पशुओं में होने वाला अफारा एवं उससे बचाव

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अफारा या पेट फूलने या फुगारे की समस्या रोमांथी पशु जैसे कि गाय, भैंस, बकरी, भेड़ इत्यादि में आजकल प्रायः देखने में आती है। रोमांथी पशु या जुगाली करने वाले पशुओं का पेट चार भागों में विभाजित होता है, 1. रूमन 2. रेटिकुलम 3. ओमेसम 4.अबोमेसम। जिनमें रुमन सबसे बड़ा भाग होता है, इसका कार्य आहार संग्रहण एवं पाचन करना है । इसमें विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव जैसे कि जीवाणु, कवक, प्रोटोज़ोआ आदि अत्यधिक मात्रा में उपस्थित होते हैं जो कि आहार को पचाने एवं जीवाण्विक प्रोटीन के निर्माण का कार्य करते हैं।

विभिन्न सूक्ष्मजीव वाला अफारा: इसमें गैसें पशु के पेट में झाग के रूप में बंद हो जाती है और शरीर से निकल नहीं पाती । फोम या झाग बनने के कारण पेट फूलने लगता है। जब पशु अत्यधिक मात्रा में दलहनी या लेग्यूम हरा चारा जैसे कि बरसीम, लूसर्न आदि जो कि बहुत अधिक रसीला होता है, खा लेता है तो उसमें उपस्थित प्रोटीन एवं सैपोनिन जैसे कारक रुमन के तरल पदार्थ को चिपचिपा बना देते हैं एवं इस चिपचिपे पदार्थ में गैस प्रवेश कर जाती है जिससे फोम जैसे पदार्थ का निर्माण होने लगता है। साथ ही यह स्थिति तब भी उत्पन्न हो सकती है जब आसानी से पचने वाला अनाज बहुत महीन पीसकर पशु को खिलाया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप पेट में गैस बनने लगती है एवं पशु का पेट फूलने लगता है।

द्वितीयक अफारा या गैस वाला अफारा: यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी कारण से पशु के आहारनाल में कोईं अवरोध उत्पन्न हो जाये जैसे कि कोईं गठान का हो जाना या आलू आदि पदार्थ का अटक जाना इत्यादि, इस कारण से बनने वाली गैस शरीर से बाहर नहीं निकल पाती है और पशु का पेट फूलने लगता है।

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इन दोनों प्रकार के अफारा में पशु का पेट फूलने लगता है और अगर समय पर इलाज या उपाय नहीं किया गया तो पशु शरीर के फेफड़े गैस बनने के कारण दबाव में आ सकते हैं और पशु की मृत्यु तक हो सकती है।
लक्षण
पशु में अफारा होने पर विभिन्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे कि:

  • पशु का बायीं ओर का पेट बहुत अधिक फूला दिखाई देता है एवं उंगलियो से थपकी देने पर ढोलक सी आवाज़ आती है।
  • पशु आहार ग्रहण करना बंद कर देता है।
  • पशु को चलने में कठनाई होती है।
  • पशु को श्वांस लेने में कष्ट होने लगता है एवं वह मुँह से श्वांस लेने की कोशिश करता है।
  • पशु की हृदय गति तीव्र हो जाती है।
  • पशु अपने पेट की ओर बार बार देखता है एवं लात मारता है।
  • गंभीर परिस्थितियों में पशु लेट जाता है एवं उठने में अक्षम होता है।

अफारा से बचाव एवं उपचार
जैसा कि हमने पढ़ा कि अफारा पशु के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या हो सकती है जो कि पशु की मृत्यु तक का कारण बन सकती है अतः इससे बचाव करना बहुत ही आवश्यक है जो कि निम्न बातों का ध्यान रखकर किया जा सकता है:

  • पशु को कभी भी अत्यधिक बारीक पिसा हुआ अनाज नहीं खिलाना चाहिए, जो भी अनाज या कंसन्ट्रेट हम पशु को खिलाते हैं वो मोटा दरदरा पिसा हुआ होना चाहिए।
  • पशु आहार में अचानक परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
  • पशु को कभी भी बहुत सारा दलहनी एवं लसलसा हरा चारा एक साथ नहीं देना चाहिए या फिर हरे चारे के साथ भूसा या सूखा चारा मिक्स करके खिलाना चाहिए।
  • चारे के साथ एन्टी फोमिंग तत्व मिलाकर भी पशुओं को खिलाया जा सकता है।
  • अगर पशु में अफारा की समस्या उत्पन्न हो जाती है तो तुरंत पशुचिकित्सक की परामर्श से अफरा को कम करने वाली दवाइयां जैसे ब्लोटोसिल आदि पिला सकते हैं।
  • पशु चिकित्सक ट्रोकार व कैनुला जैसे उपकरण से पशु के पेट से गैस निकालते हैं या अधिक गंभीर अवस्था में आवश्यक शल्य चिकित्सा भी करते हैं।
  • पशु को अफारा होने की स्थिति में उसे वनस्पति तेल (सोयाबीन या मूंगफली) पिलाना चाहिए (200-500 मिलीलीटर), साथ ही उसे मिनरल तेल जैसे कि पैराफिन (100-200 मिली लीटर) भी पिला सकते हैं।
  • अफारा होने पर तुरंत ही हरा चारा बन्द कर देना चाहिए।
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अफारा पशुओं में अनुवांशिक भी हो सकता है जिसमें पशु बार बार इस समस्या से गुज़रता है, इसलिए हमेशा पशुओं के आहार से लेकर उपचार तक जो भी आवश्यक हो, विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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