हो सकती है लेकिन ज्यादातर ब्याने से कुछ माह पहले से ब्याने के कुछ दिनों बाद अधिक देखने को मिलती है। आमतौर पर यह गायों की तुलना में भैंसों में अधिक होती है। दूधारू पशुओं के इस समस्या से ग्रसित होने की स्थिति में उनका दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है और देरी से उसका ईलाज करवाने से उसकी प्रजनन क्षमता भी कम हो सकती है। बैठते समय पशु के पीछा दिखाने पर अवारा कुत्तों द्वारा बाहर निकले अंगों को भारी नुकसान पहुंचा दिया जाता है। पीछा दिखाने की निम्नलिखित तीन अवस्थाएं हो होती हैं:
- पहली दशा (ग्रेड-1): इसमें पशु जोर नहीं मारता है सिर्फ बैठते समय ही उसकी योनि के आसपास का हिस्सा बाहर आता है।
- दूसरी दशा (ग्रेड-2): इस दशा में पशु खड़े रहते हुए बहुत जोर मारता है और बच्चेदानी के मुंह तक का हिस्सा लाल गुबारे की तरह पीछे निकल जाता है।
- तीसरी दशा (ग्रेड-3): इस दशा में बच्चेदानी का ज्यादातर हिस्सा बाहर आ जाता है और बच्चेदानी पर जख्म हो जाते हैं जिसकी वजह से खून भी बहने लगता है। यह बहुत घातक स्थिति है और इसका तुरंत चिकित्सक से ईलाज करवाना चाहिए।
इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं जिन में से मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं:
- पशु के शरीर में आवश्यक तत्वों जैसे कि कैल्शियम, फास्फोरस, आयोडिन, सेलेनियम और विटामिन-ई की कमी होना मुख्य कारणों में से हैं। कैल्शियम और फास्फोरस का असंतुलन इसका बड़ा कारण है। इससे पशु के योनि के आसपास की मांसपेशियां कमजोर/ढीली हो जाती हैं।
- पशु के शरीर में प्रोजेस्टीरोन हॉरमोन की कमी या ईस्ट्रोजन की अधिक मात्रा का होने से यह समस्या हो सकती है। पशुओं को ऐसा हरा चारा जैसे कि बरसीम, ल्यूसर्न आदि, जिसमें ईस्ट्रोजन हॉरमोन की मात्रा अधिक होती है, के खिलाने से भी इस समस्या को बढ़ावा मिलता है। बरसात के मौसम में फफूंदी लगा चारा या अनाज भी ईस्ट्रोजन हॉरमोन जैसा असर दिखाता है।
- ब्याने के बाद अगर बच्चेदानी में सूजन या संक्रमण हो जाए तो पशु जोर मारता है जिससे पशु पीछा दिखाने लग सकता है।
- कई पशुओं में जन्म से ही बच्चेदानी को अपनी सही स्थिति में रखने वाली मांसपेशियां कमजोर होती हैं और पीछा दिखाने का एक कारण बनती हैं।
- यह समस्या कई पशुओं में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है। प्रजनन के कार्य में नहीं लेकर इनकी छंटनी कर देनी चाहिए।
- कई पशुओं में ब्याने के समय योनि में जख्म हो जाते हैं या कठिन प्रसव के समय अत्याधिक जोर लगाने पर, बाद में पिछा दिखाने लगता है।
- पशु के अण्डेदानी में फफोला (सिस्ट) हो जाने पर अधिक मात्रा में उत्पन्न ईस्ट्रोजन हॉरमोन भी इसका एक कारण होता है।
उपचार एवं रोकथाम
- बाहर निकले हुए योनि के भाग को ज्यादा देर तक बाहर नहीं रहने देना चाहिए। इसका तुरंत ध्यान करना चाहिए और बाहर निकले हुए भाग को मिट्ठी, गोबर-पेशाब, पशु-पक्षियों और कुत्तों से बचाकर रखना चाहिए। ऐसे पशुओं को खुली जगह की बजाय, साफ-सुथरी व बंद जगह पर बांधना चाहिए। पशु के बाहर आए शरीर पर पेट्रोल, नमक, चीनी, स्पिरिट या शराब आदि नहीं डालनी चाहिए, इससे जख्म हो सकते हैं।
- योनि द्वार से बाहर आए भाग को साफ हाथों से पकड़कर लाल दवाई के घोल से धोकर वापिस डाल देना चाहिए। निकले हुए शरीर को धीरे-धीरे अपनी हथलियों की सहायता से वापिस योनि में हाथ डाल कर अंदर करना चाहिए। लाल दवाई का घोल बनाने के लिए आधी बाल्टी साफ पानी में आधी चुटकी लाल दवाई की मात्रा चाहिए। बाहर आए हिस्से पर कोई कीटाणुनाशक क्रीम भी लगाई जा सकती है। याद रहे आपके हाथों के नाखून कटे हुए होने चाहिए और हाथ साबुन से धोने के बाद ही बाहर निकले हिस्से को छुएं।
- पिछा दिखाने वाले पशु में पेशाब नली अवरूध हो जाती है, जिस कारण पशु और अधिक जोर मारने लगता है और बाहर निकले हुए योनि के हिस्से को अंदर धकेलने में मुश्किल आती है। ऐसी स्थिति में साफ मुलायम कपड़े की सहायता से निकले हुए भाग को ऊपर उठाकर पहले पेशाब निकाल देना चाहिए। पेशाब बाहर नहीं आने की स्थिति में चिकित्सक की सहायता से पेशाब की थैली को खाली करवाना चाहिए।
- पिछा बार-बार बाहर आने की स्थिति में पशु के शरीर पर छिंकी लगाकर भी रोका जा सकता है। ऐसी स्थिति में समय रहते पशु चिकित्सक की सहायता अवश्य लेनी चाहिए।
- इस बीमारी से ग्रसित पशु की खुराक का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एक समय में पेटभर चारा खिलाने की बजाय थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में कई बार चारा खिलाना चाहिए। पशु का आहार संतुलित होना चाहिए और खनिज तत्वों का मिश्रण व नमक भी खुराक में देना चाहिए। पशुओं को रोग या फफूंद लगा हुआ चारा या अनाज बिल्कुल नहीं खिलाना चाहिए।
- पीड़ित पशु के बांधने वाली बाड़े में पशु की अगली टांगों वाली जगह को लगभग आधा फुट नीचा कर देना चाहिए। ऐसा करने से पीड़ित ग्याभिन पशु में बच्चेदानी का झुकाव आगे की ओर रखने में सहायता मिलती है। ऐसा करने से पशु को राहत मिल जाती है।
- बच्चेदानी में जख्म या अण्डेदानी में फफोला होने की संभावना पर पशु चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
- पशुओं को पेट के कीड़ों की दवाई भी समय-समय पर देनी चाहिए।
- ब्याने के बाद अगर बच्चेदानी में जेर रह गई हो या बच्चेदानी से मवाद या मैला आ रहा हो तो उसका बिना देरी किये उपचार कराना चाहिए।
The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately. |
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