पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल कैसे करें: एक परिचय

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भारतीय अर्थव्यस्था में पशुपालन का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है, खासकर ग्रामीण किसानो की आय का प्रमुख स्रोत पशुपालन ही है। किसानों के लिए सुचारु पशुपालन पशु के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ सुरू होता है। पशु का खराब स्वास्थ्य पशु के दुग्ध उत्पादन को अत्यधिक प्रभावित करता है। इसीलिए किसान को प्रमुख बीमारियों एवं इससे बचाव के बारे मे जानना अति आवश्यक है। इसीलिए पशुपालक को अपने पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सावधानियां बरतनी चाहिए। किसी बीमारी को नियंत्रित करने का पहला चरण उसका निदान है। यदि पशुपालक बीमारी या बीमारी के कारण को पहचान लेता है, तो वह उससे बचाव का निदान भी स्वयं कर सकता है। इसलिए, पशुपालक को अपने पशुओं का प्रतिदिन निरीक्षण करना चाहिए और किसी भी पशु के  बीमार होने की घटना का तुरंत अध्ययन करना चाहिए और आवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। समस्या होने पर तत्काल पंजीकृत पशु चिकित्सक की मदद लेनी चाहिए।

पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल

पशुओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के महत्वपूर्ण उपाय

  • स्वास्थ्य पशु को संक्रमित पशु के संपर्क मे ना आने दें और पशुओं के बाड़े मे ज्यादा भीड़ ना होने दें।
  • नवजात एवं छोटे जानवरों को वयस्कों से अलग रखें तथा किसी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर पशुचिकित्सक की सलाह अवश्य लें, और अनावश्यक हानि होने से बचें।
  • बाड़े मे टिक, जूँ, घुन को ना पनपने दें, और शिकारी जानवरों को नियंत्रित करने का उपाय करें।
  • पशुओं मे होने वाली बीमारिओ के प्रमुख स्रोतों की पहचान कर उनका निवारण करें।
  • पशुओं की नाद को रोजाना साफ करते रहें और पुराने चारे को हटा कर नया चारा डालें।
  • पीने के लिए स्वच्छ पानी का उपाय करें तथा बाड़े के धरातल को साफ और सूखा रखें तथा समय समय पर कीटाणुरहित दवा की छिड़काव करें।
  • पशुओं की पोषण संबंधी सभी आवश्यकताओं को उसके जीवनकाल के आधार पर देना चाहिए।
  • समय-समय पर रोग से बचाव के लिए टीकाकरण (कभी बीमार पशुओं का टीकाकरण न करें) करवाएं और टीका तथा किसी चिकित्सा की घटना का रिकॉर्ड बना कर रखें।
  • बाड़े मे काम करने वाले कर्मियों की स्वच्छता बनाए रखें तथा बाड़े मे प्रवेश से पहले कीटाणुनाशक युक्त दवा डालकर फुटबाथ का उपयोग करें।
  • यदि पशु बाहर चरने जाते हैं तो, समय-समय पर पशु चरागाह बदलें।
  • यदि किसी गंभीर बीमारी से पशु की मृत्यु हो जाती है तो भूमिगत 6 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमे चूना डालकर पशु को दफ़नाएं।
  • समय समय पर पशु के स्वास्थ की जांच करें और किसी नई तरह के लक्षण दिखने पर आवश्यक रोग नियंत्रण अधिकारियों को बीमारी के प्रकोप से अवगत कराएं।
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पशुओं को अलग करना

  • इसका मुख्य तात्पर्य जानवरों का अलगाव है, यदि स्वास्थ पशु किसी संक्रामक बीमारी से प्रभावित होने के लिए संदिग्ध हो तो उसे तत्काल अलग कर देना चाहिए ।
  • अलग किए गए पशु को सामान्य पशुओं के बाड़ों से दूर स्थित एक अलग स्थान (आइसोलेशन वार्ड) में रखा जाना चाहिए।
  • यदि एक अलग बाड़ा उपलब्ध नहीं है, तो अलग किए गए पशु को उसी बाड़े मे एक छोर पर रखा जाना चाहिए।
  • हमेशा स्वस्थ पशु के बाद ही बीमार जानवरों का दैनिक कार्य करना चाहिए जिससे संक्रमण स्वास्थ पशुओं मे ना जाए। और अगले दिन स्वस्थ पशुओं पर उपयोग किए जाने से पहले उपकरण पूरी तरह से कीटाणुरहित किया जाना चाहिए।
  • बीमार पशु के बाड़े मे कामगार कर्मियों को अपने हाथों और पैरों को एंटीसेप्टिक घोल में धोना चाहिए और उन कपड़ों को त्यागना चाहिए जिनमें उसने काम किया था।
  • जब बीमारी का प्रकोप समाप्त हो जाए और पशु पूरी तरह से ठीक हो जाएं तो उन्हे पुराने पशुओं के झुंड में वापस लाया जाना चाहिए।

संगरोध (कोरेंटाइन)

  • संगरोध एक ऐसी व्यवस्था है जिसमे, स्पष्ट रूप से स्वस्थ जानवरों (जिन पशुओं को बाहर से पहली बार) को एक निश्चित समय अवधि के लिए अलग रखा जाता है।
  • यह व्यवस्था किसी भी संक्रामक बीमारी के लिए पर्याप्त समय देने के लिए है कि संगरोध जानवर सक्रिय और स्पष्ट हो सकते हैं।
  • इसलिए, संगरोध अवधि किसी बीमारी के ऊष्मायन अवधि पर निर्भर करती है। लेकिन सामान्यतः संगरोध अवधि 30 दिनों तक माना जाता है जो की लगभग सभी बीमारियों को कवर करती है। रेबीज (कुत्ते के काटने से होने वाली बीमारी) के लिए, संगरोध अवधि लगभग छह महीने होनी चाहिए।
  • संगरोध अवधि के दौरान लगभग 23 वें / 24 वें दिन मल परीक्षण और डी-वर्मिंग द्वारा, परजीवी संक्रमण की अच्छी तरह से जांच करवानी चाहिए।
  • यदि बाहर से लाए गए पशुओं के उपेर परजीवी हैं तो  25 वें / 26 वें दिन बाह्य किटाणु रोधी दवा मे डुबकी या छिड़काव करना चाहिए।
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पशुओं का टीकाकरण (वैक्सीनेसन)

  • पशुओं को विशिष्ट संक्रामक रोगों से बचाने के लिए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए टीकाकरण बहुत ही आवश्यक है।
  • वैक्सीन शब्द का इस्तेमाल एक एंटीजन (रोग कारक जीव) से होता है, जिसमें एक जीवित, सजीव या मृत जीवाणु, वायरस या कवक का उपयोग किया जाता है, और पशुओं मे सक्रिय प्रतिरक्षा बनाने के लिए प्रयोग मे लाया जाता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता

  • जब किसी विशेष बीमारी के लिए टीकाकरण पशुओं मे किया जाता है,  तो 14-21 दिनों के बाद, विशेष रोग के खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन हो जाता है, जो रोग के खिलाफ सक्रिय प्रतिरक्षा का कार्य करता है और पशु को उक्त बीमारी के आक्रमण से बचाता है।
  • कुछ बीमारियों के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा हासिल करने के लिए पहले टीकाकरण के बाद एक बूस्टर खुराक की आवश्यकता होती है।

अंगूठी टीकाकरण (रिंग वैक्सीनेसन)

  • यदि किसी क्षेत्र में  वास्तविक संक्रमण फैल गया है तब उस दशा में रिंग वैक्सीनेसन का उपयोग किया जाता है जिसमे प्रभावित क्षेत्र के चारों ओर एक प्रतिरक्षा क्षेत्र विकसित किया जाता है। संक्रमण के 5 किमी के दायरे में सभी अतिसंवेदनशील पशुओं का टीकाकरण किया जाता है।
  • रिंग वैक्सीनेसन परिधि से शुरू होकर केंद्र तक पहुंचता है। जिससे बीमारी के प्रसार को रोक जा सकता हैं।

ब्रूसेला वैक्सीनेसन

  • मवेशियों और भैंसों में ब्रुसेलोसिस के नियंत्रण के लिए ब्रूसेला के टीके के बारे में पशुपालक को जानकारी रहना चाहिए।
  • ब्रूसेला के संक्रमण मे पशुओं मे गर्भकाल के तीसरी तिमाही मे गर्भपात हो जाता है।
  • ब्रुसेलोसिस के वक्सीन में जीवित जीव होते हैं, इसलिए इसका उपयोग केवल उन पशुओं के झुंड पर करना चाहिए जहां इस बीमारी की पहचान किसी पशु मे की गई है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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