पशुओं की देखभाल में बरते जाने वाली विशेष सावधानियां (वर्षा ऋतु में)

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बरसात के मौसम में हमें अपने पशुओ का खास/विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस मौसम में एक तरफ जहाँ हमें तथा हमारे पशुओ को गर्मी से राहत मिलती है, वही दूसरी तरफ इस मौसम में पशुओ के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। इस मौसम मे वातावरण में अधिक आर्द्रता तथा तापमान में उतार चढ़ाव के कारण पशुओ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अगर समय रहते सावधानी नही बरती गयी तो पशुओं में कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है जिससे पशु की जान भी जा सकती है। इस मौसम में हमें पशुओ के पोषण तथा प्रबन्धन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बरसात के मौसम में पशुओं को भारी बारिश तथा हवाओं से बचने के लिए आश्रय की आवश्यकता होती है। बरसात के मौसम में पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है तथा परजीवियो के लिए उपयुक्त मौसम होने के वजह सें इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है। इस मौसम में वातावरण में उपस्थित आर्द्रता एवं अधिक तापमान बीमारी उत्पन्न करने वाले कारको (जीवाणु, विषाणु एवं कवक) तथा बीमारी फैलाने वाले कारको (मच्छर तथा मक्खी) दोनो की ही संख्या बढ़ा देता है, जिससे पशु विभिन्न संक्रामक बीमारियो का शिकार हो जाता है। अतः इस मौसम में पशुओं के उचित रख-रखाव हेतु निम्नलिखित बातें ध्यान रखना चाहिए।

1. पशु आवास के लिए सही स्थान का चुनाव
पशु का आवास जितना स्वच्छ एवं आराम दायक रहता है, पशु का स्वास्थ्य उतना ही अच्छा रहता है और वह अपनी क्षमता के अनुसार अधिक उत्पादन करनें में सक्षम होता है। पशु के शेड का निर्माण सूखी एवं उचित तरीके से तैयार जमीन पर ही करना चाहिए। जिस स्थान पर पानी जमा होता हो या जहाॅ की जमीन दलदली हो, या जहां भारी वर्षा होती हो पशु शेड का निर्माण नही करना चाहिए। शेड का फर्श पक्का समतल तथा आसपास से ऊॅचा होना चाहिए जिससे बारिस का पानी, मल-मूत्र, तथा नालियों का पानी इत्यादि रूकने न पायें और आसानी से बाहर निकल सके,  जिससे बीमारी फैलाने वाले कारक (मक्खी मच्छर) उत्पन्न न हो सके।

शेड की दीवार की उचाई 1.5 से 2 मीटर तक होनी चाहिए। दीवारों को नमी से सुरक्षित रखने के लिए छत पर अच्छी तरह से पलस्तर होना चाहिए। शेड में सूर्य प्रकाश के रोशनी पहुचना चाहिए एवं हवादार होना चाहिए। जिससें शेड में नमी न रहे। इसलिए आवास की लम्बाई उत्तर दक्षिण दिशा में होनी चाहिए, जिससे पूर्व एवं पश्चिम की खिडकी एवं दरवाजे से रोशनी एवं हवा प्रवेश हो। बारिश के दौरान पशुओं को शेड के अन्दर ही रखना चाहिए। शेड में बारिश के दिनों में कीटनाशक घोल का छिड़काव करना चाहिए, जिससे संक्रामक बीमारी फैलाने वाले कारको पर नियंत्रण किया जा सके। बारिश के मौसम में पशु के शेड में शाम को धुँवा करें, जिससें इनको मक्खी एवं मच्छरों के प्रकोप से बचाया जा सके। बारिश के मौसम में पशु के मूत्र को गढ्ढ़े में एकत्रित किया जाना चाहिए, तत्पश्चात उसे नालियों के माध्यम से खेतो में ले जाना चाहिए।

पशु आवास (सही स्थान)

2. आहार प्रबन्धन
बारिश के मौसम में पशुपालक अपने पशुओं को चरने भेज देते हैं। ऐसा न बिल्कुल करें, क्योंकि गीली घास में कई ऐसे कीड़े होते है, जो घास के साथ पशु के पेट में चले बिल्किुल जाते है और उनके शरीर को नुकसान पहुचाते है। कई बार बारिश के मौसम में पशु का चारा एवं दाना भीग जाने के कारण उसमें कवक लग जाते है ऐसा चारा एवं दाना पशु को नही खिलाना चाहिए। दाना भीगने से उसमें कवक पनप जाते है, जो कई प्रकार के जहरीले पदार्थ दाने में पैदा करते हैं और उसको खाने से पशुओ में विषाक्तता हो जाती है। हमेशा हरे चारे को काट कर सूखे चारे मे मिलाकर ही खिलाना चाहिए। फलीदार चारा अधिक खिलाने से पशुओ में अफरा रोग की समस्या हो जाती है। बारिश के मौसम में संतुलित आहार खिलाना चाहिए, जो कि पशु के शारीरिक विकास, अच्छा स्वास्थ्य तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बनायें रखने के लिए आवश्यक होता है। संतुलित आहार विभिन्न प्रकार के हरे चारे सूखे चारे एवं विभिन्न प्रकार के दाने को मिलाकर बनाया जाता है। संतुलित आहार यदि पूरे वर्ष पशुओ को खिलाया जायें तो दुग्ध उत्पादन की लागत बहुत कम हो जाती है। यह सर्वविदित हैं कि पशुओं के स्वास्थ्य की अच्छी देख-भाल से दुग्ध उत्पादन सिर्फ 10 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है जबकि यदि उनको संतुलित आहार खिलाया जायें तो दुग्ध उत्पादन में 50 प्रतिशत की बढोत्तरी हो सकती हैं।संतुलित दाना मिश्रण 6 लीटर दूध देने वाली गाय को 4.5 कि0ग्रा0 प्रतिदिन एवं भैंस को 5 कि0ग्रा0 प्रतिदिन खिलाना चाहिए। गर्भावस्था के अन्तिम 2 माह में गाय/भैंस को 1 कि0ग्रा0 संतुलित दाना, 1 कि0ग्रा0 खली अधिक देना चाहिए। ऐसे पशुओ को 3 कि0ग्रा0 संतुलित दाना मिश्रण प्रतिदिन एवं 1 कि0ग्रा0 खली देना चाहिए। बछडे़ एवं बछड़ियों को 1 कि0ग्रा0 से 2.5 कि0ग्रा0 तक दाना प्रतिदिन उनकी उम्र या वजन के अनुसार देनी चाहिए। जब हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो उपर्युक्त देय दाना 0.5 कि0ग्रा0 से 1 कि0ग्रा0 तक घटाया जा सकता है।

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पूरे वर्ष हरे चारे को प्राप्त करने के लिए हमें हरा चारा उगाने की ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे पशुओं को हरा चारा पूरे वर्ष मिलता रहे। आवश्यकता से अधिक हरें चारे को सुखाकर हमें हे या साइलेज बना कर रख लेना चाहिए तथा बारिश के दिनों में जब हमें हरें चारे की आवश्यकता हो खिलाना चाहिए।

हे
यह एक दलीय एवं मुलायम तने वाली घास जैसे-जई को सुखाकर बनाया जाता है। हरी फसल को काटकर 5 से 10 कि0ग्रा0 का बन्डल बना लेते है और इसे एक दूसरे के सहारे खड़ा करके सुखा लेते है। अच्छी तरह से बन्डल को सुखाकर एक सूखे स्थान पर रख देते है।

साइलेज
इसमें अचार की भांति हरे चारे का प्रयोग किया जाता है, जो सुपाच्य होता है और पशु इसे बहुत चाव से खाते है। एक दाल वाली फसल जैसे ज्वार, मक्का, बाजरा, शंकर नेपियर हरे चारे से अच्छी गुणवत्ता वाला साइलेज बनता है, क्योकि इसमें कार्बोहाइड्रेट अधिक होता है। साइलेज बनाने के लिए आधी फसल मे फूल आ जाने के बाद खेत से काटकर, फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर अपने घर के बाड़े या खेत में जहां पानी एकत्रित न होता हो, गढ्ढे़ में दबाकर बनाते है। चारे को गढ्ढ़े में अच्छी तरह से दबा-दबा कर भरना चाहिए, ताकि उनके बीच में हवा न रूक सकें। जमीन से 1 फिट ऊपर तक कटा हुआ चारा भरकर पॉलिथीन से ढककर मिट्टी डाल दे और मिट्टी के ऊपर गोबर से लिपायी कर दे। लगभग 40-50 दिनों में यह खाने के लिए तैयार हो जाता हैं।

अगर हे या साइलेज उपलब्ध न हो तो गेंहू के भूसें व पुवाल की गुणवत्ता बढ़ाकर पशु को खिलाया जा सकता है। उदाहरण के लिए-

  • 90 कि0ग्रा0 भूसा/पुवाल
  • 10 कि0ग्रा0 सीरा
  • 2 कि0ग्रा0 यूरिया
  • 1 कि0ग्रा0 मिनिरल मिश्रण
  • 1 कि0ग्रा0 नमक

इस मिश्रण को 10 लीटर पानी में घोलकर तूड़ी के ऊपर छिड़क कर अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए। उसी तरह से 4 कि0ग्रा0 यूरिया को 60 लीटर पानी में घोल कर 100 कि0ग्रा0 भूसा या पुवाल की कई परत बनाकर हर परत पर छिड़क देना चाहिए और उसे 3-4 सप्ताह के लिए पॉलिथीन की चादर से ढक कर रख देना चाहिए। उपचारित चारे को निकाल कर थोड़ी देर खुला छोड़ देना चाहिए फिर खिलाना चाहिए। यह आपातकालीन स्थिति के लिए बहुत अच्छा होता है।

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3. स्वच्छ पानी की उपलब्धता

पशुओं को बरसात एवं पोखर का पानी नहीं पीने देना चाहिए, क्यांेकि उसमें अन्तः परजीवी होते है, जो पानी के साथ पेट में चले जाते है और पशुओ में भूख की कमी, कब्ज, दस्त, खूनी दस्त तथा घेंघा फूलने जैसी बीमारियाँ उत्पन्न करते है। पशुओं को पानी पिलाकर ही चरने भेजना चाहिए और वापस आने पर घर का ही पानी पिलाना चाहिए। पीने वाले पानी को स्टैण्ड पर रखना चाहिए जिससे उसमें नमी एवं गन्दगी न पहुच सके और पशु अन्तः परजीवी के संक्रमण से बच सके।

4. कृमिनाशक दवाओं का उपयोग
इस मौसम में अधिक अर्द्रता के कारण परजीवी कीड़े पैदा हो जाते है, जो विभिन्न प्रकार के रोग का कारण बन सकते हैं। इस मौसम में अन्तः परजीवी से बचाव हेतु कृमिनाशक दवापान कराना अतिआवश्यक होता है। वाह्य परजीवियों का नियंत्रण भी अत्यधिक आवश्यक होता है, क्योंकि ये वाह्य परजीवी न केवल पशुओं का खून चूसते है, बल्कि कई प्रकार की बिमारियों को भी फैलाते हैं। वाह्य परजीवियों से बचने के लिए अपने स्थानीय पशुचिकित्सालय से बुटाक्स दवा लाकर 2 मिलीलीटर दवा को 1 लीटर पानी में घोल लीजिए और पशु के शरीर पर मलते हुए लगाना चाहिए। बचे हुए घोल को जिस स्थान पर पशु को बांधते हो वहाँ की जमीन और दीवार पर डाल दे। पशु को लगाने के 24 घण्टे बाद नहलाना चाहिए। इसी प्रकार पशु को अन्तः परजीवी के संक्रमण से बचने के लिए स्थानीय पशु चिकित्सक की सलाह से कृमिनाशक दवा की एक-एक खुराक खिलाना चाहिए। बड़े पशुओ को भी 6-7 महीने के अन्तराल पर वर्ष में 2 बार पेट के कीड़े की दवा जरूर देनी चाहिए।

5. टीकाकरण
मनुष्यों की भांति पशुओं में भी रोग प्रतिरक्षा हेतु टीकाकरण बहुत जरूरी होता है। यह टीकाकरण न उन्हे सिर्फ सूक्ष्म जीवों के संक्रमण से बचाता है, बल्कि विभिन्न बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। पशुओं के नियमित टीकाकरण न सिर्फ पशुपालक की दवाइयों पर होने वाले खर्च को कम करता है, बल्कि एक बेहतर उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होता है। टीका एक स्वास्थ्य उत्पाद है, जो पशुओं की सुरक्षात्मक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ विभिन्न रोग के कारकों जैसे-जीवाणु, विषाणु एवं कवक के संक्रमण से लड़ने के लिए भी शरीर को तैयार करता है। टीकाकरण के द्वारा विश्व में करोड़ो जानवरों के जीवन को विभिन्न संक्रामक रोगो से बचाया जाता है। इस प्रकार पशुपालको का यह उत्तरदायित्व तथा कर्तव्य बनता है कि वह अपने पशुओं को उचित समय पर अपने पास के पशुचिकित्सालय से पशु चिकित्सक की सलाह से वर्षा ऋतु की शुरूआत में ही टीकाकरण करवायें तथा प्रतिवर्ष पुनः करवायें। टीकाकरण के द्वारा जूनोटिक बीमारियाँ जो पशुओं से मनुष्यों में फैलती है, को रोका जा सकता है।

टीकाकरण करवाने से पूर्व पशुओं को अन्तः परजीवी नाशक दवा पशु चिकित्सक की सलाह से जरूर देनी चाहिए। टीकाकरण के तुरंत बाद पशुओं को खराब मौसम से बचाना चाहिए एवं अत्यधिक व्यायाम नही कराना चाहिए। टीकाकरण के बाद चारे में खनिज मिश्रण का प्रयोग कम से कम 45 दिन तक करें। पशुओं में पहला टीका लगभग 6 माह की उम्र में लगता है और इसके बाद प्रतिवर्ष पुनः लगवाया जाता है।

6. दुधारू पशुओं की देखभाल
बरसात के दिनों में दुधारू पशुओं में थन की बीमारी हो जाती है, जिसको थनैला कहते हैं। दुधारू पशुओं के रहने वाले स्थान को साफ-सुथरा रखना चाहिए, जिससे बीमारी फैलाने वाले कारको की संख्या बढ़ न सकें। यह रोग थन में चोट लगने, पीते समय दांत लगने, गलत तरीके से दूध निकालने, पशु को गीले, गन्दे एवं कीचड़ भरे स्थान पर रखने से होता हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पशु का दूध निकालने के बाद हाथों को अच्छी तरह से साफ करके ही दूसरे पशु का दूध निकालना चाहिए। दूध निकालने के तुरन्त बाद पशु को दाना मिश्रण देना चाहिए जिससे पशु थोड़ी देर तक दुहने के बाद खड़ा रहे जिससे थन के संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।

  • अधिक दुग्ध उत्पादन क्षमता वाले दुधारू पशुओं की 10-15 दिन में दूध की जाॅच मैस्ट्रिप से थनैला रोग हेतु करते रहना चाहिए।
  • खनिज मिश्रण एवं नमक का प्रयोगः-खनिज मिश्रण तथा नमक के प्रयोग से पाचन क्रिया तेज हो जाती हैं अतः सभी दुधारू पशुओं को खनिज मिश्रण तथा नमक जरूर खिलाना चाहिए। दुधारू पशुओं को प्रतिदिन 100 ग्राम खनिज मिश्रण तथा 50 ग्राम नमक अवश्य देना चाहिए, जिससे दुधारू पशुओ का दुग्ध उत्पादन बढ़ता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बनी रहती है।
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7. खुरों का ध्यान
बारिश के मौसम में पशुओं के खुरों का विशेष ध्यान देना चाहिए। इसको किसी एंटीसेप्टिक घोल से धोकर, फिर सूखे कपड़े से पोछकर किसी एंटीसेप्टिक जेल या स्प्रे का प्रयोग करना चाहिए। पशुओं को समतल एवं सूखे स्थान पर रखना चाहिए।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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  1. डाक्टर साहब की टीम द्वारा जो पशुपालन के सम्बन्ध में जो जानकारी दी गई है उससे हम लोग लाभान्वित होंगे।

  2. पशुपालन के लिए एवं उनसे सम्बन्धित जानकारी के लिए बहुत अच्छी एवं सुविधाजनक लेख है

  3. बहुत अच्छी जानकारी एवम बहुत ही सरल भाषा मे जिससे हम लोगो व पशु पालकों को खुद भी समझने मे आसान । निश्चित ही पशुपालकों को अच्छी जमकारी दी गई है बहुत बहुत धन्यवाद ।

  4. Congratulations to the author for publishing such a brief and informative article. I am sure it will help our farmers (अन्नदाता) to take proper management of their livestock.

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