हरियाणा प्रदेश पशुधन रखने के मामले में देश का अग्रणी प्रदेश रहा है। यहाँ के पशुपालक देश भर में उत्तम नस्ल के पशु रखने वाले माने जाते हैं। परन्तु आज के समय में परम्परागत पशुपालन के तरीकों से उत्तम नस्ल के पशुओं को पालना, उनकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करना एक दुष्कर कार्य सा लगता है। पशु पालक को मौसम के अनुसार ढेर सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें से एक है पुरे साल भर पशु को पौषक चारा खिलाना जिससे कि पशु अपना उत्पादन और प्रजनन सुचारु रूप से कर सके। पशुओं से अधिकतम दुग्धउत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रर्याप्त मात्रा में पौषिटक चारे की आवश्यकता होती है। इन चारों को पशुपालक या तो स्वयं उगाता हैं या फिर कहीं और से खरीद कर लाता है। दुधारू पशुओं को संतुलित आहार के रूप में हरा चारा खिलाना पशुओं की स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद ही आवश्यक व महत्वपूर्ण हैं। किसान भाईयों को यह बात जानना बेहद आवश्यक है कि हरा चारा पशुओं के लिए पौष्टिक आहार होने के साथ-साथ यह आपके पशुओं को निरोग रखता है। पशुपालक हरे चारे के रूप में बरसीम, नैपियर घास, जई, मक्का, बाजरा, लोबिया, उड़द व मूंग आदि का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिए करते हैं। चारे को अधिकांशत: हरी अवस्था में पशुओं को खिलाया जाता है तथा इसकी अतिरिक्त मात्रा को सुखाकर भविष्य में प्रयोग करने के लिए भंडारण कर लिया जाता है। ताकि हरे चारे की कमी के समय उसका प्रयोग पशुओं को खिलाने के लिए किया जा सके। लेकिन इस तरह हरा चारा साल भर नहीं मिल पाता है। गरमी के मौसम में पशुपालक अपने पशुओं को सिर्फ सूखा चारा व दाना खिलाने पर मजबूर होते है इस से दुधारू पशु कम दूध देने लगते हैं। अधिकतर किसान भूसा या पुआल का उपयोग करते हैं जिनमे प्रोटीन, खनिज तत्व एवं उर्जा की उपलब्धता कम होती है। ऐसी स्थिति में किसान यह सोच कर परेशान होते हैं कि अपने पशुओं को हरे चारे की जगह क्या खिलाएं। हरे चारे का भंडा़रण यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाये तो उसकी पौषिटकता में कोई कमी नहीं आती तथा कुछ खास तरीकों से इस चारे को उपचारित करके रखने से उसकी पौषिटकता को काफी हद तक बढाया भी जा सकता है। हरे चारे को अधिकांश पौषक तत्वों के साथ संरक्षित करने के लिए साइलेज एक बेहतर विकलप हो सकता है।
सबसे पहले तो ये कि साइलेज होता क्या है?
साइलेज उस पदार्थ को कहते हैं जब अधिक नमी वाले चारे को हवा रहित व् नियंत्रित जगह पर रखा जाता है। साइलेज बनाने के लिए गड्ढे की आवश्यकता होती है जिसे साइलो कहते हैं। जब हरे चारे का हवा की अनुपस्थिति में फर्मेंटेशन या किण्वन किया जाता है तो लैक्टिक अम्ल पैदा होता है। यह हरे चारे को अधिक समय तक सुरक्षित रखने में सहायक होता है। इसको देसी भाषा में पशुओं का अचार भी कहा जाता है।
साइलेज के गड्ढे/साइलोपिट्स
साइलेज जिस प्रकार के गड्ढों में बनाया जाता है उन्हें साइलोपिट्स कहते हैं| साइलोपिट्स कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे ट्रेन्च साइलो, पिट साइलो, टॉवर साइलो, आदि | आजकल साइलो बैग भी इस्तेमाल में लिए जाते हैं, जिनमे साइलेज को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता है
साईलेज के गड्ढों के लिए जगह का चुनाव
साईलेज बनाने की प्रक्रिया में गड्ढो के लिए जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है।
- गड्ढे हमेशा उॅंचे स्थान पर बनाने चाहिए जहां से वर्षा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सके।
- भूमि में पानी का स्तर नीचे हो।
- साइलो पिट की दीवारों में एयर पॉकेट नहीं होना चाहिए।
- दबाव को झेलने के लिए दीवारें मजबूत और कठोर होनी चाहिए।
- साईलेज बनाने का स्थान पशुशाला के नजदीक हो।
गड्ढे बनाना
साईलेज बनाने के लिए गड्ढे कई प्रकार के होते हैं। गड्ढो का आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। आठ फुट व्यास तथा 12 फुट गहराई वाले गड्ढे में 4 पशुओं के लिए तीन माह तक का साइलेज बनाया जा सकता है| गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों और सीमेंट एवं ईंटो से भली भांति भराई कर देनी चाहिए। जहॉं ऐसा सम्भव न हो सके वहॉं पर चारों और तथा धरातल की गीली मिटटी से खुब लिपाई कर देनी चाहिए। और इनके साथ सूखे चारा की एक तह लगा देनी चाहिए या चारों और दीवारों के साथ पोलीथीन लगा दें।
साइलेज बनाने की विधि: साईलेज बनाने की विधि के प्रमुख चरण
साइलेज बनाने के लिए उत्तम फसलें
अच्छा साइलेज बनाने के लिए यह आवश्यक है कि फसल का चुनाव अच्छी प्रकार से किया जाय और उसे ठीक अवस्था में काटकर कुट्टी की जाए। दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि साईलेज बनाने के लिए उतम फसले हैं क्योंकि इनमें कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) की मात्रा अधिक होती है। कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से दबे चारे में किण्वन क्रिया तीव्र होती है। जिस चारे में शर्करा की मात्रा कम होगी तो उससे अच्छा साइलेज नहीं बनेगा। दलहनीय फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता परन्तु दलहनीय फसलों को दाने वाली फसलों के साथ मिलाकर उसके ऊपर लगभग 3-5 प्रतिशत शीरा मिलाकर उत्तम किस्म का साइलेज तैयार कर सकते हैं। शीरा या गुड़ के घोल का उपयोग से लैक्टिक अम्ल की मात्रा बढाई जा सकती है।
साईलेज बनाने के लिए फसल की कटाई की अवस्था
दाने वाली फसलों जैसे मक्का, ज्वार, जई आदि को साईलेज बनाने के लिए जब दाने दूधि्या अवस्था हो तो काटना चाहिए। इस समय चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहता है। अगर पानी की मात्रा अधिक है तो चारे को थोडा सुखा लेना चाहिए।
चारे में नमी की मात्रा
चारे में नमी की मात्रा लगभग 65-70 प्रतिशत तक होनी चाहिए। यदि नमी 75 प्रतिशत से ऊपर है तो चारे को कटाई के बाद कुछ समय के लिए सूखा लेना चाहिए ताकि नमी की मात्रा 65 से 70 के लगभग हो जाये। अत्यधिक नमी वाले चारे से रसों का रिसाव अधिक मात्रा में होता है, जो की एक प्रकार का नुकसान होता है। इससे अंत में जो साइलेज बनता है उसकी पौष्टिकता कम हो जाती है।
चारे की कटाई
जब चारे में नमी 65-70 प्रतिशत के लगभग रह जाये उसे कुट्टी काटने वाली मशीन से छोटे-छोटे टुकडों में काट देना चाहिए। चारे की कटाई करने से कम जगह में अधिक चारा भरा जा सकता है व् साथ ही इसमें हवा भी कम से कम मिलेगी।
चारे की गड्ढों में भराई
कटे हुए चारे को गड्ढों में अच्छी तरह दबाकर भर देना चाहिए ताकी कटे हुए चारे के बीच में कम से कम हवा रहे। कुट्टी बनाने से कम जगह से अधिक चारा भरा जा सकता है। छोटे गड्ढों को आदमी पैरो से दबा सकते हैं जबकि बडे गड्ढे ट्रैक्टर चलाकर दबा देने चाहिए। चारे को साइलो की दीवारों से 2-3 फुट ऊंचाई तक भरे, जिससे दबने पर बना हुआ साइलेज जमीन के स्तर से ऊपर रहे और बरसात का पानी गड्ढों में ना जाए। भराई के बाद उपर से गुम्बदाकार बना दें और पोलिथीन या सूखे घास से ढक कर मिट्टी अच्छी तरह दबा दें और उपर से लिपाई कर दें ताकि इस में बाहर से पानी तथा वायु आदि न जा सके।
साइलो पिट को खोलेने की विधि
अच्छी प्रकार से बनाया हुआ साइलेज 45-60 दिन में पशुओं को खिलाने योग्य हो जाता है। सबसे पहले मिट्टी को सावधानीपूर्वक हटा लेना चाहिए और इसके बाद पॉलिथीन की चादर को एक किनारे से हटाना चाहिए। खोलते समय ध्यान रखें कि साईलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए और गडढे का कुछ हिस्सा ही खोला जाए तथा बाद में उसे ढक दें। साइलेज को आवश्यकतानुसार सावधानी से निकालकर पशु को खिलाना चाहिए जिससे साइलेज कम से कम मात्रा में हवा के संपर्क में आए। अन्यथा साइलेज खराब होने की संभावना रहती है। गडढा खोलने के बाद साईलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करना चाहिए। गड्ढे के उपरी भागों और दीवारों के पास में कुछ फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान में रखें कि ऐसा साईलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।
पशुओं को साईलेज खिलाना
सभी प्रकार के पशुओं को साईलेज खिलाया जा सकता है। प्रारम्भ में साइलेज को थोड़ी मात्रा में अन्य चारों के साथ मिला कर पशु को खिलाना चाहिए तथा धीरे-धीरे पशुओं को इसका स्वाद लग जाने पर इसकी मात्रा 20-30 किलो ग्राम प्रति पशु तक बढायी जा सकती है| एक भाग सूखा चारा, एक भाग साईलेज मिलाकर खिलाना चाहिए यदि हरे चारे की कमी हो तो साईलेज की मात्रा ज्यादा की जा सकती है। एक सामान्य पशु को 20-25 किलोग्राम साईलेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। भेड़बकरियों को खिलाई जाने वाली मात्रा 5 किलोग्राम तक रखी जाती है। दुधारू पशुओं को साईलेज दूध निकालने के बाद खिलायें ताकि दूध में साईलेज की गन्ध न आ सके। यह देखा गया है कि बढिया साईलेज में 85-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व होते हैं। इसलिए हरे चारे की कमी के समय साईलेज खिलाकर पशुओं को दूध उत्पादन बढाया जा सकता है।
गुणवत्ता के आधार पर साइलेज का प्रकार
- अच्छा साइलेज: pH 3.5-4.2, ब्यूटाइरिक अम्ल 0.2 प्रतिशत से कम, लैक्टिक अम्ल की गंध युक्त, हल्का पीला, हरा व भूरा रंग।
- खिलाने के अयोग्य: pH 4.8 से ज्यादा, ब्यूटाइरिक अम्ल 0.2 प्रतिशत से ज्यादा, ब्यूटाइरिक अम्ल और अमोनिया की गंध युक्त, काला रंग, फफूंद व कवक युक्त।
अच्छा साइलेज बनाने के लिए आवश्यक बातें
- हरे चारे में नमी का प्रतिशत 65 से 70 के बीच होना चाहिए।
- साइलेज बनाने वाला गड्ढ़ा उस स्थान पर होना चाहिए जहां बरसात का पानी ना जा सके।
- हरे चारे को कुट्टी बनाकर ही गड्ढों में भरना चाहिए।
- साइलेज बनाने के लिए शर्करा युक्त चारा जो कि फूल आने की अवस्था पर हो, का ही चयन करना चाहिए।
- साइलेज बनाने के लिए मक्का, ज्वार, जई, लूटसन, नेपियर घास, लोबिया, बरसीम, रिजका, लेग्यूम्स, जवी, बाजरा व अंजन घास इत्यादि का प्रयोग कर सकते हैं।
- एक दुधारू पशु जिस का औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे 25 किलोग्राम की मात्रा में साइलेज खिलाया जा सकता है।
साइलेज बनाने के फायदे
- साइलेज सुपाच्य और अधिक पोषक तत्व के कारण पशुओं को खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
- साइलेज हरे चारे का अच्छा विकल्प है व इसका कोई नकारात्मक असर भी पशुओं पर नहीं पड़ता।
- पशु अपना उत्पादन और प्रजनन सुचारु रूप से कर सकता है।
- पशु पालक को परिणाम स्वरुप दुग्ध उत्पादन में वृद्धि और पशुओं का अच्छा स्वास्थ्य मिलता है।
- हरे चारे की मांग व् आपूर्ति के अंतर को पूरा करने में सहायक होता है।
- पुरे वर्ष हरे चारे की उपलब्धता बनाये रखने में सहायक है।
- यह अतिरिक्त चारे के विवेकपूर्ण उपयोग में मदद करता है।
- खरपतवारों का कुशलता से उपयोग किया जा सकता है।
- यह प्रक्रिया चारे के पोषण मूल्य को 85% तक सुरक्षित रखती है।
- इसमें उत्पादित होने वाले कार्बनिक अम्ल, जुगाली करने वालों के पाचन तंत्र में उत्पन्न होने वाले अम्ल के समान ही होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप पशु की पाचन क्रिया पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
- साइलेज बनाने की प्रक्रिया में कम जगह की आवश्यकता होती है।
- यह एक बेहतर चारागाह प्रबंधन प्रथा में भी मदद करता है।
प्रक्रिया को न अपनाने के कारण
- ज्ञान और कौशल का अभाव
- उच्च प्रारंभिक लागत
- यदि ठीक तरह से न बनाया जाये तो अधिक नुकसान का डर
- अधिक संरक्षक के इस्तेमाल से लगत में होने वाली वृद्धि
- बोझिल प्रक्रिया
- श्रम घनिष्ठ
किसान तैयार किए गए साइलेज को खरीदने के लिए तैयार होते हैं, जो किसान की इसे खिलाने की इच्छा को इंगित करता है, लेकिन वह इसे खुद बनाने के लिए तैयार नहीं है।
Sailage chahiye
200 kg
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