फरवरी/ माघ माह में पशुपालन कार्यों का विवरण

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  1. बाहरी परजीवी से बचाव हेतु दवा से नहलाये या पशु चिकित्सक के परामर्श से इंजेक्शन लगवाएं।
  2. गर्मी में आए पशुओं का उचित समय पर कृत्रिम गर्भाधान कराएं। 95% बछिया प्राप्त करने के लिए सेक्स शॉर्टेड सीमेंन, अर्थात लिंग निर्धारित वीर्य का प्रयोग कृत्रिम गर्भाधान में कराएं।
  3. खुर पका मुंह पका रोग से बचाव हेतु समुचित टीकाकरण अवश्य कराएं।
  4. गर्भ परीक्षण कराएं एवं अनुउर्वर पशुओं का सम्यक जांच उपरांत उपचार कराएं जिससे दो बयॉतों के बीच का अंतराल कम हो सके।
  5. नवजात शिशुओं को अंत: परजीवी नाशक औषधि बदल बदल कर 6 माह तक प्रत्येक माह दे। मादा पशु को प्रत्येक 3 महीने पर अंतः क्रमी नाशक औषधि अवश्य दें ।
  6. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए संपूर्ण दूध को मुट्ठी बांधकर निकालें। दूध निकालने से पूर्व एवं दूध निकालने के पश्चात थनों को 1:1000 के पोटेशियम परमैंगनेट घोल, से धुलाई करें। दूध निकालने के पश्चात पशु को आहार अवश्य दें ताकि वह कम से कम आधे घंटे तक जमीन पर न बैठे। क्योंकि दूध निकालने के पश्चात करीब 20 मिनट तक टीट कैनाल खुली रहती है जमीन पर बैठने के कारण संक्रमण से थनैला रोग होने की संभावना बन सकती है। बच्चे को जितना दूध पिलाना है उसे दूध निकालने से पहले पिला देना है परंतु दूध निकालने के पश्चात बच्चे को दूध ना पिलाएं क्योंकि दूध की कमी होने से बच्चा थन को काट सकता है।
  7. बरसीम रिजका व जई, की सिंचाई क्रमशः 12 से 14 दिन एवं 18 से 20 दिन के अंतराल पर करें।
  8. बरसीम रिजका एवं जई से सूखा चारा या अचार अर्थात साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय  के लिए सुरक्षित रखें ।
  9. गर्भित एवं दुधारू पशुओं को 50 ग्राम खनिज मिश्रण एवं 50 ग्राम नमक प्रतिदिन अवश्य दें।
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