मादा पशुओं में गर्भ निर्धारण का प्रमुख उद्देश्य गाभिन न हो ले पशुओं की जाँच करना तथा उनकों जल्दी से जल्दी सामान्य ऋतु चक्र में लाकर गर्भ धारण करना है। जिससे मादा पशुओं में दो बच्चों के बीच का अन्तर कम किया जा सके और पशु पालक अत्याधिक लाभ अर्जित कर सके।
मादा पशुओं में गर्भ निर्धारण की प्रमुख विधियां निम्नलिखित है:
- प्रबन्धन विधि द्वारा गर्भ निरधारण
- चिकित्सीय विधि द्वारा गर्भ निरधारण
- इम्युनोलोजिकल विधि द्वारा गर्भ निरधारण
प्रबन्धन विधि द्वारा गर्भ निरधारण
मादा पशुओं में ऋतु चक्र का बन्द हो जाना: सामान्य रूप में मादा पशु में ऋतु चक्र चलता रहता है लेकिन मादा पशु के गर्भधारण कर लेने पर उसमे होने वाला ऋतु चक्र हो जाता है। सामान्य रूप में मादा पशु के ऋतु चक्र बन्द हो जाने पर हम यह कह सकते है मादा पशु में गर्भघारण कर लिया है।
मादा पशुओं के अयन, थन या टीटस में होने वाला बदलाव: मादा पशुओ में गर्भ घारण के 6 महीने बाद अयनों में सूजन आने लगती है। तथा धीरे- धीरे बडे़ होने लगते है टीटस धीरे-धीरे बड़े होने लगते है तथा उसमें से मोम जैसा श्राव निकलता। पशु के व्याने के 14 दिन पहले से अयन काफी बड़े हो जाते है। मादा पशुओं में गर्भावस्था के सात महीने बाद से पेट के बायीं या दायीं तरफ बच्चे के कारण उभरने लगता है।
चिकित्सीय बिधि द्वारा गर्भ निर्धारण
पर-रेक्टल विधि द्वारा गर्भधारण की जाँच करना: यह बडे. पशुओं में गर्भ निर्धारण का सबसे अच्छा और सस्ता तरीका है। इसमें सबसे पहले पशु को अच्छी तरह से बाँध लेते है। जाँच करने से पहले हाथ के नाखून को अच्छी तरह काट लेते है तथा हाथ को साबुन इत्यादि के द्वारा चिकना कर लेते है जिससे मादा पशु के रेक्टम से खून के निकलने से बचा जा सके। गर्भाधान की जाँच करने से पहले मादा पशु के रेक्टम से गोबर को अच्छी तरीके से निकाल लेते है-
हाथ द्वारा पर-रेक्टल करने पर गाभिन पशुओं मे कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार दिखाई देते है:
गर्भावस्था का समय तथा गर्भावस्था के लक्षण
1 माह- गर्भाषय के दोनो हार्न छोटे-बड़े हो जाते है तथा गर्भाशय में कबूतर के अण्डे जितना बड़ा उभार आ जाता है।
1-2 माह- मादा पशुओ के उपरी सतह पर उभार बड़ा होने लगता है।
3 माह- गर्भाषय की जाँच करने पर उभरा हुआ 1-11/2 लीटर गुब्बारे में पानी भरा हुआ जैसी सरंचना महसूस की जा सकती है।
3 माह- मादा पशु का गर्भाशय आगे पेट की गुहा अबडोमीनल कैविटी की तरफ बढ़ने लगता है।
4 माह- प्लेसेन्टोम पाया जाता है तथा गर्भाशय का आकार बढ़कर 12.5-18.5 से.मी. का हो जाता है।
5 माह- गर्भाशय पेट की गुहा की सतह पर पहुॅंच जाता है। तथा महसूस करने में कठिनाई होती है।
6 महीना- भ्रूण तथा भ्रूण की हडिडयों को महसूस किया जा सकता है।
7 माह- भ्रूण को आसानी से बच्चा देने तक महसूस किया जा सकता है तथा फ्रीमीटस भी देखा जा सकता है।
पर-रेक्टल के द्वारा गर्भाधान की जाँच करने में कुछ प्रमुख बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए:
- अमनिओटिक वेसीकिल की जाँच करना
- भ्रूण की ष्लेश्मा की जाँच करना
- गर्भाषय के एक हार्न का बडा होना
- भ्रूण की उपस्थिति की जाँच करना
- सर्विक्स की जाँच करना
- फ्रीमीटस तथा गर्भाशय में खून ले जाने वाली बीच वाली गर्भाशय धमनी के बंद पाने का पता करना।
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